गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

चुनावी वादे

✍️ चुनावी वादे और फिल्मी गाने __ 
वादा किया जो निभाना पड़ेगा
जब भी पुकारें तुमको आना पड़ेगा ...
__ देखो वादा तो हमने पूरा निभाया है, राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ, धारा 370 हटाई और भी कई कार्य हैं, वगैरह वगैरह ... आएंगे आएंगे जरूर आएंगे, दुबारा आएंगे तब के लिए भी तो छोड़िए कुछ काम __ #भा ज पा 

वादा करले साजना, 
तेरे बिन (कुर्सी के) मैं ना रहूं
मेरे बिना तू ना रहे हो के जुदा।
__ मुख्यमंत्री पद का कुर्सी प्रेम, #कांग्रेस राजस्थान

कितना प्यारा वादा है 
इन #मतवाली आंखों का 
इस मस्ती में सूझे ना 
क्या कर डालूं हाय मोहे #संभाल
ओ साथिया ओ बेलिया...
__ पंजाब की जीत पर खुशी में #झूमते हुए, एक दिल की पुकार __ भगवंत #मान  

भूल गया सब कुछ  
याद नहीं अब कुछ
बात है ये मामूली ... आई लव यू 
__ मैं कुछ नहीं भूला ये सब मिले हुए हैं, कोई घोटाले नहीं किए हमने। मामूली सी बात का बतंगड़ बना देते हैं। जरा सी मालिश करवा ली, फ्रूट सलाद खा लिए, कौन सी आफत आ गई हमारी कामयाबी से जलते हैं, लेकिन जनता हमसे बहुत प्यार करती है __ #आप प्रमुख 

कसमें वादे प्यार वफा सब
वादे हैं वादों का क्या ... 
कोई किसी का नहीं है सब
नाते हैं नातों का क्या... 
__ नहीं, हम ने ऐसा कब कहा। हमारे लिए #नेताजी ही सब कुछ हैं, हम रिश्ते नातों का बहुत आदर करते हैं, सब वैसे ही हमें बदनाम कर रहे हैं __ #सपा प्रमुख

वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ ...
जहां तुम हो, वहां मैं भी हूं ... 
मेरे लिए लेके आई हो ये सौगात 
जहां तुम हो वहां मैं भी हूं ... 
__ भाजपा को शिकस्त देने के लिए, सभी #विपक्षी दलों का #गठबंधन 

ओ मेरी जनता! 
खफा न होना, देर से आई दूर से आई
मजबूरी थी फिर भी मैं ने
वादा तो निभाया, वादा तो निभाया... 
__ गुजरात में देरी से सक्रिय हुई #कांग्रेस 

वादे पे तेरे मारा गया, बंदा मैं सीधा सादा
वादा तेरा वादा, हो वादा तेरा वादा
__ हर बार वादों के लॉलीपॉप से बेवकूफ बनता है, फिर भी चुनता है __ आम #जनता (वोटर) 
__ मनु वाशिष्ठ 


कह मुकरी ( मुकरिया)

✍️ (कह मुकरी) मुकरिया_ एक विधा काव्य की, जिसमें कारण कुछ बताए जाते हैं, और बात कुछ और होती है। हास परिहास, दुख वेदना, सभी भावों को स्पष्ट करने में सक्षम, यह काव्य की पुरानी मगर बेहद ही खूबसूरत सरल विधा है। यह दो सखियों के परस्पर वार्तालाप पर आधारित है। इस में एक सखी अपने पति/ साजन/ प्रेमी के बारे में मन की कोई बात कहती हैं, परंतु जब दूसरी सखी उससे यह पूछती है, कि क्या वह अपने प्रेमी साजन के बारे में बात कर रही है तो वह संकोचवश अपनी ही कही हुई बात से मुकर जाती है, और उसे मना करते हुए किसी दूसरे परिदृश्य/घटना/कल्पना के बारे में कहना बता देती है। उसी विधा में सखियां ही नहीं, मित्रों के बीच संवाद का एक #प्रयोगात्मक प्रयास __
1 ___
ओहो!ये भी ना,उसकी आवारा सी हरकत
चूमना 
माथे, गालों को और बेखौफ! गले से लिपटना 
कौन है सखी? वो सजन प्रियतम!या कोई लंपट 
नहीं सखि!वो तो है,उड़ती बालों की उलझी #लट!✓
2 ___
नींद से बोझल आँखें,और बंद होती पलकों के बीच 
कर देती है बेचैन, वो तेरे जरा सी आने की उम्मीद 
क्या वो है प्रेमी! साजन .. या महबूब मुरीद ?
नहीं री सखी! वो तो है #दोपहर की नींद ✓
3 ___
प्रातः उठने और जगने के बीच अलसाई सी 
कुछ तो बात है,ना मिले तो बड़ा तड़पाती 
होठों से लगाते ही,नींद की खुमारी भाग जाती 
मित्र! कौन है वो प्रिया? हसरतों वाली
नहीं मित्र! वो तो है चाय!..#आसाम वाली✓
4 ___
रोज सवेरे छत पे दिखती,वो भी मेरा इंतजार है करती
इधर फुदकती उधर फुदकती,कंधे पर है सर वो धरती
कौन है वो महबूबा, या है आसमान की परी?
नहीं मित्र! वो तो है मासूम सी गिलहरी!✓
5 ___
मैं रोकर गुजारा नहीं करता
वो हंस के जीने नहीं देती 
ना रात को चैन, ना दिन को आराम
कौन है वो? पाषाण हृदय महबूबा...!
नहीं मित्र! 
वो तो है, #जिंदगी! एक अजूबा!✓
____ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान