गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

सुनो स्त्री!

 

सुनो स्त्री! 
आधी आबादी! तुम इस धरती पर आधी आबादी की पूर्ण स्वामिनी हो। जब तुम अपने आप में बहुत कुछ संपूर्ण श्रेष्ठ हो, खुद को कमजोर क्यों समझती हो। तुम प्रेम की पराकाष्ठा हो, तुम स्वयं दुर्गा की शक्ति वाली, किसी कवि की कलात्मक अभिव्यक्ति, सौंदर्य की मूरत, प्रेम, धैर्य, त्याग जैसे गुणों की खान हो, फिर भी सहारे के लिए अपना सिर रखने के लिए किसी के कंधे क्यों तलाशती रहती हो। और आजकल रोजाना फेसबुक पर नित नए पोज, स्टाइल में, सुंदर दिखने की कोशिश में फोटो अपलोड करती रहती हो, डी पी बदलती रहती हो, ये सब क्या है..... हर समय सुंदर दिखना ही जिंदगी का मकसद है क्या? हर समय क्यों चाहती हो कि सब तुम्हारे सौंदर्य की ही प्रशंसा करते रहें। सांचे में ढला शरीर, अपने गोरे रंग पर इतराना, इसमें तुम्हारा क्या योगदान है। क्या तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की कमी है, अगर है तो आत्मविश्वास को बढ़ाओ। किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की मां, गोरा रंग,  सांचे में ढला शरीर, पुरुषों को आकर्षित करने के लिए सजी धजी गुड़िया बनी रहना, इसके अलावा क्या पहचान है, तुम्हारी इस समाज में। अपने किरदार को कुछ ऐसा बनाओ, अपने अंदर कुछ ऐसा पैदा करो कि तुम अपना परिचय अपने नाम से दो। यह धरती, यह आसमान, सबके लिए समान रूप से धूप हवा पानी देती है, तुम क्यों भेदभाव करती हो? इस आबादी को पोषण देने हैं या शोषण करने में भी तुम्हारा बराबर का योगदान है, गेंद दूसरे पाले में फेंक देने से बात नहीं बनेगी। रोना गिड़गिड़ाना बंद करो, जब आप दूसरे को दोष दे रहे होते हैं, तब कहीं ना कहीं अपनी कमियों को भी छुपा रहे होते हैं। ईश्वर ने तो सबको समान रूप से सक्षम बना कर भेजा है, फिर तुम क्यों भेद भाव रखती हो। या तुम भी इसी को भाग्य मान कर चल रही हो। स्वयं को कमजोर, बेचारी साबित कर सहानुभूति बटोरना भी एक बीमारी ही है, और तुम्हें बीमार नहीं रहना है .... ऑफिस में सहयोगी हो या बॉस की बदतमीजियां, या घर पर शादी के बाद पति को ढंग से जान भी नहीं पाती हो और उस के मुंह से शराब के भभके तथा पीठ पर पड़ने वाले लात, घूंसों का मुकाबला तुम्हें और सिर्फ तुम्हें ही करना है। ससुराल को यातना गृह मत बनने दो। दूसरों के वाक् बाणों से स्वयं को छलनी मत होने दो। उठो ओ स्त्री! आधी आबादी! तुम कहां किसी से कम हो, बराबरी वाली दुनिया में तुम हर चीज में श्रेष्ठ हो। बस अपने भूले हुए स्वरूप को याद करने की जरूरत है। 
                           

रविवार, 20 दिसंबर 2020

प्रेमिकाएं/पत्नियां

 ✍️ प्रेमिकाएं / पत्नियां

प्रेमिकाएं! स्वप्न सुनहरी, 

तो पत्नियां कटु यथार्थ होती हैं


प्रमिकाएं! सतरंगी इंद्रधनुष सी

तो पत्नियां मीठी धूप, छांव होती हैं


प्रेमिका! श्रृंगार रस की कविता

पत्नियां संस्कृति का महाकाव्य होती हैं


प्रेमिकाएं! (ई एम आई) की किश्त

तो पत्नियां पेंशन प्लान होती हैं


प्रेमिकाओं! की चाहत आसमां के तारे

तो पत्नियां जरूरत की मांग रखती हैं

                 

