मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

मजदूर!


✍️कविता
#सुबह सवेरे काम को जाऊं,
रोटी चटनी जी भर पाऊं,
इतने ही में तृप्त हो जाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
मेरे तो हैं, ठाट निराले,
मेहनत की रोटी सब्जी में,
खून पसीने का छौंक लगाऊं,
#हां, फिर भी मजदूर कहाऊं।।
मुझसे ही तो कल कारखाने,
मुझसे ही तो खेत खलिहानें,
मैं ही तो असली मालिक हूं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
मेरे वजूद से कला की रंगत,
मैं ही कहानी का प्राण निरन्तर ,
जाने कितनों को पुरस्कार दिलवाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
#सोचो,#सोचो.....................
#अगर कहीं मैं #गुम हो जाऊं तो,
कला चितेरे धरे रहेंगे,
कामकाज सब ठप रहेंगे,
सबको कैसे ये समझाऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।
मैं हूं अपने मन का राजा,
कौन है जो मुझ सा इठलाता,
हिंसा, चोरी, झूंठ से मैं घबराऊं,
#हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
#सीस पगा न #झगा तन पे,
नहीं किसी की दया मैं पाऊं,
कहीं किसी की चोरी ना कर लूं,
इस सोच (इमेज) से उबर न पाऊं,
हां, फिर भी #मजदूर कहाऊं।।
थक हार कर घर को आऊं,
व्यथा अपनी मैं किसे सुनाऊं,
परिवार संग बैठ इतराऊं, 
हां,फिर भी #मजदूर कहाऊं।।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बड़ों की बातें

✍️हमारे यहां बुजुर्ग एक कहावत कहते हैं, #सिर अगर ठंडा है, #पेट नरम है, और #पैर गर्म है तो समझिए आप #स्वस्थ हैं। अगर किसी व्यक्ति का सिर गर्म हो इसका मतलब उस व्यक्ति को बुखार है या किसी अन्य तरह की तकलीफ है, उसी तरह पेट का कड़क होना भी बीमारी का संकेत है, पेट दबाकर जब हल्का नरम मालूम पड़े तो उसे स्वस्थ जानिए। पैर भी हमेशा गर्म रहने चाहिए ठंडे पैर बीमारी का संकेत है। यह कुछ संकेत है जिसके द्वारा स्वस्थ और अस्वस्थ व्यक्तियों की पहचान हमारे बुजुर्ग लोग बड़े आसानी से कर लेते हैं।

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

आसान नहीं है पेरेंटिंग

🐣(आसान नहीं है पैरेन्टिंग) ----------
बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने में माँ पिता की भूमिका-------

🐣जो लोग स्वयं में विश्वास रखते हैं, सफलता उनके कदम चूमती है।सभी माँ पिता का यह कर्त्तव्य है की वह बच्चों में #आत्मविश्वास की भावना जागृत करें।                           

🐣जिन मातापिता में #झूठ बोलने की आदत होती है, कड़ा अनुशासन,दिखावा पसंद, क्रोधी स्वभाव या बच्चों से मारपीट करने वाले होते हैं, उन बच्चों में आत्मविश्वास की बेहद कमी होती है।या फिर अतिआत्मविश्वासी होते हैं। कम या अति दोनों ही गलत है।

🐣जिन बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है, वे खुद को कमतर समझने लगते हैं, इससे उनकी कार्यशैली भी प्रभावित होती है।हर समय एक #डर से घिरे रहते हैं कहीं कुछ गलत हो गया तो लोग क्या कहेंगे।इसके चलते कई बार झूठ बोलकर गलती का दोषारोपण भी दूसरों पर कर देते हैं। #बच्चों को कड़े #अनुशासन या #दण्डात्मक प्रक्रिया न अपनाएं।

🐣बच्चे बेहद #संवेदनशील होते हैं, इन्हें प्यार से समझाएं तथा अहसास कराएं कि वह आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।उस पर विश्वास करें, ऐसा नहीं कि उसे डांटे नहीं, उसे प्यार करें लेकिन उसके गलत कार्यो से नहीं।

