सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

गांव में छुट्टियां


✍️ गांव में छुट्टियां___
अब के बरस दादू के संग
छुट्टी सभी बिताना ...
भरी दुपहरी चढ़ें नीम पर
गांव की सैर कराना...
पक्षियों को जब डालें दाना
चिड़िया चींचीं चहचहाती ...
कबूतर करता गुटर गूं
कोयल मीठे गीत सुनाती...
मोर नाचे पंख फैलाए
छोटी गिलहरी भी बतियाती...
सुबह सवेरे जाएं खेत पर
पिएं गुड़ छाछ लोटा भर कर ...
ताऊजी लाएं दूध काढ़ कर
कच्चा दूध पी जाएं गट गट...
कद्दू की सब्जी के संग में
खट्टी मीठी कैरी की लौंजी ...
पूरी, गोल मटोल है फूली 
बनाती चाची,अम्मा और भौजी ...
दादी बिलौती दही छाछ
रोटी देती मक्खन वाली ...
दादू के संग जाएं बाग में
चकित देख,आमों की डाली ...
खीर बनाती मेवों वाली
खाते भर कर खूब कटोरी ...
लेकिन डैडा को भाती
बस आलू भरी कचौरी ...
सांझ ढले, चांदनी रात में
खेलें छुपन छुपाई ...
अपनी बारी आने को थी
दादी ने आवाज लगाई ...
ठंडे ठंडे बिस्तर छत पर
बच्चों को खूब आनंद आता ...
बड़े भैया, दीदी, बुआ
फिर सुनाएंगे भूतों की गाथा ...
हंसी खुशी से गया महीना
पता नहीं चल पाता ...
बेटा बेटी भी होते उदास
काश!
एक दिन और बढ़ जाता...
बीता महीना, वापिस आने का
करते हैं फिर वादा ...   
अगले बरस की राह हैं तकते
बूढ़े नानूनानी, दादी दादा!!
मिल गया जैसे टॉनिक
और जीने का सहारा ...
अब तो बीत जाएगा
मीठी यादों में, पूरा साल हमारा .........🙂


रविवार, 6 अक्तूबर 2019

बीमारी और सोच


✍️उम्र के हर दौर में बीमारी और सोच___
हर उम्र के साथ बीमारियां भी अलग अलग तरह की होती हैं। और साथ ही बीमारी को लेकर मतलब, सोच भी बदलती रहती है। उम्र के जीवन के चार #आश्रम, जिसमें चौथा आश्रम (संन्यासाश्रम) तो अब लगभग खत्म ही हो गया है इन तीनों अवस्थाओं में बीमारी में, सेवा के भी अलग-अलग भाव होते हैं। #बचपन में बीमारी में घरवाले, दूसरे सदस्य भी चिंता करते हैं, हर तरह से स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा के साथ ही तरह-तरह के उपाय खुशामद भी करतेे हैं, और येन केन प्रकरेण किसी ना किसी तरह स्वस्थ करने में जुटे रहते हैं। जरा सा बीमार होने पर मातापिता ही नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्य भी विशेष चिंतित हो जाते हैं। बच्चे को परेशान नहीं देख सकते हैं, इसलिए उसको विशेष लाड़, ध्यान रखा जाता है, चाहे कुछ हो जाए सब चाहते हैं कि उनके लाड़ले स्वस्थ रहें। #युवावस्था में शरीर भी समर्थ होता है बीमारी से मुकाबला करने के लिए, और स्वयं भी तन, मन, धन से सशक्त होता है। कुछ जवानी का अपना एक आकर्षण भी, अगर पद प्रतिष्ठा हो तो कहने ही क्या, जिसमें साथी लोग भी तवज्जो देते हैं। इसलिए बीमारी इस उम्र में व्यक्ति को ज्यादा परेशान नहीं करती। लेकिन बुढ़ापे में, बीमारी में कुछ तो भय सताने लगते हैं, बीमारी का मतलब लगभग मृत्यु का वरण ही हो जाता हैमिलने वाले, सेवा करने वाले भी ऐसी ही बातें करने लगते हैं कि बस अब तो #प्रस्थान की तैयारी कीजिए। बूढ़ा व्यक्ति जब बीमार होता है तो सबसे ज्यादा फिक्र यह सताती है कि देखभाल कौन करेगा। उम्र के तीनों दौर में, सबसे ज्यादा प्रभावित वृद्धावस्था ही होती है। इसलिए इस उम्र में जो बीमारी का अर्थ ठीक से समझ लेगा, उसके लिए उम्र भी मददगार हो जाएगी। वृद्धावस्था में जब भी बीमारियों से घिरे हों, उस समय सारी पुरानी उपलब्धियां, स्वाद, जवानी याद आती हैं, अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को बिल्कुल याद नहीं करना चाहिए, और ना ही अपने अतीत को याद कर दुखी हों। समय का पहिया घूमता रहता है कभी घी घना, तो कभी मुट्ठी चना, वर्तमान में रहना सीखें। एक तो वृद्ध शरीर, ऊपर से ये महत्वाकांक्षाएं, उपलब्धियां परेशान करने लगते हैं। अतीत में ही खोए रहना अपने गुणगान करना भी एक #बीमारी ही समझो।
हम किसी भी उम्र में हो एक तैयारी बीमार व्यक्ति को जरूर करनी चाहिए और वह है #सहयोग। जब लोग आपकी सेवा कर रहे होते हैं, तब आपको भी उन्हें खूब सहयोग करना चाहिए। केवल सेवा करवाने के उद्देश्य से सेवक को निचोड़िए मत। हायतौबा ना मचाए।
दूसरी बात बीमार व्यक्ति को #धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बोले कम सुनें ज्यादा। क्रोध से बचें। अन्यथा सेवा करने वाले इसी बात से परेशान हो जाते हैं कि इनकी सेवा में सबसे बड़ी दिक्कत ये (बीमार वृद्ध) खुद हैं। ध्यान रखिए बीमारी किसी को नहीं छोड़ने वाली, यदि उम्र के तीनों दौर में बीमारी को ठीक से समझ लिया जाए तो आधा इलाज तो आप स्वयं ही कर लेंगे। बाकी आधा इलाज चिकित्सक संभाल लेंगे, और इन सब के साथ जब प्रभु कृपा मिल जाए तो फिर बीमारी जीवन के लिए बोझ नहीं, आराम से गुजर जाएगी।