शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

ट्री हग थैरेपी

ट्री हग थैरेपी, वृक्ष आलिंगन चिकित्सा (१ )__
क बार हम गोर्वधन अपने गुरुजी के यहां पहुंचे, परिक्रमा करने के बाद थक चुकी थी, कुछ भी करने की बिल्कुल हिम्मत नहीं हो रही थी। वहां पर कई कल्पवृक्ष, रुद्राक्ष, जामुन, नीम, पीपल आदि के बड़े बड़े पेड़ है। कुछ शिष्य उससे लिपटते, चूमते और ऐसा लगा मानो कुछ कह रहे हों। मेरी प्रश्नवाचक दृष्टि देख भाई ने कहा, हां हां तुम भी कर सकती हो, अपनी थकान मिटा सकती हो। इसको लिपट कर आप जो चाहो मांग सकती हो या अपने दुख जो हो वो कह सकती हो। उस समय मेरा शरीर दर्द से परेशान तो था ही, भाई की बात पर उसी वक्त मुझे पिता जी की भी बहुत पुरानी बात याद आ गई। एक बार उन्होंने ऐसा ही दर्द होने पर कहा था जाओ उस पेड़ से लिपट जाओ। मैं बिना संकोच, बिना कोई दूसरा ख्याल मन में लाए उस विशालकाय कल्पवृक्ष से लिपट गई, खूब बातें की। इस तरह जी भर कर प्यार किया, मन में एक अजीब सी खुशी महसूस हुई और देखते ही देखते फिर जैसे एक जबरदस्त चमत्कार (Miracle) हुआ। सरदर्द, थकान भी गायब हो गई। लेकिन कुछ दिनों बाद देखा तो वृक्ष सूख गया था भाई ने खूब मजाक बनाया, लो तुम्हारी इतनी सारी मुसीबतें थीं कि वृक्ष को शहादत देनी पड़ी। हालांकि वृक्ष बाद में हरा भरा हो गया था। वजह कुछ भी हो सकती है। 
मुझे जब भी ऐसे मौके मिलते हैं, मैं ऐसा करती हूं। सुख या दुख पेड़ों को बाहों में समेट कर महसूस करना, जो एनर्जी और मानसिक सुख मिलता है उसे समझ समझ पाना मुश्किल है। किसी दिन किस्मत से आपको यह मौका मिले तो चूकिए मत। पेड़ों के करीब जाना उनके आलिंगन करना उन्हें चूमना उनसे बातें करना अपना सुख-दुख साझा करना आपको ... तमाम नेगेटिविटी से मुक्त करता है । क्या पता इसी वजह से तुलनात्मक रूप से स्वस्थ महसूस करती हूं। आप भी इसे आजमा कर देखिए। कोई बड़ा सा वृक्ष दिखे तो लिपट जाइए। 
इस तरह जो एनर्जी और मानसिक सुख मिलता है उसे समझा पाना मुश्किल है। सरदर्द, तनाव, डिप्रेशन, मानसिक थकान, नकारात्मकता से ग्रस्त लोगों को हर दिन एक बड़े वृक्ष से अवश्य लिपटना चाहिए। वृक्षों से प्यार जताने लिपटने और अटखेलियां करने से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। आपको कुछ अलग अनुभव हो सकते हैं, लेकिन दूसरों से इस तरह से साझा नहीं कर पाते यह आसान नहीं है। वृक्षों से लिपटने, प्यार जताने, अठखेलियां करने से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। वृक्षों में हीलिंग पावर होती है। अपने देश की पुरानी संस्कृति के बारे में इतना कुछ है, जानिए तो सही क्रमशः ___
__ मनु वाशिष्ठ 