🐣बच्चे को आप पर पूरा #भरोसा होना चाहिए।उससे #खुल कर #बातें करें, आपकी आत्मीयता तथा प्रोत्साहन आपके बच्चे को और अधिक आत्मविश्वास के साथ कठिनाइयों से सामना करने लायक बनाएगा।कई बार माँ पिता बच्चों में भी भेदभाव करते हैं, #झूठ बोलते हैं यह सही नहीं है। बच्चे तो #मातापिता से ही #सीखते हैं, अन्यथा बच्चे अपने वैवाहिक जीवन हो या सामाजिक या कैरियर,ज्यादा सफल नहीं हो पाते।

🐣बच्चे को #कुम्हार की तरह #सुरक्षा दें,जैसे #मटका बनाते समय अंदर तो #हाथ का #सहारा दे कर रखता है, लेकिन #ऊपर से #थपकी मारता है आकार देने के लिए।बच्चे को उसके योग्य जो कार्य हो उसे करने दें, #अनावश्यक सहारा न दें,अन्यथा या तो बच्चा आलसी हो जायेगा या आत्मविश्वास नहीं बन बनेगा।पता नहीं ये काम कर पाऊँगा या नहीं

🐣बच्चे को अपनी #खूबियों तथा #कमजोरियों दोनों को #स्वीकार करना सिखाएं। कई बार केवल खूबियों को ही स्वीकारते हैं तो अतिआत्मविश्वासी तथा केवल कमियां ही देखते हैं तो हीन भावना का शिकार हो जाते हैं।

🐣सही और गलत के बारे में उसे #विस्तार से बताएं, सकारात्मक उदाहरण देकर समझाएं। सही गलत,सुख दुःख,अच्छा बुरा,सकारात्मक नकारात्मक, पास फेल ,सफलता असफलता ये सभी एक सिक्के के दो पहलू  हैं। बच्चों को समझाएं कोई भी चीज स्थाई नहीं है।अतः #निराशा को अपने ऊपर #हावी न होने दें।

🐣आत्मविश्वास को बनाये रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका #माँ पिता और #गुरुजन की ही होती है।

🐣जिसकी सोच में #आत्मविश्वास की महक है, जिसके इरादों में हौसलों की मिठास है,
और जिसकी नीयत में सच्चाई का स्वाद है,
उसकी जिंदगी महकता हुआ गुलाब है।

🐣जिन बच्चों में #आत्मविश्वास की कमी होती है, उनके गलत रास्ते पर #भटकने की सम्भावना अधिक होती है अतः समय रहते ही बच्चों पर ध्यान दें,एवम् खुद का आचरण भी सही रखें।अन्यथा केवल ध्यान रखने से भी कुछ नहीं होगा,बच्चे आप की हरकतों का अनुसरण जाने अनजाने करते ही हैं।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

