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सोमवार, 14 नवंबर 2022

कला और आध्यात्म, महाकाल की नगरी उज्जैन

कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम/ महाकाल लोक कॉरिडोर/धार्मिक नगरी उज्जैन यात्रा संस्मरण __
प्रथम दिन भाग __ १
शिव, सनातन धर्म, संस्कृति के बारे में जितना समझने की कोशिश करेंगे, उतना ही जिज्ञासा, लगाव बढ़ता जायेगा। अभी कुछ दिनों पहले ही मोदी जी ने ज्योतिष, खगोल शास्त्र ज्ञान की केंद्र, प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, महाकाल की नगरी #उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर का उदघाटन किया है। मन में दर्शन की अभिलाषा और शिवलोक कॉरिडोर का चुम्बकत्व अपनी ओर खींच रहा था। कार्तिक मास और दर्शन का संयोग भी बन गया, नेकी और पूछ पूछ। उज्जैन के लिए तीनों मार्गों रेल, सड़क, वायु मार्ग द्वारा पहुंचने की सुविधा है, हम कोटा से ट्रेन द्वारा सायं सात बजे तक उज्जैन पहुंच गए। निवास के लिए कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि #श्रीमहाकालेश्वर भक्त निवास में बुकिंग थी, वहीं प्रांगण में #भारतमाता मंदिर है, जहां प्रतिदिन शाम ८ बजे #वंदेमातरम् गायन के साथ आरती होती है, जिसे देख देश से जुड़ाव का अहसास होता है, बच्चों को ऐसी जगह से अवश्य रूबरू करवाना चाहिए, जिस #संस्कृति संक्रमण के दौर से आज की पीढ़ी गुजर रही है, उसके लिए अति आवश्यक, जानकारी के लिए बहुत अच्छा है। महाकाल लोक कॉरिडोर कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम है। हम सायं आठ बजे तक फ्रैश हो चुके थे, भक्त निवास और कॉरिडोर की दीवार एक ही थी हमारे कमरे की खिड़की से ही कॉरिडोर का नजारा लाईटिंग, भीड़भाड़ दिख रहा था। जल्द ही हम भी कॉरिडोर के लिए निकल पड़े। #अशक्तजनों के लिए बैटरी चालित कार की सुविधा उपलब्ध थी। लगभग २०० मूर्तियां दीवार पर उकेरी और  स्थापित की गई हैं, जिनमें #प्रसंग सहित सभी घटनाओं का #जीवंत वर्णन किया गया है। महाकाल कॉरिडोर में भगवान शिव, सती, शक्ति के धार्मिक #प्रसंगों से जुड़ी मूर्तियां और दीवारों पर उकेरी गई प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, १०८ स्तंभों में कई प्रसंग यथा भगवान शिव, सती, गणेश, सूर्य, दुर्गा, सप्तऋषि, कार्तिकेय आदि देवी देवताओं से संबंध अनेक लीलाओं का वर्णन मूर्ति रूप में उकेरा गया है। कुछ प्रतिमाओं से तो नजर ही नहीं हटती। लगभग ९००मीटर लंबा महाकाल पथ बना हुआ है। तीन ओर से प्रवेश द्वार तथा द्वार पर चार विशाल नंदी प्रतिमाएं हैं। कमल कुंड, फव्वारे, रंग बिरंगी रोशनी वातावरण को और आकर्षक बना रहे हैं। हालांकि एक आलेख में सारा #विवरण समेट पाना मुश्किल है, फिर भी प्रयास रहेगा। आगे बढ़ते हुए, तीर्थ यात्रा संस्मरण की श्रृंखला में एक और मोती पिरो दिया है। जानते हैं उस मोती के बारे में __
शमशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठं तु वनमेव च,
पंचैकत्र न लभ्यते महाकाल पुरदृते। यह (अवंतिका क्षेत्र माहात्म्य ) में वर्णित है। अर्थात् यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ, एवं वन ये सभी पांच विशेष संयोग एक ही स्थान, सप्तपुरियों में से एक उज्जैन (अवन्तिका) नगरी में स्थित हैं, इस दृष्टि से भी इसका महत्व बढ़ जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में, उज्जैन में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग #स्वयंभू शिवलिंग प्रमुख हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे बसे अवन्तिका को पृथ्वी का मध्य माना जाता है। दर्शन यात्रा के प्रथम दिन शुरुआत महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शनों से ही किया। आइए मेरी इस यात्रा में शामिल होइए। जीव मात्र को मुक्ति प्रदान करने के लिए धार्मिक नगरी उज्जैन/ अवन्तिका में अवतरित, अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाले, स्वयंभू शिवलिंग देवाधिदेव भगवान महाकाल की हम आराधना करते हैं। एक #संयोग लगता है, मेरे साथ भी जुड़ गया है, ( #राज्यपाल और #रेडकार्पेट ) उस दिन पांच नवंबर २०२२ को भी बिहार के राज्यपाल दर्शनों के लिए पहुंच रहे थे, हमारे सामने ही तुरत फुरत में पुलिस, मंदिर, प्रशासन तैयारी में जुटे हुए थे। जैसा कि हमें पता था, वहां मोबाइल वगैरह सभी बाहरी चीजें सुरक्षा की वजह से अनुमति नहीं थी, फिर भी सभी मोबाइल से फोटो क्लिक कर रहे थे तथा लाइव भी दिखा रहे थे। तब लगा हम भी मोबाइल साथ ले आते तो अच्छा होता, लेकिन श्रीमन (पतिदेव)) पूरे उसूलों के पक्के, उन्होंने कहा व्यवस्था में सहयोग करना चाहिए, दर्शन के लिए आए हैं तो दर्शन लाभ लीजिए। बात भी सही थी, लेकिन शाम को दोबारा जाकर, परिसर में कुछ फोटो अवश्य लिए। उस दिन फिल्म मेकर मधुर भंडारकर ने भी दर्शन किए, जैसा कि पता चला। मंदिर के ऊपर वाली मंजिल व गर्भगृह के सामने दर्शन कर बहुत अच्छा लगा, दोनों जगहों पर बहुत बड़ा बैठने के लिए स्थान बना हुआ है जहां रुक कर थोड़ी देर कोई विश्राम, ध्यान, पूजा अर्चना करना चाहे तो कर सकते हैं हमने भी किया। एक बात विशेष, विक्रमादित्य के शासन के बाद कोई भी राजा, देश प्रदेश का / प्रमुख / मुखिया यहां रात में नहीं रुक सकता, उनकी व्यवस्था शहर से बाहर की जाती है। जिसने भी यह दुस्साहस किया, वह संकटों से घिर गया, मारा गया या कुछ अनर्थ हो जाता है, क्योंकि यहां के राजा तो केवल महाकाल शिव हैं और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य जैसा कोई हुआ नहीं।
महाकाल मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, इनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि, इनके दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही, नागपंचमी पर होते हैं। महाकाल मंदिर के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर स्थित है। जिसमें पूरा शिव परिवार प्रतिमाएं हैं। मंदिर परिसर में ही बीचों बीच प्राचीन श्री #साक्षीगोपाल मंदिर है, मान्यता है कि महाकाल शिव अपने भक्तों के साथ व्यस्त रहते हैं, तो साक्षी गोपाल आपकी सभी जानकारी/गवाही, भगवान शिव को देते हैं कि आपने प्रार्थना और दर्शन किए हैं इसलिए यहां दर्शन करना जरूरी है। #साक्षीगोपाल जी के दर्शन अवश्य करने चाहिए। पंढरपुर भगवान के दर्शन बहुत ही मनमोहक हैं। यहीं पास ही दुस्वप्नों से निवारण के लिए #स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर है, जिनके दर्शन से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है। #मनकामेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन प्रार्थना कर, मन में जो भी कामना होती है वह पूरी होती है। मंदिर परिसर में ही बृहस्पतेश्वर, प्राचीन लक्ष्मी नरसिंह मंदिर, गणेश मंदिर, हनुमान जी, नवग्रह मंदिर आदि सभी मंदिरों के दर्शन कर महाकाल मंदिर से बाहर आए। इस सब में लगभग ढ़ाई तीन किमी. चलना हो गया था।
पूरे भारतवर्ष में महाकाल एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां पर ताजा चिता भस्म से, प्रातः 4:00 बजे भस्म आरती होती है (अब चिता भस्म से नहीं) इसमें पुरुषों द्वारा शरीर पर केवल एक धोती पहनी जाती है, पहले स्त्रियों को इस आरती में शामिल होना मना था अब मालूम नहीं है। हर सुबह भस्म आरती से श्रृंगार कर महाकाल को जगाया जाता है। इसकी भी एक कहानी है। एक बार शव नहीं मिलने पर पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि देकर उसकी चिता की राख से भस्म आरती की, उसी समय भगवान ने दर्शन दे पुत्र को जीवित किया एवं कपिला गाय के कंडे आदि अन्य सामग्री से भस्म आरती के लिए कहा।  इस तरह अब यह प्रथा बंद हो गई है, पिछले कुछ समय से कपिला गाय के कंडे, पीपल, पलाश, बड़, बेर, अमलतास और शमी की लकड़ियों से बनी भस्म को कपड़े में छानकर प्रयोग किया जाता है। कहते भी तो हैं अंग भभूत रमाए। हालांकि हम लोग भस्म आरती के दुर्लभ दर्शन लाभ से वंचित रह गए, क्योंकि अब इसकी ऑन लाइन बुकिंग शुरू हो गई है। और इसकी वेटिंग लगभग एक महीने की रहती है। प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व के #मानक समय का निर्धारण यहीं से होता था, इसलिए कालों के काल महाकाल कहा जाता है। उज्जैन का ज्योतिष, खगोल, तंत्र शास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्व था। उज्जैन के आकाश से ही काल्पनिक #कर्करेखा गुजरती है।
दूसरे दिन भाग__२                                 
शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर _ उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं, प्रथम #हरसिद्धि माता और दूसरा #गढ़कालिका माता शक्तिपीठ। कहते हैं कि  उज्जैन में क्षिप्रा नदी के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।  और जहां मां सती की कोहनी गिरी थी वहां हरसिद्धि मंदिर है। हरसिद्धि मंदिर, सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य कुल देवी मानी जाती हैं। हरसिद्धि शक्ति पीठ को इक्यावन शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में इक्यावन फीट ऊंचे दो दीप स्तंभ हैं, जिन पर चढ़कर ११०० दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। इन दोनों मंदिरों को ही शक्तिपीठ माना जाता है। पुराणों में भी इन मंदिरों का उल्लेख मिलता है।
शक्तिपीठ गढ़कालिका देवी __ गढ़कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी माना जाता है, उनकी कृपा से ही उनको विद्वता प्राप्त हुई थी। तांत्रिक अनुष्ठान, साधना, धार्मिक क्रिया कलापों के दृष्टिकोण से यह एक सिद्धपीठ है। तथा शक्तिपीठों में इसका छठा स्थान है।
भैरव मंदिर __ भैरव बाबा यहां साक्षात विराजते हैं। कहते हैं यहां भैरव बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है। यह कब रिवाज बन गया, और चढ़ाई गई मदिरा जाती कहां है कोई नहीं जानता। इस तरह का मंदिर विश्व में यह अकेला ही है। काल भैरव का मंदिर लगभग छः हजार साल पुराना है। यहां पर दीप स्तंभ है। यह स्थान तांत्रिक साधना हेतु सिद्ध माना जाता है।
श्री मंगलनाथ मंदिर __ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मंगल ग्रह की जन्म भूमि यहीं है। यहां पर शिवलिंग रुप में ही मंगल भगवान और मां भूमि की पूजा होती है। मंगल ग्रह को भूमि पुत्र कहा जाता है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, वाहन, भूमि, धन लाभ, ऋणमुक्ति आदि सुख की प्राप्ति के लिए श्री मंगलनाथ जी की पूजा उपासना की जाती है। देश विदेश से लोग मंगल दोष निवारण के लिए यहां पर पूजा अर्चना के लिए आते हैं। ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान की दृष्टि से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, माना जाता है कि यह स्थान पृथ्वी का नाभि केन्द्र (मध्य) है।
राजा भर्तृहरि की गुफाएं __
