हैलो पैरेंट्स! भोजन पर विचारों का प्रभाव ___
श्रद्धा और एकाग्रता से किया गया भोजन सदा बल और पराक्रम प्रदान करता है। क्रोध, विवाद, बेईमानी से कमाए धन, रोग शोक विचारों से ग्रस्त, अपमानपूर्वक तथा अश्रद्धा से तैयार किया गया भोजन बल और पराक्रम दोनों को नष्ट कर देता है। इसलिए भोजन सदैव अच्छे आचार विचार, सही तरीके से कमाए धन से ही करना चाहिए। एक प्रसंग याद आ रहा है आप सब ने भी पढ़ा होगा। महाभारत में युद्ध समाप्ति के पश्चात पितामह भीष्म मृत्यु के इंतजार में सूर्य के उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए शरशैया पर लेटे हुए थे। एक दिन पांचो पांडव द्रौपदी के साथ उनसे मिलने पहुंचे। भीष्म पितामह उनको धर्म, ज्ञान उपदेश की बातें बता रहे थे कि द्रौपदी खिलखिला कर हंस पड़ी। द्रौपदी एक विदुषी महिला थी, उनसे ऐसे व्यवहार की उम्मीद किसी को ना थी। उनके इस व्यवहार पर पांडव ही नहीं पितामह भी आश्चर्यचकित थे, उन्होंने द्रौपदी से इसका कारण जानना चाहा। द्रौपदी ने जवाब दिया_ आदरणीय पितामह! आज आप अन्याय के विरुद्ध लड़ने और धर्म उपदेश दे रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा चीरहरण कर अपमानित किया जा रहा था तब आप कहां थे? तब यह उपदेश धर्म ज्ञान कहां था? द्रौपदी की यह बातें सुनकर पितामह का आंखों में आंसू छलक पड़े, गला रूंध गया, कातर स्वर में बोले पुत्री! मुझे क्षमा करना ... तुम जानती हो उस समय में दुर्योधन का अन्य खा रहा था ... ऐसा अन्य खाने से मेरे संस्कार दूषित हो गए थे... मैं अन्याय का विरोध नहीं कर सका। लेकिन अब उस अन्न से निर्मित रक्त शरशैया के नुकीले बाणों पर लेटे हुए बह चुका है। मुझे फिर से अपने संस्कारों का बोध हो चुका है। यह सच है जैसा हम अन्न खाते हैं मन भी वैसा ही हो जाता है। इसीलिए हमेशा ही सही तरीके से कमाए हुए धन से ही भोजन करना चाहिए। आपने सबने एक कहानी और सुनी होगी किस तरह से एक संत एक चोर के यहां भोजन करके, उस चोर का घोड़ा ही चुरा ले गए थे। लेकिन बाद में दूसरी जगह जाने पर उन्हें इस चीज का बोध हुआ तो वह वापस उस चोर के यहां पर उस घोड़े को छोड़ उससे पूछने लगे कि तुम क्या काम करते हो तब उसने बताया कि मैं चोरी करता हूं इस तरह उन्हें महसूस हुआ कि एक चोर का खाना खाने से उनकी बुद्धि भी चोर जैसी ही हो गई थी। इसलिए सही है हमेशा खाने पीने में ईमानदारी, सच्चाई का अवश्य ध्यान रखें, नहीं तो दुर्बुद्धि आते देर नहीं लगती। इसीलिए हमेशा खाना पकाने वाला उत्तम, शुद्ध विचारों वाला होना चाहिए, ताकि उसका प्रभाव आपके खाने पर आपकी बुद्धि पर ना पड़े।
आयुर्वेद में कहा गया है _ जैसा खाए अन्न, वैसा हो जाए मन। एक और बात जो अन्न जहां पैदा होता हो, ऋतु अनुसार हो तथा वहीं के लोगों द्वारा उपयोग में लाया जाय तो वह औषधि के समान होता है, साथ ही सात्विकता से अर्जित तथा श्रद्धा, प्रेम पूर्वक पकाया गया हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। खाने पर अच्छे आचार विचार का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार बुजुर्गों से कहते सुना होगा कि, अगर थकान परिश्रम से चूर हो कर आए हों, किसी मानसिक या शारीरिक आवेग से ग्रसित हों तो बच्चे का भोजन कुछ देर के लिए अवॉइड करें। क्योंकि वह बच्चे को नुकसान करेगा।
अपने पुराने संस्कारों के अभाव में मनुष्य जिव्हा के अधीन हो गया है। माता बहनें अपने बच्चों को मैगी, जंक फ़ूड खिला रही हैं, उनसे आप चुस्ती एकाग्रता आदि की कैसे उम्मीद कर सकते हैं। शरीर और मस्तिष्क को दुरुस्त रखना है तो स्वाद के लालच से बचना चाहिए, इस बात को सभी जानते हैं, लेकिन अमल में नहीं लाते।
ताजे फल, सब्जी, दालें आदि मानव के लिए बने हैं। मनुष्य मूलतः एक शाकाहारी प्राणी है। चिकित्सक भी शाकाहार पर जोर देते हैं। इनमें वे सब पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर को चाहिए। भोजन में बहुरंगी (multicolor) सब्जियां खाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि मांसाहार तथा डेयरी उत्पाद से जीवनशैली की ज्यादा गंभीर बीमारी आती है। मांसाहार व्यक्ति की अपेक्षा शाकाहारी व्यक्ति में व्यवहारिक परेशानियाँ कम, स्वभाव शांत एवं सरल होगा। भजन और भोजन हमेशा एकांत में ही करना चाहिए, ये पुरानी मान्यताएं सही हैं।
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