रविवार, 28 जुलाई 2019

ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम


✍️ ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम
#खुशी प्रकृति में चारों ओर बिखरी पड़ी है, बस! समेटना आपको आना चाहिए। प्रातः काल बाग बगीचों की ताजा हवा से हमें दूसरी चीज जो मिलती है वह है ऑक्सीजन या प्राण वायु ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है। यह हमारी सुंदरता के लिए भी अहम स्थान रखती है, प्राकृतिक साधनों में सुबह की ताजी हवा अपने आप में विशेष स्थान रखती है सुबह की ताजी हवा हमारी त्वचा के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। श्वास क्रिया भी अपने आप में एक कला है, इस कला का भी हमें ढंग से ज्ञान नहीं होता। इसलिए सुबह उठकर प्रकृति के साथ हमें गहरी सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए। इस तरह ताजी हवा ऑक्सीजन हमारे फेफड़ों में भरकर हमारे शरीर में खून के दबाव को तेज करती है, और स्वास्थ्य के लिए लाभ पहुंचाती है।
आजकल बच्चे दिन-रात मोबाइल स्क्रीन की पर ही बिजी रहते हैं, माता-पिता भी उनको बाहर खेलने नहीं जाने देते, इसका असर उनके शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
प्रकृति के साथ थोड़ा सा भी संबंध स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है, एक शोध के मुताबिक हरियाली के समीप रहने से लोगों में नकारात्मक भावनाएं कम उभरती है, और इसलिए  अस्वास्थ्य कर चीजें खाने की इच्छा भी कम होती है। ऐसी जगह पर रहने से जहां से प्रकृति का नजारा दिखता हो, हरियाली के साथ जुड़ने पर, बाग बगीचे में घूमने सैर करने वालों को, (चॉकलेट सिगरेट और अल्कोहल की ललक) कम हो जाती है। शोध के अनुसार जो लोग बगीचे के आसपास रहते थे या जिनके घर से बगीचा दिखता था, उन्हें इन सभी चीजों के सेवन की आवश्यकता कम महसूस होती थी। प्रकृति, स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ी #हीलर है, शायद इसीलिए पहले तपेदिक के इलाज़ के लिए मरीजों को पहाड़ों पर रहने की सलाह दी जाती थी। नैनीताल के पास वह भुवाली सेनेटोरियम इसका एक अच्छा उदाहरण है। पहाड़ों, प्रकृति की शुद्ध वायु  स्वासथ्यवर्ध्दक होने के साथ ही नकारात्मकता को भी दूर कर, जीवन में उल्लास, उमंग भर देती है। और स्वतः ही ध्यान, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय, संतुष्टि जैसी आदतें अपना कर मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।
प्रकृति के बीच समय बिताने वाले बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन अच्छा होता है, बच्चे ज्यादा कल्पनाशील होते हैं। खेलकूद में भी बेहतरीन, टीम भावना, मिलकर काम करने की प्रवृत्ति, सामाजिकता, सहयोग और अपनत्व की भावना बढ़ती है। बौद्धिक कौशल का विकास होता है, ऐसे बच्चे मानसिक परेशानियों से उबरने में सक्षम होते हैं। स्व अनुशासन से प्रेरित ऐसे  बच्चों में ध्यान लगाने और प्राकृतिक चीजों के बारे में, सामान्य समझ, ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
हमारे बच्चों का जितना समय सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बीत रहा है उतनी ही ज्यादा आशंका उनके अवसाद में जाने की बढ़ती जा रही है, हाल के एक शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है। नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पेड़ पौधों के बीच बनी सड़क पर टहलने या किसी प्राकृतिक जगह पर सप्ताह में दो से चार घंटे  बिताने वाला व्यक्ति भी ज्यादा स्वस्थ और खुश महसूस करता है। जो लोग रोजाना दो से तीन घंटे हरियाली और पेड़ों के बीच चहल कदमी करते हैं, वे उन लोगों की तुलना में बीस फ़ीसदी ज्यादा खुश और सेहतमंद थे, जो ऐसा नहीं करते थे। ऐसे लोग दूसरों की तुलना में कई गुना अधिक स्वस्थ और आशावादी थे। शोधकर्ताओं ने बताया कि पार्क, बाग बगीचे और हरियाली वाले क्षेत्र में प्रतिदिन दो घंटे से ज्यादा समय बिताने वालों में हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, अस्थमा, मानसिक समस्याएं और मृत्यु के जोखिम कम थे। जबकि ऐसे बच्चों में जो प्रकृति के साथ जुड़े हुए थे, उनकी सेहत, खुशी, और इम्यूनिटी रेट भी बेहतर थी। केवल प्राकृतिक वातावरण में निष्क्रिय बैठे रहने से भी उतना ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है, जितना जिम या घर पर व्यायाम करने से मिलता है। औसतन बच्चे डिजिटल स्क्रीन के सामने दिन में पांच से आठ घंटे तक बिताते हैं। ऐसे बच्चों में प्रकृति का साथ छूटता जा रहा है, पहले जहां बच्चे घरों में खेलते थे, पार्क में खेलते थे, घर के कार्य में सहयोग करने और बाहर खेलने में घंटों बिताते थे, आज इसकी जगह वीडियो गेम टीवी और इंडोर गेम्स ने ले ली है। अतः हमारे बच्चों का ग्रीन टाइम, स्क्रीन टाइम से बदल गया है, और इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आज के समय में, इसके लिए मातापिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। बच्चों के साथ प्रकृति के बीच समय बिताएं, खेलकूद में रुचि बढ़ाएं। अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ना पकड़ाएं। बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव पैदा करें, घर में भी पेड़ पौधों को गमलों में उगाएं, उनसे जुड़ाव महसूस करें और देखभाल भी करें।

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