बुधवार, 11 दिसंबर 2019

अभिव्यक्ति की कमी और मानसिक रोग


✍️अभिव्यक्ति की कमी और मानसिक रोग__ 
सही मायने में, आजकल समाज में अभिव्यक्ति के लिए स्थान ही नहीं है, इसलिए शायद मानसिक बीमारियों के ग्राफ में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। मानसिक बीमारियों का मुख्य कारण है, अभिव्यक्ति की कमी। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दिखावा या #उद्दंडता है, वह भी सही बात नहीं है। अभिव्यक्ति, बच्चों जैसी निश्छल होनी चाहिए। दुनिया में ज्यादातर लोगों को अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने का मौका ही नहीं मिलता। उन्हें प्यार, दुख, खुशी से भी डर लगता है। जोर से हंसना नहीं, मन करे तो बेचारे रो भी नहीं सकते, सभ्यता के #विरुद्ध जो है। रोना भी एक समस्या जैसा ही है, बच्चा भी अगर जोर से रोए तो डांट कर चुप करा दिया जाता है, घर में कुछ भी परेशानी हो जाए तो गुपचुप गुपचुप शांत करा दिया जाता है, लोगों से छुपाया जाता है, और इस तरह एक घुटन सी हो जाती है। पति पत्नी को भी अपनी भावनाएं व्यक्त करने में, अच्छा खासा समय गुजर जाता है, फिर भी अपनी मन की बात कहने में संकोच करते हैं। यह बड़ी दुविधा है, अगर कोई बेटी ससुराल में सामंजस्य नहीं कर पाती है, तो उसके मायके वाले भी उसको बात कहने से रोकते हैं, और इस तरह वह अंदर ही अंदर घुट कर मानसिक रोगों की शिकार हो सकती है। दुख हो या सुख शेयर करने में क्या जाता है, अभिव्यक्ति से जहां सुख बढ़ता है, वहीं दुख घटता है इसलिए अभिव्यक्त तो करना ही चाहिए। आजकल जो इतनी आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं, उसमें भी कहीं ना कहीं भावनाओं की शेयरिंग का अभाव कह सकते हैं, यह सब आधुनिक संस्कृति की देन है। अगर आपकी भावनाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं मिलती है, तो यह अंदर जाकर आपका बहुत नुकसान कर सकती हैं। अभिव्यक्ति की आजादी, एक बहस का विषय बना हुआ है, जिसको सब अपने मनमाने ढंग से प्रयोग करना चाहते हैं।अभिव्यक्ति का अर्थ किसी को भी हर्ट करना नहीं, दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करनी होगी। अश्लीलता को अभिव्यक्ति की आजादी तो नहीं कह सकते हैं ना! कोई अभिव्यक्ति के नाम पर स्वछंद हो दूसरों को गाली दे, तो कोई देश विरोधी आंदोलन छेड़ संतुष्टि चाहता है। इसका दुरुपयोग अधिक हो गया है। लेकिन फिर भी मर्यादाओं का सम्मान करते हुए, अभिव्यक्ति अवश्य करना चाहिए।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

दीवारें बोल उठेंगी

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#दीवारें बोल उठेंगी!!
ऐसा भी कहीं होता है??? कुछ भी, विज्ञापन दिखा देते हैं। फिर सोचा एक बार ट्राई करने में क्या जाता है, मैंने दीवार की तरफ मुंह किया और पूछा क्या तुम बोलना जानती हो? उधर से आवाज आई, क्या आप सुनना पसंद करोगे?? अरे वाह! यह तो चमत्कार हो गया। मैंने तो सुना था दीवारों के कान होते हैं, लेकिन इसकी तो जुबां भी है.... पहले तो घबरा गई, फिर मैंने कहा चलो आज मैं सुनने के मूड में हूं, बताओ..... मुझे सुन नहीं पाओगे, मेरे पास इतनी राज छुपे हुए हैं, मेरे यानि, दीवार की परत दर परत के नीचे, आंखों के सामने ना जाने क्या क्या घटित हुआ है। सब सोचते हैं यह बेजान दीवार कुछ नहीं समझती, कुछ नहीं जानती लेकिन मैंने बहुत कुछ देखा है। यह विज्ञापन ऐसे ही नहीं बना। यह वास्तविकता है, बस आज तक मुझे (दीवार) को किसी ने आजमाया नहीं, आज तुमने पूछा तो मैं बोल रही हूं। मैं हूं तुम्हारी प्यारी सहेली, दीवार!!! खुशी और गम की राजदार। अब मैंने भी सोचा, आज से मैं तुम से ही सारी मन की बातें किया करूंगी। गांव जाना हुआ, तो वहां हमारे घर की पुश्तैनी हवेली की दीवारों ने बताया, कि जब तुम छोटी थी तो तुम्हारा अपनी मां की गोद में रथ,  मंझोली से आना,सबका दुलार पाना, कितनी बातें करती थी, और मैं यानी दीवार चुपचाप सुना करती थी। तुम्हारी सारी शैतानियों की गवाह हूं। लेकिन आज मैं दीवारों की बातों को महसूस कर रही हूं, है ना ताज्जुब! अब वह हवेली खंडहर हो चुकी है, फिर भी दीवारें बहुत कुछ बोल रही हैं।अंग्रेजों के समय और बाद में भी, दादाजी मुक़दम जमींदार थे, नौकर चाकरौं की भीड़ हुआ करती थी। इन दीवारों से मिलिए, जहां तुम (मैं) शादी हो कर आई थी, सब बहन भाइयों के साथ समय व्यतीत किया था, फिर बच्चे!! हे प्रभु! कितनी यादों की गवाह हूं मैं दीवार!!!! हर कमरे की दीवारों की अपनी अलग कहानी। पोर्च की दीवारें आज भी गवाह हैं, गाड़ी की नहीं, गाय की, जहां गाय बंधा करती थी। तब यहां बहुत रौनक थी जो आज बिल्कुल अनमनी, उदास हैं।कभी ये कोठी की दीवारें, पिताजी के ठहाकों व मित्र मंडली से गुलजार थी। दीवारें हंसना नहीं जानती, फिर भी कभी चहकती हुई, तो कभी उदास दिख जाती हैं। मनुष्य हंसना जानता है, फिर भी चेहरे पर मुखौटे लगाए रहता है। अब एक और दीवार से मिलिए, यह मेरी बहू के, मेरे पोती के, कुंवरसा के, नए रिश्तों के, नई पीढ़ी के आगमन के  स्वागत के लिए तैयार खड़ी है, देखो कितना कुछ कह रही है। हर दीवार अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है, कभी फुर्सत में फिर और ढेरों बातें करेंगे। बहुत कुछ कहना चाहती है मेरे घर की दीवारें। सब हम दीवारों को पत्थर दिल समझते हैं, पर ऐसा नहीं है दीवारों को भी महसूस होता है। वो साक्षी है आपकी हर कहानी की। कभी महसूस कीजिए, और आपके मुंह से अनायास ही निकल पड़ेगा, दीवारें बोल उठेंगी!!!!