मंगलवार, 4 जून 2024

काशी यात्रा

काशी यात्रा, रोचक संस्मरण ___
आप, आकाश की गहराई नाप सकते हैं, क्षितिज की दूरी नाप सकते हैं लेकिन काशी बनारस के बारे जान पाना बहुत मुश्किल। शिव की नगरी, मंदिरो की नगरी, ज्ञान नगरी, दीपों का शहर, और भी कई नामों से अलंकृत किया गया है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक, अविनाशी शंकर की मोक्ष दायिनी नगरी, जिसे स्वयं शिवजी ने ही बनाया हो, भला आम मनुष्य की क्या बिसात, उसके लिए कहां संभव है, यह सब जान पाना। काशी को अगर जानना हो तो भरपूर समय, किसी भीड़ के साथ नहीं, अकेले या मात्र एक दो जन, जो आपकी ही वैचारिक स्तर से जुड़ा हुआ हो, और एक ऑटो या रिक्शे की सवारी, बस! कार वार के झंझट में नहीं पड़िएगा (नहीं तो दिनभर बस कार के ए सी की हवा ही खाते रहिएगा)। उम्र के इस पड़ाव पर पतिपत्नी से बेहतर, कोई मित्र/ सहायक/ केयर टेकर नहीं हो सकता, यानि एक और एक ग्यारह। जैसा कि मैंने पढ़ा था यहां (काशी) के लोग गालियों के बिना बात ही नहीं करते, लेकिन मुझे ऐसा नहीं दिखा। यहां सड़कों पर चलते हुए किसी को भी गाली गलौज करते नहीं देखा, बाद में समझ आया यह सब बनारसी पान का कमाल है, जिसे ये मुंह में दबाए रहते हैं ... क्या क्या लिखूं, समझ से परे है फिर भी कोशिश तो की ही जा सकती है।
अभी कुछ समय, लगभग दो तीन महीने पहले ही बनारस जाना हुआ, वहां किसी को जानती नहीं थी, तो पता कर वहां मेरे गुरु भाई विनय जी से मिलना हुआ। उन्होंने जिस अपनेपन के भाव से हमें काशी (बनारस) का भ्रमण कराया, कई रोचक तथ्यों के बारे बताया, उससे लगा ही नहीं कि हम पहली बार काशी आए हैं, या पहली बार ही विनय जी से मिल रहे हैं। विनय जी से हमारा प्रोग्राम एक दिन पहले ही तय हो चुका था। मन में जो संकोच था वह सब समाप्त हो चुका था। सारनाथ जाते हुए, रास्ते में वरुणा नदी को पार करते समय विनय जी ने बताया, बनारस (काशी, वाराणसी, कहते हैं कि वरुणा नदी जो कि यहां बहती है और असी घाट, शायद इनको मिलाकर ही अपभ्रंश होकर वाराणसी नाम पड़ा हो ) एक और रोचक जानकारी विनय जी ने सारनाथ जाते हुए शेयर की। कहते हैं कि, एक बार गणेश जी गुस्सा होकर अपने मामा #सारंग के यहां चले गए थे, फिर शिवजी (नाथों के नाथ) उनको लिवाने यहां आए, तो यह #सारंगनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आगे चलकर सारनाथ हो गया। एक और बात यूपी में साले को (सारा,सारे) कहते हैं, शायद इसी का अपभ्रंश #सारनाथ हुआ होगा। मजेदार!
पहले दिन बाबा भोलेनाथ #ज्योतिर्लिंग के दर्शन बड़े ही आरामदायक स्थिति में किए, प्रशासन भी बेहद चाक चौबंद, कहीं कोई परेशानी नहीं, उसी दिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का रात्रि पूजा का आयोजन था, सरपट गाड़ियों का काफिला। दूसरे दिन जब हम सारनाथ के लिए निकले तो वहां भी यूपी की राज्यपाल के सम्मान में, #रेड कार्पेट बिछा हुआ था। हम भी खुश क्या पता हमारे लिए ही रेड कार्पेट बिछा हो हा हा हा... सारनाथ स्तूप, #बोधवृक्ष आदि देखने के बाद, #सारंगनाथ मंदिर दर्शन किए। वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान #बुद्ध ने प्रथम उपदेश सारनाथ में ही दिया था। कहते हैं, भोले की नगरी कभी सोती नहीं है, पूरी रात रौनक बनी रहती है। इस सब में विनय जी का आतिथ्य हमें बेहद अच्छा लग रहा था, जो अपनी आध्यात्मिक चर्चा के साथ बनारस की गलियों, तहजीब, संस्कृति से भी रूबरू करवा रहे थे। #बनारस #हिन्दू विश्वविद्यालय के बारे में तो सब जानते हैं, वहां भी जाना हुआ।
विनय जी ने ही हमें यहां पर स्थित #विश्वप्रसिद्ध भारत की 168 वर्ष (1791 स्थापना वर्ष) पुरानी एकमात्र #प्रथम #संस्कृत #विश्वविद्यालय, जिसके जीर्णोद्धार का कार्य गुरुजी की कृपा से, एक और गुरुभाई संपन्न करवा रहे हैं, के बारे में बहुत विस्तृत, रोचक तथ्यों के साथ (मथुरा निवासी दीपक शर्मा) ने बताया। इसके जीर्णोद्धार का कार्य, जो कि अभी तक संभव नहीं हो पा रहा था, बड़ी ही रोचक लंबी कहानी है। 
कहते हैं, इस 168 साल पुरानी सम्पूर्णानंद #संस्कृत यूनिवर्सिटी का कीलन कर दिया गया था, और इसका जीर्णोद्धार संभव ही नहीं हो पा रहा था। रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गया यह भवन, कई जगह से छत ढह गई थी, लगता था भूतों का बसेरा हो, कक्षाओं का संचालन भी बंद था। जो कोई भी इस कार्य को पूरा करने के उद्देश्य से अपने हाथ में लेता, कुछ न कुछ रुकावट आ ही जाती, और हार कर कार्य बीच ही में छोड़ भाग खड़ा होता। इस तरह दशकों से उपेक्षा की शिकार इस यूनिवर्सिटी के जीर्णद्धार का कार्य, लगभग तीन वर्ष पूर्व, *गुरुजी के शिष्य द्वारा शुरू हुआ। बीच बीच में परेशानियां आती रहीं, लेकिन वे गुरुजी का स्मरण कर कार्य करते रहे। इस कार्य में प्रगति हो रही है। मरम्मत कार्य के दौरान, एक बार एक जगह पर सैकड़ों की तादाद में चमगादड़ों ने डेरा डाला हुआ था, जोकि कार्य में रुकावट कर रही थी। हार कर गुरूभाई ने गुरुजी को स्मरण कर उन चमगादड़ों से स्थान खाली करने को कहा, और आप सबके लिए यह यकीन करना मुश्किल होगा कि सारी चमगादड़ एक साथ लाइन बना निकल गई। यह अविश्वसनीय दृश्य देखने लायक था, उसके बाद उन्होंने वहां पर गुरु जी का चित्र भी स्थापित कर दिया है। ऐसे ही और भी कई अनुभव, विनय जी ने सुनाए। 
प्रोजेक्ट इंचार्ज प्रदीप भारद्वाज (अगर नाम में कहीं कोई गलती हुई हो तो क्षमा चाहूंगी,) का कहना है कि जीर्णोद्धार लगभग 3 साल पहले शुरू हुआ, संरक्षण का कार्य संभल संभल कर करना पड़ता है, जैसे-जैसे काम बढ़ता है नई समस्या आ जाती है, लेकिन गुरुकृपा से कार्य निर्बाध गति से चल रहा है। अभी कुछ समय पहले ही यहां आयोजित प्रोग्राम में यूपी की राज्यपाल आमंत्रित थीं। इसकी प्राचीनता बनाए रखने के लिए भवन निर्माण की सदियों पुरानी तकनीक का ही इस्तेमाल हुआ है। भवन मुख्यतः पत्थरों से बना है जिस पर विशेष तरीके से प्लास्टर किया गया था, कई जगह से उखड़ गया था दीवारें भी जीर्ण शीर्ण हो गई थी। जीर्णोद्धार में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि उसकी प्राचीन स्वरूप में कोई छेड़छाड़ ना हो। पनिंग के कार्य के लिए, विशेष प्रकार की मिट्टी को हजारों सेंटीग्रेड पर पकाकर फिर पहले जैसी कलाकृतियां बनाई गईं, इसके अलावा भी कई कार्य किए हैं, जिससे गिरने के कगार पर पहुंच चुके मुख्य भवन की आयु बढ़ गई है। मुख्य भवन की कलाकृतियों को देख एहसास होता है, कि इसके निर्माण में कई संस्कृतियों की छाप रही होगी। मुख्य द्वार पर प्रवेश करते दोनों तरफ चीनी #ड्रैगन स्वागत करते प्रतीत होते हैं, तो कई स्थानों पर सर्प, मछलियों के चित्र उकेरे गए हैं। बिल्डिंग पर बाहर चारों ओर हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ फारसी में लिखे नीतिवाक्य दिखाई देते हैं। कई ऐसे #प्रतीक हैं, जिसका अर्थ बताने वाला भी यहां कोई नहीं है। प्रकाश एवं वायु की अद्भुत व्यवस्था है, कई स्थानों से खुला हुआ है वहां से रोशनी अंदर आती है इस तकनीक को #स्काईलाइट कहते हैं। दिन में लाइट जलाने की जरूरत ही नहीं होती है। मलेशिया की लकड़ी का ट्रीटमेंट किया गया, ताकि दीमक, सीलन, धूप, पानी का असर ना हो। मरम्मत में कहीं भी सीमेंट और बालू का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। सुर्खी और चूने से जोड़ने का कार्य हो रहा है, विशेष कर के लखौरिया ईंटें बनवाई गई हैं। चूना, सुर्खी, गुड़, उड़द दाल और बताशे के पानी के मिश्रण से यह प्लास्टर तैयार किया गया है, यह काफी चिकना होता है, जैसा कि हमें भी छूने पर प्रतीत हुआ। यह प्लास्टर काफी मजबूत होता है, तथा तापमान को भी नियंत्रित करता है। मलेशिया की लकड़ी से बनाई गई छत सेंट्रल हॉल की छत को क्षतिग्रस्त होने के कारण विशेष किस्म की लकड़ी मंगाई गई, इसकी आयु लगभग 300 साल मानी जाती है। बेल्जियम के शीशे केरल, चेन्नई के कारीगरों ने फिट किए, भवन के चारों और रंगीन शीशे लगाए गए थे, कहते हैं शीशे राशि के रंग के अनुसार हैं, उस से छनकर सूर्य की रोशनी जमीन पर श्री यंत्र जैसी आकृति बनाती थी। टेराकोटा की कलाकृतियां क्षतिग्रस्त हो गई थी, इन को नया रूप देने के लिए, कोलकाता से विशेष प्रकार की मिट्टी (टेराकोटा) मंगाई गई। 
