✍️पेरेंटिंग_ पनिशमेंट भी जरूरी
हैलो पेरेंट्स, आज एक खास बात आपके लिए, बच्चों के लिए गूगल मैप तो बनिए, लेकिन सीसी टीवी कैमरे वाली गिरफ्त से बाहर रखिए अपने बच्चों को।
पांच वर्ष तक बच्चे को खूब प्यार, पंद्रह वर्ष तक पर्याप्त अनुशासित व्यवहार और जब बच्चा आपकी हाइट तक आ जाए यानि सत्रह अठारह साल के बाद में उसे दोस्त ही समझिए, कभी-कभी उससे हंसी मजाक भी कीजिए, लेकिन एक सीमा में रहकर। जिससे वह आपसे खुलकर सारी बातें शेयर कर सकें।
आज एक मित्र के यहां जाना हुआ, उनका प्यारा सा बच्चा अपने कमरे में बंद कुछ कर रहा था। मातापिता परेशान बच्चा हमारी सुनता नहीं, बच्चे की शिकायत हर समय मुझे कठपुतली की तरह नचाते हैं, मुझे कमतर आंकते हैं, दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं। कितनी #असहनीय स्थति बना देते हैं आप बच्चों की। मैं पहले भी कई बार जिक्र कर चुकी हूं, आप बच्चों के केवल #केयर टेकर हैं। हर बच्चे की अलग प्रकृति, अलग माहौल, अलग फिजिकल फिटनेस, अलग परवरिश होती है। इसलिए हर बच्चा अपने आप में अनूठा है, उसकी किसी से तुलना कर कुंठित मत कीजिए। देखने में आता है कि मातापिता की ख्वाहिशों के बोझ तले बच्चा अपनी उन्नति, सपने, सफलताएं सभी कुछ खोने लगता है। कई बार पैरेंट्स, अपनी दबी हुई इच्छाएं बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं। किसी पुलिस वाले को देखा तो पुलिस, वकील को देखा तो वकील, डॉक्टर को देखा तो डॉक्टर, यहां तक कि नेता को देखा तो राजनीति के ख्वाब भी बच्चों की जिंदगी पर संजोने लगते हैं। नतीजा! बच्चा अपना #व्यक्तित्व ही खो देता है, घर का ना घाट का। इसलिए सभी पैरेंट्स से एक गुजारिश है, सभी बच्चों की परवरिश एक जैसी संभव नहीं है। कोई बच्चा डांट से मानेगा, कोई प्यार से, तो किसी के लिए शारीरिक दंड भी कभी कभी आवश्यक हो जाता है। बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, दूरी नहीं आने दें, जिससे बच्चा अपनी सारी अच्छी, बुरी बातें आपसे शेयर कर सके। अन्यथा बच्चों अपनी कोई बात बताएगा ही नहीं, और वह किसी गलत संगत में फंस सकता है। बच्चों को खुलकर जीने दें, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे उद्दंड, बदतमीज होने दें, जैसा कि आजकल के मातापिता अपने बच्चों के साथ करते हैं। उन्हें टोकते ही नहीं हैं, बच्चों की जो मर्जी आए सो करे। अंत में यह भी दुखदाई ही है, क्योंकि बच्चे को ना सुनने की आदत ही नहीं होगी, बस स्वयं को ही सही मानेगा। बच्चों को डांटना भी आवश्यक है, उसे पता होना चाहिए गलत काम करने पर, दंड भी मिलेगा। सजा देना भी जरूरी है। #पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। इसे आवश्यकता अनुसार अमल में लाएं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक #परफेक्ट मातापिता बना सकती है।
इसलिए बच्चे को पनिश भी करिए, बच्चों पर निगाह रखिए, लेकिन ऐसे नहीं कि,[``आप सीसी टी वी की गिरफ्त में हैं''] जैसा महसूस हो। आप उनके मार्ग दर्शक [गूगल मैप] तो बनिए, लेकिन हैलीकॉप्टर, सर्च लाईट की तरह कदापि नहीं।