माना! कि प्रेमिकाएं बने प्रेरणा

लेकिन पत्नियां परिणाम देती हैं


प्रेमिकाएं! सजी कंगूरे सी

तो पत्नियां घर की नींव होती हैं


प्रेमिकाएं! नाजुक फूल

तो पत्नियां कड़वा नीम होती हैं


प्रेमिकाएं! देती नासूर (प्रेम रोग)

तो पत्नियां वैद्य, हकीम होती हैं


प्रेमिकाओं के सहते नखरे हजार

तो पत्नियां जर खरीद गुलाम होती हैं


दोनों ही बहती नदी के दो किनारे

जिसको जो भाए, सुखद अंजाम देती हैं 

                 

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

नेपाल trip, संस्मरण

✍️नेपाल trip, बर्फ की चादर तो नहीं, पर कोहरे की चादर ओढ़े,
चाय की प्याली के साथ _______

भारत मेरी मां का घर, तो मौसी का घर नेपाल उचित रहेगा। जैसे मामा, मौसी, नानी के यहां जाने पर लगता है, वैसा ही स्पेशल फीलिंग। नेपाल (काठमांडू) जाने पर आपको लगेगा ही नहीं, कि आप कहीं और दूसरी भूमि पर हैं। भगवान शिव और हिल स्टेशन होगा, (अन्य भी) जिसे ये आकर्षित ना करते हों। इसी आकर्षण ने हमें भी बुला ही लिया। इसी के चलते इस बार नेपाल जाने का प्रोग्राम बन गया। दिल्ली से प्रथम पड़ाव काठमांडू, पशुपति नाथ के दर्शन प्रथम मुख्य उद्देश्य, उसके बाद कुछ और। योगियों के लिए, भोगियों के लिए, घुमंतुओं के लिए, युवाओं के लिए, प्रकृति प्रेमियों के लिए सबके लिए नेपाल अच्छी जगह है। ध्यान करते भी कई लोग दिख जाते हैं। पशुपतिनाथ मंदिर के पीछे ही बागमती नदी बहती है, जहां सायं आरती बनारस की गंगा आरती की याद दिलाती है। हालांकि आरती उतनी भव्य नहीं थी, एक ओर आरती तो दूसरी ओर घाट पर चिता जल रहीं थीं। बाकी तो, उनकी (शिवजी) महिमा का वर्णन भला कौन कर सका है__
सात समंदर की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, हरि गुण लिखा न

जाइ।।
नेपाल पहुंचने के बाद अपने गंतव्य पर पहुंचने पर होटल में रुद्राक्ष की माला पहनाकर व चंदन टीका से स्वागत! गर्म चाय, आनंद आ गया। नेपाल की सबसे अच्छी बात यहां का हिंदीप्रेम, बाजार में सभी जगह पर हिंदी में ही लिखाहुआ, कोई सा भी व्हीकल हो दुपहिया या चौपहिया, सब पर हिंदी में ही नंबरप्लेट। काठमांडू में स्वयंभूनाथ, बौद्धनाथ मंदिर, (बौद्ध स्तूप) महाराजा का दरबार देखने के बाद, नेपाल में जीवितदेवी का दर्शन भी सुखदाई था। एक बार को लगा दर्शन नहीं होंगे, दौड़ते हुए समय को थामे, लेकिन प्रभु कृपा (चमत्कार) ही कहेंगे कि देवी ने दर्शन दिए। हुआ यूं कि देवी दर्शन का समय पूर्ण हो चुका था,और वे (देवी) जा चुकी थीं। लगभग सभी दर्शन कर चुके थे, लेकिन हमारी बहू थोड़ा लेट हो गई और दर्शन से चूक गई। लेकिन अंदर ही अंदर मुझेदीदी को चाहत थी, भरोसा भी था किसी तरह दर्शन हो जाएं। उसी समय एक महात्मा, साथ में एक नेपाली भी था, हो सकता है उनका शिष्य हो, उसने गुहार लगाई, मां! दर्शन दो! और उसी समय मां ने दर्शन दिए। हो सकता है औरों के लिए यह आम बात हो, लेकिन हमें यह चमत्कारिक भी लगी, दिल को आनंद से भर गई। इस तरह बहू ने भी दर्शनलाभ प्राप्त किया। यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी (भिक्षु) भी खूब दिख रहे थे। नेपाल के लोग बहुत ही भले एवं सहयोगी लगे, होटल में हों या बाहर भी जब हम रोड क्रॉस कर रहे होते, या कहीं भी जा रहे होते तो शिष्टाचारवश वे पहले हमें निकलने देते। यहां तक कि फोर व्हीलर भी रुक कर स्माइल के साथ, हमें निकलने देते। वहां के लोगों के शांत, सहयोगी स्वभाव के कायल हो गए। इस समय (दिसंबर) वहां चारों ओर खूब सर्दी, कोहरा है। यहां का पोखरा हिल स्टेशन, यहां की प्राकृतिक दृश्य, गुप्तेश्वर महादेवगुफा, सूर्योदय, सूर्यास्त, फेवा लेक पर बोटिंग, पैराग्लाइडिंग, यूथ के लिए और भी बहुत कुछ, सब कुछ मन को मोह रहा था। सुदूर हिमालय, अन्नपूर्णा पर्वत श्रंखला, धौलगिरी पर्वतमाला पर बर्फ की चादर बिछी हुई ऊपर से सूर्य की किरणें गिरती हुई, दृश्य को और भी मनमोहक बना रही थी। उसके बाद कई परिवार के सदस्यों के साथ खूब मस्ती की। यह स्थान पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय है, यहां जाते हुए मध्य रास्ते में ही मनकामना मंदिर, एक सिद्ध शक्तिपीठ है, पर्यटकों के लिए केबल कार द्वारा ऊपर पहुंचने की व्यवस्था और उसमें से नीचे बहती नदी, बादल, धुंध को देखना मन को अभिभूत कर देता है। रोप वे का निर्माण चाइना की कंपनी ने किया था, एक बार को तो डर ही बैठ गया कहीं कुछ गलत ना हो जाए, लेकिन बहुत ही तेज रफ्तार से मात्र पंद्रह बीस मिनट में केबल कार द्वारा निचले स्टेशन कुरिन्तर से ऊपर तक पहुंचने के लिए लगभग पांच सौ रू (not exact) का टिकट दोनों ओर का लेना पड़ता है। यह पंद्रह बीस मिनट का सफर बादलों के ऊपर, नीचे बहती हुई नदी, बहुत ही रोमांचक दृश्य था। ऊपर पहुंचने पर चौड़ी सीढ़ियां चढ़ते हुए मंदिर तक पहुंचना था। वहां पहुंचने पर दर्शन के लिए इतनी लंबी लाइन कि जहां तक निगाह जा सकती थी, वहां तक चढ़ाई+ लाइन में खड़े होना, जबकि मंदिर पास में ही था। हारकर मंदिर के बाहर से ही दर्शन कर आगे बढ़ते हुए सायं 7:00 बजे तक पोखरा पहुंचना हुआ।
पोखरा पहुंचने के बाद अगले दिन सुबह ही सारंगकोट के लिए जल्दी ही निकलना होता है। पांच, छः किमी की दूरी तय करने में  लगभग 45 मिनट का समय लग जाता है, यहां पर सनराइज एवं सनसेट, विंध्वासिनी देवी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, देखने के लिए सभी पहुंचते हैं। यहां का उच्चतम व्यूप्वाइंट 5500 फीट की ऊंचाई पर एक रमणीक स्थल है, जहां से हिमालय की बर्फीली चोटियां, प्राकृतिक सौंदर्य, जादुई फोटोग्राफी के लिए यह पॉइंट बहुत ही सुंदर जगह दिखती है, यहां पर ही एडवेंचरस पैराग्लाइडिंग इत्यादि भी करते हैं। मौसम की मार से हम भी नहीं बच सके, और सूर्योदय नहीं देख पाए। लेकिन ये मौसम कई बार आपकी फ्लाइट भी मिस करवा देता है, बहुत ही रोमांचक भी, अनायास ही प्रभु स्मरण हो आता है। पोखरा के नजदीक ही सेती नदी बहती है, इस नदी का सारा पानी देखने में दूधिया दिखता है, लेकिन हाथ में लेकर देखने में बिल्कुल साफ, शायद पानी में चूने की अधिकता या कुछ और कारण हो सकता है, हमने पी कर भी देखा। इसी में 5000 साल पुरानी गुप्तेश्वर महादेव गुफा डेविस फॉल से गुफा के अंदर जाना रोमांचकारी था, इसके अंदर भी एक झरना बह रहा था, जो कि सड़क की दूसरी और ऊंचाई से गिरने वाले डेविस फॉल ही था, जैसा कि लोगों ने बताया और नीचे जाने पर यहां गुफा में भी दिख रहा था। पोखरा घूमने के बाद अंत में शहर के अंदर ही स्थित से फेवा झील भी कम आकर्षक नहीं थी, चारों और पहाड़ों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर कुछ-कुछ अपनी उदयपुर (राजस्थान) की फतेहसागर झील की याद दिला रही थी। रात को पोखरा में खूब चहल-पहल, हर गली बाजार में रोशनी, रेस्टोरेंट, रिसॉर्ट में क्रिसमस डिस्को पार्टी की धूम मची हुई थी। यहां पर गर्म कपड़े, तिब्बती सामान, रत्न भी, रेकी में काम आने वाले कई आइटम खूब बिक रहे थे। हमने भी रेकी के लिए सिंगिंग बाउल खरीदा, जिनकी कीमत भी 1000 से लेकर 30,000 तक भी थी। यहां इंडियन करेंसी भी चलन में थी, इंडियन ₹100 के बदले नेपाल के ₹160 थे। लेकिन ₹100 का ही यहां पर प्रावधान है, फिर भी कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। और भी बहुत कुछ है, यहां कई ऐसी जगह है जो अनायास ही आप का मन मोह लेंगी, कभी आ कर तो देखिए। लेकिन साथ में थोड़ा एक्स्ट्रा समय अवश्य लेकर चलें, नहीं तो कभी कभी, ये मौसम कई बार आपकी फ्लाइट भी मिस करवा देता है, बहुत ही रोमांचक भी है। फ्लाइट की मार झेलनी पड़ सकती है, जो शायद आपका बजट बिगाड़ दे।

