बुधवार, 11 दिसंबर 2019

अभिव्यक्ति की कमी और मानसिक रोग


✍️अभिव्यक्ति की कमी और मानसिक रोग__ 
सही मायने में, आजकल समाज में अभिव्यक्ति के लिए स्थान ही नहीं है, इसलिए शायद मानसिक बीमारियों के ग्राफ में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। मानसिक बीमारियों का मुख्य कारण है, अभिव्यक्ति की कमी। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दिखावा या #उद्दंडता है, वह भी सही बात नहीं है। अभिव्यक्ति, बच्चों जैसी निश्छल होनी चाहिए। दुनिया में ज्यादातर लोगों को अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने का मौका ही नहीं मिलता। उन्हें प्यार, दुख, खुशी से भी डर लगता है। जोर से हंसना नहीं, मन करे तो बेचारे रो भी नहीं सकते, सभ्यता के #विरुद्ध जो है। रोना भी एक समस्या जैसा ही है, बच्चा भी अगर जोर से रोए तो डांट कर चुप करा दिया जाता है, घर में कुछ भी परेशानी हो जाए तो गुपचुप गुपचुप शांत करा दिया जाता है, लोगों से छुपाया जाता है, और इस तरह एक घुटन सी हो जाती है। पति पत्नी को भी अपनी भावनाएं व्यक्त करने में, अच्छा खासा समय गुजर जाता है, फिर भी अपनी मन की बात कहने में संकोच करते हैं। यह बड़ी दुविधा है, अगर कोई बेटी ससुराल में सामंजस्य नहीं कर पाती है, तो उसके मायके वाले भी उसको बात कहने से रोकते हैं, और इस तरह वह अंदर ही अंदर घुट कर मानसिक रोगों की शिकार हो सकती है। दुख हो या सुख शेयर करने में क्या जाता है, अभिव्यक्ति से जहां सुख बढ़ता है, वहीं दुख घटता है इसलिए अभिव्यक्त तो करना ही चाहिए। आजकल जो इतनी आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं, उसमें भी कहीं ना कहीं भावनाओं की शेयरिंग का अभाव कह सकते हैं, यह सब आधुनिक संस्कृति की देन है। अगर आपकी भावनाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं मिलती है, तो यह अंदर जाकर आपका बहुत नुकसान कर सकती हैं। अभिव्यक्ति की आजादी, एक बहस का विषय बना हुआ है, जिसको सब अपने मनमाने ढंग से प्रयोग करना चाहते हैं।अभिव्यक्ति का अर्थ किसी को भी हर्ट करना नहीं, दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करनी होगी। अश्लीलता को अभिव्यक्ति की आजादी तो नहीं कह सकते हैं ना! कोई अभिव्यक्ति के नाम पर स्वछंद हो दूसरों को गाली दे, तो कोई देश विरोधी आंदोलन छेड़ संतुष्टि चाहता है। इसका दुरुपयोग अधिक हो गया है। लेकिन फिर भी मर्यादाओं का सम्मान करते हुए, अभिव्यक्ति अवश्य करना चाहिए।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

दीवारें बोल उठेंगी

✍️
#दीवारें बोल उठेंगी!!
ऐसा भी कहीं होता है??? कुछ भी, विज्ञापन दिखा देते हैं। फिर सोचा एक बार ट्राई करने में क्या जाता है, मैंने दीवार की तरफ मुंह किया और पूछा क्या तुम बोलना जानती हो? उधर से आवाज आई, क्या आप सुनना पसंद करोगे?? अरे वाह! यह तो चमत्कार हो गया। मैंने तो सुना था दीवारों के कान होते हैं, लेकिन इसकी तो जुबां भी है.... पहले तो घबरा गई, फिर मैंने कहा चलो आज मैं सुनने के मूड में हूं, बताओ..... मुझे सुन नहीं पाओगे, मेरे पास इतनी राज छुपे हुए हैं, मेरे यानि, दीवार की परत दर परत के नीचे, आंखों के सामने ना जाने क्या क्या घटित हुआ है। सब सोचते हैं यह बेजान दीवार कुछ नहीं समझती, कुछ नहीं जानती लेकिन मैंने बहुत कुछ देखा है। यह विज्ञापन ऐसे ही नहीं बना। यह वास्तविकता है, बस आज तक मुझे (दीवार) को किसी ने आजमाया नहीं, आज तुमने पूछा तो मैं बोल रही हूं। मैं हूं तुम्हारी प्यारी सहेली, दीवार!!! खुशी और गम की राजदार। अब मैंने भी सोचा, आज से मैं तुम से ही सारी मन की बातें किया करूंगी। गांव जाना हुआ, तो वहां हमारे घर की पुश्तैनी हवेली की दीवारों ने बताया, कि जब तुम छोटी थी तो तुम्हारा अपनी मां की गोद में रथ,  मंझोली से आना,सबका दुलार पाना, कितनी बातें करती थी, और मैं यानी दीवार चुपचाप सुना करती थी। तुम्हारी सारी शैतानियों की गवाह हूं। लेकिन आज मैं दीवारों की बातों को महसूस कर रही हूं, है ना ताज्जुब! अब वह हवेली खंडहर हो चुकी है, फिर भी दीवारें बहुत कुछ बोल रही हैं।अंग्रेजों के समय और बाद में भी, दादाजी मुक़दम जमींदार थे, नौकर चाकरौं की भीड़ हुआ करती थी। इन दीवारों से मिलिए, जहां तुम (मैं) शादी हो कर आई थी, सब बहन भाइयों के साथ समय व्यतीत किया था, फिर बच्चे!! हे प्रभु! कितनी यादों की गवाह हूं मैं दीवार!!!! हर कमरे की दीवारों की अपनी अलग कहानी। पोर्च की दीवारें आज भी गवाह हैं, गाड़ी की नहीं, गाय की, जहां गाय बंधा करती थी। तब यहां बहुत रौनक थी जो आज बिल्कुल अनमनी, उदास हैं।कभी ये कोठी की दीवारें, पिताजी के ठहाकों व मित्र मंडली से गुलजार थी। दीवारें हंसना नहीं जानती, फिर भी कभी चहकती हुई, तो कभी उदास दिख जाती हैं। मनुष्य हंसना जानता है, फिर भी चेहरे पर मुखौटे लगाए रहता है। अब एक और दीवार से मिलिए, यह मेरी बहू के, मेरे पोती के, कुंवरसा के, नए रिश्तों के, नई पीढ़ी के आगमन के  स्वागत के लिए तैयार खड़ी है, देखो कितना कुछ कह रही है। हर दीवार अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है, कभी फुर्सत में फिर और ढेरों बातें करेंगे। बहुत कुछ कहना चाहती है मेरे घर की दीवारें। सब हम दीवारों को पत्थर दिल समझते हैं, पर ऐसा नहीं है दीवारों को भी महसूस होता है। वो साक्षी है आपकी हर कहानी की। कभी महसूस कीजिए, और आपके मुंह से अनायास ही निकल पड़ेगा, दीवारें बोल उठेंगी!!!!

गुरुवार, 14 नवंबर 2019

एक था बचपन


✍️
एक था #बचपन??
शामें तो बचपन में हुआ करती थी!!
एक #अरसा हुआ,अब वो शाम नहीं होती।
जिसका #इंतजार रहता था, खेलने के लिए। 
फिर थोड़ा और बड़े हुए!!     
शाम का #इंतजार होता था,
दोस्तों को अपने #सपने सुनाने के लिए!!
कितना याद आता है ना!
एसा क्या हो जो,
हमें #खिलखिला कर हंसने पर
#मजबूर कर दे गुदगुदा दे।
कितने याद आते हैं,
वो सब जो कहीं पीछे छूट गया है।
आओ एक गहरी लंबी सांस लें,
और पहुंच जाएं,
बचपन की उन #गलियों में।
उस उल्लास में, #बेखौफ
फिर से जीवन जीने का अंदाज़ सीखना।
हर बार
नया खेल,नई #ऊर्जा, नई #सीख, नये सपने।                        
बचपन की ही तरह #बातें पकड़ना नहीं,
बस #माफ करना।
एक अंगूठे से #कट्टा, लड़ाई,
और दो अंगुलियों से
मुंह पर विक्ट्री का निशान,
एक #पुच्चा से वापिस दोस्ती।
वो छोटी, छोटी चीजों  में #अपार पूंजी,
अमीरी का #अहसास।
अपने बैग में छुपा कर रखना उस पूंजी को,
रंगीन कंचे,चित्रों की कटिंग,
बजरी में से ढूंढ़ के लाए
पत्थर के टुकड़े, सीप,शंख, घोंघे के खोल।
खट्टी मीठी गोलियां, छुप कर कैरी का खाना,
और ना जाने क्या क्या।
क्या याद है, आपको?
झाड़ू की सींक में
हाथ से बनाया झण्डा लेकर
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत, 
स्कूल जाना।
कभी कभी
जेबखर्च के बचे पैसे भी होते थे।
वाकई #बहुत #अमीर था #बचपन।
न जाने कहां गुम गई वो अमीरी ?
#चलो एक बार फिर से
#कोशिश तो कर ही सकते हैं,
उस बचपन में लौटने की!
आज अपने किसी #पुराने दोस्त से मिलते हैं,
#बिना किसी #शिकवे शिकायत के!
#मन के #दरवाजे #खोलने हैं,
सारे मुखौटे घर पर छोड़ कर।
#बारिश में भीगकर आते हैं,
डांट पड़ेगी तो, #कोईबात नहीं।
किसी तितली को,
पकड़ने के लिए दौड़ लगाते हैं।
किसी छोटे पपी को घर लाकर नहलाते हैं,
फिर उसी के साथ सो जाते हैं।
चलो आज बचपन की,
यादों की गलियों में #चक्कर लगा कर आते हैं।
और #इंतजार करते हैं,
उसी #शाम का जो अब नहीं आती!        
अब तो बस,
सुबह के बाद सीधे रात हो जाती है।

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

गांव में छुट्टियां


✍️ गांव में छुट्टियां___
अब के बरस दादू के संग
छुट्टी सभी बिताना ...
भरी दुपहरी चढ़ें नीम पर
गांव की सैर कराना...
पक्षियों को जब डालें दाना
चिड़िया चींचीं चहचहाती ...
कबूतर करता गुटर गूं
कोयल मीठे गीत सुनाती...
मोर नाचे पंख फैलाए
छोटी गिलहरी भी बतियाती...
सुबह सवेरे जाएं खेत पर
पिएं गुड़ छाछ लोटा भर कर ...
ताऊजी लाएं दूध काढ़ कर
कच्चा दूध पी जाएं गट गट...
कद्दू की सब्जी के संग में
खट्टी मीठी कैरी की लौंजी ...
पूरी, गोल मटोल है फूली 
बनाती चाची,अम्मा और भौजी ...
दादी बिलौती दही छाछ
रोटी देती मक्खन वाली ...
दादू के संग जाएं बाग में
चकित देख,आमों की डाली ...
खीर बनाती मेवों वाली
खाते भर कर खूब कटोरी ...
लेकिन डैडा को भाती
बस आलू भरी कचौरी ...
सांझ ढले, चांदनी रात में
खेलें छुपन छुपाई ...
अपनी बारी आने को थी
दादी ने आवाज लगाई ...
ठंडे ठंडे बिस्तर छत पर
बच्चों को खूब आनंद आता ...
बड़े भैया, दीदी, बुआ
फिर सुनाएंगे भूतों की गाथा ...
हंसी खुशी से गया महीना
पता नहीं चल पाता ...
बेटा बेटी भी होते उदास
काश!
एक दिन और बढ़ जाता...
बीता महीना, वापिस आने का
करते हैं फिर वादा ...   
अगले बरस की राह हैं तकते
बूढ़े नानूनानी, दादी दादा!!
मिल गया जैसे टॉनिक
और जीने का सहारा ...
अब तो बीत जाएगा
मीठी यादों में, पूरा साल हमारा .........🙂


रविवार, 6 अक्तूबर 2019

बीमारी और सोच


✍️उम्र के हर दौर में बीमारी और सोच___
हर उम्र के साथ बीमारियां भी अलग अलग तरह की होती हैं। और साथ ही बीमारी को लेकर मतलब, सोच भी बदलती रहती है। उम्र के जीवन के चार #आश्रम, जिसमें चौथा आश्रम (संन्यासाश्रम) तो अब लगभग खत्म ही हो गया है इन तीनों अवस्थाओं में बीमारी में, सेवा के भी अलग-अलग भाव होते हैं। #बचपन में बीमारी में घरवाले, दूसरे सदस्य भी चिंता करते हैं, हर तरह से स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा के साथ ही तरह-तरह के उपाय खुशामद भी करतेे हैं, और येन केन प्रकरेण किसी ना किसी तरह स्वस्थ करने में जुटे रहते हैं। जरा सा बीमार होने पर मातापिता ही नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्य भी विशेष चिंतित हो जाते हैं। बच्चे को परेशान नहीं देख सकते हैं, इसलिए उसको विशेष लाड़, ध्यान रखा जाता है, चाहे कुछ हो जाए सब चाहते हैं कि उनके लाड़ले स्वस्थ रहें। #युवावस्था में शरीर भी समर्थ होता है बीमारी से मुकाबला करने के लिए, और स्वयं भी तन, मन, धन से सशक्त होता है। कुछ जवानी का अपना एक आकर्षण भी, अगर पद प्रतिष्ठा हो तो कहने ही क्या, जिसमें साथी लोग भी तवज्जो देते हैं। इसलिए बीमारी इस उम्र में व्यक्ति को ज्यादा परेशान नहीं करती। लेकिन बुढ़ापे में, बीमारी में कुछ तो भय सताने लगते हैं, बीमारी का मतलब लगभग मृत्यु का वरण ही हो जाता हैमिलने वाले, सेवा करने वाले भी ऐसी ही बातें करने लगते हैं कि बस अब तो #प्रस्थान की तैयारी कीजिए। बूढ़ा व्यक्ति जब बीमार होता है तो सबसे ज्यादा फिक्र यह सताती है कि देखभाल कौन करेगा। उम्र के तीनों दौर में, सबसे ज्यादा प्रभावित वृद्धावस्था ही होती है। इसलिए इस उम्र में जो बीमारी का अर्थ ठीक से समझ लेगा, उसके लिए उम्र भी मददगार हो जाएगी। वृद्धावस्था में जब भी बीमारियों से घिरे हों, उस समय सारी पुरानी उपलब्धियां, स्वाद, जवानी याद आती हैं, अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को बिल्कुल याद नहीं करना चाहिए, और ना ही अपने अतीत को याद कर दुखी हों। समय का पहिया घूमता रहता है कभी घी घना, तो कभी मुट्ठी चना, वर्तमान में रहना सीखें। एक तो वृद्ध शरीर, ऊपर से ये महत्वाकांक्षाएं, उपलब्धियां परेशान करने लगते हैं। अतीत में ही खोए रहना अपने गुणगान करना भी एक #बीमारी ही समझो।
हम किसी भी उम्र में हो एक तैयारी बीमार व्यक्ति को जरूर करनी चाहिए और वह है #सहयोग। जब लोग आपकी सेवा कर रहे होते हैं, तब आपको भी उन्हें खूब सहयोग करना चाहिए। केवल सेवा करवाने के उद्देश्य से सेवक को निचोड़िए मत। हायतौबा ना मचाए।
दूसरी बात बीमार व्यक्ति को #धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बोले कम सुनें ज्यादा। क्रोध से बचें। अन्यथा सेवा करने वाले इसी बात से परेशान हो जाते हैं कि इनकी सेवा में सबसे बड़ी दिक्कत ये (बीमार वृद्ध) खुद हैं। ध्यान रखिए बीमारी किसी को नहीं छोड़ने वाली, यदि उम्र के तीनों दौर में बीमारी को ठीक से समझ लिया जाए तो आधा इलाज तो आप स्वयं ही कर लेंगे। बाकी आधा इलाज चिकित्सक संभाल लेंगे, और इन सब के साथ जब प्रभु कृपा मिल जाए तो फिर बीमारी जीवन के लिए बोझ नहीं, आराम से गुजर जाएगी।

शनिवार, 21 सितंबर 2019

जीवन......मृत्यु !

✍️ जीवन ....मृत्यु, एक सच _____
जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबहा शाम।
कि रस्ता कट जाएगा मितरां.............
जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवन निरंतरता का नाम, तो मृत्यु एक ठहराव, पड़ाव है। केवल अवस्था बदल रही होती है। प्रकृति में सभी कुछ परिवर्तनशील है, हर क्षण बदलता रहता है।जीवन है तो मृत्यु भी होगी, लेकिन वृद्धावस्था के साथ ही कई बार लोगों को यह डर सताने लगता है, और वह मृत्यु से भयभीत होने लगते हैं। इसकी गहराई को समझें, इस के स्वागत के लिए तैयार रहें। जिसका भी सृजन हुआ है विसर्जन निश्चित है। जीवन और मृत्यु को बड़े ही सुंदर तरीके से समझा जा सकता है। पंचभूतों (आकाश, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी) से बने शरीर का ईश्वरीय महतत्व आत्मा, प्राणमय शरीर से संयोग जीवन एवं वियोग है मृत्यु है। दिन का अंत रात्रि है, तो जीवन का अंत मृत्यु है। मृत्यु के बाद फिर एक नवजीवन का आरम्भ होता है और यह क्रम सतत् चलता रहता है। पाश्चात्य विचारक हुए हैं कोल्टन, उनके शब्दों_ जिन्हें स्वतंत्रता भी मुक्त नहीं कर सकती, उन्हें #मृत्यु मुक्त कर देती है। यह उनकी प्रभावशाली चिकित्सा है, जिन्हें औषधि भी ठीक नहीं कर सकती। यह उनके लिए आनंद और शांति की विश्राम स्थली है, जिन्हें समय सांत्वना नहीं दे पाता। जिस प्रकार दिनभर की थकान के बाद हम निद्रा के आगोश में अपनी थकान मिटाते हैं और प्रातः स्फूर्ति, ताजगी के साथ उठते हैं, उसी प्रकार  मृत्यु भी एक महानिद्रा है।
जो आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर।।
गीता में भी कहा गया है, आत्मा तो अमर है वह केवल शरीर बदलती है। मृत्यु को ऐसा जानिए जैसे वस्त्र पुराने हो गए हों, उन्हें छोड़ कर और नवजीवन यानि नए कपड़े बदलना। और यह कार्य हमारी मां की तरह प्रकृति माता बखूबी निभाती है। प्रभु के इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कीजिए, मृत्यु जीवन का आवश्यक अंग है, अगर मृत्यु ना हो तो जीवन भार लगने लगेगा। इस तरह यह एक विश्राम अवस्था भी है। विदेशों में मृत्यु को अंत माना जाता है, लेकिन अपने देश मृत्यु के बाद नव जीवन शुरू करना मानते हैं, जहां से हमने छोड़ा था,या जो हमारे संचित कर्म हैं, उनके अनुसार आगे की दिशा तय होती है। हमारे देश में मृत्यु को भी उत्सव की तरह देखा जाता है। अंत में एक गाने के बोल याद आ रहे हैं ___
जिंदगी एक सफ़र है सुहाना
यहां कल क्या हो किसने जाना।
मौत आनी है आएगी इक दिन
ऐसी बातों से क्या घबराना।

बुधवार, 11 सितंबर 2019

जिंदगी से जुड़ी छोटी छोटी बातें


✍️जिंदगी से जुड़ी छोटी छोटी बातें।
माता पिता अक्सर बच्चों की प्रशंसा करने में कंजूसी कर जाते हैं, या अनावश्यक प्रशंसा करते हैं, दोनों ही चीजें गलत है। लेकिन बच्चे के अच्छे व्यवहार और उसके तरह तरह के प्रयासों की सराहना, प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए। बचपन से ही हमें अपने बच्चों में सही दोस्त बनाने की, गलत दोस्तों को दूर रखने की समझ विकसित करनी चाहिए। बच्चों को समय का सम्मान करना सिखाएं। बच्चों को समय की कीमत जरूर समझनी चाहिए। समय की पाबन्दी आने से, उनकी जिंदगी में आगे के बहुत से कार्य #आसानी से हो जाते हैं। समय पर उठना, तैयार होना उन्हें स्कूल के जाने में होने वाली हड़बड़ी, परेशानी से बचाएगा। बच्चों को किसी की भी कोई चीज लेने से पहले उससे अनुमति लेने के लिए भी सिखाएं, क्योंकि कई बार छोटे बच्चे स्कूल में किसी दूसरे की कोई वस्तु अच्छी लगने पर (बाल सुलभ प्रकृति, इसे चोरी नहीं कह सकते) अगर घर ले आते हैं, तो बच्चों को सही गलत का अंतर समझाएं एवं उसको अगले दिन अवश्य लौटाने के लिए कहें। आप, बच्चों का स्कूल बैग प्रतिदिन चैक करें, कितनी #मांएं ऐसा करती हैं, और अगर देख भी लेती हैं, तो कितनी माताएं अपने बच्चों को समझाती हैं। बच्चों को प्लीज, थैंक यू कहना सिखाएं। एवं खुद भी अच्छा या बुरा होने पर थैंक्स और सॉरी कहें, झिझकें नहीं। किसी को सॉरी कहने का यह मतलब नहीं कि आप कमजोर हैं। बल्कि यह आपके मजबूत चरित्र को दर्शाता है।

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

भाषा और संस्कृति



️ ✍️ #भाषा और संस्कृति_____
भाषा संस्कृति की आत्माभिव्यक्ती का साधन है। मनुष्य की पहचान भी भाषा से ही है। भाषा ही मनुष्य को औरों (चौपायों) से  भिन्न करती है, यह जाति, धर्म, व्यवसाय, समाज संस्कृति के कारण भिन्न भिन्न हो सकती है। फिर भी विचार संप्रेषण के लिए भाषा ही माध्यम है। समाज के सांस्कृतिक पतन की आहट सबसे पहले उसकी भाषा में सुनी जा सकती है। हमें इतना समृद्ध साहित्य, समाज, भाषा, सब कुछ विरासत में मिला है, फिर भी हम उसकी कद्र नहीं करते हैं। भाषा द्वारा किया गया संस्कृति का चीरहरण, भाषा का दुरुपयोग आज देखने को मिलता है, उतना पहले नहीं था। वजह कुछ भी हो सकती है, व्हाट्स एप, हिंग्लिश और नई पीढ़ी द्वारा ईजाद की गई नई vocabulary  एवं परिवारों में जड़ें जमाती संवाद हीनता। इसलिए रोजमर्रा की भाषा में भी इसके दुरुपयोग बहुतायत से देखने को मिलता है, ऐसा करने से बचें। यह सहयोग, कम से कम उन व्यक्तियों से तो अपेक्षित है, जो यह लेख पढ़ रहे हैं। जैसा कि आजकल देखने में आता है, बच्चे भी अपने पिता से #यार कह कर बात करते हैं, उधर पिता भी अपनी बेटियों तक से #यार कह कर बात करते हैं, जो कि बिल्कुल ही सभ्यता ही नहीं अपितु संस्कार विहीन है। देखने में यह भी आता है कि, बड़ों से बदतमीजी से व छोटों से खुशामद वाली भाषा में बात करते हैं, जो कि बिल्कुल ही उचित नहीं है। यार शब्द लड़कों का अपने #बराबरी दोस्ती में तो ठीक है, लेकिन लड़कियों के लिए यह शब्द उचित नहीं है। कुतर्क करने के लिए हो सकता है, मेरे विचारों को रूढ़िवादी कहा जाए। मुझे एक वाकया याद आ रहा है, मेरी बेटी की मित्र आई हुई थी। किसी बात पर चर्चा के दौरान बेटी ने एक #शब्द #क्लिष्ट) का प्रयोग किया। उसकी मित्र को यह समझ में ही नहीं आया, फिर उसने इसका मतलब पूछा। वो हैरान थी, की तुम लोग ऐसे कठिन शब्दों का प्रयोग कैसे करते हो, जबकि यह हमारे परिवार में आम बात है। एक तो आजकल बच्चों को शुरू से हॉस्टल भेज देना भी संस्कृति से दूर कर रहा है। बच्चा पढ़ाई में अच्छा हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि संस्कारों में भी अच्छा हो। क्योंकि उम्र के शुरुआती वर्षों में, उस समय वह अपने मन की कर सकता है। और कोई भी गलत चीज आसान भी लगती है, एवं आकर्षित भी करती है। सबसे पहले भाषा पतित होती है, भाषा का स्तर गिरता है, और इसके बाद संस्कार नष्ट होते हैं। वहीं से सभ्यता और संस्कृति का कलंकित होना, और आगे जाकर संस्कृति व सभ्यता का नष्ट होना आरंभ होता है। भाषा को लयबद्ध तरीके से प्रेषित किया जाए तो संगीत बन जाए, और लिपिबद्ध किया जाए तो ग्रंथ बन जाए। शब्दों का व्यवस्थित प्रयोग ही #मंत्र बन जाता है। तो अपनी भाषा और व्यवहार पर ध्यान दीजिए। बोली ही तो है जो मित्र बनाती है, और इसी भाषा से `जूता खात कपाल' कहावत सिद्ध हो जाती है। आप जितना अच्छा अपनी भाषा में सोच सकते हैं, उतना दूसरी में नहीं। इसलिए भाषा की समृद्धि के प्रयास जारी रखिए।


शनिवार, 24 अगस्त 2019

एक कदम प्रकृति की ओर


✍️ एक कदम प्रकृति की ओर___
Surrounding yourself with the natural beauty is best for the peace and serenity of mind.
प्रकृति में मौजूद ऊर्जा हमें, स्वास्थ्य के साथ ही आध्यात्मिक राह पर ले जाने में सहायक है। स्वास्थ्य से भरपूर, प्रकृति की यह ऊर्जा सकारात्मक होने के साथ ही हीलिंग के गुण भी रखती है। जब भी आप का मन उदास हो, या अवसाद में डूबे हों, प्रकृति का सानिध्य पेड़ पौधे, फल फूल, हवा, प्राकृतिक रंग, मन को नियंत्रित करने में सहायक होने के साथ ही बेहद सकारात्मक उपचार है। प्रकृति की शुद्ध वायु को गहरी सांस लेते हुए फेफड़ों में भरिए, फिर धीरे धीरे सांस छोड़िए। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं। प्रकृति में कोई नन्हा पौधा रोपिए, उसकी सार संभाल के साथ उस बड़ा होते देखिए। ये सारी बातें आपके व्यवहारिक आचरण में बदलाव लाने में भी सहायक होंगी। बच्चों के साथ मिलकर, इस तरह की कोशिश करते रहिए। ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप बच्चों का परिचय केवल क्लब पार्टी से करवाते हैं, या प्रकृति  से जुड़ना भी सिखाते हैं। पैरेंट्स, आइए! बढ़ाएं एक कदम प्रकृति की ओर। कंक्रीट के जंगल से निकल प्रकृति का प्रवास, हमारे विचारों को नए आयाम प्रदान करती है।

सोमवार, 5 अगस्त 2019

मित्रता


✍️मित्रता!
बचपन में गुल्ली डंडे
नदी के तीर या मैदान में
बुढ़ापे की सांझ ढले
लाठी बन साथ खड़े
जिस पर हो भरोसा
मित्रता!
वह खुशनुमा अंदाज है......
दिल का सुकून
सांसों की धड़कन
दोस्ती के लिए
बने संजीवनी
कंधे पर धरा हाथ
मित्रता!
जिंदगी की रूह, हर सांस है..........
उत्सव, हर्ष और विनोद में
विपदा, संकट, द्रोह में
साया बन, साथ रहे
पढ़ ले आंखों की भाषा
दूर होकर भी, बिन कहे
मित्रता!
वह सुखद अहसास है........
सुख दुख के रंग में
भरने जीवन में खुशियां
हार जीत के खेल में
कभी कृष्ण,
कभी सुदामा के वेष में
मित्रता!
बजे नेह (प्रीत) की बांसुरी है......
अंधेरे में सूर्य की उजास
देता कोई अगर आघात
शीतल चांदनी
करे शुष्क हृदय तृप्त
है जज्बातों की बरसात
मित्रता!
उड़ते परिंदों, का खुला आसमान है.......


मां तुम धुरी हो,घर की

✍️ मां, तुम #धुरी हो #घर की!

मुझे आज भी याद है चोट लगने पर मां का हलके से फूंक मारना और कहना, बस अभी ठीक हो जाएगा। सच में वैसा मरहम आज तक नहीं बना।
#वेदों में मां को पूज्य, स्तुति योग्य और आव्हान करने योग्य कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य होता है,सौ आचार्य के बराबर एक पिता और पिता से दस गुना अधिक माता का #महत्व होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी(मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं। इस संसार में 3 उत्तम शिक्षक अर्थात माता, पिता, और गुरु हों, तभी मनुष्य सही अर्थ में मानव बनता है
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।
मां को कलयुग में अवतार कह सकते हैं। मां कभी मरती नहीं है, उसने तो अपना अस्तित्व (यौवन) संतान के लिए अर्पित कर दिया, संतान के शरीर का निर्माण (सृजन) किया। आज भौतिक चकाचौंध, शिक्षा, कैरियर, नौकरी आदि ने विश्व को सब कुछ दिया बदले में मां को छीन लिया। किसी भी घर में स्त्री पत्नी, नारी, बहू, बेटी, बहन,भाभी, सास, मिल जाएगी, परंतु मां को ढूंढ पाना कठिन हो गया।आज स्वयं स्त्री अपने व्यक्तित्व निर्माण में कहीं खो सी गई है।
#नारी देह का नाम है।
#स्त्री संकल्पशील पत्नी है।
#मां किसी शरीर का नाम नहीं, अपितु
मां- #पोषणकर्ता की अवधारणा है।
#अहसास है जिम्मेदारी का।
मां- आत्मीयता का भावनात्मक भाव है। मां #अभिव्यक्ति है #निश्छल प्रेम, दया, सेवा, ममता की। मां के लिए कोई पराया नहीं। बच्चों की मां, पति बीमार हो तो उसके लिए भी मां, सास ससुर या बुजुर्ग मातापिता की सेवा करते हुए भी एक मां। इस सब क्रियाकलापों में मातृ भाव, और स्त्री स्वभाव की मिठास है। मां शब्द अपने आप में एक अनूठा और भावनात्मक एहसास है। यह एहसास है सृजन का, नवनिर्माण का। स्त्री कितनी भी आधुनिक हो लेकिन मां बनने के गौरव से वह वंचित नहीं होना चाहती।
जब तक स्त्री का शरीर दिखाई देगा, मां दिखाई नहीं देगी। उसके बनाए खाने में प्यार, जीवन के संदेश महसूस नहीं होंगे। महरी या बाहर के खाने में कोई संदेश महसूस नहीं होता। ऐसा खाना आपको #स्पंदित, आनंदित ही नहीं करेगा। क्योंकि उनमें भावनाओं का अभाव होता है। कहते हैं ना जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। मां के हाथ का खाना भक्तिभाव, निर्मलता देता है। स्वास्थ के लिए हितकर होता है, क्योंकि उसमें होता है मां का प्यार, दुलार, मातृ भाव, आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करता है। भाईबहिनों को एक करने की शक्ति है मातृ प्रेम।
केवल पशुवत जन्म देने भर से कोई मां नहीं हो सकती। ऐसी मां को अपने बच्चे के बारे में न तो कोई जानकारी ही होती है, और न ही वे कोई संस्कार दे पाती हैं। आजकल ममता और कैरियर, अर्थ लोभ के द्वंद्व के बीच फंसी मां की स्थति डांवाडोल होती रहती है। अनावश्यक सामाजिक हस्तक्षेप भी मां की स्थति को और बदतर कर देता है। कई बार लड़की मां का दायित्व, परवरिश अच्छी तरह निभाना चाहती है, लेकिन उसकी सराऊंडिग्स के लोग उसको हीनभाव महसूस करवाए बिना नहीं चूकते कि, क्या घर के काम में लगी हो, ये काम तो कोई भी कर सकता है। ऐसे समय में माताएं अपना #धैर्य बनाएं। बच्चे देश का भविष्य हैं, उनकी जिम्मेदारी माताओं पर ही है।
इंसान वैसे ही होते हैं,जैसा #मांएं उन्हें बनाती हैं। #भरत को #निडर भरत बनाने में शकुन्तला जैसी मां का ही हाथ था,जो शेर के दांत भी गिन लेता था। हमेशा मां के दूध को ही ललकारा गया होगा। परवरिश को लेकर कहा गया होगा, और किसी को नहीं। आप भाग्यशाली हैं जो, प्रभु ने इस महत्वपूर्ण दायित्व के लिए आपको चुना है। मां बनना एक चुनौती से कम नहीं है। एक गरिमा, गौरवपूर्ण शब्द है मां। इस दायित्व का निर्वहन भलीभांति करने से ही देशहित, समाजहित संभव होगा।

रविवार, 28 जुलाई 2019

ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम


✍️ ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम
#खुशी प्रकृति में चारों ओर बिखरी पड़ी है, बस! समेटना आपको आना चाहिए। प्रातः काल बाग बगीचों की ताजा हवा से हमें दूसरी चीज जो मिलती है वह है ऑक्सीजन या प्राण वायु ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है। यह हमारी सुंदरता के लिए भी अहम स्थान रखती है, प्राकृतिक साधनों में सुबह की ताजी हवा अपने आप में विशेष स्थान रखती है सुबह की ताजी हवा हमारी त्वचा के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। श्वास क्रिया भी अपने आप में एक कला है, इस कला का भी हमें ढंग से ज्ञान नहीं होता। इसलिए सुबह उठकर प्रकृति के साथ हमें गहरी सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए। इस तरह ताजी हवा ऑक्सीजन हमारे फेफड़ों में भरकर हमारे शरीर में खून के दबाव को तेज करती है, और स्वास्थ्य के लिए लाभ पहुंचाती है।
आजकल बच्चे दिन-रात मोबाइल स्क्रीन की पर ही बिजी रहते हैं, माता-पिता भी उनको बाहर खेलने नहीं जाने देते, इसका असर उनके शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
प्रकृति के साथ थोड़ा सा भी संबंध स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है, एक शोध के मुताबिक हरियाली के समीप रहने से लोगों में नकारात्मक भावनाएं कम उभरती है, और इसलिए  अस्वास्थ्य कर चीजें खाने की इच्छा भी कम होती है। ऐसी जगह पर रहने से जहां से प्रकृति का नजारा दिखता हो, हरियाली के साथ जुड़ने पर, बाग बगीचे में घूमने सैर करने वालों को, (चॉकलेट सिगरेट और अल्कोहल की ललक) कम हो जाती है। शोध के अनुसार जो लोग बगीचे के आसपास रहते थे या जिनके घर से बगीचा दिखता था, उन्हें इन सभी चीजों के सेवन की आवश्यकता कम महसूस होती थी। प्रकृति, स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ी #हीलर है, शायद इसीलिए पहले तपेदिक के इलाज़ के लिए मरीजों को पहाड़ों पर रहने की सलाह दी जाती थी। नैनीताल के पास वह भुवाली सेनेटोरियम इसका एक अच्छा उदाहरण है। पहाड़ों, प्रकृति की शुद्ध वायु  स्वासथ्यवर्ध्दक होने के साथ ही नकारात्मकता को भी दूर कर, जीवन में उल्लास, उमंग भर देती है। और स्वतः ही ध्यान, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय, संतुष्टि जैसी आदतें अपना कर मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।
प्रकृति के बीच समय बिताने वाले बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन अच्छा होता है, बच्चे ज्यादा कल्पनाशील होते हैं। खेलकूद में भी बेहतरीन, टीम भावना, मिलकर काम करने की प्रवृत्ति, सामाजिकता, सहयोग और अपनत्व की भावना बढ़ती है। बौद्धिक कौशल का विकास होता है, ऐसे बच्चे मानसिक परेशानियों से उबरने में सक्षम होते हैं। स्व अनुशासन से प्रेरित ऐसे  बच्चों में ध्यान लगाने और प्राकृतिक चीजों के बारे में, सामान्य समझ, ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
हमारे बच्चों का जितना समय सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बीत रहा है उतनी ही ज्यादा आशंका उनके अवसाद में जाने की बढ़ती जा रही है, हाल के एक शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है। नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पेड़ पौधों के बीच बनी सड़क पर टहलने या किसी प्राकृतिक जगह पर सप्ताह में दो से चार घंटे  बिताने वाला व्यक्ति भी ज्यादा स्वस्थ और खुश महसूस करता है। जो लोग रोजाना दो से तीन घंटे हरियाली और पेड़ों के बीच चहल कदमी करते हैं, वे उन लोगों की तुलना में बीस फ़ीसदी ज्यादा खुश और सेहतमंद थे, जो ऐसा नहीं करते थे। ऐसे लोग दूसरों की तुलना में कई गुना अधिक स्वस्थ और आशावादी थे। शोधकर्ताओं ने बताया कि पार्क, बाग बगीचे और हरियाली वाले क्षेत्र में प्रतिदिन दो घंटे से ज्यादा समय बिताने वालों में हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, अस्थमा, मानसिक समस्याएं और मृत्यु के जोखिम कम थे। जबकि ऐसे बच्चों में जो प्रकृति के साथ जुड़े हुए थे, उनकी सेहत, खुशी, और इम्यूनिटी रेट भी बेहतर थी। केवल प्राकृतिक वातावरण में निष्क्रिय बैठे रहने से भी उतना ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है, जितना जिम या घर पर व्यायाम करने से मिलता है। औसतन बच्चे डिजिटल स्क्रीन के सामने दिन में पांच से आठ घंटे तक बिताते हैं। ऐसे बच्चों में प्रकृति का साथ छूटता जा रहा है, पहले जहां बच्चे घरों में खेलते थे, पार्क में खेलते थे, घर के कार्य में सहयोग करने और बाहर खेलने में घंटों बिताते थे, आज इसकी जगह वीडियो गेम टीवी और इंडोर गेम्स ने ले ली है। अतः हमारे बच्चों का ग्रीन टाइम, स्क्रीन टाइम से बदल गया है, और इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आज के समय में, इसके लिए मातापिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। बच्चों के साथ प्रकृति के बीच समय बिताएं, खेलकूद में रुचि बढ़ाएं। अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ना पकड़ाएं। बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव पैदा करें, घर में भी पेड़ पौधों को गमलों में उगाएं, उनसे जुड़ाव महसूस करें और देखभाल भी करें।

सोमवार, 15 जुलाई 2019

हैलो पैरेंट्स, आपके झगड़ों में पिसते बच्चे


✍️ हैलो पैरेंट्स!
#आपके झगड़़ों में पिसते बच्चे, जिम्मेदार कौन?
उम्मीदों के पंछी के पर निकलेंगे
मेरे बच्चे मुझ से बेहतर निकलेंगे।
लेकिन ये सब होगा कैसे, अगर आप मातापिता आपस में लड़ते रहेंगे। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 35% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं, जिसमें अनपढ़, गरीब या गंवार ही नहीं, अपितु अच्छी पढ़ी लिखी उच्च पदों पर आसीन #महिलाएं भी शामिल हैं। लेकिन आज की यह बात उस हिंसा के बारे में नहीं है, हम उस #अदृश्य हिंसा के बारे में बात कर रहे हैं, जो हर उस बच्चे के साथ हो रही है जिसके माता-पिता लड़ रहे हैं, प्रतिदिन मातापिता के गुस्से को झेल रहे हैं, या तलाक लेकर अलग हो रहे हैं। अपनी भारतीय मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि बच्चे की परवरिश के लिए शुरू के पांच सात वर्ष बहुत अहम होते हैं, उस समय की छाप (अच्छी या बुरी) #ताउम्र उसका पीछा करती है। या कहें, बच्चे मानस पटल पर अंकित हो जाती है, जो उसके व्यवहार में झलकती है। बच्चे असुरक्षा की भावना एवं कुंठित मानसिकता का शिकार हो जाते हैं। एक रूसी मनोवैज्ञानिक ने अपनी किताब `बाल हृदय की गहराइयां ' नामक किताब में लिखा है, बचपन एक ऐसा भूत है जो ताउम्र इंसान का पीछा करता है। हम वही बनते हैं, जैसा बचपन में हमने पाया होता है।


#लड़ते हुए मां-बाप उस बच्चे के अपराधी हैं, जिस ने कोई गलती करी ही नहीं। जब मैं छोटी थी #शायद सन उन्नीस सौ पिचहत्तर, छिहत्तर की बात होगी, बचपन में ही मैं ने मन्नू भंडारी द्वारा रचित #आपका #बंटी उपन्यास धारावाहिक धर्मयुग या हिंदुस्तान में किश्तों में पढ़ा था। उन दिनों यह धर्मयुग, हिंदुस्तान नामक दो साप्ताहिक पत्रिकाएं हमारे यहां नियमित आती थीं। इस उपन्यास का मेरे मन पर गहरा असर हुआ ही, लेकिन एक बात और समझ में आई, कि अच्छा साहित्य आपको सही राह भी दिखाता है। मैंने उसी समय सोच लिया था, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। हालांकि इन सब चीजों को समझने के लिए मेरी उम्र बहुत कम थी, शायद तेरह चौदह वर्ष। घर में पढ़ने का माहौल था, फिर ये शौक विरासत में मिला, जो अभी भी जारी है। स्वाध्याय से आपको कभी अकेलापन, बोरियत नहीं होती। किताबें आपकी अच्छी दोस्त हैं।
लेकिन अभी बात #बच्चे को लेकर हो रही है। बंटी एक बच्चे की कहानी, जिसके मां बाप लड़ रहे थे, और उस लड़ाई के बीच अकेला एक तीन चार साल का मासूम पिस रहा था। आपने बहुत सी डरावनी या करुणा भरी फिल्में देखी होंगी, दिल को दहला देने वाली किस्से, कहानियां पढ़ी होंगी, लेकिन इसे पढ़ते हुए आप हर क्षण यही सोचते रहेंगे, कि कहानी में कुछ ऐसा ट्विस्ट आ जाए, ताकि उस बच्चे को उस मुसीबत से बाहर निकाल सकें, मातापिता से अलग ना होना पड़े। बड़ों की तकलीफ से इतना दुख नहीं देती, जितना ऐसे अकेले हुए बच्चों के आंसुओं से, दिल तार तार घायल हो जाता है।

एक ऐसा बच्चा जिसके लिए आप दोनों (मातापिता) ने ना जाने कितने सपने बुने होंगे, ईश्वर से मन्नतों के धागे भी बांधे होंगे। फिर ऐसा क्या हो जाता है, कि अपने इतने #प्रिय आत्मीय के भविष्य को ही दरकिनार कर दिया जाता है। और छोड़ देते हैं, समाज में ठोकरें खाने के लिए। बच्चे ने तो आपके पास कोई प्रार्थना पात्र नहीं भेजा था, कि मुझे इस दुनिया में लेकर आओ, फिर जिम्मेदारी उठाते वक्त क्यों पीछे हटना। बच्चे को #मातापिता दोनों ही चाहिए होते हैं, पिता के कंधे पर चढ़कर दुनिया देखना चाहता है, तो मां की गोद में मीठी लोरियां सुन मीठे सपनों की दुनिया की सैर करना चाहता है। तुम बड़ों के इगो, टकराव, क्लेश, हिंसा मारपीट में बेचारे बच्चे का क्या कसूर। काश कोई ऐसी अदालत होती, जहां बच्चा भी अपनी एप्लीकेशन लगा सकता, कह पाता, मेरे बड़े होने तक आपको साथ ही रहना होगा, और वो भी बिना शराब, हिंसा, मारपीट या झगड़े के।

कभी सोचा है, आप लड़ते हुए, हिंसा करते हुए, शराब में डूबे, अपने बच्चों को कैसा बचपन दे रहे हैं? कभी सोचा है, गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में, जिसके साथ आप एक नए इंसान को बड़ा कर रहे हैं। वह इंसान जिसे दुनिया में लाने के लिए सिर्फ और सिर्फ आप (माता-पिता) जिम्मेदार है, यह आपकी इच्छा थी, आपकी मर्जी, आपकी खुशी और आपकी ही गलतियों की सजा #बच्चा भुगत रहा है।

लड़ते हुए मां बाप कोरी कल्पना नहीं, हिंदुस्तान के अनेक घरों की सच्चाई है, और इसको सही भी माना जा रहा है। खासतौर पर पति के घरवालों को, इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता। उन्हें यह सब सामान्य लगता है। लड़का (जो पिता बन चुका है) कोई चीख रहा है, कोई गालियां दे रहा है, हिंसा हो रही है, मां अकेले में रो रही है, और इस पूरी लड़ाई के बीच एक खिलखिलाता हुआ मासूम बच्चा, जिसकी मुस्कुराहट से रोशन था घर, मुंह से चहचहाट निकलती थी, जो पूरे हफ्ते अपने मन का ना होने पर जिद भी करता था, रोता भी था, वह अचानक चुप हो जाता है। किसी से बात नहीं करता, आपको लगता है बच्चा शांत है। लेकिन उसके अंदर की चिंगारी कब भयंकर आग बन जाए, कहना मुश्किल है। आत्मबल के अभाव में अपराध की राह भी इनको आसान लगने लगती है।

ऐसे में बच्चा जो बिल्कुल चुप हो जाता है, आत्मकेंद्रित, किसी से बात नहीं कर पाता, या झगड़ालू, हिंसात्मक जो आगे चलकर भविष्य में अपने दोस्तों, #जीवनसाथी पर भी यही व्यवहार दोहराता है। और इसी वजह से उसके कोई दोस्त नहीं बन पाते, वह किसी के साथ खेलता नहीं, पढ़ाई में पिछड़ जाता है। जिस उम्र में जीवन खुशी और बेफिक्री का दूसरा नाम होता है, उसके नाजुक कंधों पर जीवन की उदासी बेताल बन कर बैठ जाती है। ऐसे बच्चे, माता पिता के झगड़ों की वजह से दुबके होते हैं घर के किसी कोने में, आजकल मोबाइल में, या ऐसी परिस्थितियों में भाग जाते हैं, भटक जाते हैं, पलायन कर जाते हैं। कई बार उनकेेे व्यवहार में बदलाव देखा जा सकता है। उन्हें दूसरों को  कष्ट देकर भी कई बार सुख का अनुुभव होता है, तो कई बार स्वयं कोो पीड़ा पहुंचा कर भी आत्मसुख का अनुभव करते हैं।

एक डरावना सच है, जब बड़े बुजुर्ग सम्मान, देखभाल का रोना रो रहे हैं, तो पहले अपनी परवरिश को भी टटोलिए। वो बच्चे #क्यों देखेंगे, समझेंगे आपकी मजबूरियां?? आप तो दुनियाभर के कानून, लोकलिहाज जानते हैं। आपने उन बच्चों की मजबूरियां समझी थीं कभी, जब वह अपने मन के जज्बात आपसे शेयर करना चाहता था। वह तो कानून नाम की चिड़िया को जानता, समझता ही नहीं था, किससे गुहार लगाता कि मत करिए लड़ाई, झगड़ा, शराब पीकर घर में कोहराम मचाना।
यह माहौल एक मासूम बच्चे को कब अपराधी बना दे, पता भी नहीं चलता। यह व्यवहार, यादें जिंदगी में कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेंगी। और इसके अपराधी हैं, वयस्क माता-पिता, पढ़े-लिखे सो कॉल्ड समझदार लोग। ऐसे मातापिता भी सजा के पात्र हैं। मेरा मकसद केवल पैरेंट्स को अपनी गलतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास था। बस! हो सके तो, अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान दीजिए।

रविवार, 7 जुलाई 2019

पहली बारिश की दस्तक


✍️
धरती की  सूखी चादर पर
बारिश की पहली दस्तक
चमके बिजली,
घनघोर घटा,
बरसे झमाझम,
मौसम की परत खुलने लगी है।।
चले पुरवाई,
काली घटा छाई,
खोल दो सारे खिड़की दरवाजे
मिट्टी की सौंधी खुशबू आने लगी है।।
मोर पपीहा,चकवी चातक,
खुशी मनाए,
प्यासा मन,कृषक हरषाए, 
कबसे कर रहे इंतजार
लगता है, आस पूरी होने लगी है।।
होकर पानी से,
तर बतर, लताऐं,
मिलने को आतुर, करने आलिंगन
पेड़ों की डाली भी झुकने लगी है।।
भरे ताल तलैया,
थे प्यासे अब तक,
छलकाए मन,
कागज की नाव,वो छपाके
बचपन की यादें उमड़ने लगी हैं।।
गीली हरी घास पर,
लाल सुर्ख मखमली,
सावन की डोकरी,
रात वो सावन की मीठी मल्हार
कोयल की कूक कुहुकने लगी है।।
प्यासी प्रेयसी,
तृप्त प्रियतम संग,
सावन बरसे,
भीगा आंचल,भीगा तनमन,
सपने में भी संवरने लगी है।।
संग सहेलियों,
मां बाबा से,
गली,मोहल्ला,
अपनी धरती और धरा से
मिलने की चाहत बढ़ने लगी है।।
                           

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

गुस्से का सार्थक प्रयोग


✍️ गुस्से का सार्थक प्रयोग कीजिए____
#गुस्सा एक #एनर्जी है,बस उसे सकारात्मक तरीके से प्रजेंट करना शुरू कर दीजिए। छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना छोड़िए, बड़ी बातों के लिए गुस्सा रखिए। किसी सिस्टम को बदलने के लिए, सार्थक कार्य के लिए, #सकारात्मक गुस्सा आगे बढ़ने के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसा गुस्सा जिसमें #समृद्धि और सफलता का सृजन होता है, उसकी जगह हम छोटे-छोटे गुस्से में अपना समय जाया करते हैं। कभी परिवार में छोटी छोटी बातों पर  गुस्सा, दादाजी अखबार नहीं पढ़ पाए इसलिए गुस्सा, मनपसंद खाना नहीं बनने पर गुस्सा, घूमने नहीं जा पाए तो गुस्सा, बच्चों के रिजल्ट पर गुस्सा, कभी किसी सब्जी वाले, ठेले वाले या सामान खरीदते समय ज्यादा पैसे लेने पर गुस्सा, जाम में फंसे होने पर गुस्सा, पार्किंग की जगह नहीं मिली तो गुस्सा, कभी किसी संस्था में लड़ाई तो गुस्सा, कभी पड़ोसियों से अपार्टमेंट में रहने वालों से, छोटे छोटे मसलों पर वाद विवाद, यहां तक कि घरवालों या पति पत्नि की आपसी सही बात पर भी गुस्सा, उफ्फ!!। इन सभी चिल्लर गुस्से को नजरअंदाज करना सीखिए, अगर कुछ अच्छा व बड़ा करना चाहते हैं। हर समय मुंह फुलाए, भृकुटि ताने घूमने में कहां की समझदारी है। (मुंह फुलाने का गुण, भारतीय समाज में बच्चे से लेकर वृद्धावस्था तक, महिला, पुरुष सभी में समान रूप से विद्यमान है) इससे आप अपनी इमेज के साथ #स्वास्थ्य ही खराब करते हैं, और हासिल कुछ नहीं होता। कई लोग तो इसे #शान भी समझते हैं, कि मेरा गुस्सा बहुत तेज है। अरे भाई! इस गुस्से का क्या फायदा, क्या कुछ हासिल कर लिया आपने। कमजोर पर तो सभी गुस्सा करते हैं। वैसे भी सबसे #आसान काम है, कुछ काम मत करो बस #मुंह फुला कर गुस्सा कर लो। अगर कुछ हासिल करना ही है तो इस गुस्से की #एनर्जी को सही काम में उपयोग कीजिए। किसी को पीट देना, कमियां निकालना, गाली गलौज कर देना, कहां की समझदारी है? यह गुस्सा नहीं सच में तो आपकी नाकामी या आपकी कमजोरी है। अगर वास्तव में कुछ करना ही चाहते हैं तो गुस्से की #एनर्जी को किसी सार्थक काम में लगाइए, बड़ा गुस्सा पालिए, गुस्सा बुरा नहीं है, छोटी चीजों और मुद्दों पर गुस्सा बुरा है। गुस्सा एक #शक्ति है, जिसके सही इस्तेमाल से अथाह समृद्धि और सफलता पाई जा सकती है। एक बड़ा लक्ष्य चुनिए, और गुस्से की उस ताकत को झौंक दीजिए उद्देश्य प्राप्ति के लिए, और गुस्से के दम पर उस लक्ष्य को हासिल कीजिए। गुस्से की ताकत को भी पहचानिए, आपने कभी नोटिस किया है कि प्यार में हम एक हलकी चपत देते हैं, लेकिन जब गुस्से में होते हैं तो कितना बुरी तरह से पीट देते हैं। गुस्से की ताकत को #नियंत्रित कर किसी उद्देश्य पूर्ण कार्य में लगा दीजिए। सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होगी।
आपके अपार्टमेंट में चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है, आप हर समय गुस्सा होते रहते हैं कोई समाधान नहीं निकलता और इस स्थिति को देखकर नाक भौं सिकोड़ते रहते हैं। कभी चौकीदार पर गुस्सा, तो कभी अपार्टमेंट में रहने वाले साथियों पर, कभी तकदीर को कोसना, मैं कहां फंस गया। गुस्सा होना किसी समस्या का हल नहीं है। एक वाकया बताती हूं, आए दिन गंदगी से परेशान, कचरे की समस्या को लेकर, हमने सभी पड़ोसी साथियों से मिलकर इस समस्या को साझा किया, एक सिस्टम तैयार किया, कि सभी को मिलकर कचरा यहां (एक निश्चित जगह) पर डालना है, और धीरे धीरे व्यवस्था बैठने लगी, सब उस पर अमल करने लगे। हालांकि सब कुछ तुरंत नहीं होता, हथेली पर सरसों नहीं उगाई जाती, इसलिए थोड़ा धीरज भी रखना होगा। साथ वालों को भी पता होना चाहिए कि आपका गुस्सा जायज है। अब किसीको भी गुस्सा नहीं आता, यह है गुस्से की एनर्जी को किसी सार्थक सोच में बदलने का परिणाम। आप अपनी एनर्जी को गुस्से में गंवाने की जगह, सबकी बेहतरी के लिए किसी सार्थक कार्य में लगा दें।

रविवार, 23 जून 2019

hello parents, बच्चों का व्यक्तित्व विकास


✍️ hello parents__
बच्चों की जिद, गुस्से, की आदतों को कैसे कम करें। यदि समाज का उत्थान करना है तो उपयुक्त समय बचपन ही है क्योंकि यही समय है जब बुद्धि सबसे अधिक परिवर्तनशील होती है। केवल #उपदेश देने से बात नहीं बनेगी। संस्कार, आचरण से सीख कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कब और किस तरह #हस्तांतरित हो जाते हैं, और पता भी नहीं चलता। बच्चों को संस्कार #ईमानदारी, जिम्मेदारी का पाठ भी इसी तरह छोटी उम्र में ही सिखाएं। पांच या छः वर्ष तक के बच्चे अधिकतर गुण, अवगुण सीख चुके होते हैं। इस उम्र में बच्चों का ऑब्जर्वेशन बहुत उच्च होता है। इसलिए उनकी #परवरिश में सहयोगी बनें, रुकावट नहीं।
आजकल मुख्य समस्या वृद्धावस्था में बच्चों के व्यवहार को लेकर देखने में आ रही है, क्योंकि बचपन में परवरिश पर ध्यान दिया नहीं जाता, बच्चे गलत राह पर भटक जाते हैं। और फिर वृद्धावस्था में दुखी होना स्वाभाविक है। इसलिए बच्चों की परवरिश में उपदेशों से नहीं अपने आचरण से सही आदतें डवलप करें। कहते हैं नींव अगर मजबूत होगी तो इमारत (भविष्य) भी अच्छा होगा, अन्यथा बच्चे सफलतम स्तर तक नहीं पहुंच पाएंगे।
अपने बच्चों की #जिद और गुस्से को किस तरह कंट्रोल करें। जब भी बच्चा गुस्सा हो तो वह आप से उम्मीद करता है, कि आप उसकी इस हरकत पर  या तो गुस्सा या मायूस हों, जैसा की अधिकतर सभी पेरेंट्स का रिएक्शन होता है। पर आप ऐसा कुछ नहीं करें। माहौल को बदलने के लिए #इग्नोर करें या कुछ पल शांति से व्यतीत करें। उस गुस्से वाली बात से ध्यान हटाएं। और बच्चे के साथ खेलें, या कुछ हंसी मजाक करें, आप के इस बर्ताव से उसे भी हंसी आएगी। और आगे चलकर वह इस तरह गुस्सा करने से बचेगा। धैर्य रखें, सब्र का फल मीठा होता है। बच्चों को उसकी मनचाहा ना होने पर ही वे जिद करते हैं, ऐसे में उनकी इस आदत को बदलने के लिए थोड़ा धैर्य रखना सिखाएं। घर में कोई मेहमान आता है तो बच्चे को भी जिम्मेदारी सौंपें। घर में अगर बुजुर्ग  दादी बाबा, नाना नानी कोई हैं, तो उनको सहयोग करना सिखाएं, उनको कोई जिम्मेदारी सौंपे, जैसे दवा देना है, कभी हाथ पैर दबाना है, या चलने फिरने जैसे किसी काम में उनकी सहायता करना है। पढ़ाई की दिनचर्या वजह से कई बार बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल्स नहीं सीख पाता और बच्चे कई बार किसी नए व्यक्ति से मिलने में संकोच महसूस करतेे हैं। इससे बचने के लिए बच्चों को किसी ऐसे गेम्सस या याा एक्टिविटी में डालें, जिसमें नए व्यक्तियों से मिलने और नई एक्टिविटी करने का मौका ज्यादा से ज्यादा मिले। छुट्टियों में परिवार के लोगों और रिश्तेदारोंं से मिलवाएं।
बच्चों में धैर्य विकसित करने के लिए आप उनके साथ, उनकी पसंद के खेल खेलें। आप अपने बच्चे के साथ खेल में, जिसमें आप बच्चे बने और वह माता या पिता ऐसा करने से उसे आपका दृष्टिकोण समझ में आने लगेगा। बच्चों से उसकी राय भी पूछी जाए, आप अपने बच्चे से अपनी छोटी मोटी परेशानियों के हल मांगे, उससे अपनी रोजमर्रा की बातों को शेयर करें इससे आपके बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा, और वह आपके सामने खुलकर बातचीत करेगा। हमेशा आदेश देने की बजाय कि उसे क्या करना है, आप उससे पूछना शुरू करें, कि आप कैसे कुछ नया अलग कर सकते हैं। ऐसा करने से उसे अपनी #अहमियत को महसूस करने में मदद मिलेगी। उनकी बातों को भी महत्व दें। इस तरह के कुछ सुझावों से आप अपने बच्चे के स्वभाव, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट की आदतों से छुटकारा पा सकते हैं। बच्चों के सामने आप भी आदर्श स्थापित करें, तभी सार्थक होगा अन्यथा बच्चे बहुत होशियार होते हैं। वो दिखावटी बातें तुरंत समझ जाते हैं, फिर उनसे सच की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं हो सकती।

सोमवार, 17 जून 2019

पत्र का पत्रनामा

✍️ पत्र का पत्रनामा___
यत्र कुशलम् तत्रास्तु, से शुरू
थोड़े लिखे को बहुत समझना से खत्म
जिनको पढ़, पाठक उन्हीं भावनाओं में बह जाए,
कुछ प्रेषित पत्र सिलेबस का हिस्सा हो गए,
कुछ #अप्रेषित पत्र बेस्टसेलर किताब बन गए।
पत्र__
जिसमें समाए थे, मन के उदगार
समुद्र सी गहराई, भावनाएं हजार
किसी का रोजगार
अम्मा का इंतजार 
प्रिय के प्रेम का इजहार 
या दूर परदेस से आए
प्रियतम की विरह वेदना,
और जल्दी आने के समाचार
पत्र
जिसमें लिखी दास्तां
और अफसाने हजार
बहन भाई का प्यार
जिससे जुड़े हैं भावों के तार
डाकिए की घंटी सुन,
भरी गर्म दोपहर में
निकल आते थे बाहर
पूछते थे, चिट्ठी आई है?
नहीं होने पर हो जाते उदास
पत्र
प्रियजन के संदेश
बुजुर्गों की आस, विश्वास
पत्र की विशेष बनावट देख
या फिर छिड़के हुए इत्र की महक
ओट में खड़ी बाला की चूड़ियों की खनक
समझ जाते थे, घर के बड़े, बुजुर्ग,
तसल्ली होने पर,
नाम लेकर बुलाते काका, चाचा
और थमा देते,
पत्र
घूंघट की ओट लिए बहू को
जो खोई है, निज खयालों में
पति गए हैं करन व्यापार
इंतजार कर रही बेटी को
जिसके पति हैं तैनात सीमा पर
अगर हाथ लग गया
पत्र
छोटी बहन या देवर के
फिर तो फरमाइश पूरी
करने पर ही पाती मिल पाती है,
मां भी छेड़ने से
कहां बाज आती है।
वो दिन पूरा खुशी में ही बीतता
पत्र
एक बार पढ़, फिर #बारबार पढ़
मन उन्हीं भावनाओं में बह जाता
कैसे भेजें संदेश
दूर गया पति,अब पिता बनने वाला
परेशान ना हो, इसलिए
छोटे मोटे दुखों का नहीं दिया हवाला
पत्र
होली, दिवाली, राखी की
बख्शीश खत्म हुई,
और अब पत्र लिखना हुआ इतिहास
और थम गए हों जैसे,
चाय के साथ
डाक बाबू के अपनेपन का अहसास।
पत्र का ये सिलसिला, कबूतर से शुरू हुआ, पत्रवाहक, टेलीग्राम, फोन, मोबाइल से होता हुआ बतख (ट्विटर) तक पहुंच गया।
पोस्टकार्ड, खुली किताब हुआ करता था, फिर अंतर्देशीय पत्र, थोड़ी प्राइवेसी लिए,या थोड़ी ज्यादा प्राइवेसी के साथ एनवलप, क्योंकि कई बार कुछ #शैतान खोपड़ी, अंतर्देशीय पत्र को भी बिना खोले पढ़ने का हुनर जानते थे, इसलिए #लिफाफा, जिसमें आप कुछ रख भी सकते थे। टेलीग्राम का नाम सुनते ही सब घबरा जाते थे। क्योंकि यह किसी आपात घोषणा जैसा ही होता था, जन्म, मरण, सेना या नौकरी का बुलावा। लेकिन जो बात उन पत्रों में थी, वो आज के मैसेज में कहां? आज भी जब घर जाती हूं, तो घर के कोने में तार को मोड़ कर बनाए #पत्रहैंगर को नहीं भूल पाती। उसमें कई तो पचास, साठ साल पुरानी चिट्ठियां भी हैं। जिन्हें पढ़ने का आनंद कुछ और है। कई बार तो #सबूत की तरह भी पेश किए जाते थे। आज तो इधर खबर, उधर #डिलीट।

शुक्रवार, 14 जून 2019

प्रेम, प्रभु का दिया अनमोल उपहार


✍️प्यार, इश्क, मोहब्बत!
प्रभु का दिया एक अनमोल उपहार___
तेरे पास बैठना भी इबादत
तुझे दूर से देखना भी इबादत.........
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत............
छाप, तिलक सब छीनी,
तो से नैना मिलाईके.........
क्या है ये सब? प्यार , इश्क, मोहब्बत या इनसे हटकर बहुत ऊपर। ये सूफियाना अंदाज है, प्रभु से लगन लगने की। अमीर खुसरो की ब्रजभाषा की एक कविता है, जिसमें दिखाया तो लड़की के लिए है लेकिन वास्तविक रूप में प्रभु कृष्ण के लिए है। जिसमें ईश्वर को पति, प्रेमी रूप व स्वयं (आत्मा) को स्त्री रूप में प्रेम को दर्शाया गया है।
हे री, मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दरद ना जाने कोय..............
जहर का प्याला राणाजी भेज्या,
पीवत मीरा हांसी............
भिलनी के बेर, सुदामा के तंदुल
रुचिरुचि भोग लगाए..............
क्या ये सब प्यार, इश्क, मोहब्बत की विभिन्न अवस्थाएं हैं, जिसमें प्रेम रूपी रोग का कोई इलाज नहीं है। प्यार विश्वास को जन्म देता है, तभी तो मीरा को अपने प्रभु पर पूरा भरोसा था। प्रेम, मनुष्य जीवन का आनंद ही नहीं, नैतिक गुण है। ये प्यार ही है, जिसमें भीलनी अपनी सुधबुध खो कर, सारे भेद मिटाकर, अपने प्रभु राम को जूठे बेर खिला रही है। जिसमें प्रभु राम जूठे बेर खा रहे हैं। और सुदामा के बाल सखा श्री कृष्ण, तंदुल खाते हुए भाव विभोर  होकर आंसुओं से सुदामा के पैर पखार रहे हैं। शायद यही प्यार की #इंतहा, अंतिम परिणीती है।
तू तू ना रहे,मैं मैं ना रहूं,
एक दूजे में खो जाएं............
प्यार में स्वयं को भुलाकर, बस हर वक़्त दूसरे का ही ध्यान रहेये प्यार ही है, जो विश्वास को जन्म देता है। प्यार, इश्क, मोहब्बत एक ही भाव के अनेक नाम, रूप के साथ ही इसके आगे भी बहुत कुछ विस्तृत, अकथनीय, अवर्णनीय भाव, जज्बात, कोई दुराव छुपाव नहीं, #निर्मल अहसास है। प्यार में बंधन नहीं, स्वतंत्रता और विश्वास है। प्यार भावनाओं का निचोड़ , समुद्र की गहराई है। प्यार किसी शर्त या कसम का मोहताज नहीं। सही मायनों में प्यार का मतलब अधिकार, लेना नहीं देना होता है।
#प्रेम आसान नहीं है, जो निराशाओं से घिरा होने के बावजूद उम्मीद की एक किरण जगाए बैठा रहता है। #इश्क भी अजीब चीज है, कभी आदमी को कितना #बहादुर बना देती है, कि उसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार। तभी तो किसी ने सही कहा है, इश्क एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। प्रेम कभी इतना #डरपोक, बुजदिल बना दे, कि उसके बिछुड़ने की सोच मात्र से ही डर लगने लगता है। कभी इतना #दुख देता है, कि आदमी मौत की तमन्ना करने लगता है, और कभी इतनी #खुशियां देता है, कि एक जिंदगी कम लगने लगती है। इश्क ना तो सिखाया जाता है, और ना ही बताया जाता है। ये आंखों का नहीं, दिल का एक #पवित्र, #रूहानी अहसास है। प्यार वह जुड़ाव है, अगर प्रभु से किया जाए तो, इश्क, #ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भी बन सकता है, बशर्ते इसमें कोई संदेह, दुराव, छलावा ना हो। प्रेम में #मैं भाव के लिए कोई स्थान नहीं है। प्रेम दो दिलों का को खूबसूरत अहसास है, जो मैं और तुम के बीच की दूरी को मिटा देता है। मैं (अहम) भाव को मिटाकर ही इसकी अनुभूति होती है। एक ताजगी का अहसास, खूबसूरत सी आस, श्रृद्धा और विश्वास है प्रेम। प्रेम ईश्वर का दिया अनमोल तोहफा है।
प्यार दुनिया के हर रिश्ते में विद्यमान है। भगवान - भक्त, गुरु - शिष्य, मातापिता - संतान, बहन - भाई, पति - पत्नि, मित्रों आदि के प्यार, इश्क, मोहब्ब्त को भला कौन वर्णन कर पाया है। प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिस पर फल, फूल नहीं लगते। प्यार बिना, जीवन सूखी नदी की तरह है। प्यार एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता।प्यार जीवन जीने का हौसला देती है।
प्रेम गली अति सांकरी, जामें दो न समाहिं।
जब #मैं था तब हरि नहीं,अब #हरि है मैं नाहीं।।

शुक्रवार, 7 जून 2019

अमानवीयता की जड़ें, खोजनी होंगी


✍️अमानवीयता की जड़े खोजनी होंगी____
समाज में व्याप्त अपराधों, बढ़ते दुष्कर्मों के लिए हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना होगा, कुरेदना होगा उन तथ्यों को, कि आखिर मनुष्य इतना #पाशविक क्यों हो रहा है। छोटी छोटी बातों पर धैर्य खोना, हत्या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के बाद भी उनके चेहरे पर #शिकन तक नहीं होना, गंभीर चिंता का विषय है। मेरा मानना है कि इन सब की जड़ में है #शराब और #बेटों की सभी गलतियों को #जायज़ ठहराने का प्रयास। उन पर कोई रोकटोक नहीं। शायद ही कोई माता पिता अपने बेटे की गलती मानने को तैयार होंगे। इसके विपरीत, बड़ी आसानी से लड़की के ऊपर ही लांछन लगा देते हैं। लेकिन अभी हाल ही की घटना तो झकझोर देने वाली है। पिछले कुछ समय से इस तरह की घटनाओं के ग्राफ में बढ़त हो रही है।
बेटियों पर तो सबने बहुत ज्ञान दिया है, कुछ ज्ञान बेटों को भी दिया जाए। बेटा पढ़ाओ, साथ ही उन्हें #संस्कार भी सिखाओ! प्राथमिक शिक्षा के साथ बच्चे को निश्चित ही एक #जिम्मेदार नागरिक बनाने की शिक्षा जारी रहनी चाहिए।
मनुष्य के अंदर बढ़ती #पाशविकता को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही नहीं हो सकती, हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना ही होगा। दरअसल इस समस्या की शुरुआत #घर से ही होती है, जिसमें हमेशा ही बेटों की सभी गलतियों, कुचेष्टाओं, बेवकूफियों पर पर्दा डाला जाता है, या उनकी गलती मानी ही नहीं जाती। और यही लड़के आगे चलकर बेखौफ #अपराधी बन जाते हैं, जिन्हें किसी से डर नहीं लगता। ना परिवार से, ना ही समाज या कानून से। इसमें प्रशासन, सुरक्षा व्यवस्था व न्याय व्यवस्था भी जटिलता से परिपूर्ण है।
#नशा अपराध,अनैतिकता का सबसे #बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं लगती?? आजकल जितनी दुकानें दवाइयों, सब्जियों, की नहीं है, उससे कहीं ज्यादा शराब की दुकानें खुल रही हैं। हर चौथी दुकान शराब की मिल जाएगी। क्या शराब इतनी आवश्यक है। आम गरीब आदमी सारी चीजें सरकार से मुफ्त पानी की चाहत रखता है, लेकिन शराब के लिए पैसे का जुगाड कर ही लेता है, उधर सरकार की मंशा भी क्या है, क्या यही कि आम आदमी सोचने की स्थिति में ही ना रहे, जिससे कुछ लोगों की जेबें भी भरती रहें, और उनकी ही हुकूमत बनी रहे।
शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने से, सरकारी तंत्र की #ऊर्जा भी बचे, देश का #भविष्य भी!!
समस्या के हल के लिए, कानून, सुरक्षा व्यवस्था को तो सजग चुस्त दुरुस्त होना ही है, साथ ही समाज में पनप रही शराब संस्कृति पर भी रोक जरूरी है। आजकल शायद ही कोई टीवी सीरियल होगा, जो बिना शराब सेवन के पूरा होता हो, क्या युवा, क्या बूढ़े, दादियां, लड़कियां आखिर हम कौन सी संस्कृति परोस रहे हैं।
कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि #बोतल में #शराब है। किन्तु इस एक #शराब शब्द में बहुत #भयंकर अर्थ छिपा है।जैसे एक छोटे से बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है, किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार #शराबरुपी #विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है। समाज में व्याप्त अपराधों की जड़ है शराब।
आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जातिवाद, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए। नशे की आदत, दीमक की तरह मनुष्य के शरीर को खा जाता है। नशा वह जहर है, जिसे लोग बड़े स्वाद और शान के साथ गटकते हैं, इस तरह बच्चों की गलतियों के लिए जिम्मेदार और इसका दोषी कौन है????? शायद पैरेंट्स!! नशा अपराध की जड़ है। बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश देना तो #पैरेंट्स की जिम्मेदारी है। इसके विपरीत, पैरेंट्स! खुद सब चलता है, कह कर #सपोर्ट करते हैं, तो क्या किया जाए?? या बेटों के लिए सब #जायज है, चाहे वो कुछ भी करे। सीखता तो बच्चा घर से ही है। लेकिन कुछ #स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचें, कि ये बच्चे! परिवार हित, देश, समाज के लिए यह भी आपके द्वारा एक योगदान ही है।
अच्छी परवरिश माता पिता की सबसे बड़ी चिंता है उनका बच्चा पढ़ाई, लिखाई ,खेलकूद, हर क्षेत्र में अग्रणी रहे यह उनकी चिंता है। बच्चों को उनकी गलती के अनुसार कभी-कभी दंड देना भी आवश्यक है, उनकी गलती के अनुसार अगर ज्यादा सजा दी जाए तो भी सही नहीं है। बस बच्चे पर उसका असर सही हो, यह आवश्यक है।

शराब,ऐसा शौक जिसे लत बनते देर नहीं

✍️
#शराब, एसा शौक, जिसे #लत बनते देर नहीं लगती_____
🍷यदि मैं एक दिन के लिए तानाशाह बन जाऊँ,तो शराब पर #प्रतिबंध मेरा पहला कदम होगा।
                                                       #बापू
🍷Drug addiction is a family disease, one person may use but the whole family #suffers.
🍷यह एक #धीमाजहर है, जिससे व्यक्ति स्वयं ही प्रभावित नहीं होता वरन् उसका कैरियर, परिवार, बच्चे सभी प्रभावित होते हैं। नशे में व्यक्ति ऐसे #जघन्यअपराध तक कर बैठता है, होश में  रहते  शायद जिनके  बारे में वह  सोच भी नहीं सकता। कब एक छोटा पैग----शौक, मस्ती, या so called high society culture दिखाने के चक्कर में ये नशा आपको अपना #गुलाम बना चुका होता है। इसके दुष्परिणामों के बारे में जानने तक बहुत देर हो जाती है। आधुनिक दिखने की होड़ में अच्छे शिक्षित वर्ग भी इसकी चपेट में ज्यादा हैं। उन्हें यह लगता है, कहीं पिछड़े ना कहलायें। ऐसे में जिम्मेदारी #परिवार की भी है। युवा होते बच्चों पर हम अपने विचार थोपें नहीं, वरन् घर का वातावरण इतना सौहार्द रखें, बच्चों से शेयर करें कि बच्चे सारी बातें आपको बता सकें।
🍷अल्कोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है। व्यसन की एक विशेषता है, इसके नुकसानों को जानते हुए भी व्यक्ति अपनी *लत का गुलाम* हो जाता है। इसे जीर्ण #मानसिकरोग भी कह सकते हैं।
🍷शराब,गुटखा,सिगरेट,तम्बाकू द्वारा *निकोटीन फेफड़ों* में पहुंच कर *ऑक्सीजन की कमी से कई बीमारियों का* कारण बनती है।
अल्कोहल का मुख्य असर *लीवर, किडनी* पर पड़ता है। अल्सर की सम्भावना भी बनती है। लीवर में शराब से हानि कारक तत्व बनते हैं, जो लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं।
🍷अल्कोहल का सबसे *ज्यादा दुष्प्रभाव मस्तिष्क पर* पड़ता है। आसपास के माहौल को भांपने में, शरीर तथा दिमागी संतुलन नहीं बना पाता, फैसला करने में, एकाग्रता में कमी आने लगती है।#स्वच्छंद महसूस कर व्यक्ति स्वयं सभी मुश्किलों से आजाद महसूस करने लगता है।
🍷ज्यादा शराब के सेवन से व्यक्ति बेसुध हो जाता है, अवसाद में भी चला जाता है, क्रोध बढ़ जाता है तथा कभी कभी अनहोनी भी कर बैठता है।(किसी भी प्रकार की)।
🍷शराब #मात्र *5-7 मिनट के अंदर दिमाग पर असर* डाल देती है। शराब की वजह से *न्यूरोट्रांसमीटर्स #अजीबसंदेश* भेजने लगते हैं, तथा *तंत्रिका तंत्र #भ्रमित* होने लगता है। शराब का ज्यादा सेवन घातक होता है। कई बार विटामिन्स और आवश्यक तत्व नहीं मिल पाते। दिमाग में अल्कोहल के असर से *डिमेंशिया की बीमारी* होने का खतरा बढ़ जाता है।
🍷शराब प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। और इसके चलते कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।शराब के सेवन से सेक्स सम्बंधी (#यौनव्यवहार) में लिप्त होने या जोखिम लेने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह विवेक तो पहले ही खो चुका होता है। इस प्रकार यौन संक्रमित बीमारियों के होने का भी खतरा बढ़ जाता है।
🍷ज्यादा शराब व सिगरेट पीने से शरीर में #टॉक्सिन्स की मात्रा बढ़ जाती है। यह लिवर में पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
🍷कभी शौक में,कभी खुशी में, कभी गम में ,तो कभी यारी दोस्ती के जश्न मनाने में *कब व्यक्ति एक पैग से शुरू होकर शराब की लत के #दुष्चक्र में*फंस जाता है। उसे पता भी नहीं चलता। और फिर शुरू होता है *बर्बादी का अंतहीन सिलसिला*।होश आने पर उसे महसूस भी होता है। फिर अपनी गलतियों को छुपाने या परिस्थितियों का सामना न कर पाने से दुबारा ------फिर एक बार और------फिर एक बार और-----
🍷ऐसे लोगों में *#आत्मविश्वास की बेहद कमी* होती है। दिल के *बुरे ना होते हुए भी सही कार्य के निर्णय नहीं ले पाते।* और पारिवारिक कलह के लिए जिम्मेदार होते हैं।
🍷इसलिए ✓[एक पैग की भी शुरुआत ही क्यों]✓ करें। परिवार में बच्चों के सामने #स्वस्थमाहौल बनाएं, जिससे युवा होते बच्चे आपसे सारी बातें शेयर कर सकें। बाहर की हर मुसीबत का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकें।
🍷WHOकी पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार शराब के सेवन से अवसाद, आत्महत्या, बेचैनी, लीवर सिरोयसिस, हिंसा, दुर्घटना तथा आपराधिक मामलों में प्रवृत होने के मामले ज्यादा बढ़ जाते हैं। इसलिए एक कदम भी इस ओर न बढ़ाएं, और अगर बढ़ भी गए हैं तो शपथ लें। हमेशा अपने मातापिता या पत्नी, बच्चों, परिवार को ध्यान में रखते हुए सोचें। छोड़ने के लिए सब तरह की कोशिश करें। ध्यान, व्यायाम अवश्य करें। फिजिकल फिट रहें। अच्छी संगत में रहें।और जो भी उपाय सम्भव हो, अवश्य करें। और स्वयं को ✓[मानसिक,शारीरिक यहाँ तक कि आर्थिक भी दिवालिया]✓ होने से बचाएं। ध्यान, मेडिटेशन, योग करें। निष्क्रिय ना रहें। ऐसे लोगों की संगति से बचें, जो आपको नशे के लिए आमन्त्रित करते हों। इस लत को छोड़ने में मुख्य भूमिका तो आपकी ही होगी, हर समय दूसरे को दोष देना ( व्यक्ति, या परिस्थिति) भी उचित नहीं है।
🍷नशे में डूबा व्यक्ति डर व चिंता के प्रति लापरवाह  हो जाता है। जो कि किसी भी चुनौती का सामना करने से #डरते हैं। गलत काम करते हुए सही #लक्ष्यप्राप्ति की उम्मीद कैसे की जा सकती है। परिवारों के #विघटन में नशा भी मुख्य #जिम्मेदार कारण है।

गुरुवार, 30 मई 2019

हैलो पेरेंट्स, गलतियों पर पर्दा न डालें


✍️हैलो पैरेंट्स!
गलतियों पर पर्दा न डालें__
बेटियों पर तो सबने बहुत ज्ञान दिया है, अब कुछ ज्ञान बेटों पर भी दिया जाए। बेटा पढ़ाओ, साथ ही उन्हें #संस्कार भी सिखाओ! प्राथमिक शिक्षा के साथ बच्चे को निश्चित ही एक #जिम्मेदार नागरिक बनाने की शिक्षा जारी रहनी चाहिए।  वर्तमान युग में बेहद आवश्यक तथा देश की तरक्की में भी सहयोगी है।
भारत देश में लड़कों के लिए, इसकी शादी कर दो सुधर जाएगा। लड़कियां शादी के बाद मायके से वास्ता नहीं रखें, अन्यथा बिगड़ जाएंगी। दूसरी ओर, केवल बेटियां ही बुजुर्गों का ध्यान रखती हैं, बहुएं नहीं। ये किस मानसिकता में जी रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब आप (पैरेंट्स) की परवरिश पर निर्भर करता है। इसलिए पेरेंट्स! अपनी गलतियों, आचरण पर भी ध्यान देने की जरूरत है। अपने व्यवहार को चेक करें, बच्चे सबसे ज्यादा अपने मातापिता से ही सीखते हैं, उपदेशों से नहीं।
आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है। ऐसा ही कृत्य अगर महिलाएं करें तो, कैसा लगेगा। क्या घर संभालने की जिम्मेदारी केवल महिला की है। वैसे आजकल महिलाएं भी इस दिशा (नशे) में निरंतर बढ़ रही हैं, वो भी पीछे नहीं हैं। अब तो अक्सर लड़कियां, आंटिया भी खुलेआम पब, पार्टियों में नशे में लड़खड़ाती देखी जा सकती हैं।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जातिवाद, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए।
क्या आपने वह कहानी सुनी है जिसमें एक बच्चा शुरू में चोरी करता है तो माता उसको कभी नहीं टोकती, और एक दिन वह बड़ा चोर बन जाता है। पकड़े जाने, सजा मिलने पर वह अपने मां से मिलने की इजाजत मांगता है। उसके हाथ बंधे होते हैं, और वह अपने मां से कान में कुछ कहना चाहता है। पास जाने पर वह मां का कान काट खा जाता है, सब आश्चर्यचकित होते हैं। तब वह कहता है कि जब मैंने पहली बार चोरी की थी, तब ही शायद मेरी मां ने डांट दिया होता, तो मैं आज इतना बड़ा चोर नहीं होता। इसलिए पेरेंट्स यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आपका बच्चा पहली बार कोई गलती करे तो उस पर ध्यान दें, उसको छुपाए नहीं। उसको समझाएं प्यार से, डांट से, हर तरह से। नशे की आदत, दीमक की तरह मनुष्य के शरीर को खा जाता है। नशा वह जहर है, जिसे लोग बड़े स्वाद और शान के साथ गटकते हैं, इस तरह बच्चों की गलतियों के लिए जिम्मेदार और इसका दोषी कौन है????? शायद पैरेंट्स!! अगर पहली बार नशा करने पर मांतापिता ने गाल पर दो चांटे जड़े होते, बजाय गलती छुपाने के, पूछा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। नशा अपराध की जड़ है। बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश देना तो #पैरेंट्स का फर्ज है। पत्नी से पति को सुधारने की अपेक्षा कितनी सही है?? इसके विपरीत, पैरेंट्स! खुद सब चलता है, कह कर #सपोर्ट करते हैं, तो क्या किया जाए?? या बेटों के लिए सब #जायज है, चाहे वो कुछ भी करे। सीखता तो बच्चा घर से ही है। अक्सर बेटियों को शादी के बाद मायके से बातें करने या संपर्क में रहने से रोका जाता है, कि माएं बेटियों का घर बर्बाद कर देती हैं। लेकिन ये बात अभी तक समझ से परे है, उन बेटों का घर भी तो माएं ही बर्बाद करती हैं, जो बेटों को अपनी बहू के साथ स्वीकार ही नहीं कर पातीं, उल्टा उन्हें केवल एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझती। शराब पीने पर अगर बहू लड़े, तो पिता माता उन बेटों को अपने पास बिठा कर सपोर्ट करते हैं कि ये सब चलता है, या तुम्हारी वजह से पी रहा है। ऐसे में लड़कों को मां बहुत प्यारी लगती है। लेकिन कुछ #स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचें, कि ये बच्चे! देश या परिवार का तो छोड़िए, समय आने पर जरूरत पड़ने पर आपके पास आने लायक भी बचेंगे?? हो सकता है, ये बच्चे आपके सामने ही पूरा जीवन भी ढंग से ना जी पाएं। इसलिए समय रहते संभल जाइए, झूठे अहम, दिखावटी प्यार को छोड़ बच्चों को सुधारने की कुछ तो कोशिश कीजिए। परिवार हित, देश, समाज के लिए यह भी आपके द्वारा एक योगदान ही है। 
अच्छी परवरिश माता पिता की सबसे बड़ी चिंता है उनका बच्चा पढ़ाई, लिखाई ,खेलकूद, हर क्षेत्र में अग्रणी रहे यह उनकी चिंता है। बच्चों को उनकी गलती के अनुसार कभी-कभी दंड देना भी आवश्यक है, उनकी गलती के अनुसार अगर ज्यादा सजा दी जाए तो भी सही नहीं है। बस बच्चे पर उसका असर सही हो, यह आवश्यक है।

मंगलवार, 28 मई 2019

सच पर तरस!



✍️ सच पर तरस!
भरे बाज़ार में, सच की दुकानों पर है सन्नाटा,
तिजारत झूठ की चमकी है, मक्कारी की बातें हैं।
                                              - हिना रिज़वी
कथा सुनें सत्यनारायण की,
प्रभु को बहकाने चला है
श्रद्धा रखें झूंठ में और
आरती के थाल सजाने लगा है....
जाने क्यों सच पर,
अब तो तरस आने लगा है
झूठ अपनी चालों पर,
सीना तान बहुत इतराने लगा है....
सुना था,
झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता
लेकिन अब तो
ताउम्र भी पैर जमाने लगा है....
कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते
लेकिन पहन केलीपर
झूठ के, मैराथन की
दौड़ लगाने लगा है.....
कहते हैं
झूठ कड़वा होता है, इसलिए
कौवे जैसा सच नहीं बोलें
अन्यथा लटके रहोगे चमगादड़ की तरह
उलटे पांव पेड़ पर, ताउम्र...
क्या कभी झूठ दंडित हो पाएगा
कहीं ऐसा ना हो,
लोग सच को ही समझें गाली
और इस तरह केवल झूठ पर ही 
बड़ी निष्ठा के साथ भरोसा किया जाएगा.....
ए दुनिया! मैं (सच) नहीं तेरे लायक,
इसीलिए शायद मुझे (सच)
इस दुनिया से
विदा किया जाएगा....
लेकिन! नहीं मैं (सच) कहीं नहीं जाऊंगा
ना ही हार मानूंगा!
मुझे भेजा ही इसीलिए गया है
मेरा विश्वास बहुत गहरा है
झूठ एकदिन रोएगा, गिड़गिड़ाएगा
अंत समय में मुझसे माफी भी मांगेगा
बस, फर्क इतना है, तब मैं माफी
नहीं दे पाऊंगा,तुम से पहले ही
मैं (सच) चला जाऊंगा
हमेशा के लिए अपराधबोध देकर
तब तुम्हें मेरे होने का महत्व समझ आएगा....

मंगलवार, 14 मई 2019

आपकी सफलता/ निर्णय क्षमता

✍️
आपकी सफलता और निर्णय क्षमता
#एक पत्र, युवा बच्चों के लिए______
जिसने भी ऊंचाइयां छूई हैं, उसमें परिवार का सहयोग, समयानुकुलता,भाग्य तो है ही, लेकिन सबसे #अहम है, आपके द्वारा लिए गए #निर्णय।
जीवन में हमेशा कुछ पान पाने की चाहत में हम भागते ही रहते हैं, उससे आगे... उससे आगे... उससे ज्यादा... और ज्यादा... और अपने जीवन का अधिकांश समय हम इसी थकान में लगा देते हैं। क्या कभी हमने सोचा है आखिर यह भागम-भाग किस लिए यह थकान किस लिए????? ज्यादातर लोग बस जिए जा रहे हैं।

#दुनिया के अधिकतर लोगों को अपनी जरूरतें पता होती हैं, लेकिन फिर भी वह जीना भूलकर, और पाने की चाहत में अपने को उलझाए रहता है, यह भी सही है कि कुछ चीजें जरूरी भी होती हैं, लेकिन फिर भी अंधी दौड़, का क्या फायदा????? और कई बार, जिंदगी की दौड़ कब पूरी होने के करीब होती है, और आपके पास समय नहीं होता। उस समय सिवाय अफसोस के कुछ नहीं!!!यहां तक कि आप अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाए, कुछ बेहतर कर सकते थे, लेकिन नहीं कर सके। पीछे छूटे लोग आपको याद करें ना करें, आप अपने आप में भी तो संतुष्ट नहीं हो पाए। जिम्मेदार कौन है इन सब चीजों का?? अच्छा होगा समय रहते आप समझ जाएं, सांस थम जाने से पहले, कोई काश!!!!!!! कहने का अफसोस ना करें।

अपने ऊपर #डर (लोग क्या कहेंगे) को हावी ना होने दें। आप जितना इससे डरेंगे, लोग आपके ऊपर हावी होना जारी रखेंगे। उनको खेलने के लिए एक कठपुतली जो मिल जाती है। दूसरों की सोच की परवाह,आपको डरपोक, पंगु, मतिहीन कर देती है।आप दूसरों के हाथ का खिलौना बन कर, कितनी ऊंचाइयां हासिल कर सकते हैं, सोचिए!! आंखें बंद कर, मन की आवाज सुनें, उसे प्राथमिकता दें। सफलता मिले न मिले, जीने का जज़्बा, उत्साह बना रहेगा।

जो कार्य आपको पसंद नहीं उसमें अपनी #एनर्जी बर्बाद नहीं करें, उसमें सफलता संशययुक्त है, मिल भी सकती है, नहीं भी। क्योंकि उस कार्य में आप अपना पूरा #जुनून नहीं दे पाएंगे, इसलिए आप सफलता चाहते हैं, तो अपनी #पसंद का खयाल अवश्य रखें, और फिर जुट जाएं, पूर्ण धैर्य, लगन, समर्पण के साथ, सफलता निश्चित है, क्योंकि आप पूरे #जुनून के साथ करेंगे। सफलता नहीं भी मिली, मन #संतुष्ट होगा। आपने अपना बेहतर दिया, सपनों को पूरा करने के लिए, आगे प्रभु इच्छा।

#विवेकानंद हों, योगानंद जी, या अपने प्रधानमंत्री मोदी जी हों, या ऐसे ही और भी बहुत से व्यक्ति। पढ़ने का मतलब पैसा कमाने की मशीन बनना नहीं है। ज्ञानार्जन, स्व की खोज में सहायक है। मुझे अपने परिचितों में, एक ऐसे बच्चे का पता लगा, जो अपने माता का इकलौता पुत्र भी है, जिसने आई आई टी रेंकर होकर,अच्छे जॉब के बावजूद, आध्यात्मिक पथ को चुना। ये उसका चुना हुआ #निर्णय था।
स्वतंत्रता का आनंद किसी पक्षी से पूछिए जो उड़ान भरता है खुले आसमान में। अपनी पसंद का करने में, #स्वतंत्रता और #निरंकुशता के बारीक अंतर को समझें। #स्वविवेक नितांत आवश्यक है। स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर जीवन को सही दिशा दें। सही फैसले लेकर स्वस्थ जीवन जिएं, समय फिसलता जा रहा है। बाद में पछताने से अच्छा होगा, समय रहते जीवन पर नियंत्रण के साथ, उचित फैसले लें। और जो कुछ भी हो, उसकी जिम्मेदारी भी लेना सीखें। जिम्मेदारी की भावना आपको  #सफलता की ओर अग्रसर करती है, वहीं इससे बचना #पलायन सिखाती है।

#जीवन एक #यात्रा है, और हम सब  सहयात्री। सबसे सहयोग, प्यार, मित्रता बना कर रखें, लेकिन कोई भी किसी के साथ हमेशा के लिए नहीं होता, इसका ध्यान रखें। #अफसोसों के बक्से के बोझ तले घुट कर मरने से अच्छा होगा समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित की जाए। स्वास्थ्य हो या कैरियर, भविष्य को ध्यान रखें। अनिर्णय, या गलत निर्णय के बाद, आप हालात से समझौता करने वाली जिंदगी जीना चाहेंगे ????? शायद नहीं। तो फिर चुनिए भी और सुनिए भी अपने मन की आवाज़। और इसके लिए कभी कोई देरी नहीं हुई है, जब जागो तब सवेरा!!!

#जिंदगी को #अर्थपूर्ण बनाने की कोशिश करें, भरपूर आनंद के साथ जिओ और जीने दो। ताकि जब हम अपनी यात्रा पूरी कर रहे हों तो कोई काश!!! बाकी न  रहे। और लोगों के दिलों में भी एक हस्ताक्षर तो छोड़ ही जाएं। सब सोचने पर मजबूर हो जाएं, बंदे में कुछ तो बात थी। किसी ने क्या खूब लिखा है_________
कर्म करे किस्मत बने, जीवन का ये मर्म।
प्राणी तेरे भाग्य में, तेरा अपना कर्म।।

गुरुवार, 9 मई 2019

मां!

✍️ मां!
मां की कोई उम्र नहीं होती
मां बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!
छोटी उम्र में बच्चों की
देखभाल में खुद को भुला देती है।
और बूढ़ी होने पर भी
बच्चों के लिए दौड़भाग करती है।
अभी तो डांट रही थी
मैं तेरी मां नहीं,तू मेरा कुछ नहीं
भूखा सो जाने पर
चूमती है,पुचकारती है,
खुद से ही बड़बड़ाती,
खुद को ही कोसती है और
अंत में गले लगा, दुनिया भर का लाड़
उंड़ेल देती है मेरे गालों पर
वो बस जानती है दुलार
क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती
मां तो बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!

मां नहीं जानती कोई शौक
उसे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आती
और उन बचे पैसों को
दे देती है मेरी कॉलेज की
पिकनिक के लिए
मैंने कभी भी नहीं खरीदते देखा
उसे सोने की नई बाली या कंगन
क्योंकि वो जोड़ रही है पैसे
मेरी नई बाइक के लिए
मां को कोई शौक, पसंद भी नहीं होते
करती रहती है बस
व्रत अनुष्ठान, पूजा पाठ
हमारी सुख शांति और तरक्की के लिए
और एक दिन बस.....चली जाती है
क्योंकि मां! की कोई उम्र नहीं होती
मां बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!

अपने बच्चों से अथाह प्रेम करती है।
जरा सी हिचकी क्या आई
छोड़ देती है खाने की थाली
पता नहीं क्या खाया होगा
दूर नौकरी पर,
कौन उसकी पसंद जानेगा
छोटी से फोन मिलवाती है
तसल्ली हो जाने पर ही
थाली का खाना गले से
उतार पाती है, साथ में
पिताजी के उलाहने भी पाती है
अब तो उसे, बड़ा बनने दो
मां बस रो देती है
क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती
मां तो बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!।







बुधवार, 8 मई 2019

पुरानी कहावत


✍️पुरानी #कहावतें यूं ही नहीं बनी।
#बाप पर पूत, सईस पर घोड़ा।
ज्यादा नहीं तो, थोड़ा #थोड़ा।।
एक पुरानी कहावत है जैसा बाप वैसा बेटा। यह बात अब #शोध में भी साबित हो चुकी है, वैज्ञानिकों ने माना है, कि जो चीज है #पिता करते हैं अक्सर बड़े होकर वह #पुत्र भी करते हैं। जो आदत पिता में होती है अगर पिता देर से घर आता है तो निश्चित ही बच्चा भी देर से ही घर आएगा, या पिता को अगर #झूठ बोलने की, #नशे की #आदत है, तो बच्चे भी बड़े होकर ऐसा ही करते हैं। यही बात लड़कियों पर भी लागू होती है। इसीलिए शायद घर को #प्रथम स्कूल कहा जाता है, इसलिए सतर्क हो जाइए! आप जैसा बच्चों से उम्मीद करते हैं, पहले स्वयं करके दिखाइए। आगे से बच्चों को कोसना बंद करें एवं अपने गिरेबां में भी झांक कर देखें। काम और रोजाना के जीवन के बीच #संतुलन की प्रक्रिया, #अनुभव बचपन से ही शुरू हो जाते हैं। शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने माना है कि जब हम काम करना शुरू करते हैं तो बचपन के अनुभवों से प्रभावित होते हैं। और उसके अनुसार ही परिवार व काम के बीच समय को विभाजित करते हैं।

खंडित मन से लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती

✍️खंडित मन, ऊंचाइयां नहीं छू सकता,ध्यानयोग से व्यक्तित्व विकास____
#बारहवीं के बाद सलेक्ट हुए बच्चों के लिए बहुत बहुत #बधाई! तुम सब अपनी अपनी मंजिल के करीब हो। नए कैरियर को चुनने के बाद नया माहौल, नई जरूरतें, नया परिवेश और नई मंजिलों की तलाश में #उड़ने को तैयार। इसका मतलब यह नहीं कि अब तुम्हें परवरिश की जरूरत ही नहीं। वो तो अभी भी है,मार्ग दर्शन तो चाहिए ही।लेकिन अब फैसले स्वयं भी लेने होंगे, भला बुरा समझना होगा,
बड़े जो हो गए हो। सपनों को पूरा करने के लिए लक्ष्य साधना आवश्यक है।
आज पूरे विश्व में चिंतन का ही बोलबाला है, मस्तिष्क में विचारों का अथाह समुद्र दिखाई पड़ता है। उस समुद्र में से #कुशल तैराक की भांति तैर कर लक्ष्य तक पहुंचना ही आपकी योग्यता है। जो कुछ हम इंद्रियों से देख रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं, वह सब हमारे मन तक पहुंच कर चिंतन में खलबली मचा रहा है। चिंतन छूट भी कैसे सकता है। लेकिन इसमें भी संदेह नहीं, कि अधिक चिंतन हितकर नहीं है। हर कार्य में शक्ति भी #क्षीण होती है, अधिक चिंतन से शरीर में कई #व्याधियां पैदा हो सकती हैं। कहते भी हैं ना #चिंता चिता समान है। मन और बुद्धि जब एकसाथ अभ्यास करते करते एकाग्रता की स्थिति में पहुंचेंगे, तब ही आप समझ पाएंगे। संसार के सारे कार्य व्यवहार #मन के आधार पर चलते हैं। मन अपने आप में अव्यक्त है, मनोविज्ञान पर देश-विदेश में अनेक शोध हुए हैं, प्रतिपल मन नई इच्छाएं पैदा करता रहता है। मन इच्छा से पैदा होता है, से पूर्ण होते ही मन भर जाता है। इसी मन को समझना है, जो हर वक्त बस more & more की चाहत रखता है। मन के भीतर उठने वाली तरंगों को देखना, शांत करना है, तभी तो हम शांत रहेंगे। मन तो विकल्पों का केंद्र है, जब भी किसी विषय पर एकाग्र होने का प्रयास करते हैं तो अनेक व्यवधान आने लगते हैं, मन एक विषय पर टिकता ही नहीं, जीवन विकास के लिए आवश्यक है मन की क्षमताओं, नियंत्रण, एकाग्रता का विकास। हम एक आसन पर बैठे, शांत जगह पर शरीर को ढीला छोड़ दें, लंबी सांस लें, और सांस को देखें कुछ रोककर भीतर की हलचल को भी देखें, श्वास छोड़ें, श्वास को ही देखते रहें, विचारों के विकल्प उठेंगे, आप चिंता न करें। किसी भी प्रकार के विचार को रोकने का प्रयास ना करें। कई प्रकार के चित्र उभरेंगे, आने दें, जाने दें, रोकने का प्रयास ना करें। धीरे-धीरे श्वास पर ध्यान केंद्रित होता जाएगा, इस तरह विचारों का क्रम भी टूटने लगेगा और मन शांत होकर एकाग्रता की तरफ बढ़ेगा। मन इंद्रियों का राजा है और बड़ा ही चंचल है। इसलिए जीवन में आगे बढ़ने के लिए मन का शांत व स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। खंडित मन ऊंचाइयों को छूने में हमेशा असमर्थ रहेगा।

मंगलवार, 7 मई 2019

पेरेंटिंग, चित्त को एकाग्र करें

✍️पेरेंटिंग __ चित्त को एकाग्र करें___
#बारहवीं के बाद सलेक्ट हुए बच्चों के लिए बहुत बहुत #बधाई! तुम सब अपनी अपनी मंजिल के करीब हो। इसका मतलब यह नहीं कि अब तुम्हें परवरिश की जरूरत ही नहीं। वो तो अभी भी है। लेकिन अब उसका तरीका थोड़ा अलग होगा। समय प्रबन्धन के साथ मानसिक फिटनेस पर भी ध्यान दीजिए। जीवन में आगे बढ़ने व लक्ष्य प्राप्ति के लिए ये तीनों चीजें बेहद जरूरी हैं, टाईम मैनेजमेंट, फिजिकल फिटनेस एवं मेंटल हेल्थ (फिटनेस)
जीवन में किसी भी ऊंचाई पर पहुंचना तभी संभव है, जब आप मन (चित्त) को एकाग्र करने में सक्षम हों। आप कोई #उद्देश्य लेकर चलें, और मन एक हो उसमें किंतु परंतु ना हो, एकाग्र होकर मन की अखंडता के साथ लक्ष्य को साधें। खंडित मन से हम परेशान होते हैं, और फिर जीवन में जटिलताएं प्रवेश करने लगती हैं #खंडित मन के लिए ही शायद यह कहा गया है, आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै ना पूरी पावै। अर्थात खंडित मन किसी ऊंचाई, उद्देश्य, गोल (लक्ष्य) प्राप्ति नहीं कर सकता। और इसके लिए आवश्यक है,  हम और आप ध्यान, योग (मेडिटेशन) को अपनाएं। इससे आपकी निर्णय क्षमता अच्छी होगी। हर कोई आदमी कुछ और होना चाहता है, वह जैसा है वैसा क्यों नहीं रह सकता???? कई बार घर, समाज की अपेक्षाएं (शिक्षा, संस्कृति) हमसे वह करवाने की चाहत रखती है जो हम नहीं हैं। क्या कुछ केवल डिग्रियां ही मायने रखती हैं, बच्चों की अपनी कोई इच्छा, योग्यता नहीं होती। और इस तरह कई बार बच्चे अपना वजूद खोने लगते हैं। इस तरह के फ्रस्ट्रेशन, खंडित चित्त से हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आम का फल यदि सेवफल होने की कोशिश करेगा, तो एक बात तय है कि वह सेवफल तो बन ही नहीं पाएगा, हां! इस कोशिश में वह जो बने रह सकता था वह भी नहीं बन पाएगा। कई बार प्रयास करने पर वह मानो हो भी जाए, तो भी यह एक सफल स्थिति नहीं कही जा सकती, अर्थात क्वालिटी (श्रेष्ठता) प्राप्त नहीं कर सकेगा।
इसलिए मेरी सभी मातापिता से अनुरोध है बच्चों पर अनावश्यक दबाव नहीं बनाएं। यही आजकल बच्चों के साथ हो रहा है, मातापिता समाज में अपनी प्रतिष्ठा के लिए बच्चों पर (डॉक्टर, इंजीनियर, उच्च अधिकारी बनने के लिए) अनावश्यक बोझ डाल रहे हैं। ऊंचे सपने देखना अच्छी बात है लेकिन अपनी #ख्वाहिशों को बच्चों पर थोपना उनके व्यक्तित्व को बर्बाद करना है।

मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

मजदूर!


✍️कविता
#सुबह सवेरे काम को जाऊं,
रोटी चटनी जी भर पाऊं,
इतने ही में तृप्त हो जाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
मेरे तो हैं, ठाट निराले,
मेहनत की रोटी सब्जी में,
खून पसीने का छौंक लगाऊं,
#हां, फिर भी मजदूर कहाऊं।।
मुझसे ही तो कल कारखाने,
मुझसे ही तो खेत खलिहानें,
मैं ही तो असली मालिक हूं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
मेरे वजूद से कला की रंगत,
मैं ही कहानी का प्राण निरन्तर ,
जाने कितनों को पुरस्कार दिलवाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
#सोचो,#सोचो.....................
#अगर कहीं मैं #गुम हो जाऊं तो,
कला चितेरे धरे रहेंगे,
कामकाज सब ठप रहेंगे,
सबको कैसे ये समझाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।
मैं हूं अपने मन का राजा,
कौन है जो मुझ सा इठलाता,
हिंसा, चोरी, झूंठ से मैं घबराऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
#सीस पगा न #झगा तन पे,
नहीं किसी की दया मैं पाऊं,
कहीं किसी की चोरी ना कर लूं,
इस सोच (इमेज) से उबर न पाऊं,
हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
थक हार कर घर को आऊं,
व्यथा अपनी मैं किसे सुनाऊं,
परिवार संग बैठ इतराऊं, 
हां,फिर भी #मजदूर कहाऊं।।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बड़ों की बातें

✍️हमारे यहां बुजुर्ग एक कहावत कहते हैं, #सिर अगर ठंडा है, #पेट नरम है, और #पैर गर्म है तो समझिए आप #स्वस्थ हैं। अगर किसी व्यक्ति का सिर गर्म हो इसका मतलब उस व्यक्ति को बुखार है या किसी अन्य तरह की तकलीफ है, उसी तरह पेट का कड़क होना भी बीमारी का संकेत है, पेट दबाकर जब हल्का नरम मालूम पड़े तो उसे स्वस्थ जानिए। पैर भी हमेशा गर्म रहने चाहिए ठंडे पैर बीमारी का संकेत है। यह कुछ संकेत है जिसके द्वारा स्वस्थ और अस्वस्थ व्यक्तियों की पहचान हमारे बुजुर्ग लोग बड़े आसानी से कर लेते हैं।