गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

सुनो स्त्री!

 

सुनो स्त्री! 
आधी आबादी! तुम इस धरती पर आधी आबादी की पूर्ण स्वामिनी हो। जब तुम अपने आप में बहुत कुछ संपूर्ण श्रेष्ठ हो, खुद को कमजोर क्यों समझती हो। तुम प्रेम की पराकाष्ठा हो, तुम स्वयं दुर्गा की शक्ति वाली, किसी कवि की कलात्मक अभिव्यक्ति, सौंदर्य की मूरत, प्रेम, धैर्य, त्याग जैसे गुणों की खान हो, फिर भी सहारे के लिए अपना सिर रखने के लिए किसी के कंधे क्यों तलाशती रहती हो। और आजकल रोजाना फेसबुक पर नित नए पोज, स्टाइल में, सुंदर दिखने की कोशिश में फोटो अपलोड करती रहती हो, डी पी बदलती रहती हो, ये सब क्या है..... हर समय सुंदर दिखना ही जिंदगी का मकसद है क्या? हर समय क्यों चाहती हो कि सब तुम्हारे सौंदर्य की ही प्रशंसा करते रहें। सांचे में ढला शरीर, अपने गोरे रंग पर इतराना, इसमें तुम्हारा क्या योगदान है। क्या तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की कमी है, अगर है तो आत्मविश्वास को बढ़ाओ। किसी की बेटी, किसी की पत्नी, किसी की मां, गोरा रंग,  सांचे में ढला शरीर, पुरुषों को आकर्षित करने के लिए सजी धजी गुड़िया बनी रहना, इसके अलावा क्या पहचान है, तुम्हारी इस समाज में। अपने किरदार को कुछ ऐसा बनाओ, अपने अंदर कुछ ऐसा पैदा करो कि तुम अपना परिचय अपने नाम से दो। यह धरती, यह आसमान, सबके लिए समान रूप से धूप हवा पानी देती है, तुम क्यों भेदभाव करती हो? इस आबादी को पोषण देने हैं या शोषण करने में भी तुम्हारा बराबर का योगदान है, गेंद दूसरे पाले में फेंक देने से बात नहीं बनेगी। रोना गिड़गिड़ाना बंद करो, जब आप दूसरे को दोष दे रहे होते हैं, तब कहीं ना कहीं अपनी कमियों को भी छुपा रहे होते हैं। ईश्वर ने तो सबको समान रूप से सक्षम बना कर भेजा है, फिर तुम क्यों भेद भाव रखती हो। या तुम भी इसी को भाग्य मान कर चल रही हो। स्वयं को कमजोर, बेचारी साबित कर सहानुभूति बटोरना भी एक बीमारी ही है, और तुम्हें बीमार नहीं रहना है .... ऑफिस में सहयोगी हो या बॉस की बदतमीजियां, या घर पर शादी के बाद पति को ढंग से जान भी नहीं पाती हो और उस के मुंह से शराब के भभके तथा पीठ पर पड़ने वाले लात, घूंसों का मुकाबला तुम्हें और सिर्फ तुम्हें ही करना है। ससुराल को यातना गृह मत बनने दो। दूसरों के वाक् बाणों से स्वयं को छलनी मत होने दो। उठो ओ स्त्री! आधी आबादी! तुम कहां किसी से कम हो, बराबरी वाली दुनिया में तुम हर चीज में श्रेष्ठ हो। बस अपने भूले हुए स्वरूप को याद करने की जरूरत है। 
                           

रविवार, 20 दिसंबर 2020

प्रेमिकाएं/पत्नियां

 ✍️ प्रेमिकाएं / पत्नियां

प्रेमिकाएं! स्वप्न सुनहरी, 

तो पत्नियां कटु यथार्थ होती हैं


प्रमिकाएं! सतरंगी इंद्रधनुष सी

तो पत्नियां मीठी धूप, छांव होती हैं


प्रेमिका! श्रृंगार रस की कविता

पत्नियां संस्कृति का महाकाव्य होती हैं


प्रेमिकाएं! (ई एम आई) की किश्त

तो पत्नियां पेंशन प्लान होती हैं


प्रेमिकाओं! की चाहत आसमां के तारे

तो पत्नियां जरूरत की मांग रखती हैं

                 

माना! कि प्रेमिकाएं बने प्रेरणा

लेकिन पत्नियां परिणाम देती हैं


प्रेमिकाएं! सजी कंगूरे सी

तो पत्नियां घर की नींव होती हैं


प्रेमिकाएं! नाजुक फूल

तो पत्नियां कड़वा नीम होती हैं


प्रेमिकाएं! देती नासूर (प्रेम रोग)

तो पत्नियां वैद्य, हकीम होती हैं


प्रेमिकाओं के सहते नखरे हजार

तो पत्नियां जर खरीद गुलाम होती हैं


दोनों ही बहती नदी के दो किनारे

जिसको जो भाए, सुखद अंजाम देती हैं 

                 

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

नेपाल trip, संस्मरण

✍️नेपाल trip, बर्फ की चादर तो नहीं, पर कोहरे की चादर ओढ़े,
चाय की प्याली के साथ _______

भारत मेरी मां का घर, तो मौसी का घर नेपाल उचित रहेगा। जैसे मामा, मौसी, नानी के यहां जाने पर लगता है, वैसा ही स्पेशल फीलिंग। नेपाल (काठमांडू) जाने पर आपको लगेगा ही नहीं, कि आप कहीं और दूसरी भूमि पर हैं। भगवान शिव और हिल स्टेशन होगा, (अन्य भी) जिसे ये आकर्षित ना करते हों। इसी आकर्षण ने हमें भी बुला ही लिया। इसी के चलते इस बार नेपाल जाने का प्रोग्राम बन गया। दिल्ली से प्रथम पड़ाव काठमांडू, पशुपति नाथ के दर्शन प्रथम मुख्य उद्देश्य, उसके बाद कुछ और। योगियों के लिए, भोगियों के लिए, घुमंतुओं के लिए, युवाओं के लिए, प्रकृति प्रेमियों के लिए सबके लिए नेपाल अच्छी जगह है। ध्यान करते भी कई लोग दिख जाते हैं। पशुपतिनाथ मंदिर के पीछे ही बागमती नदी बहती है, जहां सायं आरती बनारस की गंगा आरती की याद दिलाती है। हालांकि आरती उतनी भव्य नहीं थी, एक ओर आरती तो दूसरी ओर घाट पर चिता जल रहीं थीं। बाकी तो, उनकी (शिवजी) महिमा का वर्णन भला कौन कर सका है__
सात समंदर की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, हरि गुण लिखा न

जाइ।।
नेपाल पहुंचने के बाद अपने गंतव्य पर पहुंचने पर होटल में रुद्राक्ष की माला पहनाकर व चंदन टीका से स्वागत! गर्म चाय, आनंद आ गया। नेपाल की सबसे अच्छी बात यहां का हिंदीप्रेम, बाजार में सभी जगह पर हिंदी में ही लिखाहुआ, कोई सा भी व्हीकल हो दुपहिया या चौपहिया, सब पर हिंदी में ही नंबरप्लेट। काठमांडू में स्वयंभूनाथ, बौद्धनाथ मंदिर, (बौद्ध स्तूप) महाराजा का दरबार देखने के बाद, नेपाल में जीवितदेवी का दर्शन भी सुखदाई था। एक बार को लगा दर्शन नहीं होंगे, दौड़ते हुए समय को थामे, लेकिन प्रभु कृपा (चमत्कार) ही कहेंगे कि देवी ने दर्शन दिए। हुआ यूं कि देवी दर्शन का समय पूर्ण हो चुका था,और वे (देवी) जा चुकी थीं। लगभग सभी दर्शन कर चुके थे, लेकिन हमारी बहू थोड़ा लेट हो गई और दर्शन से चूक गई। लेकिन अंदर ही अंदर मुझेदीदी को चाहत थी, भरोसा भी था किसी तरह दर्शन हो जाएं। उसी समय एक महात्मा, साथ में एक नेपाली भी था, हो सकता है उनका शिष्य हो, उसने गुहार लगाई, मां! दर्शन दो! और उसी समय मां ने दर्शन दिए। हो सकता है औरों के लिए यह आम बात हो, लेकिन हमें यह चमत्कारिक भी लगी, दिल को आनंद से भर गई। इस तरह बहू ने भी दर्शनलाभ प्राप्त किया। यहां बौद्ध धर्म के अनुयायी (भिक्षु) भी खूब दिख रहे थे। नेपाल के लोग बहुत ही भले एवं सहयोगी लगे, होटल में हों या बाहर भी जब हम रोड क्रॉस कर रहे होते, या कहीं भी जा रहे होते तो शिष्टाचारवश वे पहले हमें निकलने देते। यहां तक कि फोर व्हीलर भी रुक कर स्माइल के साथ, हमें निकलने देते। वहां के लोगों के शांत, सहयोगी स्वभाव के कायल हो गए। इस समय (दिसंबर) वहां चारों ओर खूब सर्दी, कोहरा है। यहां का पोखरा हिल स्टेशन, यहां की प्राकृतिक दृश्य, गुप्तेश्वर महादेवगुफा, सूर्योदय, सूर्यास्त, फेवा लेक पर बोटिंग, पैराग्लाइडिंग, यूथ के लिए और भी बहुत कुछ, सब कुछ मन को मोह रहा था। सुदूर हिमालय, अन्नपूर्णा पर्वत श्रंखला, धौलगिरी पर्वतमाला पर बर्फ की चादर बिछी हुई ऊपर से सूर्य की किरणें गिरती हुई, दृश्य को और भी मनमोहक बना रही थी। उसके बाद कई परिवार के सदस्यों के साथ खूब मस्ती की। यह स्थान पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय है, यहां जाते हुए मध्य रास्ते में ही मनकामना मंदिर, एक सिद्ध शक्तिपीठ है, पर्यटकों के लिए केबल कार द्वारा ऊपर पहुंचने की व्यवस्था और उसमें से नीचे बहती नदी, बादल, धुंध को देखना मन को अभिभूत कर देता है। रोप वे का निर्माण चाइना की कंपनी ने किया था, एक बार को तो डर ही बैठ गया कहीं कुछ गलत ना हो जाए, लेकिन बहुत ही तेज रफ्तार से मात्र पंद्रह बीस मिनट में केबल कार द्वारा निचले स्टेशन कुरिन्तर से ऊपर तक पहुंचने के लिए लगभग पांच सौ रू (not exact) का टिकट दोनों ओर का लेना पड़ता है। यह पंद्रह बीस मिनट का सफर बादलों के ऊपर, नीचे बहती हुई नदी, बहुत ही रोमांचक दृश्य था। ऊपर पहुंचने पर चौड़ी सीढ़ियां चढ़ते हुए मंदिर तक पहुंचना था। वहां पहुंचने पर दर्शन के लिए इतनी लंबी लाइन कि जहां तक निगाह जा सकती थी, वहां तक चढ़ाई+ लाइन में खड़े होना, जबकि मंदिर पास में ही था। हारकर मंदिर के बाहर से ही दर्शन कर आगे बढ़ते हुए सायं 7:00 बजे तक पोखरा पहुंचना हुआ।
पोखरा पहुंचने के बाद अगले दिन सुबह ही सारंगकोट के लिए जल्दी ही निकलना होता है। पांच, छः किमी की दूरी तय करने में  लगभग 45 मिनट का समय लग जाता है, यहां पर सनराइज एवं सनसेट, विंध्वासिनी देवी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, देखने के लिए सभी पहुंचते हैं। यहां का उच्चतम व्यूप्वाइंट 5500 फीट की ऊंचाई पर एक रमणीक स्थल है, जहां से हिमालय की बर्फीली चोटियां, प्राकृतिक सौंदर्य, जादुई फोटोग्राफी के लिए यह पॉइंट बहुत ही सुंदर जगह दिखती है, यहां पर ही एडवेंचरस पैराग्लाइडिंग इत्यादि भी करते हैं। मौसम की मार से हम भी नहीं बच सके, और सूर्योदय नहीं देख पाए। लेकिन ये मौसम कई बार आपकी फ्लाइट भी मिस करवा देता है, बहुत ही रोमांचक भी, अनायास ही प्रभु स्मरण हो आता है। पोखरा के नजदीक ही सेती नदी बहती है, इस नदी का सारा पानी देखने में दूधिया दिखता है, लेकिन हाथ में लेकर देखने में बिल्कुल साफ, शायद पानी में चूने की अधिकता या कुछ और कारण हो सकता है, हमने पी कर भी देखा। इसी में 5000 साल पुरानी गुप्तेश्वर महादेव गुफा डेविस फॉल से गुफा के अंदर जाना रोमांचकारी था, इसके अंदर भी एक झरना बह रहा था, जो कि सड़क की दूसरी और ऊंचाई से गिरने वाले डेविस फॉल ही था, जैसा कि लोगों ने बताया और नीचे जाने पर यहां गुफा में भी दिख रहा था। पोखरा घूमने के बाद अंत में शहर के अंदर ही स्थित से फेवा झील भी कम आकर्षक नहीं थी, चारों और पहाड़ों से घिरा हुआ बहुत ही सुंदर कुछ-कुछ अपनी उदयपुर (राजस्थान) की फतेहसागर झील की याद दिला रही थी। रात को पोखरा में खूब चहल-पहल, हर गली बाजार में रोशनी, रेस्टोरेंट, रिसॉर्ट में क्रिसमस डिस्को पार्टी की धूम मची हुई थी। यहां पर गर्म कपड़े, तिब्बती सामान, रत्न भी, रेकी में काम आने वाले कई आइटम खूब बिक रहे थे। हमने भी रेकी के लिए सिंगिंग बाउल खरीदा, जिनकी कीमत भी 1000 से लेकर 30,000 तक भी थी। यहां इंडियन करेंसी भी चलन में थी, इंडियन ₹100 के बदले नेपाल के ₹160 थे। लेकिन ₹100 का ही यहां पर प्रावधान है, फिर भी कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। और भी बहुत कुछ है, यहां कई ऐसी जगह है जो अनायास ही आप का मन मोह लेंगी, कभी आ कर तो देखिए। लेकिन साथ में थोड़ा एक्स्ट्रा समय अवश्य लेकर चलें, नहीं तो कभी कभी, ये मौसम कई बार आपकी फ्लाइट भी मिस करवा देता है, बहुत ही रोमांचक भी है। फ्लाइट की मार झेलनी पड़ सकती है, जो शायद आपका बजट बिगाड़ दे।

मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

मूंगफली के साथ गुड़ खाना, ज्यादा पौष्टिक

✍️ मूंगफली के साथ गुड़ खाना, ज्यादा पौष्टिक__
एक कटोरी मूंगफली के भुने हुए दाने, एक कटोरी गुड़, दो चम्मच देशी घी। कड़ाही में घी गुड़ की चाशनी तैयार करें, फिर उसमें मूंगफली के दाने मिलाकर पट्टी तैयार करें, इसमें सूखे मेवे भी स्वाद व पौष्टिकता के लिए मिला सकते हैं। 
मूंगफली को गुड़ के साथ चिक्की या गुड़ पट्टी बनाते हैं तो इसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है। मूंगफली में कई तरह के विटामिन होते हैं। गुड़ की तासीर गर्म होती है, जो सर्दी जुकाम, कफ, पाचन की समस्या से बचाता है। गैस और कब्ज को भी दूर करने में मदद मिलती है मूंगफली में अति आवश्यक विटामिन्स, मिनरल्स, पोषक तत्व, आयरन, कैल्शियम, जिंक, प्रोटीन, ओमेगा 6, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, बी6, बी9 एंटी ऑक्सीडेंट्स मिलते हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं। मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं, जो खराब कोलेस्ट्रोल को कम कर अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। गुड़ और मूंगफली खाने से पाचन सम्बन्धी समस्याओं में आराम मिलता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए तो वरदान  ही है, खून की कमी को दूर करने में फायदेमंद है। रक्त संचार सही रहता है। महिलाओं में मासिक धर्म के समय होने वाले कमर दर्द में भी लाभप्रद है। गुड़ और मूंगफली खाने से शरीर से विजातीय द्रव्य बाहर को बाहर निकलते हैं, जिससे बालों, त्वचा में निखार, चमक बढ़ने लगती है। भरपूर प्रोटीन, कैल्शियम होने से बच्चों के लिए दांतों और हड्डियों के लिए फायदेमंद है। गुड़ और मूंगफली खाने से बहुत स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस होता है।


रविवार, 22 नवंबर 2020

मिष्ठी को चाहिए

प्यारी मिष्ठी को ढेरों शुभकामनाएं आशीर्वाद 💕👸😘😘
मिष्ठी को चाहिए👸
मम्मा की नरम गोद
डैडा के कन्धे के राजसी सवारी
दादू संग सैर सुहानी
और दादी से रोज नई कहानी 

मिष्ठी को चाहिए 👸

तारों भरा आकाश जमीं पर

परियां उतरे आंगन

जहां खेले छुपन छुपाई
रोज मनाए जन्मदिन मनभावन


मिष्ठी को चाहिए👸
चॉकलेट्स के पहाड़
जहां से निकले रस भरी नदिया
लड्डू, पूरी, पास्ता भरी नाव
गुब्बारों वाली बगिया


मिष्ठी को चाहिए👸
सब कुछ अभ्भी के अभ्भी
दिन हो जाएं खूब बड़े,
रात हो जाए छोटी
खूब खेलूं,सब सो जाएं तब भी


मिष्ठी को चाहिए👸
सब कुछ जो पसंद है वैसा
नहीं तो उठा लेगी सारा घर सिर पर
और फिर मुश्किल होगा
इस नन्ही कायनात को संभालना
बच्चे जब तक नासमझ है
तब तक वे समर्थ हैं
वे ताकत रखने रखते हैं
दुनिया बदल देने की,
और ये ताकत बनी रहनी चाहिए।



रविवार, 1 मार्च 2020

बच्चों के भविष्य पर संवरते माताओं के कैरियर

✍️
बच्चों की कुर्बानी पर संवरते माताओं के कैरियर_
पति पत्नी या लवर्स के आपसी संबोधन बाबू और पालतू जानवर बेबी हो गए, उनके लिए #अगाध प्रेम उमड़ रहा है, और जो सच में बाबू या बेबी हैं उनकी कोई पूछ नहीं कैसी विडम्बना है। जानवरों के लिए प्रेम होना अच्छी बात है, लेकिन फिल्मी स्टाइल में शोशेबाजी करना कितना सही है।
अधिकतर नौकरी पेशा माता-पिता को यह कहते सुना जाता है, आखिर हम यह किसके लिए कर रहे हैं बच्चों के लिए ही तो, लेकिन #सच तो यह है कि यह सब वे अपनी #स्वयं की संतुष्टि के लिए करते हैं। बच्चे को तो उनका समय, साथ चाहिए होता है जो वह उनको नहीं दे पाते, समय निकलने के पश्चात उस समय का कोई #उपयोगिता भी नहीं रह जाती है। कुछ समय पश्चात, बच्चे स्वयं भी आप से दूरी पसंद करने लगते हैं। कहा वर्षा, जब कृषि सुखाने। क्या हम दिल पर हाथ रख कर कह सकते हैं, कि हमने अपना फर्ज अच्छे से निर्वहन किया है। आप एक बार सोच कर देखिए, अगर बच्चे सही दिशा में आगे बढ़ते हैं तो यह पैरेंट्स के लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए हितकर है, अन्यथा बड़े बड़े लोगों को एक समय पश्चात रोते देखा है। और यह ऐसा नहीं कि केवल नौकरीपेशा माताओं की ही बात है, घरेलू महिलाएं भी कहां पीछे हैं, वे भी बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं। नौकरी पेशा महिलाओं के छोटे बच्चे अक्सर सुबह के स्कूल में फ्रेश होकर नहीं जाते, नहाकर नहीं जाते, क्योंकि समय नहीं है। धीरे धीरे बच्चे भी इस दिन चर्या के अभ्यस्त हो जाते हैं। क्या यह उचित है।
कई बार देखने में आता है माता-पिता दोनों जॉब वाले हैं, अपना #गिल्ट छुपाने के लिए, बच्चों की #अनर्गल फरमाइशें पूरी की जाती हैं। छोटे बच्चे भी ब्लैक मेल करना खूब अच्छी तरह जानते हैं। और अपनी मनचाही मांग पूरी करवाते हैं। घूमना फिरना हो, मनचाहे कॉलेज में एडमिशन लेना हो या और भी कई अन्य बातें। बच्चे कब गलत संगत में पड़ जाते हैं पता ही नहीं लगता। सुविधा के लिए बच्चे के लिए कोई आया रख दी जाती है। क्योंकि आजकल पैरेंट्स को भी घर के बुजुर्ग कई बार बर्दाश्त नहीं होते हैं, और वह अपनी स्वतंत्रता में दखल मान उनको रखने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तो कई बार बुजुर्ग भी अपनी जिम्मेदारी निभाने से हिचकिचाते हैं, वह अपनी सेवा की #लालसा पाले रहते हैं, ऐसे में उन्हें किसी आया या नैनी को रखना ही उचित लगता है। कई बार पैरेंट्स नौकरी की वजह से बच्चों को समय नहीं दे पाते, समय बचाने के चक्कर में बच्चों को जो मर्जी करने देते हैं, टीवी, मोबाइल या कोई गेम और इस प्रकार वह बच्चों को जो सिखाना चाहते हैं, नहीं सिखा पाते। नैनी, आया कुछ और सिखाती है, गाली गलौज भी सीख जाते हैं, और इस तरह बच्चा कंफ्यूज हो कर कुछ भी नहीं सीख पाता कि आखिर मुझे करना क्या है, वह जो कहना चाहता है कह नहीं पाता। और इस तरह से पूरी जिंदगी के लिए उसके अंदर #आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। बेहतर होगा हम अपने #कैरियर पर अपने बच्चों की जिंदगी या #कुर्बान ना करें। क्या फायदा आपकी शिक्षा का।
कई बार देखने में आता है माता-पिता अपने #कैरियर के परवाह करते हुए बच्चों की पढ़ाई में पिछड़ जाने पर भी ध्यान नहीं देते, शुरू में सोचते हैं एक-दो साल विलंब हो जाए तो कोई बात नहीं, धीरे-धीरे यह उनके आदत में आ जाता है। और बच्चे भी बस सामान्य पढ़ते हुए रह जाते हैं, उम्र निकलने के बाद सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता। काश! माता-पिता इस चीज पर गौर करें, तुम अपनी जिंदगी जी चुके हो, बच्चों की तरक्की देखकर खुश होना सीखिए। जब आपके बच्चे तरक्की करेंगे, आगे बढ़ेंगे, उस खुशी का किसी चीज से, किसी कैरियर से कोई मुकाबला नहीं है।
एकल परिवारों में रहते हुए बच्चों का कितना भावनात्मक, सामाजिक शोषण हो रहा है, यह अभी किसी की समझ में नहीं आ रहा है। कई बार बच्चे कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन आपके पास समय नहीं है, जिसका दुष्प्रभाव कुछ समय बाद देखने को मिलेगा। जो बच्चे अपने परिवार में बड़ों, छोटों के साथ में रहते हैं, उनका सामाजिक #व्यवहार और #समझ अच्छी होती है। कई चीजें जो हम केवल डांट कर नहीं सुधार सकते उसे हम परिवार में रहते हुए बड़े बुजुर्गों के सहारे से अच्छी तरह से समझा सकते हैं।
जब बच्चे अपने दादी, नानी से अपनी भाषा में बात करते हैं, किस्से कहानी सुनते हैं, तो उन्हें अपनी भाषा के साथ #संस्कृति के बारे में पता चलता है। कहानी सुनने से वे अपनी विरासत, संस्कारों को बचा पाते हैं। बच्चों में भाषा के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता दोनों बढ़ती है। दादी नानी, बुजुर्गों से बात करते हुए, बच्चों की #शब्दावली बढ़ती है, उनकी कुछ समझ में नहीं आता तो वह पूछते हैं इसका मतलब क्या है। इस प्रकार वे नए नए #शब्द सीखते हैं। और जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल करते हैं। आजकल बच्चों को लोकोक्तियां और मुहावरों का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है, क्योंकि यह उनके सुनने में ही नहीं आता है। जबकि पहले परिवारों में रहते हुए यह सारी चीजें उनको स्वतः ही ऐसे शब्दों और मुहावरों को आत्मसात करने लगते थे, इस तरह उनमें सुनने समझने का कौशल विकसित होता है। दिल पर हाथ रख कर सोचें, क्या आप ने बच्चों के साथ अपना फ़र्ज़ अच्छी तरह निभाया है। जब हमने अपना फर्ज अच्छे से निर्वहन नहीं किया है, तो बच्चों से भी उम्मीद ना रखें। वैसे उम्मीद तो किसी से भी नहीं रखनी चाहिए। आज दोनों पीढ़ियां एक दूसरे पर #दोषारोपण कर रही हैं। आप ने बच्चों को आया के भरोसे रखा, और बच्चों ने आप को वृद्धाश्रम के भरोसे। 
आप मेरी बात से कितने #सहमत हैं, अपनी राय अवश्य दीजिए।


गुरुवार, 30 जनवरी 2020

तीस जनवरी, बसंत पंचमी


✍️🇭🇺🙏🇭🇺🙏🇭🇺🙏
चरखा चलाने वाले के देश में
राजनेता इतने बौरा गए
निज स्वार्थ और, कुर्सी की खातिर
देश को ही चारा समझ
चर कर खा गए
निज स्वार्थ और.........
मधुमास ऋतु ,
उमंग,उल्लास बहे रसधार की,
इतनी नफरत पल रही दिलों में,
कैसे कहें हम 
कि बसंत तुम आ गए!!
निज स्वार्थ और.........
आज बसंतपंचमी, शहीद दिवस
गांधी को याद करूं या
पूजन करूं मां शारदे का
विचारों की लड़ाई में
हम अपनी संस्कृति ही भुला गए
निज स्वार्थ और .........
खिले फूल सरसों के
कोयल कूक रही आमों पर
सियासत की आंधी कुछ
इस तरह चली कि
बौर आने से पहले ही फूल मुरझा गए
निज स्वार्थ और .........

मंगलवार, 28 जनवरी 2020


✍️#बसंत ऋतु और खानपान---

#बसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो #पतझड़ होता है,बसंत नहीं।                                         _हरिशंकर परसाई
इसलिए निरंतर अभ्यास करते रहिए, आगे बढ़ते रहिये। #मेहनत करने वालों की ही, सफलता कदम चूमती है। #बसंत ऋतु शीतऋतु एवं ग्रीष्मऋतु के बीच का #संधिकाल होता है, इसलिए ना अधिक गर्मी होती है और ना ही अधिक ठंड। सुहाने मौसम के कारण ही इसे ऋतुराज बसंत की उपमा दी गई है। जब भी ऋतु बदलती है, तो एकदम से नहीं बदलती। हां! मौसम में कभी-कभी एकदम से बदलाव आता है जो चला भी जाता है, जोकि होता भी अपेक्षाकृत कम समय के लिए ही है। किसी ने बसंत से पूछा अब तक कहां थे तो जैसे बसंत ने जवाब दिया हो, इतनी शीत में जम ना जाऊं, इसलिए प्रकृति की सीप में सुरक्षित था, पर सही समय पर बाहर आने की तैयारी कर रहा था। हम भी कुछ वैसे ही ठिठुरन से बाहर आ रहे हैं। ठिठुरन, गलन जैसे जीवन अवरुद्ध कर देती हैं, बसंत इस जकड़न से बाहर निकलने का नाम है। शरीर और मन दोनों में नई ऊर्जा भरने का नाम है, जिंदगी में फिर से रवानगी आने का नाम है बसंत। जीवन में उमंग, ऊर्जा, आस, उल्लास, उत्साह, प्रकृति का खिलना यह सब वसंत ही तो है। हमारे मन पर और शरीर पर इसका बहुत ही सकारात्मक प्रभाव है। जीवन का दूसरा नाम है बसंत। बसंत, जमा देनेेेे वाली ठंड से बाहर निकलने, निकलकर खेलने, प्रातः भ्रमण कर स्वास्थ्य लाभ की ऋतु है। ठंड के मौसम में पानी में हाथ डालने, पीने तक से बचते थे वहीं बसंत आने के बाद, पानी भी कुछ अच्छा और थोड़ा सहज लगने लगता है। बसंती रंग हर्ष उल्लास और जोश का प्रतीक है, तभी तो यह गाना भी बना है_
मां ए रंग दे बसंती चोला...
जिसे पहन निकले हम मस्ती का टोला.....
मां ए रंग दे बसंती चोला.....
जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पर
उस चोले को पहनकर निकले हम मस्ती का टोला...
मां ए रंग दे बसंती चोला.....
बसंत केवल मनुष्य के लिए, अच्छे बुरों के लिए ही नहीं, समस्त प्रकृति के लिए है। बसंत में एक मस्ती है, उल्लास है, आनंद है, इसीलिए सेहत ही नहीं #रोग (बीमारी) भी प्रसन्न हो उठते हैं। अनेकों संक्रामक बीमारियां बसंत में ही अधिक देखने को मिलती हैं, इसलिए स्वास्थ्य बन सकता है तो बिगड़ भी सकता है। सर्दी और गर्मी के बीच का समय सब को अच्छा लगता है बीमार को भी और स्वस्थ व्यक्ति को भी। इसलिए थोड़ा संभल कर चलिए। माना कि यह बौराने (मदमस्त होने, बौर आने की, पेड़ों पर नए अंकुरण) की ऋतु है, फिर थोड़ा भी संभल कर चलिए। पीला रंग उल्लास, शुभता का प्रतीक रहा है। जनेऊ को पीले रंग में रंग कर पहनना हो या विवाह के समस्त कार्यक्रम, सभी इसी रंग में शुभ माने जाते हैं। पीले चावल बांटने से लेकर हाथों में ही नहीं पूरी देह में हल्दी लगाने तक, हल्दी जो कि बहुत अच्छी एंटीबायोटिक है।
इसलिए बसंत में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अपनी दिनचर्या और आहार पर भी ध्यान देना आवश्यक है। बसन्त ऋतु में गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए। इस मौसम में सर्दी के बाद धूप तेज होने लगती है, सूर्य की तेजी से शरीर में संचित #कफ पिघलने लगता है। जिससे #वात, #पित्त, #कफ का सन्तुलन बिगड़ जाता है, तथा #सर्दी, खांसी जुकाम, उल्टी दस्त आदि स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं की सम्भावना बढ़ जाती है। बसंत ऋतु में मौसम में बदलाव होता रहता है स्थिरता नहीं रहती, अतः इस मौसम में #आहार सम्बंधी सावधानी अत्यंत आवश्यक है। #गरिष्ठ, खट्टे, चिकने, अधिक मीठा व बासी भोजन ना करें, सादा हल्का सुपाच्य भोजन लें।भोजन में #काली #मिर्च, #अदरक, #तुलसी, #लौंग, #हल्दी (सब्जी या किसी भी रूप में) #मैथी आदि पदार्थों का सेवन करें। शरीर में वात, पित्त, कफ की समस्या को नियंत्रित करते हैं। बसंत ऋतु में प्रातः बड़ी हरड़ व पिपली का चूर्ण पानी या शहद के साथ लेना भी हितकर है, तथा उत्तम #औषधि स्वरूप ही है। प्रतिदिन आहार में शुद्ध घी, मक्खन, मेवे, खजूर, शहद, सोते समय दूध, गुड़ चना, मूंगफली, तिल के व्यंजन आदि के सेवन से शरीर पुष्ट एवं सशक्त होता है। क्योंकि रातें अभी भी लंबी ही होती हैं, जिससे आराम का अच्छा समय मिलता है तथा पाचन शक्ति भी अच्छी रहती है।  फलों में अमरुद, संतरा, आंवला, नींबू, बेर जैसे फलों का सेवन अवश्य करें। क्योंकि ये #विटामिनC से भरपूर होते हैं,जो #पाचनक्रिया ठीक कर कब्ज की समस्या को दूर करते हैं। इस ऋतु में तिल या सरसों के तेल की मालिश कर के नहाना बहुत अच्छा है। शारीरिक  व्यायाम अवश्य करें। इन दिनों गले में दर्द, खांसी जुकाम, खराश होना आम बात है, इसलिए प्रतिदिन  रात को सोते समय गर्म पानी में नमक तथा फिटकरी मिलाकर गरारे अवश्य कर लेना चाहिए। इससे गले की कोई परेशानी नहीं होती है। अगर कुछ परेशानी हो भी जाए तो तुलसी, कालीमिर्च, लौंग, अदरक आदि का काढ़ा बनाकर, सेंधा नमक या शहद मिलाकर पिएं। बहुत ही कारगर उपाय है।  इस मौसम में दिन में सोना देर रात तक जागना भी ठीक नहीं है।
#संत और #बसंत में एक ही समानता है,
जब #बसंत आता है तो, #प्रकृति सुधर जाती है।
और जब #संत आते हैं तो, #संस्कृति सुधर जाती है। जैसे प्रकृति में बसंत है, वैसे ही इंसान के जीवन में भी होता है, बस प्रकृति के बसंत की तरह सबके सामने, प्रत्यक्ष रूप से बाहर लाने की जरूरत है। असल में प्रकृति का बसंत हमें याद दिलाता है, कि अपने जीवन में भी नएपन को महत्व देना है। जीवन में इसी बसंत को लाने की जरूरत है फिर देखिए कैसा बसंती रंग में खिल उठता है, आपका जीवन।