गुरुवार, 21 सितंबर 2023

नेचुरोपैथी द्वारा नव प्रसूताओं के लिए जानने योग्य कुछ सामान्य बातें

नेचुरोपैथी द्वारा नव प्रसूताओं के लिए जानने योग्य कुछ सामान्य बातें __
किसी भी महिला के लिए मां बनना एक जबरदस्त एहसास है आप अपने नन्हे-मुन्ने के स्वास्थ्य की चिंता करती हैं, लेकिन एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति “स्वयं की" देखभाल करना भूल जाती हैं। हमेशा ध्यान रखें अगर आप स्वस्थ हैं, तो आप अपने बच्चे को भी स्वस्थ रख सकती हैं। प्रसव के बाद का समय नई मां के लिए शारीरिक रूप से थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। आमतौर पर सभी परिजन गर्भावस्था के दौरान जितना ध्यान रखते हैं, उतना डिलीवरी के पश्चात नहीं रखते हैं। डिलीवरी के बाद व्यवहार, त्वचा और बालों में भी काफी बदलाव आते हैं। नौ महीनों की गर्भावस्था के बाद महिला को एक नई भूमिका “मां" की भूमिका निभानी होती है। उनके लिए बच्चों की देखभाल कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है। यह आलेख इसी विषय पर आधारित है।
नव प्रसूताओं के लिए जानने योग्य कुछ और सामान्य बातें जिनको अक्सर नजरंदाज कर दिया जाता है। बच्चे की देखभाल में परिवार का सहयोग आवश्यक है। किसी प्रकार का संकोच न करें। सीढ़ियां चढ़ने, भारी सामान उठाने से बचें, साथ ही खड़ी चढ़ाई वाली जगह पर भी चलने से बचना चाहिए। ऐसा कुछ भी ना खाएं जिससे कब्ज, गैस होती हो। हल्का भोजन लें, गरिष्ठ भोजन करने से बचें। सौंफ, जीरा और अजवाइन से ब्रेस्ट में दूध बढ़ाने में मदद मिलती है। इसलिए इन तीनों चीजों को हल्का भूनकर पाउडर बना लें। इसे गुड़ के साथ मिलाकर/सुबह शाम दूध के साथ/या रोटी में मिलाकर ले सकते हैं। इससे प्राकृतिक तौर से ब्रेस्ट दूध बनने लगेगा।
सिजेरियन के बाद पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है, तथा घाव भरने में भी समय लगता है, इसलिये सुपाच्य भोजन लें। मसालेदार, कब्ज करने वाला भोजन, खांसी करने वाली चीजों से दूरी रखें। सिजेरियन के लगभग डेढ़ महीने बाद तक कार चलाना ठीक नहीं है। ब्रेक आदि लगाने पर यह नुकसानदायक हो सकता है। ऐसा कोई काम ना करें जिससे आंखों पर दबाव पड़ता हो, तेज रोशनी से बचें। ये तो व्यवहारिक दिनचर्या है, इसके साथ ही कुछ आहार संबंधी जानकारी भी आवश्यक है, जिससे नव प्रसूता शारीरिक मानसिक रुप से स्वस्थ रहे। इसके लिए एक “आहार तालिका" को बना सकते हैं, जिससे रोजाना ज्यादा सोचना नहीं पड़ेगा।
नव प्रसूताओं के लिए आहार सूची ___
नाश्ता 8:00,8:30 __ 
सूजी की खीर/ दूध दलिया/ दाल दलिया/सैंडविच/ पनीर परांठा/ओट्स /उपमा/ दलिया सब्जी वाला (गाजर घीया आलू टमाटर) हींग जीरे में छौंक कर।
नाश्ते और लंच के मध्य __11:00,11:30
चना कोमरी/फ्रूट/लड्डू/चिक्की
दोपहर भोजन _2:00,2:30
एक कटोरी दाल पालक/चावल/सब्जी (घीया, तोरई, टिंडे, पनीर, मैथी, पालक आलू) चपाती (हींग, अजवायन, मोयन की आटा गलाकर) 
शाम__ 4:00,4:30 
गर्म दूध /सोया दूध/चाय/ बिस्किट, भुने चने किशमिश गुड़, टोस्ट, चिक्की, लड्डू , मखाने, मुरमुरे।
रात्रि __ 8:00,8:30
चपाती, हरी सब्जी रसेदार, सोते वक्त दूध।
मैथी पत्ते, पालक विटामिन सी आयरन का बढ़िया स्त्रोत है, इसमें कैलोरी बहुत कम होती है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए प्रोटीन के लिए सीमित मात्रा (गैस बने तो न लें) में दालें, राजमा, बींस अति आवश्यक है। खुबानी, गाजर, खजूर अच्छे विकल्प हैं।
नव प्रसूताओं के लिए पौष्टिक नाश्ता #हरीरा __
हरीरा बनाने की सामग्री__ गुड़ 200ग्राम, दो कप पानी, दो बड़े चम्मच घी, एक चम्मच सौंठ, एक चम्मच जीरा पाउडर, आधा चम्मच हल्दी, चौथाई चम्मच पिसी अजवायन, चौथाई चम्मच पिसा जीरा सौंफ, चौथाई चम्मच काली मिर्च, कसा नारियल आधा कप, बादाम/छुआरे/मुनक्का/किशमिश/मखाने कटे हुए आदि ड्राई फ्रूट्स मनपसंद इच्छानुसार। छोटी इलायची पाउडर भी डाल सकते हैं।
स्टेप 1__ एक बर्तन में दो कप पानी डालकर उसमें गुड़ डालकर घुलने तक उबालिए।
स्टेप 2 __ कड़ाही में दो बड़े चम्मच घी डालकर गर्म करिए। सौंफ, जीरा, अजवायन, हल्दी, काली मिर्च पाउडर डालकर मिलाएं। ध्यान रखें जले नहीं।
स्टेप 3 __ अब सारे कटे हुए मेवे, कद्दूकस किया हुआ नारियल डाल कर धीमी आंच पर भून लीजिए।
स्टेप4 __ अब इस भुनी सामग्री में गुड़ के घोल को (छान लें ताकि कोई गंदगी न रहे) डालकर मिलाएं। कुछ देर उबलने दें, उंगली पर चिपका कर देखें, उंगली पर चिपकना चाहिए, ताकि फिर दस पंद्रह दिन तक प्रयोग कर सकते हैं। अन्यथा सामान्य भी उबाल कर ताजा ताजा ले सकते हैं। लीजिए स्वादिष्ट पौष्टिक हरीरा तैयार है। इसमें गौंद को घी में भून, पीसकर भी मिला सकते हैं। उत्तर भारत में नव प्रसूताओं को बुजुर्ग महिलाओं द्वारा यह #हरीरा अवश्य खिलाया जाता है, ताकि जच्चा बच्चा दोनों की सेहत अच्छी रहे। यह गर्म गर्म खाने में बहुत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है।
ध्यान दें __ 
1_ प्रोटीन से भरपूर नाश्ता आपको हेयर फॉल से बचाएगा, साथ ही मांसपेशियो को मजबूती प्रदान करता है।
2 _ नाश्ते के बाद व लंच से पहले घर पर बने हुए गौंद के लड्डू चिक्की आदि ले सकती हैं। गौंद के लड्डू आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन से भरपूर होते हैं। सर्दियों में तो बहुत ही फायदेमंद होते हैं। ये जोड़ों व इम्यूनिटी के लिए बहुत अच्छे रहते हैं। 
3 _ बथुआ, पालक, सरसों, मैथी आदि हरी पत्तेदार सब्जियां आयरन, कैल्शियम, विटामिन सी और फायबर का अच्छा स्रोत होती हैं, इन्हें भोजन में शामिल करें। इसके अलावा नारियल की चटनी इडली सांभर के साथ ले सकती हैं। इस तरह का आहार, न्यूट्रीशन युक्त होकर आपको एनर्जी से भर देगा।
4 _ मिक्स वेजिटेबल्स या घीया, कद्दू, टमाटर आदि का सूप ले सकते हैं।
5_ तीन बार भारी भोजन करने के बजाय दिनभर थोड़ा-थोड़ा खाएं। कोशिश करें और दिन में कम से कम 5 या 6 छोटे छोटे मील, सुविधानुसार तरीके से भोजन करें।
6_ अपना भोजन हर 2 घंटे पर करें।सुविधाजनक तरीके से नट्स या फल बीच-बीच में ले सकते हैं।
7_ नवजात शिशु के साथ आपको आपकी नींद कभी भी पूरी नहीं हो पाती है, इसलिए जब भी संभव हो आराम करने की कोशिश करें। आपके शरीर की मरम्मत और उपचार में सहायता मिलेगी।
8_ हमेशा घर का बना हुआ एवं ताजा खाना ही खाएं।
9_ रात को दाल खाने से बचें जहां तक हो हरी सब्जियां लें, क्योंकि दाल पचने में थोड़ी भारी होती है।
10_ रात को सोने से पहले दूध में अदरक या सौंठ पाउडर डालकर पीने से मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है। एक दो खजूर/छुआरा डालकर भी पी सकते हैं।
11_ भोजन को जल्दी-जल्दी गटकने से बचें। चबा चबा कर ही खाएं अन्यथा गैस की समस्या हो सकती है।
12_ ऑपरेशन टांकों की जगह पर डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें। घाव वाली जगह को रगड़ कर ना धोएं। हल्के हाथों से गुनगुने पानी, साबुन से साफ करें। 
और सबसे मुख्य बात हमेशा #सकारात्मक रहें, बच्चे को फीड कराते हुए शांत चित्त खुश होकर दुग्धपान कराएं। और बच्चे की व स्वयं की मालिश को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। बच्चा और आप दोनों ही स्वस्थ रहेंगे, नींद भी अच्छी आएगी। Enjoy your maternity period 💕
__ मनु वाशिष्ठ 

