गुरुवार, 20 जुलाई 2023

संस्मरण, ब्रज रज की महिमा रमण रेती __

संस्मरण, ब्रज क्षेत्र की महिमा #रमण रेती __ 
यूं तो सभी मानते हैं, मथुरा तीन लोक से न्यारी है। हो भी क्यों नहीं अपने आराध्य श्री कृष्ण का बचपन यहीं बीता है। ब्रज के तो लता पता, वन उपवन, कुंज निकुंज, नदी घाट, कण कण में प्रभु का आभास होता है। ब्रज भूमि का कण कण श्री कृष्ण में समाया है, या कहें कृष्ण कण कण में समाए हैं। ब्रज भूमि श्री कृष्ण की लीलाओं, कथाओं और उनके चरणों से पावन, शुद्ध एवं श्रद्धेय है। यहां हर जगह आपको चमत्कार ही चमत्कार मिलेंगे। ऐसा ही एक क्षेत्र है रमण रेती! रमण का शाब्दिक अर्थ है लोटपोट होना, तथा रेती का मतलब है रेत/ रज/मिट्टी/बजरी/माटी आदि। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण बाल्यावस्था में अपने सखा ग्वाल बालों के साथ यहां पर खेला करते थे, और रेत में लोटपोट होते थे, इसीलिए इस का नाम रमण रेती पड़ा साथ ही इस मिट्टी को लेकर गजब की मान्यताएं भी हैं। रमण रेती के बारे में जानकार आपको भी वहां पहुंचने की उत्सुकता रहेगी। 
मथुरा से पूर्व में गोकुल लगभग (10 किमी.) तथा महावन (19 किमी.) के लगभग बीच में यमुना नदी के किनारे स्थित रमण रेती एक अत्यंत रमणीक स्थल है। यहां रमण बिहारी जी का मंदिर है। भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में यहां अपने बाल गोपालों, सखाओं संग खूब लीलाएं की हैं एवं यहां की रज में लोटपोट हुए हैं। ब्रजभूमि के गोकुल में रमण रेती मंदिर में कुछ वर्षों ( मेरी याद में चालीस पैंतालीस वर्ष) १९७८में आई बाढ़ से पूर्व तक, चारों ओर रेत ही रेत थी। जहां हाथ से ही जरा सा रेती कुरेदने पर जमुना जल निकल आता था, चारों ओर पीपल और कदंब के वृक्ष थे, लेकिन अब सब बदल गया है, यहां संतों की कुटियां बन गई हैं आश्रम बन गए हैं, जिनसे कुछ सुविधा भी है लेकिन प्राचीन सौंदर्य नष्ट हो रहा है। खेलकूद, खानेपीने की दुकानें, मनोरंजक बाजार से तीर्थ स्थल भी पर्यटन स्थल बनते जा रहे हैं। यह धार्मिक आस्था पर आघात करने जैसा है।
यहां की पवित्र ब्रजरज बीते युग की कहानियों की साक्षी है। जब भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और उनके सखा बाल गोपालों के साथ दिव्य लीलाओं (रमण) में शामिल होने के लिए आते थे। यह वह स्थान भी है, जिसे श्री कृष्ण ने वृंदावन की यात्रा पर निकलने से पहले राधा से मिलने के लिए चुना था।
रमण रेती के निकट एक प्रसिद्ध कार्ष्णि आश्रम है, जिसमें प्राचीन रमण बिहारी जी मंदिर है। कहते हैं 18वीं शताब्दी के सिद्ध संत आत्मानंद गिरि को समर्पित इस मंदिर में, भगवान कृष्ण की मूर्ति ठीक उसी रूप में स्थित है, जैसा कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके कठोर तपस्या के आशीर्वाद स्वरुप प्रकट हुई थी। प्राचीन मंदिर के जर्जर होने के कारण, रमण बिहारी जी को नए मंदिर में विराजमान किया गया है। मंदिर में राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। यह स्थान सुंदर मंदिर, संतों महात्माओं और तीर्थ यात्रियों के लिए श्रद्धा भावभक्ति से पूर्ण क्षेत्र है।यहां जो भक्त दर्शन करने के लिए आता है वह रेत में लेटे बिना नहीं जाता। बताया जाता है कि जो भी सच्चे मन से कुछ मांगता है उसकी हर इच्छा, दर्शन करने से यहां पूरी होती है।
कहते हैं कि द्वापर युग में बाल गोपाल के समय, आज के रमण बिहारी मंदिर के स्थान पर जंगल था और इस जगह पर भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेला करते थे। एक दिन जब बाल गोपाल खेल रहे थे तब गोपियों ने उनकी गेंद चुरा ली, तब भगवान ने रेत को ही गेंद बना बना लिया और उससे खेलने लगे। इसलिए इस मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है। आज भी बच्चे बड़े रेत से गेंद बना कर एक दूसरे को मारते हैं, इस रेत से न केवल बीमारियां दूर होती है बल्कि आपको एक अलग तरह की मानसिक शांति भी मिलती है। 
आईए जानते हैं यहां की रेती  (रज) के बारे में कुछ खास बातें __ 
जैसा कि यहां के पुजारी जी ने बताया कि रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है, एवं रमणरेती की रेती से बीमारियां सभी दुख व कष्ट दूर होते हैं। भक्तजन यहां पर रेत में लेटते हैं ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें, क्योंकि बालकृष्ण यहां पर खेले थे। जिसकी वजह से यह जगह बहुत पवित्र है। 
मथुरा गोकुल के रमण रेती मंदिर में हर तरफ रेत ही रेत है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है बिना रेत में लेटे नहीं जाता। 
रमण रेती आने वाले भक्त यहां की रेती/रज का तिलक लगाते हैं, जिससे उन्हें श्री कृष्ण के चरणों को माथे पर लगाने का परम आनंद बोध होता है। 
मंदिर की रेत /रज में लोग नंगे पैर चलते हैं, रेत में कोई कंकर नहीं होते हैं, और नंगे पैर चलने में बहुत अच्छा लगता है।
यहां कई तरह की मान्यताएं हैं, इस रेत से बीमारियां दूर हो जाती हैं। भक्त मानते हैं कि यहां की रेत को घुटने व जोड़ों पर रखने से दर्द समाप्त हो जाता है। इसलिए वे बहुत देर तक यहां बैठे रहते हैं।
लोग यहां आकर लोटते हैं, ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें। मान्यता है कि बाल श्री कृष्ण यहां खेले हैं, इसलिए यह पवित्र है।
रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे पर मारने से पुण्य मिलता है, सारे दुख दूर होते हैं। 
बहुत से लोग इस रेत से घर भी बनाते हैं, मान्यता है कि ऐसा करने से उनके अपने घर का सपना (मनोकामना) पूरा हो जाता है। 
मंदिर के रेत में लोग नंगे पैर चलते हैं, कोई भी जूता चप्पल पहनकर नहीं जा सकता।
रमणरेती की रेत को बहुत पूजनीय माना जाता है, कई लोग इसको अपने घर भी ले जाते हैं।
फाल्गुन मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। रमण रेती के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि होली का त्यौहार पारंपरिक रंगों के बजाय रेत से खेला जाता है।
रमण रेती रेतीला स्थान है, जो एक विशाल परिसर में फैला हुआ है। यहां कार्ष्णि आश्रम के सामने एक हिरण अभयारण्य भी है, जिसमें लगभग ३००/४०० हिरण हैं, जिनमें कुछ काले हिरण, खरगोश, शुतुरमुर्ग भी हैं।  
यहां पर संत आत्मानंद गिरि आए थे, माना जाता है कि उनको भगवान श्री कृष्ण ने साक्षात दर्शन दिए थे इसीलिए भी यह स्थल काफी सिद्ध माना जाता है। साथ ही संत रसखान ने भी यहां तपस्या की, रमण रेती कवि रसखान की तपस्थली रही है, यहां उनकी समाधि स्थल भी है। 
_ मनु वाशिष्ठ 

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

ब्रज में नाश्ता

ब्रज का नाश्ता __
कोई मुझसे पूछे ब्रज क्षेत्र का मुख्य नाश्ता क्या है? तो मुझे तो ब्रज क्षेत्र में मुख्य नाश्ता जलेबी, कचौरी/बेड़ई ही लगता है। यहां ब्रज क्षेत्र में, आपकी डाइनिंग टेबल पर प्लेट में सजी गोरी अंग्रेज बाला सी इठलाती ब्रेड मक्खन को कोई तवज्जो नहीं देता। इसकी पूछ होती होगी मेट्रो सिटीज में ब्रज वासियों की बला से, यहां तो राज श्री राधे रानी का, और नाश्ते में स्वाद जलेबी, कचौरी/ बेड़ई का। यमुना जी में स्नान कर लौटते हुए कई भक्त, जलेबी बेड़ई को उदरस्थ किए बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हलवाई भी भोर से ही काम पर लग जाते हैं। आप कितनी भी जल्दी में हों, बस, ट्रेन पकड़नी हो, कोर्ट कचहरी में तारीख हो, लेकिन किसी दुकान की लोहे की कढ़ाही से आती हुई, गरम मसालेदार आलू, खट्टी मीठी कद्दू की सब्जी और बेड़ई की महक आपके दिमाग को चेतना शून्य और पैरों में मानो बेड़ी डाल देते हैं। आप सब कुछ भूल दुकान की ओर बिन डोर खिंचे चले जाते हैं। गरम तेल में घूमर नृत्य करती एक एक बेड़ई, “छन छनन छन" की आवाज के साथ झूमती हुई जब आपकी आंखों के सामने से गुजरती हैं, फिर एक साथ ग्रुप बना एक लय में सिंकती हैं, तो आप उसके सुनहरे तांबई रंग को देख जड़वत् खड़े रह जाते हैं। 
ना कोई मोल ना भाव बस! इंतजार में कि कब कृपा प्राप्त होगी। ऐसी लगन तो मंदिर में भी नहीं लगी और ऐसे में दुकानदार का कारिंदा आप पर जैसे मेहरबान हो कर सब्जी, बेड़ई का दौना आप के हाथ में थमा देता है, इतनी मारामारी के बीच कचौड़ी/बेड़ई का दौना मिलना, अहोभाग्य! फिर आती है बारी जलेबी की, तब तक बेसुध व्यक्ति अपने होश में आ चुका होता है। तब वह जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घर के लिए भी पैक करवाने का आदेश जारी कर, स्वयं दौने की सफाई में जुटा रहता है।
किसी जलेबी कचौरी की मशहूर दुकान पर गौर कीजिए, हाई बी पी वाला उतावला व्यक्ति भी यहां धैर्य धारण किए तपस्वी जान पड़ता है। यहां जाति, धर्म, अमीर, गरीब, क्षेत्र से ऊपर उठकर सब बड़े प्रेम से भाईचारे के साथ अपनी अपनी बारी का इंतजार करते हैं। लेकिन लखनवी अंदाज “पहले आप, पहले आप" वाली विचारधारा यहां लागू नहीं होती, क्योंकि इतनी देर में तो बेड़ई की परात खाली हो जाती है। राधे राधे! फिर मिलेंगे ब्रज क्षेत्र के किसी और विषय को लेकर।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान