✍️विज्ञापनों की भ्रामक दुनिया___
जो wrong Ko right Bana de वो है विज्ञापन की दुनिया, बस एक यही बात सही लगती है विज्ञापन में।
आजकल की प्रवृत्ति है भोगो, और खूब भोगो...भले ही बर्बाद जो जाओ,उस पर तुर्रा ये कि जिंदगी भी तो एक बार ही मिली है, क्यों ना भोगें। विज्ञापन की सफलता इसी में है कि जो उसे देखे उसका #मुरीद (ग्राहक) बन जाए। #विज्ञापन आम आदमी के मन, मस्तिष्क, दिल दिमाग पर प्रहार करती हैं, साथ ही नहीं खरीदने पर अपने स्वयं को अपराध बोध से ग्रसित करती है। हाय! क्या मैं अपने बच्चों, परिवार के लिए इत्तू सा भी नहीं कर सकता। और यहीं से शुरू होगी विज्ञापन की #सफलता। इसीलिए ज्यादातर विज्ञापन बच्चों को ही टारगेट किए जाते हैं। विज्ञापन आपकी कमजोर #नब्ज को पहचानता है। आज मीडिया के विज्ञापनों की दुनिया ने भयानक भ्रामक माहौल पैदा कर दिया है। जोकि मनुष्य को कुछ नहीं, सिर्फ खोखला करता जा रहा है। इसका दुरुपयोग तो बहुत हो ही रहा है। दो मिनट वाले विज्ञापन में मम्मियों को देख कर तो बेचारी कई मम्मियों को तो #अपराध बोध होता है, हम ऐसी हंसमुख क्यों नहीं, या हर समय #पौष्टिकता के पीछे क्यों पड़ी हैं। नहाने के साबुन में तो इन्हें ग्लैमर चाहिए ही लेकिन कार, कुकर और ना जाने क्या क्या, इनकी डिजाइन में औरत का विज्ञापन समझ से परे है। गोरेपन की क्रीम, जिसे स्वयं मैंने कईयों को पिछले तीस चालीस वर्षों से लगाते देखा है,और आज की तारीख में जबकि दादी, नानी बन चुकी हैं और उन्हें कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है। नौकरी हो या शादी, पढ़ाई, योग्यता सब सेकेंडरी लगता है, क्या गोरा होना वाकई बहुत बड़ी योग्यता है? अब तो मर्दों के लिए भी गोरेपन की क्रीम.... आजकल तेल, साबुन, गंजी, क्रीम, जूस, साबुन, कपड़े, खाना, पीना, रहना, ट्रैवल, ठहरना, कोचिंग, स्कूल, शादी ब्याह, पेंट, गाड़ी, बंगले और ना जाने क्या क्या???? कुछ भी खाओ, पचाओ सब तुरंत, हर चीज चुटकियों में, यहां तक कि, दर्द नाशक दवाओं (जिनको की बिना चिकित्सीय सलाह के नहीं लेना चाहिए), कैंसर के लिए जिम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से शराब सोडा, सिगरेट, पान मसाले के विज्ञापन आदि के विज्ञापनों में भी ऐसी जादुई कथाएं होती हैं, उनको देखकर लगता है, इन सब के बिना जीना भी कोई जीना है। चरित्र जैसी कोई चीज नहीं होती, नैतिकता को धता बता जेब में हर समय अपने साथ रखने की हिदायत देते विज्ञापन, युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं...... कोचिंग, पढ़ाई, किताबें, कॉलेज आदि भी इसकी चपेट में हैं, जिसका विज्ञापन अपीलिंग, उसका नाम। इस #फायदावाद की मानसिकता से कोई भी अछूता नहीं है। फिल्म और क्रिकेट की दुनिया की सेलिब्रिटीज खुद जिन चीजों का कभी इस्तेमाल नहीं करते, पैसा कमाने के लिए विज्ञापनों में उनके गुणगान करते देखे जा सकते हैं। #आमलोग बच्चों की तरह ऐसी कथाएं सच मान लेते हैं। किस तरह एक क्रिकेट खिलाड़ी और फिल्म अभिनेत्री शादी की अपनी प्रेम कथा में बताते हैं, कि लाखों की जड़ी शादी की पोशाक पहने बिना जीवन में सदा साथ रहने और दूसरे का केयर करने का संकल्प नहीं लिया जा सकता। जावेद अख्तर घुटनों के दर्द का इलाज बताते घूमते हैं, जो वस्तुतः कभी ठीक नहीं हो पाया। जूही चावला ऐसे तेल का विज्ञापन कर बाल उगाने का दावा करती हैं, जिसको शायद ही कभी प्रयोग किया हो, भले ही उनके पति गंजे हैं। first cry के विज्ञापन में, उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर अग्रसर, अभिताभ बच्चन भी पीछे नहीं हैं। जोकि हर तीसरे विज्ञापन में दिख जाते हैं। कभी राख, नमक वाला मंजन कह कर, आउट कर दिया जाता था, तो उसी राख, नमक वाली खूबियों के साथ वही उत्पाद आज अच्छा हो जाता है। कभी धांस वाला तेल अच्छा, तो कभी डबल फिल्टर तेल, और ना जाने क्या क्या? ये भरमाते विज्ञापन आपकी बुद्धि को तो बिल्कुल कुंठित ही कर देते हैं।...... विज्ञापन करते बच्चों के मातापिता की ख्वाहिशें भी चरम पर होती हैं, बच्चों से मॉडलिंग या विज्ञापन में काम करवाने की। बच्चों को घरेलू काम करवाते या स्वाभिमान की जिंदगी जीने के लिए कार्य करते समय जिसे #अत्याचार माना जाता है। तो ये क्या किसी अत्याचार से कम है, मासूमियत छीनकर कुछ पैसों के लिए काम करवाना, क्या #बालमजदूरी नहीं कहलाएगा।
बुद्धिजीवी, कलाकारों और लेखकों से बाजार भी संधि करने में लगा हुआ है, ताकि उनका भी सहयोग मिलता रहे। आजकल की विज्ञापन कथाओं में दिवास्वप्न भरे हैं। इन विज्ञापनों की दुनिया पंचतंत्र, जातक और हितोपदेश कथाओं की तरह लोग लोगों को #सावधान तो नहीं करती, बल्कि उनके मन में #अज्ञानता का निर्माण करती है। आज इसीलिए सभी तुलना करने में ज्यादा घिरे हुए हैं। इसलिए इस भ्रामक माहौल से ग्रसित होने से बचिए, थोड़ा अपना दिमाग भी प्रयोग करें, ये कब के लिए रख छोड़ा है। विज्ञापन आपकी कमजोर नब्ज को पकड़े, उससे पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल कर, इन मकड़जाल से खुद को बचाइए और बच्चों को भी समझाइए।
जो wrong Ko right Bana de वो है विज्ञापन की दुनिया, बस एक यही बात सही लगती है विज्ञापन में।
आजकल की प्रवृत्ति है भोगो, और खूब भोगो...भले ही बर्बाद जो जाओ,उस पर तुर्रा ये कि जिंदगी भी तो एक बार ही मिली है, क्यों ना भोगें। विज्ञापन की सफलता इसी में है कि जो उसे देखे उसका #मुरीद (ग्राहक) बन जाए। #विज्ञापन आम आदमी के मन, मस्तिष्क, दिल दिमाग पर प्रहार करती हैं, साथ ही नहीं खरीदने पर अपने स्वयं को अपराध बोध से ग्रसित करती है। हाय! क्या मैं अपने बच्चों, परिवार के लिए इत्तू सा भी नहीं कर सकता। और यहीं से शुरू होगी विज्ञापन की #सफलता। इसीलिए ज्यादातर विज्ञापन बच्चों को ही टारगेट किए जाते हैं। विज्ञापन आपकी कमजोर #नब्ज को पहचानता है। आज मीडिया के विज्ञापनों की दुनिया ने भयानक भ्रामक माहौल पैदा कर दिया है। जोकि मनुष्य को कुछ नहीं, सिर्फ खोखला करता जा रहा है। इसका दुरुपयोग तो बहुत हो ही रहा है। दो मिनट वाले विज्ञापन में मम्मियों को देख कर तो बेचारी कई मम्मियों को तो #अपराध बोध होता है, हम ऐसी हंसमुख क्यों नहीं, या हर समय #पौष्टिकता के पीछे क्यों पड़ी हैं। नहाने के साबुन में तो इन्हें ग्लैमर चाहिए ही लेकिन कार, कुकर और ना जाने क्या क्या, इनकी डिजाइन में औरत का विज्ञापन समझ से परे है। गोरेपन की क्रीम, जिसे स्वयं मैंने कईयों को पिछले तीस चालीस वर्षों से लगाते देखा है,और आज की तारीख में जबकि दादी, नानी बन चुकी हैं और उन्हें कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है। नौकरी हो या शादी, पढ़ाई, योग्यता सब सेकेंडरी लगता है, क्या गोरा होना वाकई बहुत बड़ी योग्यता है? अब तो मर्दों के लिए भी गोरेपन की क्रीम.... आजकल तेल, साबुन, गंजी, क्रीम, जूस, साबुन, कपड़े, खाना, पीना, रहना, ट्रैवल, ठहरना, कोचिंग, स्कूल, शादी ब्याह, पेंट, गाड़ी, बंगले और ना जाने क्या क्या???? कुछ भी खाओ, पचाओ सब तुरंत, हर चीज चुटकियों में, यहां तक कि, दर्द नाशक दवाओं (जिनको की बिना चिकित्सीय सलाह के नहीं लेना चाहिए), कैंसर के लिए जिम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से शराब सोडा, सिगरेट, पान मसाले के विज्ञापन आदि के विज्ञापनों में भी ऐसी जादुई कथाएं होती हैं, उनको देखकर लगता है, इन सब के बिना जीना भी कोई जीना है। चरित्र जैसी कोई चीज नहीं होती, नैतिकता को धता बता जेब में हर समय अपने साथ रखने की हिदायत देते विज्ञापन, युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं...... कोचिंग, पढ़ाई, किताबें, कॉलेज आदि भी इसकी चपेट में हैं, जिसका विज्ञापन अपीलिंग, उसका नाम। इस #फायदावाद की मानसिकता से कोई भी अछूता नहीं है। फिल्म और क्रिकेट की दुनिया की सेलिब्रिटीज खुद जिन चीजों का कभी इस्तेमाल नहीं करते, पैसा कमाने के लिए विज्ञापनों में उनके गुणगान करते देखे जा सकते हैं। #आमलोग बच्चों की तरह ऐसी कथाएं सच मान लेते हैं। किस तरह एक क्रिकेट खिलाड़ी और फिल्म अभिनेत्री शादी की अपनी प्रेम कथा में बताते हैं, कि लाखों की जड़ी शादी की पोशाक पहने बिना जीवन में सदा साथ रहने और दूसरे का केयर करने का संकल्प नहीं लिया जा सकता। जावेद अख्तर घुटनों के दर्द का इलाज बताते घूमते हैं, जो वस्तुतः कभी ठीक नहीं हो पाया। जूही चावला ऐसे तेल का विज्ञापन कर बाल उगाने का दावा करती हैं, जिसको शायद ही कभी प्रयोग किया हो, भले ही उनके पति गंजे हैं। first cry के विज्ञापन में, उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर अग्रसर, अभिताभ बच्चन भी पीछे नहीं हैं। जोकि हर तीसरे विज्ञापन में दिख जाते हैं। कभी राख, नमक वाला मंजन कह कर, आउट कर दिया जाता था, तो उसी राख, नमक वाली खूबियों के साथ वही उत्पाद आज अच्छा हो जाता है। कभी धांस वाला तेल अच्छा, तो कभी डबल फिल्टर तेल, और ना जाने क्या क्या? ये भरमाते विज्ञापन आपकी बुद्धि को तो बिल्कुल कुंठित ही कर देते हैं।...... विज्ञापन करते बच्चों के मातापिता की ख्वाहिशें भी चरम पर होती हैं, बच्चों से मॉडलिंग या विज्ञापन में काम करवाने की। बच्चों को घरेलू काम करवाते या स्वाभिमान की जिंदगी जीने के लिए कार्य करते समय जिसे #अत्याचार माना जाता है। तो ये क्या किसी अत्याचार से कम है, मासूमियत छीनकर कुछ पैसों के लिए काम करवाना, क्या #बालमजदूरी नहीं कहलाएगा।
बुद्धिजीवी, कलाकारों और लेखकों से बाजार भी संधि करने में लगा हुआ है, ताकि उनका भी सहयोग मिलता रहे। आजकल की विज्ञापन कथाओं में दिवास्वप्न भरे हैं। इन विज्ञापनों की दुनिया पंचतंत्र, जातक और हितोपदेश कथाओं की तरह लोग लोगों को #सावधान तो नहीं करती, बल्कि उनके मन में #अज्ञानता का निर्माण करती है। आज इसीलिए सभी तुलना करने में ज्यादा घिरे हुए हैं। इसलिए इस भ्रामक माहौल से ग्रसित होने से बचिए, थोड़ा अपना दिमाग भी प्रयोग करें, ये कब के लिए रख छोड़ा है। विज्ञापन आपकी कमजोर नब्ज को पकड़े, उससे पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल कर, इन मकड़जाल से खुद को बचाइए और बच्चों को भी समझाइए।
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