शनिवार, 12 अगस्त 2023

प्रकृति और स्त्रियां

✍️एक अच्छी हीलर,

उपचारक होती हैं स्त्रियां 

प्रकृति को रिफ्लेक्ट करती स्त्रियां

स्त्रियां! 🌹
रोप दी जाती हैं धान सी
उखाड़ दी जाती हैं,
खरपतवार सी
पीपल सी कहीं भी उग आती हैं। स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
जीवन दायी अमृता सी,
महके लंबे समय तक,
रजनीगंधा सी
कभी ना हारें,अपराजिता बन छाई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
रजनीगन्धा, लिली
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है
सप्तपर्णी के फूलों से,  मानो
प्रेम माधुर्य की खुशबू आई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
आंसुओं को पी,
बिखेरती खुशबू पारिजात सी
पुनर्नवा सी, दे नवजीवन
ईश्वर की वरदान बन आई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
दिल दिमाग की शांति, 
शंखपुष्पी, ब्राह्मी सी
तुलसी सी पावन
आंगन की शोभा बढ़ाती है।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
सौम्यता मनभावन
चंपा,चमेली,मोगरा,मालती सी
भरदेती सुखसौभाग्य,
अमलतास(स्वर्ण वृक्ष) सी
घर आंगन में मानो,परी सी उतर आई है।स्त्रियां!🌹

__ मनु वाशिष्ठ 

ब्याही जाती हैं लड़कियां

ब्याही जाती हैं लड़कियां __
कहने को तो ब्याही जाती हैं लड़कियां, लेकिन
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, प्रेमी!
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पति! और
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पुरुष!

प्रथम तरह के पति, लाते हैं फूलों के बुके/ तोहफे
दूसरी तरह के पति, लाते हैं जरुरत के सामान
तीसरी तरह के पति,उन्हें कोई सरोकार नहीं  

प्रथम तरह की लड़कियां,सजती हैं गजरे/गहनों में
दूसरी तरह की लड़कियां,गंधाती हैं पसीने मसाले में
तीसरे तरह की लड़कियां,बरती जाती हैं “यूज एंड थ्रो" 

प्रथम तरह की लड़कियां,रहती हैं नाजुक/बिंदास
दूसरी तरह की लड़कियां,निभाती हैं जिम्मेदारियां
तीसरी तरह की लड़कियां,फिट होती हैं सामान की तरह 

प्रथम तरह की लड़कियां,उन्मुक्त मचलती जलप्रपात सी
दूसरी तरह की सुख दुख, खुद में समाहित करती सागर सी
तीसरी विस्मृत/तिरस्कृत मौन की नाव से पार लगाती केवट सी 

प्रथम तरह की लड़कियों के जाने पर,
बिलखते हैं पति! 
द्वितीय तरह की लड़कियों के जाने पर,
उनकी अहमियत समझते हैं पति!
तीसरी तरह की लड़कियों को 
उकसाया जाता है जाने के लिए, 
खत्म किया जाता है मान सम्मान
छीन ली जाती है सोचने समझने की शक्ति
और फिर उनके जाने पर,
“कोई फर्क नहीं" के अहं संग जीते हैं,पुरुष/ पति! 
 __ मनु वाशिष्ठ 

गोरा रंग आज भी सांवले रंग पर भारी

गोरा रंग, आज भी सांवले पर भारी ____
अखबार में किराए के दुकान, शादी ब्याह, व्यापार, रिशेप्सनिष्ट आदि के विज्ञापन वाले कॉलम में निगाह डाली तो एक विज्ञापन में लिखा देखा: गोरी, सुंदर, स्मार्ट लड़की चाहिए। अरे भाई! उनसे ये पूछिए आपको योग्यता नहीं चाहिए क्या, गोरे रंग से ही काम चल जायेगा? सांवले रंग वाली लड़की का जीना कितना मुश्किल होता है, यह किसी सांवली रंगत वाली लड़की से पूछिए। आज भी काली कलूटी, बैंगन लूटी, कल्लो जैसे कई उपनामों से नवाजी जाती हैं। जब तब कई घरवाले भी दुखी होते रहेंगे। कोई दही बेसन, कोई नीबू ग्लेसरीन, कोई कुछ क्रीम व्रीम सी बताते ही रहेंगे, मातापिता से सहानुभूति दिखायेंगे सो अलग। है तो यह गलत बात, पर सच्चाई यही है कि आज भी गोरा रंग सांवले रंग पर भारी है। अंग्रेज तो चले गए, पर गोरे रंग का आकर्षण छोड़ गए। दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर अंग्रेजों ने राज्य किया, शायद उसी का परिणाम है कि गोरा रंग सुंदरता का प्रतीक बन गया। काले रंग को हीन दृष्टि, गुलाम की तरह देखा गया।आज भी गोरे रंग को प्रशंसा की दृष्टि से और सांवले रंग को कमतर आंका जाता है। क्योंकि यह आम धारणा है कि जो सत्तासीन /उच्च पदासीन/ या कुलीन व्यक्ति करते हैं वह श्रेष्ठ है। सत्ता हर चीज का प्रतिमान स्थापित करती है,और आम आदमी में उसको पाने की लालसा बनी रहती है। सत्तासीन लोगों को जो भोजन पसंद होता है, वह स्वाद बन जाता है, जो सत्तासीन पहनावा पसंद करें, वह फैशन का प्रतिमान हो जाता है, यह एक सत्य है। नेहरू जैकेट, अचकन इसका उदाहरण है। समय के साथ बदलते हुए आज मोदी कुर्ते का फैशन है, हालांकि यह आम व्यक्ति पहले भी पहनता था लेकिन उच्च पदासीन लोगों द्वारा किए जाने पर इनको प्रशंसनीय दृष्टि से देखा जाता है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, जंक फूड/ विदेशी संस्कृति से ध्यान हटकर देसी भोजन, मिलेट्स, अपनी संस्कृति की ओर रुझान बढ़ा है।अभिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, संजय दत्त, साधना कट, जया भादुरी स्टाइल और भी कई अन्य इन सबके हेयर स्टाइल युवाओं द्वारा खूब अपनाए गए। ये पसंदगी नई बात नहीं है, कुछ के लिए गोरा रंग सुंदरता का पैमाना माना जाता है, जबकि सुंदरता का गोरे रंग से कोई लेनादेना नहीं है। कई तो गोरेपन के इतने दीवाने होते हैं कि, उन्हें तो दूध भी भूरी भैंस का ही चाहिए। वो यू पी का लोकगीत तो सुना होगा जिसमें नई नवेली पत्नी अपने पति से फरमाइश कर रही है: 
*मैं खाऊंगी कटेमां (थिक जमा हुआ) दही तौ भूरी भैंस कौ जी! 
आज भी कई जगहों पर, गुणों को ताक पर रखकर, रंग को महत्व दिया जाता है। देखने वालों को लड़की गोरी चहिए! बीवी गोरी चहिए! बहू भी गोरी चाहिए! बच्चे भी गोरे चाहिएं! ये कैसा पागलपन है। भले ही बाद में रोना पड़े, लेकिन पहले तो गोरा रंग ही चाहिए। माताएं भी अपनी गोरी बेटियों को देख कर निहाल होती हैं, जैसे इन्होने बड़ी मेहनत का काम किया है। गोरा रंग अतिरिक्त गुण माना जाता है। जब इतनी डिमांड हो तो गोरी लड़कियों के दिमाग भी सातवें आसमान पर होते हैं, उन में भी गुरुर आते देर नहीं लगती, उन्हें लगता है घरेलू काम सांवली लड़कियों के लिए हैं। वैसे सब पर यह बात लागू नहीं होती, फिर भी होती तो है। आज भी गांवों में अपनी गोरी बेटी की शादी में यदि दामाद सांवला मिल गया तो, मांऐं बेटी को विदा करते हुए कैसे रोती हैं: 