अब आप इस यूनिवर्सिटी के बारे में और भी जानिए। #गोथिक शैली में निर्मित मुख्य भवन का शिलान्यास 2 नवंबर 1847 को #महाराजा बनारस व अंग्रेज वास्तुविद ब्रिटिश सेना के मेजर #मारखम किट्टो ने किया था। किट्टो की देखरेख में यह भवन 1852 में बनकर तैयार हुआ। वास्तुकार, इंजीनियर मेजर किट्टो ने इसे बनवाया, वो इसकी उत्कृष्टता को लेकर बहुत उत्साहित और कॉन्फिडेंट थे। उन्होंने विश्व के कई देशों के विद्वानों, वास्तुविदों को बुलाया और कहा कि मैंने इसे पूर्ण मनोयोग से बनाया है, अगर कोई इसमें कुछ भी कमी निकाल देगा तो मैं आत्मदाह कर लूंगा, स्वयं को नष्ट कर दूंगा। सब जन बारी बारी से उसको देखते रहे और उसमें कुछ भी कमी ना निकाल सके लेकिन जाते-जाते एक व्यक्ति ने कुछ ऐसा कह दिया कि इसका फर्श थोड़ा नीचा है, अगर कभी बाढ़ आती है तो यह डूब में हो जाएगा, इसमें पानी भर जाएगा, इतना सुनते ही वहीं पास में एक लोहे की सलाख, जो आग में गर्म हो रही थी उसको अपनी छाती पर दे मारा, और इस तरह स्वयं आत्मदाह कर लिया। मरने से पूर्व उन्होंने यह भी कहा, कि मेरी समाधि को इस यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार के सामने ही बनवाएं जहां से मैं, अपनी बनाई कलापूर्ण उत्कृष्टता का दर्शन करता रहूं। (#जनश्रुति के अनुसार)
यही वह संस्कृत यूनिवर्सिटी है, जहां उस समय रानी महारानियां पढ़ती थीं। आज भी #पञ्चांग यहीं की वेधशाला के अनुसार तैयार किया जाता है। स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना, कलाकारी के बेजोड़ नमूने, इस भवन को #विरासत सूची में डालने की तैयारी चल रही है। 
आगे चलकर गुरु हनुमान मंदिर के दर्शन किए, इसकी भी हमारे गुरुजी से संबन्धित एक रोचक कहानी है, मान्यता है ये #गुरू स्वरूप ही हैं। इसके बाद हम चल दिए एक और अनदेखी जगह (लाहिड़ी महाशय का पवित्र निवास स्थान) की तलाश में।
एक सुखद अहसास हुआ, श्री #श्यामाचरणलाहिड़ी महाशय के पवित्र स्थान को देख कर। क्योंकि मैं उनके आध्यात्मिक परम्परा (क्रियायोग) से जुड़ी हुई हूं। एक योगी की आत्मकथा के रचियता श्री योगानंद जी व उनके गुरु युक्तेश्वरगिरी, मेरे परम आ. गुरूजी और भी कई ज्ञान पिपासु हस्तियों का विशेषकर योगियों का ही यहां के प्रति प्रेम लगाव रहा (क्योंकि ऐसे उच्च कोटि के महापुरुष केवल अपने अधूरे संकल्प, किसी विशेष कार्य पूरा करने के लिए ही जन्म लेते हैं) आम लोगों से तो उनका मिलना ना के बराबर ही होता था। (काशी के जिस घर में लाहिड़ी महाशय जी साधना करके स्वयं भगवान में परिणत हुए थे, जिस घर की माटी एवं एक एक ईंट पर्यन्त पवित्र हो चुकी हैं, जिस घर का आकाश पर्यन्त ब्रह्म में परिणत हो गया है, जहां बैठकर श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी सनातन धर्म की सारभूत एवं आध्योपंत बहुत सारी बातें बता गए हैं, जिस घर में प्रवेश करने से पहले ही मस्तक अपने आप ही नत हो उठता है, शरीर में सिहरन होने लगती है, वह घर लोगों के लिए कितना पवित्र है... किंतु दुख का विषय है कि देशवासियों का इस घर के प्रति वैसा कोई लगाव ही नहीं है ) यहीं यह छोटी सी जगह है, परन्तु गुरु पूर्णिमा पर लंबी कतार देखी जा सकती है, पैर रखने को भी जगह नहीं होती है। सामने ही एक बहुत छोटी सी दुकान पर बैठे एक व्यक्ति हमसे कुछ देर बातें करते रहे, और मैं उनके पुरखों के भाग्य को सराहती रही, उन्हें कभी बचपन, अज्ञानता में ही सही उनके दर्शन, सांनिध्य प्राप्त हुआ होगा। कुछ तो पुण्य कर्म होते हैं, जो जाने अनजाने, फल स्वरूप प्राप्त होते हैं। काशी तो है ही शिव भक्तों और शिव के चमत्कारों से भरपूर। काशी का वर्णन करने में भला कौन समर्थ है, मुझमें कहां इतनी बुद्धि सामर्थ्य जो भोले बाबा की महिमा का बखान कर सकूं। इतना कुछ है लिखने को शब्द कम पड़ जाएंगे। काशीनाथ बाबा के दर्शन, वहां की गलियां, सब अपनी अपनी खोज में निकले जिज्ञासु, कलकल बहती गंगा मैया, घाटों पर पुण्य की प्राप्ति की आकांक्षा लिए, डुबकी लगाते, हर हर महादेव, हर हर शंभो! का जयघोष, शाम को #गंगाआरती, यहां की संस्कृति, चाट, मिठाईयां, सिल्क और मिल्क (मलाईयो, एक बहुत अच्छा पेय) ना जाने क्या क्या जिसे लिखने में मेरी बुद्धि कौशल समर्थ नहीं हो रहा है। चलते चलते एक और यादगार अनुभव, सिल्क की साड़ियां खरीदते वक्त कुछ पैसे कम पड़ गए, एटीएम भी पर्स में नहीं अन्य सूटकेस में था, दुकानदार महोदय ने (आर एस एस की खासियत है सहयोगी प्रवृति) ना केवल हम पर विश्वास किया कहा, आप आराम से अपनी यात्रा पूरी कीजिए, गंतव्य तक पहुंच कर खाते में पैसे डलवा दीजिएगा, बल्कि जलपान भी कराया। कचौरी एवं बनारस का प्रसिद्ध पेय *मलाईयो* (केसर के दूध को रात ओस में रख कर केवल झाग जैसा सा, ऊपर फेन जैसा कुछ) कुल्हड़ में पिलाया। कहते हैं बनारस का खाना यहां मरने से पहले ही मोक्ष दिला देता है, बहुत कुछ है यहां के खाने में, पर मुख्यतः शाकाहारी ही हैं। यहां गंगा स्नान और बाद में क्या मजदूर, रिक्शा वाला और क्या सेठ साहूकार सब ही का जलेबी, कचौरियां, लस्सी का नाश्ता डटकर, छककर ही घर जाना, ताकि घर पहुंच कर खाना खाने की चिंता ही नहीं रहे। हालांकि जंक फूड ने यहां भी घुसपैठ कर ली है, पर इतनी नहीं। बनारस की बात होने पर अधूरी रहेगी यदि घाट की चिताओं की, मोक्ष की, गंगा की, घाट पर आरती की, यहां के संगीत की, घरानों की बात ना की जाए। साधु-संतों के अनुसार काशी के राजा हैं शिव और काशी की जनता है शिव के गण। कुछ भी हो, यह मेरी यादगार यात्रा रही। शेष फिर आगे कभी... (फरवरी 2020 यात्रा संस्मरण)
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान 








सोमवार, 6 मई 2024

स्त्रियां

प्रकृति में समाया परिवार __ 
स्त्रियां! 💃
रोप दी जाती हैं धान सी
उखाड़ दी जाती हैं,
खरपतवार सी
पीपल सी कहीं भी उग आती हैं।
स्त्रियां!💃
जीवन दायी अमृता सी,
महके लंबे समय तक,
रजनीगंधा सी
कभी ना हारें,अपराजिता बन छाई हैं
स्त्रियां!💃
रजनीगन्धा, लिली 
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है 
सप्तपर्णी के फूल से 
प्रेम माधुर्य की खुशबू आई है।
स्त्रियां!💃
आंसुओं को पी, 
बिखेरती खुशबू पारिजात सी
पुनर्नवा सी, 
ईश्वर की वरदान बन आई है।
स्त्रियां!💃
दिल दिमाग की शांति,  
शंखपुष्पी, ब्राह्मी सी
तुलसी सी पावन
आंगन की शोभा बढ़ाई है।
स्त्रियां!💃
सौम्यता मनभावन
चंपा,चमेली,मोगरा,मालती सी
भरदेती सुखसौभाग्य,अमलतास(स्वर्ण वृक्ष) सी
घर आंगन में मानो,परी उतर आई है।
स्त्रियां!💃

रविवार, 5 मई 2024

बच्चों की कुर्बानी पर संवरते मांओं के कैरियर

अगर किसी को महिला के रूप में जन्म मिला है तो ईश्वर को धन्यवाद करें, कि उन्होंने आपको इस काबिल समझा। महिलाएं सृजनकर्ता हैं,  शायद इसीलिए बच्चे को जन्म देने व परवरिश की जिम्मेदारी आप को सौंपी है, आप महिलाएं दुनिया को बदल सकती हैं। मां बनना हर स्त्री के लिए गर्व की बात है, महिला जब मां बनती है तो यह गर्व दोगुना हो जाता है। उसके चेहरे पर एक आभा दमकती है। सच्ची मां वह होती है जिसकी परवरिश, प्यार दुलार और दिशानिर्देश में बच्चा आगे चलकर एक अच्छा इंसान बनता है। बच्चा मां की कोख के अंदर आकार तो लेता ही है, लेकिन जन्म देने के बाद भी, उसके जीवन को सांचे में ढालने वाली, मां ही होती है। बच्चे आगे चलकर अच्छे इंसान बने इसके लिए महिला का अच्छी इंसान होना बेहद आवश्यक है। उनकी परवरिश पर निर्भर करता है। सिर्फ खाना पीना ही नहीं, बच्चों की अच्छी शिक्षा, परवरिश पर भी ध्यान देना एक मां की प्राथमिकता होनी चाहिए।
आजकल बड़ी ही रोचक बातें देखने में आती हैं, पति पत्नी या लवर्स के आपसी संबोधन ही नहीं  पालतू जानवर भी बाबू और बेबी हो गए, उनके लिए अगाध प्रेम उमड़ रहा है, और जो सच में बाबू या बेबी (बच्चे) हैं उनकी कोई पूछ नहीं, वे आया नैनी के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं। कैसी विडम्बना है! जानवरों के लिए प्रेम होना अच्छी बात है, लेकिन फिल्मी स्टाइल में शोशेबाजी करना कितना सही है।
अधिकतर नौकरी पेशा माता-पिता को यह कहते सुना जाता है, आखिर हम यह किसके लिए कर रहे हैं बच्चों के लिए ही तो, लेकिन सच तो यह है कि यह सब वे अपनी स्वयं की संतुष्टि के लिए करते हैं। बच्चे को तो उनका समय, साथ चाहिए होता है जो वह उनको नहीं दे पाते, समय निकलने के पश्चात उस समय का कोई उपयोगिता भी नहीं रह जाती है। कुछ समय पश्चात, बच्चे स्वयं भी आप से दूरी पसंद करने लगते हैं। कहा वर्षा, जब कृषि सुखाने! क्या हम दिल पर हाथ रख कर कह सकते हैं, कि हमने अपना फर्ज अच्छे से निर्वहन किया है। आप एक बार सोच कर देखिए, अगर बच्चे सही दिशा में आगे बढ़ते हैं तो यह पैरेंट्स के लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए हितकर है, अन्यथा बड़े बड़े लोगों को एक समय पश्चात, रोते पश्चाताप करते देखा है। और यह ऐसा नहीं कि केवल नौकरीपेशा माताओं की ही बात है, घरेलू महिलाएं भी कहां पीछे हैं, वे भी बच्चों पर ध्यान नहीं दे रही हैं। नौकरी पेशा महिलाओं के छोटे बच्चे अक्सर सुबह के स्कूल में नित्यक्रिया से निवृत होकर भी नहीं जाते, नहाकर नहीं जाते, क्योंकि समय नहीं है। धीरे धीरे बच्चे भी इस दिनचर्या के अभ्यस्त हो जाते हैं। क्या यह उचित है।
कई बार देखने में आता है माता-पिता दोनों ही  जॉब वाले हैं, अपना अपराधबोध (गिल्ट) छुपाने के लिए, बच्चों की अनर्गल फरमाइशें पूरी की जाती हैं। छोटे बच्चे भी ब्लैक मेल करना खूब अच्छी तरह जानते हैं, और अपनी मनचाही मांग पूरी करवाते हैं। घूमना फिरना हो, मनचाहे कॉलेज में एडमिशन लेना हो या और भी कई अन्य बातें। बच्चे कब गलत संगत में पड़ जाते हैं पता ही नहीं लगता। सुविधा के लिए बच्चे के लिए कोई आया रख दी जाती है। क्योंकि आजकल पैरेंट्स को भी घर के बुजुर्ग कई बार बर्दाश्त नहीं होते हैं, और वह अपनी स्वतंत्रता में दखल मान उनको रखने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तो कई बार बुजुर्ग भी अपनी जिम्मेदारी निभाने से हिचकिचाते हैं, वह अपनी सेवा की लालसा पाले रहते हैं, ऐसे में उन्हें किसी आया या नैनी को रखना ही उचित लगता है। कई बार पैरेंट्स नौकरी की वजह से बच्चों को समय नहीं दे पाते, समय बचाने के चक्कर में बच्चों को जो मर्जी करने देते हैं, टीवी, मोबाइल या कोई गेम और इस प्रकार वह बच्चों को जो सिखाना चाहते हैं, नहीं सिखा पाते। नैनी, आया कुछ और सिखाती है, गाली गलौज भी सीख जाते हैं, और इस तरह बच्चा कंफ्यूज हो कर कुछ भी नहीं सीख पाता कि आखिर मुझे करना क्या है, वह जो कहना चाहता है कह नहीं पाता। और इस तरह से पूरी जिंदगी के लिए उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। बेहतर होगा हम अपने कैरियर पर अपने बच्चों की जिंदगी या कुर्बान ना करें। क्या फायदा आपकी शिक्षा का। 
कई बार देखने में आता है माता-पिता अपने कैरियर के परवाह करते हुए बच्चों की पढ़ाई में पिछड़ जाने पर भी ध्यान नहीं देते, शुरू में सोचते हैं एक-दो साल विलंब हो जाए तो कोई बात नहीं, धीरे-धीरे यह उनके आदत में आ जाता है। और बच्चे भी बस सामान्य पढ़ते हुए रह जाते हैं, उम्र निकलने के बाद सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता। काश! माता-पिता इस चीज पर गौर करें, तुम अपनी जिंदगी जी चुके हो, बच्चों की तरक्की देखकर खुश होना सीखिए। जब आपके बच्चे तरक्की करेंगे, आगे बढ़ेंगे, उस खुशी का किसी चीज से, किसी कैरियर से कोई मुकाबला नहीं है।
फिर भी यदि अभिभावक दोनों ही जॉब करते हैं, तो बच्चों को कुछ बातें समझानी चाहिए ताकि अनजान व्यक्ति को यह पता ना चले कि वह घर में अकेला है। और उसे कुछ आपातकालीन सहायता वाले फोन नंबर, अपने ऑफिस के फोन नंबर किसी खास व्यक्ति या संबंधी का फोन नंबर भी अवश्य लिखवाएं। बच्चा आपकी तरफ से आश्वस्त होना चाहिए कि आपने उसके हर स्थिति से बचाव की व्यवस्था कर रखी है तो इस तरह से बच्चा डरेगा नहीं। उसे हर परिस्थिति से निपटना सिखाएं, पड़ोसियों से भी अच्छे संबंध रखें। इस तरह कामकाजी होते हुए भी आप बच्चों पर ध्यान रख सकती हैं।
एकल परिवारों में रहते हुए बच्चों का कितना भावनात्मक, सामाजिक शोषण हो रहा है, यह अभी किसी की समझ में नहीं आ रहा है। जिसका दुष्प्रभाव कुछ समय बाद देखने को मिलेगा। जो बच्चे अपने परिवार में बड़ों, छोटों के साथ में रहते हैं, उनका सामाजिक व्यवहार और समझ अच्छी होती है। कई चीजें जो हम केवल डांट कर नहीं सुधार सकते उसे हम परिवार में रहते हुए बड़े बुजुर्गों के सहारे से अच्छी तरह से समझा सकते हैं।
जब बच्चे अपने दादी, नानी से अपनी भाषा में बात करते हैं, किस्से कहानी सुनते हैं, तो उन्हें अपनी भाषा के साथ संस्कृति के बारे में पता चलता है। कहानी सुनने से वे अपनी विरासत, संस्कारों को बचा पाते हैं। बच्चों में भाषा के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता दोनों बढ़ती है। दादी नानी, बुजुर्गों से बात करते हुए, बच्चों की शब्दावली बढ़ती है, उनकी कुछ समझ में नहीं आता तो वह पूछते हैं इसका मतलब क्या है। इस प्रकार वे नए नए शब्द सीखते हैं। और जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करते हैं। आजकल बच्चों को लोकाचार की भाषा, लोकोक्तियां और मुहावरों का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है, क्योंकि यह उनके सुनने में ही नहीं आता है। जबकि पहले परिवारों में रहते हुए यह सारी बातें, बच्चे स्वतः ही ऐसे शब्दों और मुहावरों को आत्मसात करने लगते थे, इस तरह उनमें सुनने समझने का कौशल विकसित होता है। दिल पर हाथ रख कर सोचें, क्या आप ने बच्चों के साथ अपना फर्ज़ अच्छी तरह निभाया है। जब हमने अपना फर्ज अच्छे से निर्वहन नहीं किया है, तो बच्चों से भी उम्मीद ना रखें। वैसे उम्मीद तो किसी से भी नहीं रखनी चाहिए। आज दोनों पीढ़ियां एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। कैरियर बनाना अच्छी बात है, लेकिन बच्चों की कुर्बानी पर नहीं।
आप ने बच्चों को आया के भरोसे रखा, और बच्चों ने आप को वृद्धाश्रम के भरोसे, तो क्या गलत है।
आप मेरी बात से कितने सहमत हैं, एक बार सोचिएगा अवश्य।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

भोजन पर विचारों का प्रभाव

हैलो पैरेंट्स! भोजन पर विचारों का प्रभाव ___
श्रद्धा और एकाग्रता से किया गया भोजन सदा बल और पराक्रम प्रदान करता है। क्रोध, विवाद, बेईमानी से कमाए धन, रोग शोक विचारों से ग्रस्त, अपमानपूर्वक तथा अश्रद्धा से तैयार किया गया  भोजन बल और पराक्रम दोनों को नष्ट कर देता है। इसलिए भोजन सदैव अच्छे आचार विचार, सही तरीके से कमाए धन से ही करना चाहिए। एक प्रसंग याद आ रहा है आप सब ने भी पढ़ा होगा। महाभारत में युद्ध समाप्ति के पश्चात पितामह भीष्म मृत्यु के इंतजार में सूर्य के उत्तरायण की प्रतीक्षा करते हुए शरशैया पर लेटे हुए थे। एक दिन पांचो पांडव द्रौपदी के साथ उनसे मिलने पहुंचे। भीष्म पितामह उनको धर्म, ज्ञान उपदेश की बातें बता रहे थे कि द्रौपदी खिलखिला कर हंस पड़ी। द्रौपदी एक विदुषी महिला थी, उनसे ऐसे व्यवहार की उम्मीद किसी को ना थी। उनके इस व्यवहार पर पांडव ही नहीं पितामह भी आश्चर्यचकित थे, उन्होंने द्रौपदी से इसका कारण जानना चाहा। द्रौपदी ने जवाब दिया_ आदरणीय पितामह! आज आप अन्याय के विरुद्ध लड़ने और धर्म उपदेश दे रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा चीरहरण कर अपमानित किया जा रहा था तब आप कहां थे? तब यह उपदेश धर्म ज्ञान कहां था? द्रौपदी की यह बातें सुनकर पितामह का आंखों में आंसू छलक पड़े, गला रूंध गया, कातर स्वर में बोले पुत्री! मुझे क्षमा करना ... तुम जानती हो उस समय में दुर्योधन का अन्य खा रहा था ... ऐसा अन्य खाने से मेरे संस्कार दूषित हो गए थे... मैं अन्याय का विरोध नहीं कर सका। लेकिन अब उस अन्न से निर्मित रक्त शरशैया के नुकीले बाणों पर लेटे हुए बह चुका है। मुझे फिर से अपने संस्कारों का बोध हो चुका है। यह सच है जैसा हम अन्न खाते हैं मन भी वैसा ही हो जाता है। इसीलिए हमेशा ही सही तरीके से कमाए हुए धन से ही भोजन करना चाहिए। आपने सबने एक कहानी और सुनी होगी किस तरह से एक संत एक चोर के यहां भोजन करके, उस चोर का घोड़ा ही चुरा ले गए थे। लेकिन बाद में दूसरी जगह जाने पर उन्हें इस चीज का बोध हुआ तो वह वापस उस चोर के यहां पर उस घोड़े को छोड़ उससे पूछने लगे कि तुम क्या काम करते हो तब उसने बताया कि मैं चोरी करता हूं इस तरह उन्हें महसूस हुआ कि एक चोर का खाना खाने से उनकी बुद्धि भी चोर जैसी ही हो गई थी। इसलिए सही है हमेशा खाने पीने में ईमानदारी, सच्चाई का अवश्य ध्यान रखें, नहीं तो दुर्बुद्धि आते देर नहीं लगती। इसीलिए हमेशा खाना पकाने वाला उत्तम, शुद्ध विचारों वाला होना चाहिए, ताकि उसका प्रभाव आपके खाने पर आपकी बुद्धि पर ना पड़े।
आयुर्वेद में कहा गया है _ जैसा खाए अन्न, वैसा हो जाए मन। एक और बात जो अन्न जहां पैदा होता हो, ऋतु अनुसार हो तथा वहीं के लोगों द्वारा उपयोग में लाया जाय तो वह औषधि के समान होता है, साथ ही सात्विकता से अर्जित तथा श्रद्धा, प्रेम पूर्वक पकाया गया हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। खाने पर अच्छे आचार विचार का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार बुजुर्गों से कहते सुना होगा कि, अगर थकान परिश्रम से चूर हो कर आए हों, किसी मानसिक या शारीरिक आवेग से ग्रसित हों तो बच्चे का भोजन कुछ देर के लिए अवॉइड करें। क्योंकि वह बच्चे को नुकसान करेगा।
अपने पुराने संस्कारों के अभाव में मनुष्य जिव्हा के अधीन हो गया है। माता बहनें अपने बच्चों को मैगी, जंक फ़ूड खिला रही हैं, उनसे आप चुस्ती एकाग्रता आदि की कैसे उम्मीद कर सकते हैं। शरीर और मस्तिष्क को दुरुस्त रखना है तो स्वाद के लालच से बचना चाहिए, इस बात को सभी जानते हैं, लेकिन अमल में नहीं लाते।
ताजे फल, सब्जी, दालें आदि मानव के लिए बने हैं। मनुष्य मूलतः एक शाकाहारी प्राणी है। चिकित्सक भी शाकाहार पर जोर देते हैं। इनमें वे सब पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर को चाहिए। भोजन में बहुरंगी (multicolor) सब्जियां खाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि मांसाहार तथा डेयरी उत्पाद से जीवनशैली की ज्यादा गंभीर बीमारी आती है। मांसाहार व्यक्ति की अपेक्षा शाकाहारी व्यक्ति में व्यवहारिक परेशानियाँ कम, स्वभाव शांत एवं सरल होगा। भजन और भोजन हमेशा एकांत में ही करना चाहिए, ये पुरानी मान्यताएं सही हैं। 
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

आचरण से शिक्षण, बातों बातों में सिखाएं बच्चों को जीवन जीना

हैलो पैरेंट्स! आचरण से सिखाएं, उम्र को हथियार ना बनाएं __ 
एक पेरेंट होने के नाते जब हमारे घर में बच्चों का आगमन होता है तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। हम अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देना चाहते हैं। पर कई बार हम इन बातों को नजरंदाज कर देते हैं कि बच्चों को अच्छे आचरण और शालीन व्यवहार सिखाना भी हमारा फर्ज है। आज का बच्चा कल देश का नागरिक बनेगा।अगर उन्हें अच्छे आचरण के बारे में नहीं बताया गया तो वह समाज में एक अभद्र व्यक्ति और खराब आचरण के साथ बड़ा होगा। इसी कशमकश में पेरेंट्स बच्चों के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करने लगते हैं, जिससे बच्चा आदर्श बनने की बजाय कुंठा और निराशा का शिकार हो जाता है। हमें उन बातों को लेकर कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।
भारत में ज्यादातर घरों में जिस तार्किक ढंग से बच्चों का लालन-पालन होता है। यह आर्टिकल उस पर प्रकाश डाल रहा है। एक बात जो ज्यादातर घरों में होती है कि ... ज्यादा प्रश्न मत करो ... बाल धूप में सफेद नहीं किए ... जब तुम्हारी उम्र के थे तो ... अपनी बुद्धि का ज्यादा प्रयोग मत करो ... बुजुर्ग की हर मनमानी को ... आज्ञा मानकर पालन करो। उम्र में बड़े व्यक्ति को अपने ✓आचरण से छोटों के लिए पथ प्रशस्त करना चाहिए ना कि उम्र को [ राजदंड✓] की तरह प्रयोग करना चाहिए। हमने बच्चों के जीवन को अजायबघर बना रखा है।
अच्छी बात है जो आपने भुगता या सहन किया वह बच्चों को नहीं भुगतना पड़ रहा है। आपने छोटी उम्र से जिम्मेदारियां संभाली, आपके अनुभव ज्यादा हैं अच्छी बात है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आप इनका ताना हमेशा ही बच्चों को देते रहेंगे। आप उनको अनुभव दीजिए, ताने नहीं। ताकि आपके अनुभवों से सीख कर, बच्चों का उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो। अन्यथा हर समय सुन सुन कर हो सकता है बच्चे भी कहने लग जाएं, इससे तो अच्छा है हम भी आपके जैसा ही जीवन गुजार देते, कम से कम जीना तो सीख जाते। तब आपको बुरा लग सकता है इसलिए बोलने पर थोड़ा ध्यान दीजिए अपने बुजुर्गियत को हथियार ना बनाएं।
पश्चिमी सभ्यता अपने लिए जीने की बात करती है, भारतीय संस्कृति में हमेशा दूसरों के लिए जीना सिखाया जाता है। मनुष्य जीवन मिलना सौभाग्य की बात है, मृत्यु काल (समय) की बात है, लेकिन मर कर भी लोगों के दिलों में, दिमाग में जीवित रहना, आपके द्वारा किये गए कर्मों की बात है। बच्चों को हमें प्रारम्भ से ही अच्छी बातें, दूसरों की सहायता करना सिखाना चाहिए। सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है, आचरण। बच्चे तो कुएं की आवाज हैं। पढ़ना लिखना सिखाया जा सकता है, लेकिन संस्कार आचरण से ही सीखे जाते हैं, कुछ पूर्व जन्म के भी होते हैं। अक्सर आपने झूठ बोलने वाले मातापिता के बच्चों को भी झूठ बोलते देखा होगा, और वह सब उनकी आदत में आजाता है। बच्चे वही सीखेंगे, जो आप करते हैं। कई घरों में बहुओं पर अत्याचार होते देखती हूं, तो बड़ा कष्ट होता है। ऐसे लोगों की भावनाएं मर चुकी होती हैं। उनके बच्चे स्त्रियों की इज्जत करना कहां से सीखेंगे। मुझे बचपन की एक घटना याद आ रही है, हम एक छोटे कस्बे में रहते थे वहां एक कुतिया ने पिल्लों को जन्म दिया। किस तरह मेरी माँ उसके लिए गुड़ का हलवा बना कर दूर से डाल कर आती थीं, क्योंकि ऐसे वक्त पर वह गुर्रा कर काटने को दौड़ती है, उसे डर होता है कोई उसके पिल्लों को हानि ना पहुँचाये। यह क्रम कई दिन चला। कभी रोटी कभी कुछ, और अनजाने ही वह कुतिया हमारे घर की, मुहल्ले की भी सदस्य हो गई। निश्छल प्रेम से ईश्वर की क्या कहें, जानवर भी वश में हो जाते हैं, फिर इंसान कौन बड़ी बात है। इस तरह हमने पहला पाठ तो जीवों पर दया करने का पढ़ा। जो किसी स्कूल में उपदेशों द्वारा नहीं समझाया जा सकता। दूसरा पाठ सीखा, ह्यूमन बीइंग की तरह अपने बच्चों की सुरक्षा व लगाव, तथा ऐसी अवस्था में गुर्राना (चिड़चिड़ापन), व्यवहारिक असुरक्षित महसूस करना। केवल उपदेश देने से बात नहीं बनेगी। संस्कार आचरण से सीख कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित हो जाते हैं और पता भी नहीं चलता। बच्चों को ईमानदारी का पाठ भी इसी तरह छोटी उम्र में ही सिखाएं। सही है बच्चा जब गलती करे उसे समझाएं, नहीं माने तो डांटे। लेकिन मातापिता क्या कर रहे हैं, बच्चों की गलतियों पर परदा डाल देते हैं, और यही सबसे बड़ी गलती है। पांच या छः वर्ष तक के बच्चों के अंदर अधिकतर गुण अवगुण सीख चुके होते हैं। इस उम्र में बच्चों का ऑब्जर्वेशन बहुत उच्च होता है। इसलिए उनकी परवरिश में सहयोगी बनें, रुकावट नहीं। 
आजकल मुख्य समस्या बुढ़ापे में बच्चों के व्यवहार को लेकर भी देखने में आरही है। पर इसके लिए केवल बच्चे तो जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने अपने मातापिता को कभी भी दादा दादी, नाना नानी या घर के किसी अन्य (रिश्तेदार सदस्य) की सेवा या सहायता करते देखा ही नहीं, तो वो क्या जाने। इसलिए बच्चों की परवरिश में बेहद सावधानी बरतें। बच्चों के कान भरने या उनसे आलोचना करने से बचें। स्वामी विवेकानंद ने कहा है ___
"संसार में हमेशा दाता का आसन ग्रहण करो, सर्वस्व दे दो पर बदले में कुछ ना चाहो। प्रेम दो, सहायता दो, सेवा दो। इनमें से जो कुछ भी तुम्हारे पास देने के लिए है वह दे डालो। किन्तु सावधान रहो उनके बदले में कुछ लेने की इच्छा कभी ना रहे। न अधिक वर्षों की आयु होने से, न सफेद बालों से, न अधिक धनवान होने से, ना ही अधिक बन्धुबांधव होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं होता। हममें से वास्तव में जो ज्ञानी है, परोपकारी है वही महान है। अपनी हार्दिक दानशीलता के कारण ही हम देते चलें, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार ईश्वर हमें देता है।"इसी संदर्भ में एक विचारक का कथन याद आरहा है __ 
पत्थर पत्थर ही होता है, कोई सोना नहीं होता। स्वयं के वास्ते रोना, कोई रोना नहीं होता।। 
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान