गुरुवार, 30 जनवरी 2020

तीस जनवरी, बसंत पंचमी


✍️🇭🇺🙏🇭🇺🙏🇭🇺🙏
चरखा चलाने वाले के देश में
राजनेता इतने बौरा गए
निज स्वार्थ और, कुर्सी की खातिर
देश को ही चारा समझ
चर कर खा गए
निज स्वार्थ और.........
मधुमास ऋतु ,
उमंग,उल्लास बहे रसधार की,
इतनी नफरत पल रही दिलों में,
कैसे कहें हम 
कि बसंत तुम आ गए!!
निज स्वार्थ और.........
आज बसंतपंचमी, शहीद दिवस
गांधी को याद करूं या
पूजन करूं मां शारदे का
विचारों की लड़ाई में
हम अपनी संस्कृति ही भुला गए
निज स्वार्थ और .........
खिले फूल सरसों के
कोयल कूक रही आमों पर
सियासत की आंधी कुछ
इस तरह चली कि
बौर आने से पहले ही फूल मुरझा गए
निज स्वार्थ और .........

मंगलवार, 28 जनवरी 2020


✍️#बसंत ऋतु और खानपान---

#बसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो #पतझड़ होता है,बसंत नहीं।                                         _हरिशंकर परसाई
इसलिए निरंतर अभ्यास करते रहिए, आगे बढ़ते रहिये। #मेहनत करने वालों की ही, सफलता कदम चूमती है। #बसंत ऋतु शीतऋतु एवं ग्रीष्मऋतु के बीच का #संधिकाल होता है, इसलिए ना अधिक गर्मी होती है और ना ही अधिक ठंड। सुहाने मौसम के कारण ही इसे ऋतुराज बसंत की उपमा दी गई है। जब भी ऋतु बदलती है, तो एकदम से नहीं बदलती। हां! मौसम में कभी-कभी एकदम से बदलाव आता है जो चला भी जाता है, जोकि होता भी अपेक्षाकृत कम समय के लिए ही है। किसी ने बसंत से पूछा अब तक कहां थे तो जैसे बसंत ने जवाब दिया हो, इतनी शीत में जम ना जाऊं, इसलिए प्रकृति की सीप में सुरक्षित था, पर सही समय पर बाहर आने की तैयारी कर रहा था। हम भी कुछ वैसे ही ठिठुरन से बाहर आ रहे हैं। ठिठुरन, गलन जैसे जीवन अवरुद्ध कर देती हैं, बसंत इस जकड़न से बाहर निकलने का नाम है। शरीर और मन दोनों में नई ऊर्जा भरने का नाम है, जिंदगी में फिर से रवानगी आने का नाम है बसंत। जीवन में उमंग, ऊर्जा, आस, उल्लास, उत्साह, प्रकृति का खिलना यह सब वसंत ही तो है। हमारे मन पर और शरीर पर इसका बहुत ही सकारात्मक प्रभाव है। जीवन का दूसरा नाम है बसंत। बसंत, जमा देनेेेे वाली ठंड से बाहर निकलने, निकलकर खेलने, प्रातः भ्रमण कर स्वास्थ्य लाभ की ऋतु है। ठंड के मौसम में पानी में हाथ डालने, पीने तक से बचते थे वहीं बसंत आने के बाद, पानी भी कुछ अच्छा और थोड़ा सहज लगने लगता है। बसंती रंग हर्ष उल्लास और जोश का प्रतीक है, तभी तो यह गाना भी बना है_
मां ए रंग दे बसंती चोला...
जिसे पहन निकले हम मस्ती का टोला.....
मां ए रंग दे बसंती चोला.....
जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पर
उस चोले को पहनकर निकले हम मस्ती का टोला...
मां ए रंग दे बसंती चोला.....
बसंत केवल मनुष्य के लिए, अच्छे बुरों के लिए ही नहीं, समस्त प्रकृति के लिए है। बसंत में एक मस्ती है, उल्लास है, आनंद है, इसीलिए सेहत ही नहीं #रोग (बीमारी) भी प्रसन्न हो उठते हैं। अनेकों संक्रामक बीमारियां बसंत में ही अधिक देखने को मिलती हैं, इसलिए स्वास्थ्य बन सकता है तो बिगड़ भी सकता है। सर्दी और गर्मी के बीच का समय सब को अच्छा लगता है बीमार को भी और स्वस्थ व्यक्ति को भी। इसलिए थोड़ा संभल कर चलिए। माना कि यह बौराने (मदमस्त होने, बौर आने की, पेड़ों पर नए अंकुरण) की ऋतु है, फिर थोड़ा भी संभल कर चलिए। पीला रंग उल्लास, शुभता का प्रतीक रहा है। जनेऊ को पीले रंग में रंग कर पहनना हो या विवाह के समस्त कार्यक्रम, सभी इसी रंग में शुभ माने जाते हैं। पीले चावल बांटने से लेकर हाथों में ही नहीं पूरी देह में हल्दी लगाने तक, हल्दी जो कि बहुत अच्छी एंटीबायोटिक है।
इसलिए बसंत में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अपनी दिनचर्या और आहार पर भी ध्यान देना आवश्यक है। बसन्त ऋतु में गरिष्ठ भोजन करने से बचना चाहिए। इस मौसम में सर्दी के बाद धूप तेज होने लगती है, सूर्य की तेजी से शरीर में संचित #कफ पिघलने लगता है। जिससे #वात, #पित्त, #कफ का सन्तुलन बिगड़ जाता है, तथा #सर्दी, खांसी जुकाम, उल्टी दस्त आदि स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं की सम्भावना बढ़ जाती है। बसंत ऋतु में मौसम में बदलाव होता रहता है स्थिरता नहीं रहती, अतः इस मौसम में #आहार सम्बंधी सावधानी अत्यंत आवश्यक है। #गरिष्ठ, खट्टे, चिकने, अधिक मीठा व बासी भोजन ना करें, सादा हल्का सुपाच्य भोजन लें।भोजन में #काली #मिर्च, #अदरक, #तुलसी, #लौंग, #हल्दी (सब्जी या किसी भी रूप में) #मैथी आदि पदार्थों का सेवन करें। शरीर में वात, पित्त, कफ की समस्या को नियंत्रित करते हैं। बसंत ऋतु में प्रातः बड़ी हरड़ व पिपली का चूर्ण पानी या शहद के साथ लेना भी हितकर है, तथा उत्तम #औषधि स्वरूप ही है। प्रतिदिन आहार में शुद्ध घी, मक्खन, मेवे, खजूर, शहद, सोते समय दूध, गुड़ चना, मूंगफली, तिल के व्यंजन आदि के सेवन से शरीर पुष्ट एवं सशक्त होता है। क्योंकि रातें अभी भी लंबी ही होती हैं, जिससे आराम का अच्छा समय मिलता है तथा पाचन शक्ति भी अच्छी रहती है।  फलों में अमरुद, संतरा, आंवला, नींबू, बेर जैसे फलों का सेवन अवश्य करें। क्योंकि ये #विटामिनC से भरपूर होते हैं,जो #पाचनक्रिया ठीक कर कब्ज की समस्या को दूर करते हैं। इस ऋतु में तिल या सरसों के तेल की मालिश कर के नहाना बहुत अच्छा है। शारीरिक  व्यायाम अवश्य करें। इन दिनों गले में दर्द, खांसी जुकाम, खराश होना आम बात है, इसलिए प्रतिदिन  रात को सोते समय गर्म पानी में नमक तथा फिटकरी मिलाकर गरारे अवश्य कर लेना चाहिए। इससे गले की कोई परेशानी नहीं होती है। अगर कुछ परेशानी हो भी जाए तो तुलसी, कालीमिर्च, लौंग, अदरक आदि का काढ़ा बनाकर, सेंधा नमक या शहद मिलाकर पिएं। बहुत ही कारगर उपाय है।  इस मौसम में दिन में सोना देर रात तक जागना भी ठीक नहीं है।
#संत और #बसंत में एक ही समानता है,
जब #बसंत आता है तो, #प्रकृति सुधर जाती है।
और जब #संत आते हैं तो, #संस्कृति सुधर जाती है। जैसे प्रकृति में बसंत है, वैसे ही इंसान के जीवन में भी होता है, बस प्रकृति के बसंत की तरह सबके सामने, प्रत्यक्ष रूप से बाहर लाने की जरूरत है। असल में प्रकृति का बसंत हमें याद दिलाता है, कि अपने जीवन में भी नएपन को महत्व देना है। जीवन में इसी बसंत को लाने की जरूरत है फिर देखिए कैसा बसंती रंग में खिल उठता है, आपका जीवन।