पनिशमेंट भी पैरेन्टिंग का हिस्सा है।


✍️पेरेंटिंग_ पनिशमेंट भी जरूरी
हैलो पेरेंट्स, आज एक खास बात आपके लिए, बच्चों के लिए गूगल मैप तो बनिए, लेकिन सीसी टीवी कैमरे वाली गिरफ्त से बाहर रखिए अपने बच्चों को।
पांच वर्ष तक बच्चे को खूब प्यार, पंद्रह वर्ष तक पर्याप्त अनुशासित व्यवहार और जब बच्चा आपकी हाइट तक आ जाए यानि सत्रह अठारह साल के बाद में उसे दोस्त ही समझिए, कभी-कभी उससे हंसी मजाक भी कीजिए, लेकिन एक सीमा में रहकर। जिससे वह आपसे खुलकर सारी बातें शेयर कर सकें।
आज एक मित्र के यहां जाना हुआ, उनका प्यारा सा बच्चा अपने कमरे में बंद कुछ कर रहा था। मातापिता परेशान बच्चा हमारी सुनता नहीं, बच्चे की शिकायत हर समय मुझे कठपुतली की तरह नचाते हैं, मुझे कमतर आंकते हैं, दूसरे बच्चों से तुलना करते हैं। कितनी #असहनीय स्थति बना देते हैं आप बच्चों की। मैं पहले भी कई बार जिक्र कर चुकी हूं, आप बच्चों के केवल #केयर टेकर हैं। हर बच्चे की अलग प्रकृति, अलग माहौल, अलग फिजिकल फिटनेस, अलग परवरिश होती है। इसलिए हर बच्चा अपने आप में अनूठा है, उसकी किसी से तुलना कर कुंठित मत कीजिए। देखने में आता है कि मातापिता की ख्वाहिशों के बोझ तले बच्चा अपनी उन्नति, सपने, सफलताएं सभी कुछ खोने लगता है। कई बार पैरेंट्स, अपनी दबी हुई इच्छाएं बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं। किसी पुलिस वाले को देखा तो पुलिस, वकील को देखा तो वकील, डॉक्टर को देखा तो डॉक्टर, यहां तक कि नेता को देखा तो राजनीति के ख्वाब भी बच्चों की जिंदगी पर संजोने लगते हैं। नतीजा! बच्चा अपना #व्यक्तित्व ही खो देता है, घर का ना घाट का। इसलिए सभी पैरेंट्स से एक गुजारिश है, सभी बच्चों की परवरिश एक जैसी संभव नहीं है। कोई बच्चा डांट से मानेगा, कोई प्यार से, तो किसी के लिए शारीरिक दंड भी कभी कभी आवश्यक हो जाता है। बच्चों के साथ संवाद बनाए रखें, दूरी नहीं आने दें, जिससे बच्चा अपनी सारी अच्छी, बुरी बातें आपसे शेयर कर सके। अन्यथा बच्चों अपनी कोई बात बताएगा ही नहीं, और वह किसी गलत संगत में फंस सकता है। बच्चों को खुलकर जीने दें, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे उद्दंड, बदतमीज होने दें, जैसा कि आजकल के मातापिता अपने बच्चों के साथ करते हैं। उन्हें टोकते ही नहीं हैं, बच्चों की जो मर्जी आए सो करे। अंत में यह भी दुखदाई ही है, क्योंकि बच्चे को ना सुनने की आदत ही नहीं होगी, बस स्वयं को ही सही मानेगा। बच्चों को डांटना भी आवश्यक है, उसे पता होना चाहिए गलत काम करने पर, दंड भी मिलेगा। सजा देना भी जरूरी है। #पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। इसे आवश्यकता अनुसार अमल में लाएं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक #परफेक्ट मातापिता बना सकती है।
इसलिए बच्चे को पनिश भी करिए, बच्चों पर निगाह  रखिए, लेकिन ऐसे नहीं कि,[``आप सीसी टी वी की गिरफ्त में हैं''] जैसा महसूस हो। आप उनके मार्ग दर्शक [गूगल मैप] तो बनिए, लेकिन हैलीकॉप्टर, सर्च लाईट की तरह कदापि नहीं।

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

हैलो!

✍️
#याद रखें,#
अच्छी चीजें #देर से #असर करती हैं,#कम्फर्ट जोन से निकलें _________
#कई बार देखने में आता है, कि मातापिता या #गुरुजनों द्वारा #प्रेरित किये जाने के बावजूद भी बच्चे #नियमित व्यायाम या पढ़ाई #नहीं करना चाहते। इसके लिए आप जिम्मेदार नहीं हैं, #जिम्मेदार है #न्यूटन का #लॉ ऑफ इनर्सिया। जिसमें उन्होंने साबित किया था कि जो चीज जहां पड़ी है, वहीं पड़ी रहना चाहती है। #बचपन इस नियम से खासा प्रभावित होता है। #बच्चे हर गतिविधि का #इंस्टैंट फायदा तलाशते हैं, लेकिन #अच्छी #चीजें #देर से #असर करती हैं। जबकि बुरी चीजें बेहद जल्दी प्रभाव दिखाने लगती हैं। इसीलिए बच्चों को चाहिए कि #प्रयास नियमित जारी रखें, ताकि उसका दूरगामी अच्छा परिणाम फायदा मिल सके। और #मातापिता की #जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों के साथ #धैर्य के साथ पेश आएं,एवं दूरगामी परिणामों के बारे में #समझाएं। #तुरंत लाभ प्राप्ति की कामना से #बचें। #अभ्यास किसी भी तरह की #प्रगति के लिए #आवश्यक है।