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

मूंगफली के साथ गुड़ खाना, ज्यादा पौष्टिक

✍️ मूंगफली के साथ गुड़ खाना, ज्यादा पौष्टिक__
एक कटोरी मूंगफली के भुने हुए दाने, एक कटोरी गुड़, दो चम्मच देशी घी। कड़ाही में घी गुड़ की चाशनी तैयार करें, फिर उसमें मूंगफली के दाने मिलाकर पट्टी तैयार करें, इसमें सूखे मेवे भी स्वाद व पौष्टिकता के लिए मिला सकते हैं। 
मूंगफली को गुड़ के साथ चिक्की या गुड़ पट्टी बनाते हैं तो इसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है। मूंगफली में कई तरह के विटामिन होते हैं। गुड़ की तासीर गर्म होती है, जो सर्दी जुकाम, कफ, पाचन की समस्या से बचाता है। गैस और कब्ज को भी दूर करने में मदद मिलती है मूंगफली में अति आवश्यक विटामिन्स, मिनरल्स, पोषक तत्व, आयरन, कैल्शियम, जिंक, प्रोटीन, ओमेगा 6, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, बी6, बी9 एंटी ऑक्सीडेंट्स मिलते हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं। मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं, जो खराब कोलेस्ट्रोल को कम कर अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। गुड़ और मूंगफली खाने से पाचन सम्बन्धी समस्याओं में आराम मिलता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए तो वरदान  ही है, खून की कमी को दूर करने में फायदेमंद है। रक्त संचार सही रहता है। महिलाओं में मासिक धर्म के समय होने वाले कमर दर्द में भी लाभप्रद है। गुड़ और मूंगफली खाने से शरीर से विजातीय द्रव्य बाहर को बाहर निकलते हैं, जिससे बालों, त्वचा में निखार, चमक बढ़ने लगती है। भरपूर प्रोटीन, कैल्शियम होने से बच्चों के लिए दांतों और हड्डियों के लिए फायदेमंद है। गुड़ और मूंगफली खाने से बहुत स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस होता है।