सोमवार, 15 जुलाई 2019

हैलो पैरेंट्स, आपके झगड़ों में पिसते बच्चे


✍️ हैलो पैरेंट्स!
#आपके झगड़़ों में पिसते बच्चे, जिम्मेदार कौन?
उम्मीदों के पंछी के पर निकलेंगे
मेरे बच्चे मुझ से बेहतर निकलेंगे।
लेकिन ये सब होगा कैसे, अगर आप मातापिता आपस में लड़ते रहेंगे। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 35% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं, जिसमें अनपढ़, गरीब या गंवार ही नहीं, अपितु अच्छी पढ़ी लिखी उच्च पदों पर आसीन #महिलाएं भी शामिल हैं। लेकिन आज की यह बात उस हिंसा के बारे में नहीं है, हम उस #अदृश्य हिंसा के बारे में बात कर रहे हैं, जो हर उस बच्चे के साथ हो रही है जिसके माता-पिता लड़ रहे हैं, प्रतिदिन मातापिता के गुस्से को झेल रहे हैं, या तलाक लेकर अलग हो रहे हैं। अपनी भारतीय मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि बच्चे की परवरिश के लिए शुरू के पांच सात वर्ष बहुत अहम होते हैं, उस समय की छाप (अच्छी या बुरी) #ताउम्र उसका पीछा करती है। या कहें, बच्चे मानस पटल पर अंकित हो जाती है, जो उसके व्यवहार में झलकती है। बच्चे असुरक्षा की भावना एवं कुंठित मानसिकता का शिकार हो जाते हैं। एक रूसी मनोवैज्ञानिक ने अपनी किताब `बाल हृदय की गहराइयां ' नामक किताब में लिखा है, बचपन एक ऐसा भूत है जो ताउम्र इंसान का पीछा करता है। हम वही बनते हैं, जैसा बचपन में हमने पाया होता है।


#लड़ते हुए मां-बाप उस बच्चे के अपराधी हैं, जिस ने कोई गलती करी ही नहीं। जब मैं छोटी थी #शायद सन उन्नीस सौ पिचहत्तर, छिहत्तर की बात होगी, बचपन में ही मैं ने मन्नू भंडारी द्वारा रचित #आपका #बंटी उपन्यास धारावाहिक धर्मयुग या हिंदुस्तान में किश्तों में पढ़ा था। उन दिनों यह धर्मयुग, हिंदुस्तान नामक दो साप्ताहिक पत्रिकाएं हमारे यहां नियमित आती थीं। इस उपन्यास का मेरे मन पर गहरा असर हुआ ही, लेकिन एक बात और समझ में आई, कि अच्छा साहित्य आपको सही राह भी दिखाता है। मैंने उसी समय सोच लिया था, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। हालांकि इन सब चीजों को समझने के लिए मेरी उम्र बहुत कम थी, शायद तेरह चौदह वर्ष। घर में पढ़ने का माहौल था, फिर ये शौक विरासत में मिला, जो अभी भी जारी है। स्वाध्याय से आपको कभी अकेलापन, बोरियत नहीं होती। किताबें आपकी अच्छी दोस्त हैं।
लेकिन अभी बात #बच्चे को लेकर हो रही है। बंटी एक बच्चे की कहानी, जिसके मां बाप लड़ रहे थे, और उस लड़ाई के बीच अकेला एक तीन चार साल का मासूम पिस रहा था। आपने बहुत सी डरावनी या करुणा भरी फिल्में देखी होंगी, दिल को दहला देने वाली किस्से, कहानियां पढ़ी होंगी, लेकिन इसे पढ़ते हुए आप हर क्षण यही सोचते रहेंगे, कि कहानी में कुछ ऐसा ट्विस्ट आ जाए, ताकि उस बच्चे को उस मुसीबत से बाहर निकाल सकें, मातापिता से अलग ना होना पड़े। बड़ों की तकलीफ से इतना दुख नहीं देती, जितना ऐसे अकेले हुए बच्चों के आंसुओं से, दिल तार तार घायल हो जाता है।

एक ऐसा बच्चा जिसके लिए आप दोनों (मातापिता) ने ना जाने कितने सपने बुने होंगे, ईश्वर से मन्नतों के धागे भी बांधे होंगे। फिर ऐसा क्या हो जाता है, कि अपने इतने #प्रिय आत्मीय के भविष्य को ही दरकिनार कर दिया जाता है। और छोड़ देते हैं, समाज में ठोकरें खाने के लिए। बच्चे ने तो आपके पास कोई प्रार्थना पात्र नहीं भेजा था, कि मुझे इस दुनिया में लेकर आओ, फिर जिम्मेदारी उठाते वक्त क्यों पीछे हटना। बच्चे को #मातापिता दोनों ही चाहिए होते हैं, पिता के कंधे पर चढ़कर दुनिया देखना चाहता है, तो मां की गोद में मीठी लोरियां सुन मीठे सपनों की दुनिया की सैर करना चाहता है। तुम बड़ों के इगो, टकराव, क्लेश, हिंसा मारपीट में बेचारे बच्चे का क्या कसूर। काश कोई ऐसी अदालत होती, जहां बच्चा भी अपनी एप्लीकेशन लगा सकता, कह पाता, मेरे बड़े होने तक आपको साथ ही रहना होगा, और वो भी बिना शराब, हिंसा, मारपीट या झगड़े के।

कभी सोचा है, आप लड़ते हुए, हिंसा करते हुए, शराब में डूबे, अपने बच्चों को कैसा बचपन दे रहे हैं? कभी सोचा है, गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में, जिसके साथ आप एक नए इंसान को बड़ा कर रहे हैं। वह इंसान जिसे दुनिया में लाने के लिए सिर्फ और सिर्फ आप (माता-पिता) जिम्मेदार है, यह आपकी इच्छा थी, आपकी मर्जी, आपकी खुशी और आपकी ही गलतियों की सजा #बच्चा भुगत रहा है।

लड़ते हुए मां बाप कोरी कल्पना नहीं, हिंदुस्तान के अनेक घरों की सच्चाई है, और इसको सही भी माना जा रहा है। खासतौर पर पति के घरवालों को, इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता। उन्हें यह सब सामान्य लगता है। लड़का (जो पिता बन चुका है) कोई चीख रहा है, कोई गालियां दे रहा है, हिंसा हो रही है, मां अकेले में रो रही है, और इस पूरी लड़ाई के बीच एक खिलखिलाता हुआ मासूम बच्चा, जिसकी मुस्कुराहट से रोशन था घर, मुंह से चहचहाट निकलती थी, जो पूरे हफ्ते अपने मन का ना होने पर जिद भी करता था, रोता भी था, वह अचानक चुप हो जाता है। किसी से बात नहीं करता, आपको लगता है बच्चा शांत है। लेकिन उसके अंदर की चिंगारी कब भयंकर आग बन जाए, कहना मुश्किल है। आत्मबल के अभाव में अपराध की राह भी इनको आसान लगने लगती है।

ऐसे में बच्चा जो बिल्कुल चुप हो जाता है, आत्मकेंद्रित, किसी से बात नहीं कर पाता, या झगड़ालू, हिंसात्मक जो आगे चलकर भविष्य में अपने दोस्तों, #जीवनसाथी पर भी यही व्यवहार दोहराता है। और इसी वजह से उसके कोई दोस्त नहीं बन पाते, वह किसी के साथ खेलता नहीं, पढ़ाई में पिछड़ जाता है। जिस उम्र में जीवन खुशी और बेफिक्री का दूसरा नाम होता है, उसके नाजुक कंधों पर जीवन की उदासी बेताल बन कर बैठ जाती है। ऐसे बच्चे, माता पिता के झगड़ों की वजह से दुबके होते हैं घर के किसी कोने में, आजकल मोबाइल में, या ऐसी परिस्थितियों में भाग जाते हैं, भटक जाते हैं, पलायन कर जाते हैं। कई बार उनकेेे व्यवहार में बदलाव देखा जा सकता है। उन्हें दूसरों को  कष्ट देकर भी कई बार सुख का अनुुभव होता है, तो कई बार स्वयं कोो पीड़ा पहुंचा कर भी आत्मसुख का अनुभव करते हैं।

एक डरावना सच है, जब बड़े बुजुर्ग सम्मान, देखभाल का रोना रो रहे हैं, तो पहले अपनी परवरिश को भी टटोलिए। वो बच्चे #क्यों देखेंगे, समझेंगे आपकी मजबूरियां?? आप तो दुनियाभर के कानून, लोकलिहाज जानते हैं। आपने उन बच्चों की मजबूरियां समझी थीं कभी, जब वह अपने मन के जज्बात आपसे शेयर करना चाहता था। वह तो कानून नाम की चिड़िया को जानता, समझता ही नहीं था, किससे गुहार लगाता कि मत करिए लड़ाई, झगड़ा, शराब पीकर घर में कोहराम मचाना।
यह माहौल एक मासूम बच्चे को कब अपराधी बना दे, पता भी नहीं चलता। यह व्यवहार, यादें जिंदगी में कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेंगी। और इसके अपराधी हैं, वयस्क माता-पिता, पढ़े-लिखे सो कॉल्ड समझदार लोग। ऐसे मातापिता भी सजा के पात्र हैं। मेरा मकसद केवल पैरेंट्स को अपनी गलतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास था। बस! हो सके तो, अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान दीजिए।

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