संपूर्ण उज्जैन नगरी कई सिद्ध संतों, भगवानों की तपोभूमि रही है। गढ़कालिका क्षेत्र में गुरू गोरखनाथ जी के गुरू मत्स्येंद्रनाथ का सिद्ध समाधि स्थल है, यह #नाथ संप्रदाय से संबंधित है। किवंदती के अनुसार इस गुफा से चारों धाम की ओर जाने के रास्ते थे, जो आजकल बंद है। भर्तृहरि गुफा की व्यवस्था नाथ संप्रदाय के साधुगण देखते हैं। यहां दो गुफाएं हैं, जिनके अंदर जा कर देख सकते हैं। लेकिन घुटन (suffocation) बहुत है, थोड़ा रिस्की है। भीड़ अगर अधिक हो, और अंदर कुछ हादसा हो जाए तो इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। गुफा में विक्रमादित्य के भाई भृतहरि ने तपस्या की थी। एक श्रुति कथा के अनुसार #अत्रि मुनि ने भी उज्जैन में तीन हजार साल तक तप किया था। भगवान #महावीर स्वामी ने भी यहां विहार किया था।
नगरकोट की रानी _ उज्जैन नगरी के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित पुरातन काल से दक्षिण पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी हैं। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्थान से संबंधित हैं। यह नाथ संप्रदाय से जुड़ा स्थान है। मंदिर के सामने एक कुंड है।
मोक्षदायिनी क्षिप्रा __ इसे मालवा क्षेत्र की गंगा कहा जाता है, क्षिप्रा नदी के किनारे बहुत सारे मंदिर और सुंदर घाट बने हुए हैं, लेकिन यहां पर रामघाट मुख्य है, माना जाता है कि भगवान राम ने भी यहां अपने पिता का श्राद्ध कर्म किया था। रोज शाम को तट पर आरती होती है।  कुंभ के चार स्थानों में से एक क्षिप्रा नदी है, जहां अमृत कलश से अमृत की बूंदें छलक कर गिरी थी। इसीलिए हर बारह वर्ष बाद क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित उज्जैन नगरी में कुंभ मेले का आयोजन होता है, जिसे सिंहस्थ कहते हैं। महाकाल से संबंधित एक भजन __
बाबा भोलेनाथ है हमारा, तुम्हारा।
महाकाल की इस नगरी में हो उद्धार हमारा  बाबा भोलेनाथ है हमारा, तुम्हारा ...
महाकाल की इस नगरी में पाऊं जन्म दोबारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा...
इस नगरी के कंकर पत्थर हम बन जाएं
भक्त हमारे ऊपर, चढ़कर मंदिर जाएं
संतजनों के पैर पड़ें तो हो उद्धार हमारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा ...
जब भी तन मैं त्यागूं, त्यागूं क्षिप्रा तट पर
इतना करना स्वामी, और मरूं मरघट पर
मेरे तन की भस्म चढ़े, हो श्रृंगार तुम्हारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा ...
सिद्धवट _ सिद्धवट को चार प्राचीन और प्रमुख पवित्र वटों में से एक माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में अक्षयवट प्रयागराज में, वंशीवट मथुरा वृंदावन में, गया में बौद्धवट या गयावट और उज्जैन में सिद्धवट का वर्णन है। इतना कुछ है महाकाल की नगरी, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य की धार्मिक नगरी उज्जैन में कि समय की हमेशा कमी खलती है।
चिंतामण गणेश, चिंता हरण गणेश, रुद्र सागर, नवग्रह शनि मंदिर, संदीपनी आश्रम जहां भगवान कृष्ण, बलराम, सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी, रामघाट और भी कई विशेष दर्शनीय स्थल हैं। जो कि भगवान राम और कृष्ण बलराम से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। समयाभाव के कारण सभी स्थल पर जाना मुमकिन नहीं था लेकिन लोकल गाइड (ऑटो रिक्शा चालक) ने हमें बहुत कुछ जानकारियां दीं। एक सरकारी दुकान (एम पी क्राफ्ट कॉटेज इंडस्ट्री) जहां #कैदियों द्वारा बनाई गई सामग्री उचित मूल्य पर उपलब्ध थी। धातु निर्मित मूर्तियां, शो पीस, चालीस ग्राम वजन की साड़ी, नारियल रेशे की साड़ी, धतूरे की साड़ी,  और न जाने क्या क्या, कितना सही है कहना मुश्किल फिर भी हमने भी साड़ी, दुपट्टे, टी शर्ट वगैरह खरीदे। समय और शरीर दोनों ही ज्यादा घूमने की इजाजत नहीं दे रहे थे। इस तरह डेढ़ दिन की अल्प अवधि में एक एक पल का भरपूर आनंद उठाया, और वापिसी के लिए चल दिए।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान