मंगलवार, 28 मई 2019

सच पर तरस!



✍️ सच पर तरस!
भरे बाज़ार में, सच की दुकानों पर है सन्नाटा,
तिजारत झूठ की चमकी है, मक्कारी की बातें हैं।
                                              - हिना रिज़वी
कथा सुनें सत्यनारायण की,
प्रभु को बहकाने चला है
श्रद्धा रखें झूंठ में और
आरती के थाल सजाने लगा है....
जाने क्यों सच पर,
अब तो तरस आने लगा है
झूठ अपनी चालों पर,
सीना तान बहुत इतराने लगा है....
सुना था,
झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता
लेकिन अब तो
ताउम्र भी पैर जमाने लगा है....
कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते
लेकिन पहन केलीपर
झूठ के, मैराथन की
दौड़ लगाने लगा है.....
कहते हैं
झूठ कड़वा होता है, इसलिए
कौवे जैसा सच नहीं बोलें
अन्यथा लटके रहोगे चमगादड़ की तरह
उलटे पांव पेड़ पर, ताउम्र...
क्या कभी झूठ दंडित हो पाएगा
कहीं ऐसा ना हो,
लोग सच को ही समझें गाली
और इस तरह केवल झूठ पर ही 
बड़ी निष्ठा के साथ भरोसा किया जाएगा.....
ए दुनिया! मैं (सच) नहीं तेरे लायक,
इसीलिए शायद मुझे (सच)
इस दुनिया से
विदा किया जाएगा....
लेकिन! नहीं मैं (सच) कहीं नहीं जाऊंगा
ना ही हार मानूंगा!
मुझे भेजा ही इसीलिए गया है
मेरा विश्वास बहुत गहरा है
झूठ एकदिन रोएगा, गिड़गिड़ाएगा
अंत समय में मुझसे माफी भी मांगेगा
बस, फर्क इतना है, तब मैं माफी
नहीं दे पाऊंगा,तुम से पहले ही
मैं (सच) चला जाऊंगा
हमेशा के लिए अपराधबोध देकर
तब तुम्हें मेरे होने का महत्व समझ आएगा....

2 टिप्‍पणियां:

  1. कटु सत्य, शायद ही कोई पचा पाए, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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