मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021
अम्मा की जुबां ते, ब्रज की लोकोक्तियां
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
हिंदी दिवस पर
मंगलवार, 25 मई 2021
स्त्रियां
✍️
प्रकृति में समाया परिवार
स्त्रियां! 💃
रोप दी जाती हैं धान सी
उखाड़ दी जाती हैं,
खरपतवार सी
पीपल सी कहीं भी उग आती हैं।
स्त्रियां!💃
जीवन दायी अमृता सी,
महके लंबे समय तक,
रजनीगंधा सी
कभी ना हारें,अपराजिता बन छाई हैं
स्त्रियां!💃
रजनीगन्धा, लिली
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है
सप्तपर्णी के फूल से
प्रेम माधुर्य की खुशबू आई है।
स्त्रियां!💃
आंसुओं को पी,
बिखेरती खुशबू पारिजात सी
पुनर्नवा सी,
ईश्वर की वरदान बन आई है।
स्त्रियां!💃
दिल दिमाग की शांति,
शंखपुष्पी, ब्राह्मी सी
तुलसी सी पावन
आंगन की शोभा बढ़ाई है।
स्त्रियां!💃
सौम्यता मनभावन
चंपा, चमेली, मोगरा सी
भरदेती सुखसौभाग्य,अमलतास(स्वर्ण वृक्ष) सी
घर आंगन में मानो,परी उतर आई है।
शुक्रवार, 21 मई 2021
पिता, हाइकु
पिता____
1_💕
जनक सुता
पाए राम से वर
खुश हैं पिता!
2_💕
सुनहुं तात!
जग पसारे हाथ
पुरी का भात
3_💕
नभ में रवि
हम बच्चों के लिए
पिता की छवि
4_💕
पिता के कांधे
था महफूज स्थान
विराजमान
5_💕
नहीं अमीर
मांगें पूरी करते
मेरे पिताजी!
6_💕
मार्ग दर्शक
जीना है सिखलाते
खूब पिताजी!
7_💕
हिमालय से
पिता! भी टूट जाते
ग्लेशियर से
8_💕
उठे हिलोर
चला बुद्ध बनने
देखे मुड़ के
9_💕
पिता आकाश
दूर क्षितिज मां से
मिलते गले
10_💕
बड़े बुजुर्ग! 👳
घर के कल्प वृक्ष,
चाहो सो पाओ
मां, हाइकु
मां___
1_💕
है अनपढ़
फिर भी पढ़ लेती
मेरे दर्द, मां!
2_💕
वरदान सी
मेरे झुके सिर पे
दे असीस, मां!
3_💕
नींद गंवाई
ना करती आराम
अनोखी है, मां!
4_💕
पीड़ा हरती
टीस पे मल्हम सी
धन्वंतरि मां!
5_💕
उम्र की सांझ
पाया था मन्नतों से
मां बनी बांझ
6_💕
मेरे नन्हे! है
तुमसे प्यार, जब
तुम थे नहीं
7_💕
जब हों निराश
मां की दुआ, है आस
पूर्ण विश्वास
8_💕
धुरी घर की
मां! जीवन दायिनी
ऑक्सीजन सी
9_💕
मां का प्यार
अभी-अभी समझा
वो चल भी दीं
सोमवार, 22 मार्च 2021
लाल टमाटर
शुक्रवार, 19 मार्च 2021
खुशी की अभिव्यक्ति
खुशी की अभिव्यक्ति वैयक्तिक है। चाहे हम खुशी में डूबे हों, या दुख के अथाह सागर में डूबे हों, इसकी गहराई को समझना महत्वपूर्ण है। भवानी प्रसाद मिश्र कहते हैं_हंसो तो बच्चों की तरह खिलखिलाकर, रोओ तो तिलमिलाकर, खालिस सुख खालिस दुख। मध्य का कुछ भी, कोई बात नहीं। चयन आपका है दुखों कष्टों को #अवरोध मान लिया जाए, या रास्ते का दिशासूचक!! यह आपकी सोच पर निर्भर करता है कष्टों, दुखों की कसौटी पर स्वयं को घिसकर निखारना चाहते हैं या अवसाद के अंधेरे में डूबे रहना।
सुप्रभात!Have a good day.....
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021
पेरेंटिंग
गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
सुनो स्त्री!
सुनो स्त्री!
आधी आबादी! तुम इस धरती पर आधी आबादी की पूर्ण स्वामिनी हो। जब तुम अपने आप में बहुत कुछ संपूर्ण श्रेष्ठ हो, खुद को कमजोर क्यों समझती हो। तुम प्रेम की पराकाष्ठा हो, तुम स्वयं दुर्गा की शक्ति वाली, किसी कवि की कलात्मक अभिव्यक्ति, सौंदर्य की मूरत, प्रेम, धैर्य, त्याग जैसे गुणों की खान हो, फिर भी सहारे के लिए अपना सिर रखने के लिए किसी के कंधे क्यों तलाशती रहती हो। और आजकल रोजाना फेसबुक पर नित नए पोज, स्टाइल में, सुंदर दिखने की कोशिश में फोटो अपलोड करती रहती हो, डी पी बदलती रहती हो, ये सब क्या है..... हर समय सुंदर दिखना ही जिंदगी का मकसद है क्या? हर समय क्यों चाहती हो कि सब तुम्हारे सौंदर्य की ही प्रशंसा करते रहें। सांचे में ढला शरीर, अपने गोरे रंग पर इतराना, इसमें तुम्हारा क्या योगदान है। क्या तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की कमी है, अगर है तो आत्मविश्वास को बढ़ाओ। किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की मां, गोरा रंग, सांचे में ढला शरीर, पुरुषों को आकर्षित करने के लिए सजी धजी गुड़िया बनी रहना, इसके अलावा क्या पहचान है, तुम्हारी इस समाज में। अपने किरदार को कुछ ऐसा बनाओ, अपने अंदर कुछ ऐसा पैदा करो कि तुम अपना परिचय अपने नाम से दो। यह धरती, यह आसमान, सबके लिए समान रूप से धूप हवा पानी देती है, तुम क्यों भेदभाव करती हो? इस आबादी को पोषण देने हैं या शोषण करने में भी तुम्हारा बराबर का योगदान है, गेंद दूसरे पाले में फेंक देने से बात नहीं बनेगी। रोना गिड़गिड़ाना बंद करो, जब आप दूसरे को दोष दे रहे होते हैं, तब कहीं ना कहीं अपनी कमियों को भी छुपा रहे होते हैं। ईश्वर ने तो सबको समान रूप से सक्षम बना कर भेजा है, फिर तुम क्यों भेद भाव रखती हो। या तुम भी इसी को भाग्य मान कर चल रही हो। स्वयं को कमजोर, बेचारी साबित कर सहानुभूति बटोरना भी एक बीमारी ही है, और तुम्हें बीमार नहीं रहना है .... ऑफिस में सहयोगी हो या बॉस की बदतमीजियां, या घर पर शादी के बाद पति को ढंग से जान भी नहीं पाती हो और उस के मुंह से शराब के भभके तथा पीठ पर पड़ने वाले लात, घूंसों का मुकाबला तुम्हें और सिर्फ तुम्हें ही करना है। ससुराल को यातना गृह मत बनने दो। दूसरों के वाक् बाणों से स्वयं को छलनी मत होने दो। उठो ओ स्त्री! आधी आबादी! तुम कहां किसी से कम हो, बराबरी वाली दुनिया में तुम हर चीज में श्रेष्ठ हो। बस अपने भूले हुए स्वरूप को याद करने की जरूरत है।
रविवार, 20 दिसंबर 2020
प्रेमिकाएं/पत्नियां
✍️ प्रेमिकाएं / पत्नियां
प्रेमिकाएं! स्वप्न सुनहरी,
तो पत्नियां कटु यथार्थ होती हैं
प्रमिकाएं! सतरंगी इंद्रधनुष सी
तो पत्नियां मीठी धूप, छांव होती हैं
प्रेमिका! श्रृंगार रस की कविता
पत्नियां संस्कृति का महाकाव्य होती हैं
प्रेमिकाएं! (ई एम आई) की किश्त
तो पत्नियां पेंशन प्लान होती हैं
प्रेमिकाओं! की चाहत आसमां के तारे
तो पत्नियां जरूरत की मांग रखती हैं
माना! कि प्रेमिकाएं बने प्रेरणा
लेकिन पत्नियां परिणाम देती हैं
प्रेमिकाएं! सजी कंगूरे सी
तो पत्नियां घर की नींव होती हैं
प्रेमिकाएं! नाजुक फूल
तो पत्नियां कड़वा नीम होती हैं
प्रेमिकाएं! देती नासूर (प्रेम रोग)
तो पत्नियां वैद्य, हकीम होती हैं
प्रेमिकाओं के सहते नखरे हजार
तो पत्नियां जर खरीद गुलाम होती हैं
दोनों ही बहती नदी के दो किनारे
जिसको जो भाए, सुखद अंजाम देती हैं