हैलो पेरेंट्स, आज एक खास बात आपके लिए, बच्चों के लिए गूगल मैप तो बनिए, लेकिन सीसी टीवी कैमरे वाली गिरफ्त से बाहर रखिए अपने बच्चों को।
पांच वर्ष तक बच्चे को खूब प्यार, पंद्रह वर्ष तक पर्याप्त अनुशासित व्यवहार और जब बच्चा आपकी हाइट तक आ जाए यानि सत्रह अठारह साल के बाद में उसे दोस्त ही समझिए, कभी-कभी उससे हंसी मजाक भी कीजिए, लेकिन एक सीमा में रहकर। जिससे वह आपसे खुलकर सारी बातें शेयर कर सकें।
आज एक मित्र के यहां जाना हुआ, उनका प्यारा सा बच्चा अपने कमरे में बंद कुछ कर रहा था। मातापिता परेशान बच्चा हमारी सुनता नहीं, बच्चे की शिकायत हर समय मुझे कठपुतली की तरह नचाते हैं, मुझे कमतर आंकते हैं, दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं। कितनी #असहनीय स्थति बना देते हैं आप बच्चों की। मैं पहले भी कई बार जिक्र कर चुकी हूं, आप बच्चों के केवल #केयर टेकर हैं। हर बच्चे की अलग प्रकृति, अलग माहौल, अलग फिजिकल फिटनेस, अलग परवरिश होती है। इसलिए हर बच्चा अपने आप में अनूठा है, उसकी किसी से तुलना कर कुंठित मत कीजिए। देखने में आता है कि मातापिता की ख्वाहिशों के बोझ तले बच्चा अपनी उन्नति, सपने, सफलताएं सभी कुछ खोने लगता है। कई बार पैरेंट्स, अपनी दबी हुई इच्छाएं बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं। किसी पुलिस वाले को देखा तो पुलिस, वकील को देखा तो वकील, डॉक्टर को देखा तो डॉक्टर, यहां तक कि नेता को देखा तो राजनीति के ख्वाब भी बच्चों की जिंदगी पर संजोने लगते हैं। नतीजा! बच्चा अपना #व्यक्तित्व ही खो देता है, घर का ना घाट का। इसलिए सभी पैरेंट्स से एक गुजारिश है, सभी बच्चों की परवरिश एक जैसी संभव नहीं है। कोई बच्चा डांट से मानेगा, कोई प्यार से, तो किसी के लिए शारीरिक दंड भी कभी कभी आवश्यक हो जाता है। बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, दूरी नहीं आने दें, जिससे बच्चा अपनी सारी अच्छी, बुरी बातें आपसे शेयर कर सके। अन्यथा बच्चों अपनी कोई बात बताएगा ही नहीं, और वह किसी गलत संगत में फंस सकता है। बच्चों को खुलकर जीने दें, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे उद्दंड, बदतमीज होने दें, जैसा कि आजकल के मातापिता अपने बच्चों के साथ करते हैं। उन्हें टोकते ही नहीं हैं, बच्चों की जो मर्जी आए सो करे। अंत में यह भी दुखदाई ही है, क्योंकि बच्चे को ना सुनने की आदत ही नहीं होगी, बस स्वयं को ही सही मानेगा। बच्चों को डांटना भी आवश्यक है, उसे पता होना चाहिए गलत काम करने पर, दंड भी मिलेगा। सजा देना भी जरूरी है। #पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। इसे आवश्यकता अनुसार अमल में लाएं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक #परफेक्ट मातापिता बना सकती है।
इसलिए बच्चे को पनिश भी करिए, बच्चों पर निगाह रखिए, लेकिन ऐसे नहीं कि,[``आप सीसी टी वी की गिरफ्त में हैं''] जैसा महसूस हो। आप उनके मार्ग दर्शक [गूगल मैप] तो बनिए, लेकिन हैलीकॉप्टर, सर्च लाईट की तरह कदापि नहीं।
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