गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

कह मुकरी ( मुकरिया)

✍️ (कह मुकरी) मुकरिया_ एक विधा काव्य की, जिसमें कारण कुछ बताए जाते हैं, और बात कुछ और होती है। हास परिहास, दुख वेदना, सभी भावों को स्पष्ट करने में सक्षम, यह काव्य की पुरानी मगर बेहद ही खूबसूरत सरल विधा है। यह दो सखियों के परस्पर वार्तालाप पर आधारित है। इस में एक सखी अपने पति/ साजन/ प्रेमी के बारे में मन की कोई बात कहती हैं, परंतु जब दूसरी सखी उससे यह पूछती है, कि क्या वह अपने प्रेमी साजन के बारे में बात कर रही है तो वह संकोचवश अपनी ही कही हुई बात से मुकर जाती है, और उसे मना करते हुए किसी दूसरे परिदृश्य/घटना/कल्पना के बारे में कहना बता देती है। उसी विधा में सखियां ही नहीं, मित्रों के बीच संवाद का एक #प्रयोगात्मक प्रयास __
1 ___
ओहो!ये भी ना,उसकी आवारा सी हरकत
चूमना 
माथे, गालों को और बेखौफ! गले से लिपटना 
कौन है सखी? वो सजन प्रियतम!या कोई लंपट 
नहीं सखि!वो तो है,उड़ती बालों की उलझी #लट!✓
2 ___
नींद से बोझल आँखें,और बंद होती पलकों के बीच 
कर देती है बेचैन, वो तेरे जरा सी आने की उम्मीद 
क्या वो है प्रेमी! साजन .. या महबूब मुरीद ?
नहीं री सखी! वो तो है #दोपहर की नींद ✓
3 ___
प्रातः उठने और जगने के बीच अलसाई सी 
कुछ तो बात है,ना मिले तो बड़ा तड़पाती 
होठों से लगाते ही,नींद की खुमारी भाग जाती 
मित्र! कौन है वो प्रिया? हसरतों वाली
नहीं मित्र! वो तो है चाय!..#आसाम वाली✓
4 ___
रोज सवेरे छत पे दिखती,वो भी मेरा इंतजार है करती
इधर फुदकती उधर फुदकती,कंधे पर है सर वो धरती
कौन है वो महबूबा, या है आसमान की परी?
नहीं मित्र! वो तो है मासूम सी गिलहरी!✓
5 ___
मैं रोकर गुजारा नहीं करता
वो हंस के जीने नहीं देती 
ना रात को चैन, ना दिन को आराम
कौन है वो? पाषाण हृदय महबूबा...!
नहीं मित्र! 
वो तो है, #जिंदगी! एक अजूबा!✓
____ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान 

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