शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

पेरेंटिंग

✍️ हैलो पैरेंट्स__
आज कुछ बातें, बनने जा रहे नए पिताओं के लिए भी कहनी हैं। भारतीय समाज में पुरुष की कुछ इमेज ही ऐसी है कि उसे अपने आप को सख्त ही दिखाए रखना पड़ता है। जबकि अंदर से वह भी उतना ही नरम हृदय, दयालु प्रवृत्ति का होता है जितनी की मां। उसे बच्चों के सामने अपने आप को एक आदर्श पिता के रूप में ही स्थापित करना होता है उचित भी है, इसमें कुछ गलत भी नहीं दिखता। सभी पिताओं को अपने जीवन में ऐसा कुछ खास हासिल तो कर ही लेना चाहिए कि अपनी संतानों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए किसी और का उदाहरण नहीं देना पड़े। मां की ही तरह पिता भी बच्चों के प्रथम शिक्षक हैं, और शिक्षक में किसी साधारण बालक को असाधारण बनाने की क्षमता होती है। पिता का दायित्व अपने बच्चों को स्वयं का भाग्य निर्माता बना, आगे जीवन में भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना है। 
एक बात गौर करने वाली है, आपने कभी नोटिस किया है, आप अपने आप को हमेशा सही मानते हैं, अड़े रहते हैं। और उसको साबित करने के लिए तरह-तरह के उदाहरण/तर्क भी देते रहते हैं। हम बड़े हैं, कुछ गलत हो भी गया तो क्या?...
हम ऐसा कह कर कब तक खुद को सांत्वना देते रहेंगे मैं यदि धूम्रपान करता हूं, नशा करता हूं ... तो क्या हुआ ... मैं हूं भी तो बड़ा आदमी या यह मेरे जॉब की/ पेशे की मांग है, या हम बड़े लोगों में सब चलता है। मैं ऐसे एक नहीं कई लोगों को जानती हूं जो अक्सर खुद नशा करते और कहते हैं कि पार्टियों में, बड़े लोगों में बैठने के लिए, तनाव मुक्ति के लिए, व्यापार या फैशन में, नशा (शराब, तंबाकू, गुटखा) यह तो आवश्यक है, और इस तरह उन्होंने कभी इसे गलत नहीं माना, धीरे-धीरे उनके छोटे छोटे बच्चे भी यह सब करने लगते हैं। कभी-कभी थोड़ा सा झूठ बोल दिया तो क्या ... सब करना पड़ता है ... और यही चीजें बच्चे भी सीखने लगते हैं।
हम यह कह कर खुद को संतुष्ट करते रहते हैं कि हमें अपने साथ वालों के/ शिक्षक के चरित्र से क्या लेना देना। कुछ गलत है तो यह उसका व्यक्तिगत मामला है हमें तो उससे पढ़ना है बस... संसार में क्या सही है और क्या गलत इसका निर्णय करने वाला मैं कौन हूं। हो सकता है इसमें आप कुछ हद तक सही भी हों, लेकिन संगति के असर का प्रभाव होता ही है। बच्चे अपने शिक्षक का, बड़ों का अनुसरण अवश्य करते हैं और बच्चे उसे सही भी मानते हैं क्योंकि वे उनके आदर्श होते हैं इसलिए शिक्षक / बड़ों का आचरण भी अनुकरणीय होना चाहिए।
सही और अच्छी आदतों पर अपने आप पर गर्व महसूस किया जा सकता है, क्योंकि हम जानते हैं मुझ में फलां फलां खराब या अच्छी आदतें हैं। क्या मेरी चारित्रिक विशेषताएं अनुसरण के लायक हैं ... आने वाली पीढ़ी के लिए मेरा जीवन का एक आदर्श होगा या खतरा... किसी विशेष अंश रूप में नहीं, बल्कि अपने संपूर्ण रूप में हमारे बच्चे सब कुछ देख रहे होते हैं ... हम उनसे जो भी कहते हैं उस की अपेक्षा वह इस बात से ज्यादा सीखते हैं कि हम क्या करते हैं। नैतिकता पुस्तकों से कभी नहीं सीखी जा सकती वह तो अपने आसपास रहने वालों को देखकर सीखी जाती है। संसार आपके आचरण के उदाहरण पर चलेगा ना कि आपकी सलाह या उपदेश पर।
आपने वह कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें एक बहू अपनी सास को हमेशा मिट्टी के टूटे बर्तन में रुखा सूखा खाने को देती थी। यह देख कर एक दिन उसका बेटा उन मिट्टी के टुकड़ों को उठाकर रखने लगा और बोला ... मां जब आप बुड्ढी हो जाओगी तब मैं भी इन्हीं बर्तनों में आपको खाना दूंगा। आशय ... आप समझ ही गए होंगे, बच्चे देख कर ही सीखते हैं मात्र उपदेशों से नहीं।
आपका सोचना, बोलना, कार्य करना और रहना ऐसा होना चाहिए कि जैसा आप दूसरों से चाहते हैं ... कि वह किस प्रकार बोलें ... किस प्रकार कार्य करें... किस प्रकार रहे। जिस बात की अपेक्षा हम खुद से करने को इच्छुक नहीं है, तैयार नहीं है उस बात की अपेक्षा हम दूसरों से कैसे कर सकते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित कर लें कि आप ऐसी मास्टर कॉपी बने जो इस योग्य तो हो कि उस की डुप्लीकेट (zerox) कॉपी बनाई जा सके।
इस दुनिया में इंसान के लिए, ईश्वर की ओर से सबसे बेहतरीन सौगात है ... उसकी संतान। और एक पिता का बच्चे को सबसे बेहतरीन, अमूल्य उपहार है, अच्छी परवरिश ... और शिक्षा। बच्चे को समाज में नैतिकता व जिम्मेदारी के साथ सिर उठाकर जीने लायक बनाना।
ईश्वर तो हमें सबसे अच्छी सौगात दे देता है, पर क्या हम अपने बच्चे को भी बेहतरीन उपहार (अच्छी परवरिश) दे पाते हैं।

बच्चे हैं पौधे 
खाद पानी धूप दे
माली है पिता

बेटे की चोट
दिखना है मजबूत 
व्यथित पिता

होता विश्वास
जीतेंगे जग सारा
पिता हैं साथ