*अरे! मेरी मैदा की लोई ए कौव्वा लैकें उड़ गयौ।
उनसे यों पूछा जाय कि वो कौवा ही आपकी बेटी को रखेगा, खिलाएगा पिलाएगा और नखरे भी सहेगा।
वैसे जिस लड़के की पत्नी कहीं गोरी हो तो, उस लड़के की गर्दन में भी मानो कलफ लग जाता है, एक अकड़ सी भरी रहती है, जैसे किला फतह कर लिया हो। वो लड़का बस उसके नखरे ही बर्दाश्त करता रहता है, उस की स्किन को लेकर परेशान रहेगा। जबतब ये गाना गुनगुनाएगा: 
धूप में निकला न करो रुप की रानी, 
गोरा रंग काला न पड़ जाए।
वैसे ये गीत भी सुना होगा,किसी फिल्म वाले ने सही लिखा है: 
*गोरे रंग पै न इतना गुमान कर 
गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा।
एक और गीत की बानगी देखिए :
*गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा।
तौबा खुदा खैर करे, क्या खूब है करिश्मा।।
सांवली है तो क्या उसका आत्म विश्वास तो कम मत करिए, उसे भी चश्मा लगाने का, जीने खुश रहने का हक है, और ये कोई गलत बात नहीं है। इसीलिए हर जगह सांवले रंग वालों को अपने आप को साबित करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। (घर, ऑफिस, नौकरी, समाज कहीं भी देख लीजिए) वैसे सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
एक पुरानौ गीत याद आय गया:
*पानी में जले मेरा गोरा बदन ...
अब ये बताइये गोरे रंग में क्या कुछ रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है? जो काले, सांवले में नहीं होगी।
भला हो अमरोही साहब का, जिन्होंने ये गीत गीत लिखा: 
*कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की बहुत खूबसूरत मगर #सांवली सी।
चलौ, किसी ने तो कद्र जानी सांवले रंग की।विदेशों में महिलाएं धूप में पड़े पड़े, लेट लेट कर काली होने की कोशिश करेंगी, और यहां लगा लगा क्रीम गोरी होने की ... 
वैसे भी किसी साहित्यकार को उठा कर देख लीजिए, सब की नायिका सांवली ही मिलेगी। कालिदास की शकुन्तला सांवली, वाल्मीकि की सीता मईया सांवली, पांडवों की द्रौपदी सांवली, गोरे मजनूं की लैला भी काली थी, प्रेमचन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर की नायिकांएं सांवली थीं। सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
इसका मतलब इतिहास में भी सुंदरता का पैमाना गोरा रंग नहीं था। ये तो विज्ञापनों ने अपना सामान बेचने वाली कंपनियों ने हमारा ब्रेनवाश कर दिया है। गोरेपन की क्रीम, जिसे खुद मैंने कई  महिलाओं को पिछले तीस चालीस वर्षों से फेयर एंड लवली क्रीम लगाते देखा है, और आज की तारीख में भी, जबकि वे महिलाएं, दादी नानी बन गई हैं, किसी को कुछ सफलता नहीं मिली। नौकरी हो या ब्याह शादी, पढ़ाई/ योग्यता सब गौण (सेकेंडरी) लगती है, क्या गोरा होना सही में इतनी बड़ी योग्यता है? अब तो पुरुषों के लिए भी गोरेपन की क्रीम ... राधे राधे 
वैसे ब्रज में अपने तो कन्हैया भी परेशान, बारम्बार मां से पूछते हैं, राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला ... क्या बताएं, अपने कन्हैया की इसी सांवली सूरत पर तो सारा ब्रज, गोपियां दीवानी हो गई थीं। दुनिया में दो ही रंग हैं काला और गोरा। चमड़ी का रंग चाहे कैसा भी हो पर मन काला नहीं होना चाहिए। जय बंसी वाले की।। 
__ मनु वाशिष्ठ 

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

संस्मरण, ब्रज रज की महिमा रमण रेती __

संस्मरण, ब्रज क्षेत्र की महिमा #रमण रेती __ 
यूं तो सभी मानते हैं, मथुरा तीन लोक से न्यारी है। हो भी क्यों नहीं अपने आराध्य श्री कृष्ण का बचपन यहीं बीता है। ब्रज के तो लता पता, वन उपवन, कुंज निकुंज, नदी घाट, कण कण में प्रभु का आभास होता है। ब्रज भूमि का कण कण श्री कृष्ण में समाया है, या कहें कृष्ण कण कण में समाए हैं। ब्रज भूमि श्री कृष्ण की लीलाओं, कथाओं और उनके चरणों से पावन, शुद्ध एवं श्रद्धेय है। यहां हर जगह आपको चमत्कार ही चमत्कार मिलेंगे। ऐसा ही एक क्षेत्र है रमण रेती! रमण का शाब्दिक अर्थ है लोटपोट होना, तथा रेती का मतलब है रेत/ रज/मिट्टी/बजरी/माटी आदि। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण बाल्यावस्था में अपने सखा ग्वाल बालों के साथ यहां पर खेला करते थे, और रेत में लोटपोट होते थे, इसीलिए इस का नाम रमण रेती पड़ा साथ ही इस मिट्टी को लेकर गजब की मान्यताएं भी हैं। रमण रेती के बारे में जानकार आपको भी वहां पहुंचने की उत्सुकता रहेगी। 
मथुरा से पूर्व में गोकुल लगभग (10 किमी.) तथा महावन (19 किमी.) के लगभग बीच में यमुना नदी के किनारे स्थित रमण रेती एक अत्यंत रमणीक स्थल है। यहां रमण बिहारी जी का मंदिर है। भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में यहां अपने बाल गोपालों, सखाओं संग खूब लीलाएं की हैं एवं यहां की रज में लोटपोट हुए हैं। ब्रजभूमि के गोकुल में रमण रेती मंदिर में कुछ वर्षों ( मेरी याद में चालीस पैंतालीस वर्ष) १९७८में आई बाढ़ से पूर्व तक, चारों ओर रेत ही रेत थी। जहां हाथ से ही जरा सा रेती कुरेदने पर जमुना जल निकल आता था, चारों ओर पीपल और कदंब के वृक्ष थे, लेकिन अब सब बदल गया है, यहां संतों की कुटियां बन गई हैं आश्रम बन गए हैं, जिनसे कुछ सुविधा भी है लेकिन प्राचीन सौंदर्य नष्ट हो रहा है। खेलकूद, खानेपीने की दुकानें, मनोरंजक बाजार से तीर्थ स्थल भी पर्यटन स्थल बनते जा रहे हैं। यह धार्मिक आस्था पर आघात करने जैसा है।
यहां की पवित्र ब्रजरज बीते युग की कहानियों की साक्षी है। जब भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और उनके सखा बाल गोपालों के साथ दिव्य लीलाओं (रमण) में शामिल होने के लिए आते थे। यह वह स्थान भी है, जिसे श्री कृष्ण ने वृंदावन की यात्रा पर निकलने से पहले राधा से मिलने के लिए चुना था।
रमण रेती के निकट एक प्रसिद्ध कार्ष्णि आश्रम है, जिसमें प्राचीन रमण बिहारी जी मंदिर है। कहते हैं 18वीं शताब्दी के सिद्ध संत आत्मानंद गिरि को समर्पित इस मंदिर में, भगवान कृष्ण की मूर्ति ठीक उसी रूप में स्थित है, जैसा कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके कठोर तपस्या के आशीर्वाद स्वरुप प्रकट हुई थी। प्राचीन मंदिर के जर्जर होने के कारण, रमण बिहारी जी को नए मंदिर में विराजमान किया गया है। मंदिर में राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। यह स्थान सुंदर मंदिर, संतों महात्माओं और तीर्थ यात्रियों के लिए श्रद्धा भावभक्ति से पूर्ण क्षेत्र है।यहां जो भक्त दर्शन करने के लिए आता है वह रेत में लेटे बिना नहीं जाता। बताया जाता है कि जो भी सच्चे मन से कुछ मांगता है उसकी हर इच्छा, दर्शन करने से यहां पूरी होती है।
कहते हैं कि द्वापर युग में बाल गोपाल के समय, आज के रमण बिहारी मंदिर के स्थान पर जंगल था और इस जगह पर भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेला करते थे। एक दिन जब बाल गोपाल खेल रहे थे तब गोपियों ने उनकी गेंद चुरा ली, तब भगवान ने रेत को ही गेंद बना बना लिया और उससे खेलने लगे। इसलिए इस मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है। आज भी बच्चे बड़े रेत से गेंद बना कर एक दूसरे को मारते हैं, इस रेत से न केवल बीमारियां दूर होती है बल्कि आपको एक अलग तरह की मानसिक शांति भी मिलती है। 
आईए जानते हैं यहां की रेती  (रज) के बारे में कुछ खास बातें __ 
जैसा कि यहां के पुजारी जी ने बताया कि रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है, एवं रमणरेती की रेती से बीमारियां सभी दुख व कष्ट दूर होते हैं। भक्तजन यहां पर रेत में लेटते हैं ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें, क्योंकि बालकृष्ण यहां पर खेले थे। जिसकी वजह से यह जगह बहुत पवित्र है। 
मथुरा गोकुल के रमण रेती मंदिर में हर तरफ रेत ही रेत है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है बिना रेत में लेटे नहीं जाता। 
रमण रेती आने वाले भक्त यहां की रेती/रज का तिलक लगाते हैं, जिससे उन्हें श्री कृष्ण के चरणों को माथे पर लगाने का परम आनंद बोध होता है। 
मंदिर की रेत /रज में लोग नंगे पैर चलते हैं, रेत में कोई कंकर नहीं होते हैं, और नंगे पैर चलने में बहुत अच्छा लगता है।
यहां कई तरह की मान्यताएं हैं, इस रेत से बीमारियां दूर हो जाती हैं। भक्त मानते हैं कि यहां की रेत को घुटने व जोड़ों पर रखने से दर्द समाप्त हो जाता है। इसलिए वे बहुत देर तक यहां बैठे रहते हैं।
लोग यहां आकर लोटते हैं, ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें। मान्यता है कि बाल श्री कृष्ण यहां खेले हैं, इसलिए यह पवित्र है।
रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे पर मारने से पुण्य मिलता है, सारे दुख दूर होते हैं। 
बहुत से लोग इस रेत से घर भी बनाते हैं, मान्यता है कि ऐसा करने से उनके अपने घर का सपना (मनोकामना) पूरा हो जाता है। 
मंदिर के रेत में लोग नंगे पैर चलते हैं, कोई भी जूता चप्पल पहनकर नहीं जा सकता।
रमणरेती की रेत को बहुत पूजनीय माना जाता है, कई लोग इसको अपने घर भी ले जाते हैं।
फाल्गुन मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। रमण रेती के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि होली का त्यौहार पारंपरिक रंगों के बजाय रेत से खेला जाता है।
रमण रेती रेतीला स्थान है, जो एक विशाल परिसर में फैला हुआ है। यहां कार्ष्णि आश्रम के सामने एक हिरण अभयारण्य भी है, जिसमें लगभग ३००/४०० हिरण हैं, जिनमें कुछ काले हिरण, खरगोश, शुतुरमुर्ग भी हैं।  
यहां पर संत आत्मानंद गिरि आए थे, माना जाता है कि उनको भगवान श्री कृष्ण ने साक्षात दर्शन दिए थे इसीलिए भी यह स्थल काफी सिद्ध माना जाता है। साथ ही संत रसखान ने भी यहां तपस्या की, रमण रेती कवि रसखान की तपस्थली रही है, यहां उनकी समाधि स्थल भी है। 
_ मनु वाशिष्ठ 

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

ब्रज में नाश्ता

ब्रज का नाश्ता __
कोई मुझसे पूछे ब्रज क्षेत्र का मुख्य नाश्ता क्या है? तो मुझे तो ब्रज क्षेत्र में मुख्य नाश्ता जलेबी, कचौरी/बेड़ई ही लगता है। यहां ब्रज क्षेत्र में, आपकी डाइनिंग टेबल पर प्लेट में सजी गोरी अंग्रेज बाला सी इठलाती ब्रेड मक्खन को कोई तवज्जो नहीं देता। इसकी पूछ होती होगी मेट्रो सिटीज में ब्रज वासियों की बला से, यहां तो राज श्री राधे रानी का, और नाश्ते में स्वाद जलेबी, कचौरी/ बेड़ई का। यमुना जी में स्नान कर लौटते हुए कई भक्त, जलेबी बेड़ई को उदरस्थ किए बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हलवाई भी भोर से ही काम पर लग जाते हैं। आप कितनी भी जल्दी में हों, बस, ट्रेन पकड़नी हो, कोर्ट कचहरी में तारीख हो, लेकिन किसी दुकान की लोहे की कढ़ाही से आती हुई, गरम मसालेदार आलू, खट्टी मीठी कद्दू की सब्जी और बेड़ई की महक आपके दिमाग को चेतना शून्य और पैरों में मानो बेड़ी डाल देते हैं। आप सब कुछ भूल दुकान की ओर बिन डोर खिंचे चले जाते हैं। गरम तेल में घूमर नृत्य करती एक एक बेड़ई, “छन छनन छन" की आवाज के साथ झूमती हुई जब आपकी आंखों के सामने से गुजरती हैं, फिर एक साथ ग्रुप बना एक लय में सिंकती हैं, तो आप उसके सुनहरे तांबई रंग को देख जड़वत् खड़े रह जाते हैं। 
ना कोई मोल ना भाव बस! इंतजार में कि कब कृपा प्राप्त होगी। ऐसी लगन तो मंदिर में भी नहीं लगी और ऐसे में दुकानदार का कारिंदा आप पर जैसे मेहरबान हो कर सब्जी, बेड़ई का दौना आप के हाथ में थमा देता है, इतनी मारामारी के बीच कचौड़ी/बेड़ई का दौना मिलना, अहोभाग्य! फिर आती है बारी जलेबी की, तब तक बेसुध व्यक्ति अपने होश में आ चुका होता है। तब वह जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घर के लिए भी पैक करवाने का आदेश जारी कर, स्वयं दौने की सफाई में जुटा रहता है।
किसी जलेबी कचौरी की मशहूर दुकान पर गौर कीजिए, हाई बी पी वाला उतावला व्यक्ति भी यहां धैर्य धारण किए तपस्वी जान पड़ता है। यहां जाति, धर्म, अमीर, गरीब, क्षेत्र से ऊपर उठकर सब बड़े प्रेम से भाईचारे के साथ अपनी अपनी बारी का इंतजार करते हैं। लेकिन लखनवी अंदाज “पहले आप, पहले आप" वाली विचारधारा यहां लागू नहीं होती, क्योंकि इतनी देर में तो बेड़ई की परात खाली हो जाती है। राधे राधे! फिर मिलेंगे ब्रज क्षेत्र के किसी और विषय को लेकर।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान