गुरुवार, 26 अगस्त 2021

हिंदी दिवस पर

हिंदी दिवस पर__
मैं हिंदी, आज नगर भ्रमण पर निकली हूं। मीडिया की वजह से मुझे भी पता चला कि आज मेरा दिन है। अच्छा लगा, मेरे लिए इतना उत्साह सही है, होना भी चाहिए, आप अपनी मातृभाषा में जितना अच्छा सोच सकते हैं, उतना दूसरी भाषा में नहीं। कई बार तो अर्थ का अनर्थ भी ही जाता है, भाव ही बदल जाते हैं। पूरा दिन घूमने के बाद अब थक हार कर लौटी हूं। वैसे तो मैं राष्ट्रभाषा राजभाषा के साथ ही संपर्क भाषा भी हूं, और कई देशों में बोली जाती हूं। मेरी कई बहनें भाषा भी हैं, जैसे_ प्राकृत, खड़ी बोली, अपभ्रंश, ब्रज, अवधी, उर्दू, डोगरी, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, गुरुमुखी और भी बहुत होंगी शायद, पर माताश्री तो एक ही हैं, संस्कृत।   
सच कहूं तो बड़ा असमंजस में हूं, अपने अस्तित्व को बचाने, मजबूत करने के लिए अभी बहुत प्रयास करना पड़ेगा। ज्यादातर दोहरे मापदंड, मानसिकता वाले लोग हैं, जिनके अपने कोई वैचारिक प्रतिबद्धता, सिद्धांत नहीं  हैं। मेरा तो सर ही चकरा गया जब मैंने हिंदी दिवस भी इंग्लिश में सेलिब्रेट होते देखा।
घर के जोगी जोगना, आन गांव के संत।
सही बात है। कई बार विदेशियों को पूरे दिल से हिंदी में बातें करते सुनती हूं तो ऐसा ही लगता है, अपने देश भले कोई ना पूछे बाहर वाले तो कद्र कर रहे हैं। चलो अब अगले वर्ष फिर मिलती हूं, तब शायद मैं थोड़ी और बुजुर्ग हो जाऊंगी। कहते हैं, बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है, कभी फुरसत में मिलिएगा... 
     ___ मनु वाशिष्ठ