बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

बच्चों की परवरिश में छूटते संस्कार, जिम्मेदार कौन ?

बच्चों की परवरिश में छूटते संस्कार, जिम्मेदार कौन ?  
हैलो पैरेंट्स!
जीवन को देती,नई संभावनाएं।
नन्हे बीज में छुपी,कई आशाएं।।
धर्म वह है जिसमें आप किसी उच्च शक्ति के साथ मनुष्य के संबंधों के बारे में सकारात्मक विश्वास करते हैं। कोई शक्ति है जो पूरे ब्रह्मांड को संचालित करती है, और यदि हम परेशानी में होते हैं तो हमारी सहायता करती है, गलत होने पर दंडित करती है, सही करने पर आत्मिक शांति का अनुभव होता है। इसे आमतौर पर पाप पुण्य के द्वारा समझाया जाता है। अगर आप अपने बच्चों को धर्म नहीं सिखाएंगे तो कोई और उन्हें अधर्म सिखाने में कामयाब हो जायेगा। आज पैरेन्टिंग में, मैं मां को ज्यादा महत्व दे रही हूं। वैसे तो दायित्व मातापिता दोनों का ही है, फिर भी मां का मान, महत्व एवं योगदान एक पायदान अधिक है, वह सृजनकर्ता है। गर्भ से ही मां की सृजन शीलता शुरू हो जाती है, उसके आचार विचार, खानपान सभी चीजों का उसके अजन्मे शिशु पर प्रभाव पड़ता है। कहते हैं एक अच्छी मां सौ गुरुओं के बराबर होती है। बच्चे के लिए मां ही प्रथम स्कूल है। जितने भी महान लोग हुए हैं, उनके व्यक्तित्व चरित्र निर्माण, भविष्य संवारने एवम् सूरज की तरह चमकने में मां की परवरिश का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ऐसी ही मांओं में से एक शिवाजी की मां जीजाबाई का प्रसंग पढ़ने में आया, जिन्होंने वीर शिवाजी के बालमन में राष्ट्रप्रेम, स्वराज्य निडरता का बीज बोया। जिसके चलते पूरे महाराष्ट्र में स्वराज्य की स्थापना की। उनकी परवरिश से उनके बच्चे ने यश, मान सम्मान की ऊंचाइयों को छुआ।
स्वतंत्रता के बाद, इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हम अपनी धर्म संस्कृति से दूर और विदेशी संस्कृति के आकर्षण में खिंचते चले गए। भारतीय परिवारों में पाश्चात्य संस्कृति का बीजारोपण, हमला कहें या प्रवेश, हो चुका है। एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है। बुजुर्गों, मातापिता के साथ बच्चों को रात्रि शयन संस्कृति लगभग समाप्त हो रही है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे अपने मूल संस्कारों संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। मातापिता अपने बच्चों को अपेक्षित ममत्व, परवरिश नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए भी युवा पीढ़ी भटक रही है। विदेशी संस्कृति अपना कर बच्चों को अपने से अलग सुलाया जाता है, बच्चे रात्रि में टी वी, मोबाईल आदि पर क्या देख रहे हैं, क्या कर रहे हैं उन्हें पता ही नहीं होता। और गलत संगति में शामिल होने पर हम मानने को भी तैयार नहीं। इस तरह आज के इंटरनेट के युग में माताओं की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, कि वह इसके दुष्प्रभाव से अपने बच्चों को किस तरह बचाए। उन्हें मोबाइल की जगह हेल्थी लाइफस्टाइल दीजिए। मोबाइल के लिए डांटिये मत, स्वयं इसका प्रयोग कम करने की चेष्टा करें, उनके साथ समय बिताएं, जिम्मेदार तो आप ही हैं। बच्चे अनुकरण से जितना सीखते हैं, उपदेशों से नहीं। खैर.... मुख्य मुद्दा यह है, कि बच्चों को धर्म क्या है, धार्मिक महत्व बताएं, अपने संस्कारों को जानने के लिए प्रेरित करें।
वीर बालक ( राजा दुष्यंत, शकुंतला) के पुत्र भरत के बारे में सभी परिचित हैं, जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारत पड़ा। उनमें वीरता का गुण अपनी मां की परवरिश से ही प्राप्त हुआ। बचपन में ही शेर के दांत गिनता देख उनके पिता भी आश्चर्य चकित रह गए थे। वीर अभिमन्यु के चक्रव्यहू भेदन की कहानी से कौन परिचित नहीं है। गांधीजी को सच्चाई की, धर्म की सीख अपनी माता से ही प्राप्त हुई। इसलिए इतिहास में ही नहीं दैनिक जीवन में भी नजर घुमा कर देखें तो, बच्चे के अच्छे या बुरे निर्माण में मां की परवरिश की महत्वपूर्ण भूमिका है। हम जो भी बच्चों को बनाना चाहते हैं, उसका बीजारोपण बचपन में ही हो जाता है। और फिर जैसा बीज है, परवरिश की खेती (देखभाल) है, फसल भी वैसी ही पकेगी। कई बार छोटी छोटी बातें बच्चे के मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ देती हैं, ये सब बचपन के बीज हैं। जो उम्र के साथ पोषित होते जाते हैं। अगर आप वास्तव में देश, समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, तो बच्चों की परवरिश पर ध्यान दीजिए। स्वच्छ, स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मानसिकता के साथ उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।
परवरिश में मां का अहम योगदान पर किसी ने क्या खूब कहा है_ एक पुरुष की शिक्षा केवल एक व्यक्ति की ही शिक्षा होती है, लेकिन एक स्त्री की शिक्षा से एक खानदान ही नहीं, पूरा समाज शिक्षित बनता है। एक मां कई गुरुओं से भी अच्छी हो सकती है। समाज को खूबसूरत बनाने में मां की अहम भूमिका होती है। औरत की गोद में ही पुरुष का लालन-पालन, शिक्षित होता है, जो आगे चलकर समाज की, देश की तरक्की के में योगदान करता है। नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था _ तुम मुझे अच्छी मांएं दो, मैं तुम्हें अच्छा राष्ट्र दूंगा। मां प्रथम गुरु है। सही गलत, झूठ सच, सभ्यता या बदतमीजी, ये सारी बातें बच्चा घर से ही सीखता है। इसके लिए बच्चों के लिए ध्यान, प्यार और सख्ती तीनों ही आवश्यक हैं। हो सकता है बच्चा आपसे नाराज भी हो जाए, अपनी इमेज की चिंता छोड़िए, क्योंकि जब उसे पता चलेगा आप उसके भले के लिए कर रहे हैं, तो आपके लिए उसके दिल में और भी सम्मान बढ़ जाएगा। गलत बातों पर परदा डालना, पिता से छुप कर पैसे देना या गलत कार्य की डांट से बचा लेना, उस समय अवश्य आपकी प्यारी सीधी निरीह मां की छवि बनती है, लेकिन यह अति मोह, उसके भविष्य की बरबादी की प्रथम सीढ़ी है। बच्चों के चरित्र निर्माण में आपकी मुख्य भूमिका है। सजा देना भी जरूरी है, पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। लेकिन बच्चों को पता होना चाहिए किस गलती पर सजा मिल रही है, अनावश्यक दंड देना या अपनी गुस्सा (फ्रस्ट्रेशन) बच्चों पर निकालना कहां तक उचित है। बच्चों की तुलना करना, या उनमें अपराध बोध देना कि तुम नालायक हो... ऐसा बच्चा कभी आत्मविश्वासी नहीं रहेगा और न ही जीवन में सफलता प्राप्त कर पाएगा। बच्चों का आत्म विश्वास कम ना होने दें। 
आप अपने बच्चों को योग्य बना पाओ या नहीं लेकिन उन्हें धार्मिक शिक्षा व संस्कार अवश्य प्रदान करें। धार्मिक संस्कार संतान को विपत्तियों व दुखों से रक्षा करते हैं। घर का परिवेश ऐसा होना चाहिए कि बच्चा बचपन से आस्तिक हो। अगर बच्चे को किसी बात को लेकर भ्रम पैदा हो तो उसके भ्रम का निवारण करें। दिन एक बार का भोजन परिवार साथ बैठ कर करें, जिससे आपसी संवाद हो किसी भी विषय पर चर्चा हो। कोई समस्या भी हो तो आपसी संवाद सहमति सहयोग से सुलझाई जा सके। दिन में एक बार कम से कम पांच सात मिनट का समय, पूरे परिवार के साथ पूजा के लिए निकालें या बच्चों की सहायता लें। जैसे कि पहले बुजुर्ग बच्चों को अपने साथ मंदिर आदि लेकर जाते थे, रामायण, गीता आदि धार्मिक ग्रंथ सुनते थे। आज बच्चे साथ कहां जाते हैं, यहां तक कि रिश्तेदारी में भी जाना बंद हो गया है। केवल अपने मित्र मंडली में ही रहना पसंद करते हैं, ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि बच्चे धार्मिक संस्कार आदि सीखेंगे। किसी भी बच्चे के व्यवहार, परवरिश को देख कर आप उसके घर के संस्कारों का अंदाजा लगा सकते हैं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक  सम्पूर्ण मां बनाती है।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बर्तन हों या बच्चे, गढ़ना आसान नहीं होता।
इसीलिए तो इनका काम किसी इबादत से कम नहीं होता।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान