बुधवार, 29 जून 2022

सच पर तरस

✍️सच पर तरस!
भरे बाज़ार में, सच की दुकानों पर है सन्नाटा।
तिजारत झूठ की चमकी है,मक्कारी की बातें हैं।
                            _____  हिना रिज़वी
कथा सुनें भागवत की,
प्रभु को बहकाने चला है
श्रद्धा रखें झूंठ, हिंसा में और
आरती के थाल सजाने/
इबादत/ सजदे में सर झुकाने लगा है....

जाने क्यों! सच पर,
अब तो तरस आने लगा है
झूठ अपनी चालों पर,
सीना तान बहुत इतराने लगा है....

झूठ, पहन सच के कपड़े
घूम रहा है जलसों में
सच, तन को ढांपे
कहीं किसी कोने में नंगा खड़ा है....

सुना था,
झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता
लेकिन अब तो
ताउम्र भी पैर जमाने लगा है....

कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते
लेकिन पहन केलीपर
झूठ, मैराथन की
दौड़ लगाने लगा है.....

सच कड़वा होता है,
इसलिए
कौवे जैसा सच नहीं बोलें?
अन्यथा लटके रहोगे चमगादड़ की तरह
उलटे पांव पेड़ पर, ताउम्र...

क्या कभी झूठ दंडित हो पाएगा
कहीं ऐसा ना हो,
लोग सच को ही समझें गाली
और इस तरह केवल झूठ पर ही 
बड़ी निष्ठा के साथ भरोसा किया जाएगा.....

ए दुनिया! मैं (सच) नहीं तेरे लायक,
इसीलिए शायद मुझे (सच)
इस दुनिया से
विदा किया जाएगा....

लेकिन! नहीं मैं (सच) कहीं नहीं जाऊंगा
ना ही हार मानूंगा!
मुझे भेजा ही इसीलिए गया है
मेरा विश्वास बहुत गहरा है
झूठ! एकदिन रोएगा, गिड़गिड़ाएगा
अंत समय में मुझसे माफी भी मांगेगा
बस, फर्क इतना है, तब मैं माफी
नहीं दे पाऊंगा, तुम से पहले ही
मैं (सच) चला जाऊंगा
हमेशा के लिए अपराधबोध देकर
तब तुम्हें मेरे होने का महत्व समझ आएगा....