रविवार, 14 अप्रैल 2019

हैलो! Mothers


✍️
हैलो! Mothers ______
आज पैरेन्टिंग में, मैं मां को ज्यादा महत्व दे रही हूं। वैसे तो दायित्व दोनों का ही है, फिर भी मां का मान , महत्व एवं योगदान एक पायदान अधिक है। एक अच्छी #मां सौ #गुरुओं के बराबर होती है।  बच्चे के लिए मां ही प्रथम #स्कूल है। जितने भी महान लोग हुए हैं, उनके व्यक्तित्व निर्माण, भविष्य संवारने एवम् सूरज की तरह चमकने में मां की #परवरिश का बहुत बड़ा योगदान होता है। ऐसी ही मांओं में से एक फरीदुद्दिन गंज शकर (रह.) की मां थीं। उनकी परवरिश से उनके बच्चे ने यश, मान सम्मान की ऊंचाइयों को छुआ। फरीदुद्दीन की मां का ये रोज का नियम था, कि वो रोजाना मुसल्ले (नमाज पढ़ने के लिए बिछाए जाने वाले मैट) के नीचे शक्कर की पुड़िया रख देती और कहती, जो बच्चे नमाज पढ़ते हैं उनको मैट के नीचे से शक्कर की पुड़िया मिलती है। इसका उनके मन पर गहरा असर हुआ, और वे बचपन से ही नियमित, बेनागा नमाज पढ़ने एवं खुदा को स्मरण करने लगे। वे कभी भी नमाज अदा करना नहीं भूलते थे। आगे चलकर इसी वजह से उनको गंज शकर के नाम से ही प्रसिद्धि मिली।
हम जो भी बच्चों को बनाना चाहते हैं, उसका बीजारोपण बचपन में ही हो जाता है। और फिर जैसा बीज है, परवरिश की खेती (देखभाल) है, फसल भी वैसी ही पकेकी। कई बार छोटी छोटी बातें बच्चे के मस्तिष्क में अमित छाप छोड़ देती हैं, ये सब बचपन के बीज हैं। जो उम्र के साथ पोषित होते जाते हैं।
अगर आप वास्तव में #देश, समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, तो बच्चों की परवरिश पर ध्यान दीजिए। स्वच्छ, स्वस्थ शरीर ही #स्वस्थ मानसिकता के साथ उन्नति की ओर #अग्रसर हो सकता है।
#परवरिश में #मां का अहम योगदान है। किसी ने क्या खूब कहा है_ एक #पुरुष की शिक्षा केवल एक व्यक्ति की ही शिक्षा होती है, लेकिन एक #स्त्री की शिक्षा से एक खानदान ही नहीं, पूरा #समाज शिक्षित बनता है। एक मां दस #गुरुओं से भी अच्छी हो सकती है। समाज को खूबसूरत बनाने में मां की #अहम भूमिका होती है। औरत की गोद में ही पुरुष का लालन-पालन, शिक्षित होता है, जो आगे चलकर समाज की, देश की तरक्की के में योगदान करता है। नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था _ तुम मुझे अच्छी #मांएं दो, मैं तुम्हें अच्छा #राष्ट्र दूंगा।
आज के इंटरनेट के युग में माताओं की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, कि वह इसके #दुष्प्रभाव से अपने बच्चों को किस तरह बचाए। उन्हें #मोबाइल की जगह #हेल्थी #लाइफस्टाइल दीजिए। मोबाइल के लिए डांटिये मत, स्वयं इसका प्रयोग कम करने की चेष्टा करें, उनके साथ समय बिताएं, जिम्मेदार तो आप ही हैं। बच्चे #अनुकरण से जितना सीखते हैं, उपदेशों से नहीं। खैर....... मुख्य मुद्दा यह है, कि बच्चों को #स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करें।
मां प्रथम #गुरु है। सही गलत, झूठ सच, सभ्यता या बदतमीजी, ये सारी बातें बच्चा घर से ही सीखता है। इसके लिए बच्चों के लिए ध्यान, प्यार और सख्ती तीनों ही आवश्यक हैं। हो सकता है बच्चा आपसे नाराज भी हो जाए, अपनी इमेज की चिंता छोड़िए, क्योंकि जब उसे पता चलेगा आप उसके भले के लिए कर रहे हैं, तो आपके लिए उसके दिल में और भी सम्मान बढ़ जाएगा। गलत बातों पर परदा डालना, पिता से छुप कर पैसे देना या गलत कार्य की डांट से बचा लेना, उस समय अवश्य, आपकी प्यारी, सीधी, निरीह मम्मा की छवि बनती है, लेकिन यह अति मोह, उसके भविष्य की बरबादी की प्रथम #सीढ़ी है। बच्चों के #चरित्र निर्माण में आपकी मुख्य भूमिका है। सजा देना भी जरूरी है, पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। इसे आवश्यकता अनुसार अमल में लाएं। बच्चों को #पता होना चाहिए किस गलती पर सजा मिल रही है, अनावश्यक दंड देना या अपनी गुस्सा (फ्रस्ट्रेशन) बच्चों पर निकालना कहां तक उचित है। बच्चों की तुलना करना, या उनमें अपराधबोध देना कि तुम नालायक हो....... ऐसा बच्चा कभी कॉन्फिडेंट नहीं रहेगा और न ही जीवन में सफलता प्राप्त कर पाएगाबच्चों का आत्म विश्वास भी कम ना होने दें किसी भी बच्चे के व्यवहार, परवरिश को देख कर आप उसके घर के संस्कारों का अंदाजा लगा सकते हैं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक परफेक्ट मां बना सकती है।

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

मन के मंजीरे


प्रौढ़ावस्था_ संघर्ष / सामंजस्य
नई और पुरानी पीढ़ी में वैचारिक मतभेद हमेशा से चला आ रहा है। नई बात नहीं है, लेकिन जितनी दूरियां आज बढ़ गई हैं, उतनी पहले नहीं थीं। लोगों में अधिक से अधिक पाने, सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है,और इसके चलते परिवार संस्कृति, विघटन  की ओर बढ़ रही है। जहां पुरानी पीढ़ी प्रौढ़ावस्था में स्वयं को हर कार्य के लिए सही मानते हुए, नई पीढ़ी को अपने समय की परंपराओं एवं मान्यताओं को ही नहीं, बस केवल और केवल आदेश मानने के लिए विवश करने के साथ ही उचित ठहराने का प्रयास करती है, वहीं स्वतंत्र विचारों वाली नई पीढ़ी भी कई बार अपने को पूर्ण परिपक्व मानते हुए आधुनिक परिवेश में रहना पसंद करती है। संघर्ष का कारण यह नहीं है कि नई पीढ़ी बुरी है, या पुरानी पीढ़ी बुरी है। बुरा है सोचने का, अपेक्षाओं का, नकारात्मकता को पोषित करने का तरीका। वास्तविक समस्या यह है कि दोनों ही पीढ़ियां अपने अहम की संतुष्टि के साथ खुद को ही श्रेष्ठ मानते हुए, अपने लिए एक विशेष स्थान प्राप्त करने की इच्छा रखती हैं। यह अंतर हम मनुष्यों में ही नहीं जानवरों में भी होता है। सबको अपने अधिकार, स्थायित्व की चिंता बनी रहती है। वानरों के किसी भी दल में एक ही नर वानर होता है, और उसी का अधिकार होता है। उसी दल में जब वानरों के बच्चे युवा होते हैं तो दल पर आधिपत्य के लिए युवा वानरों एवं बुजुर्ग नर वानरों के मध्य मरने मारने का द्वंद होता है, कुत्तों, शेरों के अपने इलाके में दूसरे की घुसपैठ पर लड़ाई, हाथियों के झुंड में भी ऐसा विरोध अक्सर देखने को मिलता है। यह सब आधिपत्य की लड़ाई के लिए है। लेकिन हमें (बुजुर्गों को) कुछ सीख #पक्षियों से भी लेने की जरूरत है। जो बच्चों को पालते हैं, पोसते हैं और समय के साथ छोड़ देते हैं अपनी जिंदगी जीने के लिए, उड़ान भरने के लिए। हम पशु तो नहीं हैं, विवेक भी है, फिर अहम, जिद छोड़ क्यों नहीं रहे। हर चीज, पूर्वाग्रहों को, कम्बल की तरह लिपटाए बैठे हैं। समय के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, जो कल आपका था, आज #हस्तांतरण के लिए तैयार रहिए, विवश होकर नहीं, खुशी खुशी। कभी आप भी युवा थे, उस स्थति को भी याद कर सकते हैं, कितने बदतमीज या हेकड़ थे? याद आया? ऐसा तो हो नहीं सकता कि जिन युवाओं को आज उद्दंड, बदतमीज बताया जा रहा है, वह बुजुर्ग होते ही निरीह और सीधा सरल हो जाएगा, हो सकता है आप भी उनमें से एक हों। इसलिए नई पीढ़ी को कोसना बंद कर, थोड़ा सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करें। नई और पुरानी पीढ़ी में हमेशा विचारों में अंतर रहा है। इसी अंतर से पीढ़ियों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। दरअसल आज की जीवन शैली व परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। वर्तमान में देश जिस बदलाव के दौर से गुजर रहा है, आशंका है कि नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के संबंधों का भविष्य क्या होगा? दिखने लगा है। एक असुरक्षा का भाव बना हुआ है। रिश्तों में मिठास कम हो रही है, असुरक्षा, संदेह घेरे हुए है। भौतिकतावाद भी एक वजह हो सकती है। पिछले चार पांच दशक में विज्ञान के प्रभाव से हमारा रहन-सहन एवं व्यवहार भी अछूता नहीं है। परिवर्तित व्यवस्था से नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में दूरियां स्पष्ट नजर आने लगी हैं। आधुनिक व्यवस्था एवं मान्यताओं से प्रभावित नई पीढ़ी वर्षों से चली आ रही परंपरा, संस्कारों एवं मान्यताओं वाली पुरानी पीढ़ी में सामंजस्य की कमी निरंतर बढ़ रही है, जैसे-जैसे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है मानसिक रोगों की वृद्धि होती जाती है। जब मानसिक रोगों का निवारण नहीं किया जाए तो कालांतर में, शारीरिक रोग का रूप ले लेता है। इसी कारण प्रौढ़ ही नहीं, युवावस्था में भी अनेक रोगों से ग्रसित हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति के विचार भिन्न भिन्न होते हैं, हर कोई हमारी इच्छा के अनुरूप ही कार्य करें यह संभव नहीं है। जिन्हें हमने सर्वस्व लुटा कर लाड़ प्यार के साथ बड़ा किया है, यदि उनकी खुशी के लिए हमारे जीवन में कुछ परिवर्तन कर लिया जाए तो दोनों पीढ़ियों का जीवन आनंदमय में हो सकता है।इसमें नुकसान भी कहां है। यदि पुरानी पीढ़ी तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन के साथ नई पीढ़ी की महत्वाकांक्षा को समझ कर उनके जीवन में सहयोगी बने, तथा नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी की भावनाओं को समझते हुए #सामंजस्य स्थापित कर उनका आदर करे, तो दोनों पीढ़ियां एक सुखद भविष्य की ओर अग्रसर होती हैं। बच्चों को अनुभव के साथ अच्छी सुरक्षित परवरिश मिलेगी, तथा बुजुर्गों को मान सम्मान के साथ उचित सेवा व देखभाल, अन्यथा दोनों ही पीढ़ियां सुखी नहीं रह सकती और ना ही तरक्की कर सकती हैं। लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं में भी बदलाव आया है। जीवन में हम #बुजुर्ग अपने अहम् को त्याग कर अपनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर फिर आनंददायक जीवन की शुरुआत करें, एवं अच्छे समाज एवं राष्ट्र का निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। यह जिम्मेदारी हम बुजुर्ग व्यक्तियों की बनती है, जिसमें युवा भी सहयोग करें। लेकिन शुरुआत हम बुजुर्गों को ही करनी चाहिए, बड़प्पन भी इसी में है। कब तक झूठे अहम के साथ जिएंगे। सूखे ठूंठ की तरह अकड़ना क्या उचित है, नहीं तो टूटने के लिए तैयार रहें। थोड़ा धैर्य व व्यवहार में लचीलापन तो होना ही चाहिए।
                       

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

कृतज्ञता व्यक्त करना सीखिए

✍️
Be thankfull, smile & say thank u----------
कृपया, प्लीज़, धन्यवाद,सॉरी, माई प्लैजर, मुझे खेद है या खुशी हुई  आदि छोटे छोटे शब्द हमारी बातचीत में गरिमा,शालीनता, आकर्षण व स्थायित्व प्रदान करते हैं। विनम्रता का पुट देते हैं। भाषा आपकी कोई भी हो सकती  है। कहने का अपना कोई अलग अंदाज हो सकता है।
प्रतिदिन कहे जाने वाले ये छोटे से शब्द आप में कृतज्ञता की भावना पैदा करते हैं।जिससे अवसाद भी कम होता है।
इस तरह के लोगों में कठिन परिस्थितियों तथा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता ज्यादा होती है। उनका सोचने का नजरिया पहले से ज्यादा आशावादी ही जाता है। आशावादी दृष्टिकोण अपनाने से मानसिक तथा शारीरिक रूप से भी व्यक्ति स्वस्थ रहता है। किसी के प्रति आभार जताना आपको हैल्थी लाइफ स्टाइल की ओर प्रेरित करता है।धन्यवाद कहने की आदत आपके लिए एक प्रभावशाली टॉनिक साबित हो सकती है।
धन्यवाद या थैंक्यू कहने में हम् सबसे ज्यादा कंजूसी करते हैं।*हम कहना चाहते हुए भी अभ्यास न होने के कारण इन शब्दों को बोल ही नहीं पाते*। कुछ लोगों का मानना है हमने काम कराया उसका पैसा दिया फिर धन्यवाद या थैंक्यू की क्या आवश्यकता।*लेकिन धन्यवाद बिना पैसे की वह सौगात है जो देने और पाने वाले दोनों को अंदर तक गदगद कर देती है।* इस तरह का व्यवहार आपकी लोकप्रियता को  तो बढ़ाता ही है, आपके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है, सन्तुष्टि का भाव रहेगा।
धन्यवाद कहने से आपके सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती हैै, तथा खुशी का स्तर बढ़ता है।
यह शब्द  उन लोगों के लिए भी लाभदायक साबित हो सकता है *जो अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने में संकोच या कठिनाई महसूस करते हैं।* ऐसा करने से मन मे उत्पन्न  नकारात्मक विचारों से भी छुटकारा मिलने  में कुछ मदद हो सकती है। और कुछ हो न हो मन को सन्तुष्टि का अहसास तो होता ही है।
विनम्रता से अहंकार नहीं होता व्यक्ति झुकना सीखता है। जिससे जीवन मे रंग भरता है, प्रसन्नता महसूस होती है। जिस किसी से भी आप को जो मिला है, उसके प्रति कृतज्ञता का बोध होने पर  आप अपने मन मे उन सब के लिए धन्यवाद, शुक्रगुजार होंगे।
`Mercy is twice blessed' की तरह धन्यवाद भी देने और पाने वाले दोनों को अंदर तक गुदगुदा देता है। हमारे धन्यवाद (शुक्रगुजार होने का तरीका) कह देने मात्र से सामने वाले की थकावट दूर हो जाती है, वह अपने आप को सम्मानित महसूस करता है कि आपने उसको  सम्मान, तवज्जो दी। साथ ही स्वयं आपको भी संतोष मिलेगा, अच्छा लगेगा।
पर अंत में एक विशेष बात *यह सब कुछ #दिल की गहराइयों से होना चाहिए, ऐसा न हो कि बस किसी अपना काम निकलवाया या अपना उल्लू सीधा किया और टिका दिया `थैंक्यू'। इस तरह की हरकतों से इन शब्दों का कोई औचित्य नहीं रह जाता।बस एक *बिज़निस डील*बन कर रह जाते हैं। इन शब्दों के दिल के साथ प्रयोग से आपके व्यक्तित्व में निखार आता है।और #दिखावटी लोगों का व्यक्तित्व  कभी आकर्षक तथा टिकाऊ यानि मन  में छाप छोड़ने वाला तो नहीं हो सकता।
So,Say thanks heartily.

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे बने

✍️बच्चों में पढ़ने की आदत डेवलप करें ____
आज बच्चों में पढ़ने की आदत नगण्य होती जा रही है। बच्चे कोचिंग कर लेंगे, कुछ जानकारी चाहिए तो गूगल पर सर्च कर लेंगे, लेकिन स्वयं पढ़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। यह आज की सबसे बड़ी समस्या होती जा रही है कि बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं, बिगड़ रहे हैं। जबकि सच तो यह है कि बच्चे नहीं, सब ही बिगड़ रहे हैं। इसका मूल कारण, घर का माहौल है, बड़े बुजुर्ग हो या माता-पिता सभी अपने अपने टीवी सीरियल्स, मोबाइल में बिजी हैं, बच्चों पर ध्यान ही कौन दे रहा है। फिर किसको दोष दें। दादी बाबा हों या नानीनाना, कितने बुजुर्ग हैं जो सुबह उठ कोई धार्मिक ग्रंथ या अच्छा साहित्य पढ़ते हैं। सबकी भोग प्रवृति बढ़ती जा रही है, फिर बच्चों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं। इस तरह पूरी पीढ़ी ही बर्बाद की ओर अग्रसर होती दिख रही है।
बच्चे पढ़ने के बजाय मोबाइल आदि पर ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं, यह एक बहुत बड़ी समस्या है। शुरू में छोटे बच्चों को मोबाइल देकर मातापिता खुश होते हैं, और बाद में माता पिता भी उनकी इन आदतों से परेशान हो जाते हैं, कि बच्चे पढ़ते क्यों नहीं है। लेकिन यह सही है अगर माता-पिता किताब, अखबार आदि पढ़ेंगे, तो बच्चे भी पढ़ना सीखेंगे। क्योंकि बच्चे देखकर ही सारी चीजें सीखते हैं। हम वीडियो गेम और टीवी में व्यस्त रहें, और बच्चे पढ़ें यह कैसे संभव है। बच्चों में #रीडिंग #हैबिट्स डेवलप करने के लिए पैरेंट्स उनके साथ कम से कम पंद्रह, बीस मिनट किताबें अवश्य पढ़ें। बच्चों को केवल आदेश देकर पढ़ने बिठा देना समस्या का हल नहीं है। उन्हें सिखाएं, बच्चों को नई बातें सिखाने के लिए रोचक तरीके,

रंग, आवाज और आकार का उपयोग करें। बच्चों के साथ रोजाना साथ बैठकर कम से कम आधा घंटा कुछ न कुछ किताब अवश्य पढ़ें, तब ही बच्चों में पढ़ने की आदत डेवलप होगी। क्योंकि बच्चे आपका आदेश कभी नहीं मानेंगे, डर से भी नहीं। लेकिन वो आपकी नकल अवश्य करेंगे, इसलिए बच्चे को जिस सांचे में ढालना चाहते हैं, वैसा ही आचरण कीजिए।