शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

दीवारें बोल उठेंगी

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#दीवारें बोल उठेंगी!!
ऐसा भी कहीं होता है??? कुछ भी, विज्ञापन दिखा देते हैं। फिर सोचा एक बार ट्राई करने में क्या जाता है, मैंने दीवार की तरफ मुंह किया और पूछा क्या तुम बोलना जानती हो? उधर से आवाज आई, क्या आप सुनना पसंद करोगे?? अरे वाह! यह तो चमत्कार हो गया। मैंने तो सुना था दीवारों के कान होते हैं, लेकिन इसकी तो जुबां भी है.... पहले तो घबरा गई, फिर मैंने कहा चलो आज मैं सुनने के मूड में हूं, बताओ..... मुझे सुन नहीं पाओगे, मेरे पास इतनी राज छुपे हुए हैं, मेरे यानि, दीवार की परत दर परत के नीचे, आंखों के सामने ना जाने क्या क्या घटित हुआ है। सब सोचते हैं यह बेजान दीवार कुछ नहीं समझती, कुछ नहीं जानती लेकिन मैंने बहुत कुछ देखा है। यह विज्ञापन ऐसे ही नहीं बना। यह वास्तविकता है, बस आज तक मुझे (दीवार) को किसी ने आजमाया नहीं, आज तुमने पूछा तो मैं बोल रही हूं। मैं हूं तुम्हारी प्यारी सहेली, दीवार!!! खुशी और गम की राजदार। अब मैंने भी सोचा, आज से मैं तुम से ही सारी मन की बातें किया करूंगी। गांव जाना हुआ, तो वहां हमारे घर की पुश्तैनी हवेली की दीवारों ने बताया, कि जब तुम छोटी थी तो तुम्हारा अपनी मां की गोद में रथ,  मंझोली से आना,सबका दुलार पाना, कितनी बातें करती थी, और मैं यानी दीवार चुपचाप सुना करती थी। तुम्हारी सारी शैतानियों की गवाह हूं। लेकिन आज मैं दीवारों की बातों को महसूस कर रही हूं, है ना ताज्जुब! अब वह हवेली खंडहर हो चुकी है, फिर भी दीवारें बहुत कुछ बोल रही हैं।अंग्रेजों के समय और बाद में भी, दादाजी मुक़दम जमींदार थे, नौकर चाकरौं की भीड़ हुआ करती थी। इन दीवारों से मिलिए, जहां तुम (मैं) शादी हो कर आई थी, सब बहन भाइयों के साथ समय व्यतीत किया था, फिर बच्चे!! हे प्रभु! कितनी यादों की गवाह हूं मैं दीवार!!!! हर कमरे की दीवारों की अपनी अलग कहानी। पोर्च की दीवारें आज भी गवाह हैं, गाड़ी की नहीं, गाय की, जहां गाय बंधा करती थी। तब यहां बहुत रौनक थी जो आज बिल्कुल अनमनी, उदास हैं।कभी ये कोठी की दीवारें, पिताजी के ठहाकों व मित्र मंडली से गुलजार थी। दीवारें हंसना नहीं जानती, फिर भी कभी चहकती हुई, तो कभी उदास दिख जाती हैं। मनुष्य हंसना जानता है, फिर भी चेहरे पर मुखौटे लगाए रहता है। अब एक और दीवार से मिलिए, यह मेरी बहू के, मेरे पोती के, कुंवरसा के, नए रिश्तों के, नई पीढ़ी के आगमन के  स्वागत के लिए तैयार खड़ी है, देखो कितना कुछ कह रही है। हर दीवार अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है, कभी फुर्सत में फिर और ढेरों बातें करेंगे। बहुत कुछ कहना चाहती है मेरे घर की दीवारें। सब हम दीवारों को पत्थर दिल समझते हैं, पर ऐसा नहीं है दीवारों को भी महसूस होता है। वो साक्षी है आपकी हर कहानी की। कभी महसूस कीजिए, और आपके मुंह से अनायास ही निकल पड़ेगा, दीवारें बोल उठेंगी!!!!

गुरुवार, 14 नवंबर 2019

एक था बचपन


✍️
एक था #बचपन??
शामें तो बचपन में हुआ करती थी!!
एक #अरसा हुआ,अब वो शाम नहीं होती।
जिसका #इंतजार रहता था, खेलने के लिए। 
फिर थोड़ा और बड़े हुए!!     
शाम का #इंतजार होता था,
दोस्तों को अपने #सपने सुनाने के लिए!!
कितना याद आता है ना!
एसा क्या हो जो,
हमें #खिलखिला कर हंसने पर
#मजबूर कर दे गुदगुदा दे।
कितने याद आते हैं,
वो सब जो कहीं पीछे छूट गया है।
आओ एक गहरी लंबी सांस लें,
और पहुंच जाएं,
बचपन की उन #गलियों में।
उस उल्लास में, #बेखौफ
फिर से जीवन जीने का अंदाज़ सीखना।
हर बार
नया खेल,नई #ऊर्जा, नई #सीख, नये सपने।                        
बचपन की ही तरह #बातें पकड़ना नहीं,
बस #माफ करना।
एक अंगूठे से #कट्टा, लड़ाई,
और दो अंगुलियों से
मुंह पर विक्ट्री का निशान,
एक #पुच्चा से वापिस दोस्ती।
वो छोटी, छोटी चीजों  में #अपार पूंजी,
अमीरी का #अहसास।
अपने बैग में छुपा कर रखना उस पूंजी को,
रंगीन कंचे,चित्रों की कटिंग,
बजरी में से ढूंढ़ के लाए
पत्थर के टुकड़े, सीप,शंख, घोंघे के खोल।
खट्टी मीठी गोलियां, छुप कर कैरी का खाना,
और ना जाने क्या क्या।
क्या याद है, आपको?
झाड़ू की सींक में
हाथ से बनाया झण्डा लेकर
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत, 
स्कूल जाना।
कभी कभी
जेबखर्च के बचे पैसे भी होते थे।
वाकई #बहुत #अमीर था #बचपन।
न जाने कहां गुम गई वो अमीरी ?
#चलो एक बार फिर से
#कोशिश तो कर ही सकते हैं,
उस बचपन में लौटने की!
आज अपने किसी #पुराने दोस्त से मिलते हैं,
#बिना किसी #शिकवे शिकायत के!
#मन के #दरवाजे #खोलने हैं,
सारे मुखौटे घर पर छोड़ कर।
#बारिश में भीगकर आते हैं,
डांट पड़ेगी तो, #कोईबात नहीं।
किसी तितली को,
पकड़ने के लिए दौड़ लगाते हैं।
किसी छोटे पपी को घर लाकर नहलाते हैं,
फिर उसी के साथ सो जाते हैं।
चलो आज बचपन की,
यादों की गलियों में #चक्कर लगा कर आते हैं।
और #इंतजार करते हैं,
उसी #शाम का जो अब नहीं आती!        
अब तो बस,
सुबह के बाद सीधे रात हो जाती है।

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

गांव में छुट्टियां


✍️ गांव में छुट्टियां___
अब के बरस दादू के संग
छुट्टी सभी बिताना ...
भरी दुपहरी चढ़ें नीम पर
गांव की सैर कराना...
पक्षियों को जब डालें दाना
चिड़िया चींचीं चहचहाती ...
कबूतर करता गुटर गूं
कोयल मीठे गीत सुनाती...
मोर नाचे पंख फैलाए
छोटी गिलहरी भी बतियाती...
सुबह सवेरे जाएं खेत पर
पिएं गुड़ छाछ लोटा भर कर ...
ताऊजी लाएं दूध काढ़ कर
कच्चा दूध पी जाएं गट गट...
कद्दू की सब्जी के संग में
खट्टी मीठी कैरी की लौंजी ...
पूरी, गोल मटोल है फूली 
बनाती चाची,अम्मा और भौजी ...
दादी बिलौती दही छाछ
रोटी देती मक्खन वाली ...
दादू के संग जाएं बाग में
चकित देख,आमों की डाली ...
खीर बनाती मेवों वाली
खाते भर कर खूब कटोरी ...
लेकिन डैडा को भाती
बस आलू भरी कचौरी ...
सांझ ढले, चांदनी रात में
खेलें छुपन छुपाई ...
अपनी बारी आने को थी
दादी ने आवाज लगाई ...
ठंडे ठंडे बिस्तर छत पर
बच्चों को खूब आनंद आता ...
बड़े भैया, दीदी, बुआ
फिर सुनाएंगे भूतों की गाथा ...
हंसी खुशी से गया महीना
पता नहीं चल पाता ...
बेटा बेटी भी होते उदास
काश!
एक दिन और बढ़ जाता...
बीता महीना, वापिस आने का
करते हैं फिर वादा ...   
अगले बरस की राह हैं तकते
बूढ़े नानूनानी, दादी दादा!!
मिल गया जैसे टॉनिक
और जीने का सहारा ...
अब तो बीत जाएगा
मीठी यादों में, पूरा साल हमारा .........🙂


रविवार, 6 अक्तूबर 2019

बीमारी और सोच


✍️उम्र के हर दौर में बीमारी और सोच___
हर उम्र के साथ बीमारियां भी अलग अलग तरह की होती हैं। और साथ ही बीमारी को लेकर मतलब, सोच भी बदलती रहती है। उम्र के जीवन के चार #आश्रम, जिसमें चौथा आश्रम (संन्यासाश्रम) तो अब लगभग खत्म ही हो गया है इन तीनों अवस्थाओं में बीमारी में, सेवा के भी अलग-अलग भाव होते हैं। #बचपन में बीमारी में घरवाले, दूसरे सदस्य भी चिंता करते हैं, हर तरह से स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा के साथ ही तरह-तरह के उपाय खुशामद भी करतेे हैं, और येन केन प्रकरेण किसी ना किसी तरह स्वस्थ करने में जुटे रहते हैं। जरा सा बीमार होने पर मातापिता ही नहीं, बल्कि घर के सभी सदस्य भी विशेष चिंतित हो जाते हैं। बच्चे को परेशान नहीं देख सकते हैं, इसलिए उसको विशेष लाड़, ध्यान रखा जाता है, चाहे कुछ हो जाए सब चाहते हैं कि उनके लाड़ले स्वस्थ रहें। #युवावस्था में शरीर भी समर्थ होता है बीमारी से मुकाबला करने के लिए, और स्वयं भी तन, मन, धन से सशक्त होता है। कुछ जवानी का अपना एक आकर्षण भी, अगर पद प्रतिष्ठा हो तो कहने ही क्या, जिसमें साथी लोग भी तवज्जो देते हैं। इसलिए बीमारी इस उम्र में व्यक्ति को ज्यादा परेशान नहीं करती। लेकिन बुढ़ापे में, बीमारी में कुछ तो भय सताने लगते हैं, बीमारी का मतलब लगभग मृत्यु का वरण ही हो जाता हैमिलने वाले, सेवा करने वाले भी ऐसी ही बातें करने लगते हैं कि बस अब तो #प्रस्थान की तैयारी कीजिए। बूढ़ा व्यक्ति जब बीमार होता है तो सबसे ज्यादा फिक्र यह सताती है कि देखभाल कौन करेगा। उम्र के तीनों दौर में, सबसे ज्यादा प्रभावित वृद्धावस्था ही होती है। इसलिए इस उम्र में जो बीमारी का अर्थ ठीक से समझ लेगा, उसके लिए उम्र भी मददगार हो जाएगी। वृद्धावस्था में जब भी बीमारियों से घिरे हों, उस समय सारी पुरानी उपलब्धियां, स्वाद, जवानी याद आती हैं, अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को बिल्कुल याद नहीं करना चाहिए, और ना ही अपने अतीत को याद कर दुखी हों। समय का पहिया घूमता रहता है कभी घी घना, तो कभी मुट्ठी चना, वर्तमान में रहना सीखें। एक तो वृद्ध शरीर, ऊपर से ये महत्वाकांक्षाएं, उपलब्धियां परेशान करने लगते हैं। अतीत में ही खोए रहना अपने गुणगान करना भी एक #बीमारी ही समझो।
हम किसी भी उम्र में हो एक तैयारी बीमार व्यक्ति को जरूर करनी चाहिए और वह है #सहयोग। जब लोग आपकी सेवा कर रहे होते हैं, तब आपको भी उन्हें खूब सहयोग करना चाहिए। केवल सेवा करवाने के उद्देश्य से सेवक को निचोड़िए मत। हायतौबा ना मचाए।
दूसरी बात बीमार व्यक्ति को #धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए, बोले कम सुनें ज्यादा। क्रोध से बचें। अन्यथा सेवा करने वाले इसी बात से परेशान हो जाते हैं कि इनकी सेवा में सबसे बड़ी दिक्कत ये (बीमार वृद्ध) खुद हैं। ध्यान रखिए बीमारी किसी को नहीं छोड़ने वाली, यदि उम्र के तीनों दौर में बीमारी को ठीक से समझ लिया जाए तो आधा इलाज तो आप स्वयं ही कर लेंगे। बाकी आधा इलाज चिकित्सक संभाल लेंगे, और इन सब के साथ जब प्रभु कृपा मिल जाए तो फिर बीमारी जीवन के लिए बोझ नहीं, आराम से गुजर जाएगी।

शनिवार, 21 सितंबर 2019

जीवन......मृत्यु !

✍️ जीवन ....मृत्यु, एक सच _____
जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबहा शाम।
कि रस्ता कट जाएगा मितरां.............
जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवन निरंतरता का नाम, तो मृत्यु एक ठहराव, पड़ाव है। केवल अवस्था बदल रही होती है। प्रकृति में सभी कुछ परिवर्तनशील है, हर क्षण बदलता रहता है।जीवन है तो मृत्यु भी होगी, लेकिन वृद्धावस्था के साथ ही कई बार लोगों को यह डर सताने लगता है, और वह मृत्यु से भयभीत होने लगते हैं। इसकी गहराई को समझें, इस के स्वागत के लिए तैयार रहें। जिसका भी सृजन हुआ है विसर्जन निश्चित है। जीवन और मृत्यु को बड़े ही सुंदर तरीके से समझा जा सकता है। पंचभूतों (आकाश, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी) से बने शरीर का ईश्वरीय महतत्व आत्मा, प्राणमय शरीर से संयोग जीवन एवं वियोग है मृत्यु है। दिन का अंत रात्रि है, तो जीवन का अंत मृत्यु है। मृत्यु के बाद फिर एक नवजीवन का आरम्भ होता है और यह क्रम सतत् चलता रहता है। पाश्चात्य विचारक हुए हैं कोल्टन, उनके शब्दों_ जिन्हें स्वतंत्रता भी मुक्त नहीं कर सकती, उन्हें #मृत्यु मुक्त कर देती है। यह उनकी प्रभावशाली चिकित्सा है, जिन्हें औषधि भी ठीक नहीं कर सकती। यह उनके लिए आनंद और शांति की विश्राम स्थली है, जिन्हें समय सांत्वना नहीं दे पाता। जिस प्रकार दिनभर की थकान के बाद हम निद्रा के आगोश में अपनी थकान मिटाते हैं और प्रातः स्फूर्ति, ताजगी के साथ उठते हैं, उसी प्रकार  मृत्यु भी एक महानिद्रा है।
जो आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर।।
गीता में भी कहा गया है, आत्मा तो अमर है वह केवल शरीर बदलती है। मृत्यु को ऐसा जानिए जैसे वस्त्र पुराने हो गए हों, उन्हें छोड़ कर और नवजीवन यानि नए कपड़े बदलना। और यह कार्य हमारी मां की तरह प्रकृति माता बखूबी निभाती है। प्रभु के इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कीजिए, मृत्यु जीवन का आवश्यक अंग है, अगर मृत्यु ना हो तो जीवन भार लगने लगेगा। इस तरह यह एक विश्राम अवस्था भी है। विदेशों में मृत्यु को अंत माना जाता है, लेकिन अपने देश मृत्यु के बाद नव जीवन शुरू करना मानते हैं, जहां से हमने छोड़ा था,या जो हमारे संचित कर्म हैं, उनके अनुसार आगे की दिशा तय होती है। हमारे देश में मृत्यु को भी उत्सव की तरह देखा जाता है। अंत में एक गाने के बोल याद आ रहे हैं ___
जिंदगी एक सफ़र है सुहाना
यहां कल क्या हो किसने जाना।
मौत आनी है आएगी इक दिन
ऐसी बातों से क्या घबराना।

बुधवार, 11 सितंबर 2019

जिंदगी से जुड़ी छोटी छोटी बातें


✍️जिंदगी से जुड़ी छोटी छोटी बातें।
माता पिता अक्सर बच्चों की प्रशंसा करने में कंजूसी कर जाते हैं, या अनावश्यक प्रशंसा करते हैं, दोनों ही चीजें गलत है। लेकिन बच्चे के अच्छे व्यवहार और उसके तरह तरह के प्रयासों की सराहना, प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए। बचपन से ही हमें अपने बच्चों में सही दोस्त बनाने की, गलत दोस्तों को दूर रखने की समझ विकसित करनी चाहिए। बच्चों को समय का सम्मान करना सिखाएं। बच्चों को समय की कीमत जरूर समझनी चाहिए। समय की पाबन्दी आने से, उनकी जिंदगी में आगे के बहुत से कार्य #आसानी से हो जाते हैं। समय पर उठना, तैयार होना उन्हें स्कूल के जाने में होने वाली हड़बड़ी, परेशानी से बचाएगा। बच्चों को किसी की भी कोई चीज लेने से पहले उससे अनुमति लेने के लिए भी सिखाएं, क्योंकि कई बार छोटे बच्चे स्कूल में किसी दूसरे की कोई वस्तु अच्छी लगने पर (बाल सुलभ प्रकृति, इसे चोरी नहीं कह सकते) अगर घर ले आते हैं, तो बच्चों को सही गलत का अंतर समझाएं एवं उसको अगले दिन अवश्य लौटाने के लिए कहें। आप, बच्चों का स्कूल बैग प्रतिदिन चैक करें, कितनी #मांएं ऐसा करती हैं, और अगर देख भी लेती हैं, तो कितनी माताएं अपने बच्चों को समझाती हैं। बच्चों को प्लीज, थैंक यू कहना सिखाएं। एवं खुद भी अच्छा या बुरा होने पर थैंक्स और सॉरी कहें, झिझकें नहीं। किसी को सॉरी कहने का यह मतलब नहीं कि आप कमजोर हैं। बल्कि यह आपके मजबूत चरित्र को दर्शाता है।

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

भाषा और संस्कृति



️ ✍️ #भाषा और संस्कृति_____
भाषा संस्कृति की आत्माभिव्यक्ती का साधन है। मनुष्य की पहचान भी भाषा से ही है। भाषा ही मनुष्य को औरों (चौपायों) से  भिन्न करती है, यह जाति, धर्म, व्यवसाय, समाज संस्कृति के कारण भिन्न भिन्न हो सकती है। फिर भी विचार संप्रेषण के लिए भाषा ही माध्यम है। समाज के सांस्कृतिक पतन की आहट सबसे पहले उसकी भाषा में सुनी जा सकती है। हमें इतना समृद्ध साहित्य, समाज, भाषा, सब कुछ विरासत में मिला है, फिर भी हम उसकी कद्र नहीं करते हैं। भाषा द्वारा किया गया संस्कृति का चीरहरण, भाषा का दुरुपयोग आज देखने को मिलता है, उतना पहले नहीं था। वजह कुछ भी हो सकती है, व्हाट्स एप, हिंग्लिश और नई पीढ़ी द्वारा ईजाद की गई नई vocabulary  एवं परिवारों में जड़ें जमाती संवाद हीनता। इसलिए रोजमर्रा की भाषा में भी इसके दुरुपयोग बहुतायत से देखने को मिलता है, ऐसा करने से बचें। यह सहयोग, कम से कम उन व्यक्तियों से तो अपेक्षित है, जो यह लेख पढ़ रहे हैं। जैसा कि आजकल देखने में आता है, बच्चे भी अपने पिता से #यार कह कर बात करते हैं, उधर पिता भी अपनी बेटियों तक से #यार कह कर बात करते हैं, जो कि बिल्कुल ही सभ्यता ही नहीं अपितु संस्कार विहीन है। देखने में यह भी आता है कि, बड़ों से बदतमीजी से व छोटों से खुशामद वाली भाषा में बात करते हैं, जो कि बिल्कुल ही उचित नहीं है। यार शब्द लड़कों का अपने #बराबरी दोस्ती में तो ठीक है, लेकिन लड़कियों के लिए यह शब्द उचित नहीं है। कुतर्क करने के लिए हो सकता है, मेरे विचारों को रूढ़िवादी कहा जाए। मुझे एक वाकया याद आ रहा है, मेरी बेटी की मित्र आई हुई थी। किसी बात पर चर्चा के दौरान बेटी ने एक #शब्द #क्लिष्ट) का प्रयोग किया। उसकी मित्र को यह समझ में ही नहीं आया, फिर उसने इसका मतलब पूछा। वो हैरान थी, की तुम लोग ऐसे कठिन शब्दों का प्रयोग कैसे करते हो, जबकि यह हमारे परिवार में आम बात है। एक तो आजकल बच्चों को शुरू से हॉस्टल भेज देना भी संस्कृति से दूर कर रहा है। बच्चा पढ़ाई में अच्छा हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि संस्कारों में भी अच्छा हो। क्योंकि उम्र के शुरुआती वर्षों में, उस समय वह अपने मन की कर सकता है। और कोई भी गलत चीज आसान भी लगती है, एवं आकर्षित भी करती है। सबसे पहले भाषा पतित होती है, भाषा का स्तर गिरता है, और इसके बाद संस्कार नष्ट होते हैं। वहीं से सभ्यता और संस्कृति का कलंकित होना, और आगे जाकर संस्कृति व सभ्यता का नष्ट होना आरंभ होता है। भाषा को लयबद्ध तरीके से प्रेषित किया जाए तो संगीत बन जाए, और लिपिबद्ध किया जाए तो ग्रंथ बन जाए। शब्दों का व्यवस्थित प्रयोग ही #मंत्र बन जाता है। तो अपनी भाषा और व्यवहार पर ध्यान दीजिए। बोली ही तो है जो मित्र बनाती है, और इसी भाषा से `जूता खात कपाल' कहावत सिद्ध हो जाती है। आप जितना अच्छा अपनी भाषा में सोच सकते हैं, उतना दूसरी में नहीं। इसलिए भाषा की समृद्धि के प्रयास जारी रखिए।


शनिवार, 24 अगस्त 2019

एक कदम प्रकृति की ओर


✍️ एक कदम प्रकृति की ओर___
Surrounding yourself with the natural beauty is best for the peace and serenity of mind.
प्रकृति में मौजूद ऊर्जा हमें, स्वास्थ्य के साथ ही आध्यात्मिक राह पर ले जाने में सहायक है। स्वास्थ्य से भरपूर, प्रकृति की यह ऊर्जा सकारात्मक होने के साथ ही हीलिंग के गुण भी रखती है। जब भी आप का मन उदास हो, या अवसाद में डूबे हों, प्रकृति का सानिध्य पेड़ पौधे, फल फूल, हवा, प्राकृतिक रंग, मन को नियंत्रित करने में सहायक होने के साथ ही बेहद सकारात्मक उपचार है। प्रकृति की शुद्ध वायु को गहरी सांस लेते हुए फेफड़ों में भरिए, फिर धीरे धीरे सांस छोड़िए। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं। प्रकृति में कोई नन्हा पौधा रोपिए, उसकी सार संभाल के साथ उस बड़ा होते देखिए। ये सारी बातें आपके व्यवहारिक आचरण में बदलाव लाने में भी सहायक होंगी। बच्चों के साथ मिलकर, इस तरह की कोशिश करते रहिए। ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप बच्चों का परिचय केवल क्लब पार्टी से करवाते हैं, या प्रकृति  से जुड़ना भी सिखाते हैं। पैरेंट्स, आइए! बढ़ाएं एक कदम प्रकृति की ओर। कंक्रीट के जंगल से निकल प्रकृति का प्रवास, हमारे विचारों को नए आयाम प्रदान करती है।

सोमवार, 5 अगस्त 2019

मित्रता


✍️मित्रता!
बचपन में गुल्ली डंडे
नदी के तीर या मैदान में
बुढ़ापे की सांझ ढले
लाठी बन साथ खड़े
जिस पर हो भरोसा
मित्रता!
वह खुशनुमा अंदाज है......
दिल का सुकून
सांसों की धड़कन
दोस्ती के लिए
बने संजीवनी
कंधे पर धरा हाथ
मित्रता!
जिंदगी की रूह, हर सांस है..........
उत्सव, हर्ष और विनोद में
विपदा, संकट, द्रोह में
साया बन, साथ रहे
पढ़ ले आंखों की भाषा
दूर होकर भी, बिन कहे
मित्रता!
वह सुखद अहसास है........
सुख दुख के रंग में
भरने जीवन में खुशियां
हार जीत के खेल में
कभी कृष्ण,
कभी सुदामा के वेष में
मित्रता!
बजे नेह (प्रीत) की बांसुरी है......
अंधेरे में सूर्य की उजास
देता कोई अगर आघात
शीतल चांदनी
करे शुष्क हृदय तृप्त
है जज्बातों की बरसात
मित्रता!
उड़ते परिंदों, का खुला आसमान है.......


मां तुम धुरी हो,घर की

✍️ मां, तुम #धुरी हो #घर की!

मुझे आज भी याद है चोट लगने पर मां का हलके से फूंक मारना और कहना, बस अभी ठीक हो जाएगा। सच में वैसा मरहम आज तक नहीं बना।
#वेदों में मां को पूज्य, स्तुति योग्य और आव्हान करने योग्य कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य होता है,सौ आचार्य के बराबर एक पिता और पिता से दस गुना अधिक माता का #महत्व होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी(मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं। इस संसार में 3 उत्तम शिक्षक अर्थात माता, पिता, और गुरु हों, तभी मनुष्य सही अर्थ में मानव बनता है
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।
मां को कलयुग में अवतार कह सकते हैं। मां कभी मरती नहीं है, उसने तो अपना अस्तित्व (यौवन) संतान के लिए अर्पित कर दिया, संतान के शरीर का निर्माण (सृजन) किया। आज भौतिक चकाचौंध, शिक्षा, कैरियर, नौकरी आदि ने विश्व को सब कुछ दिया बदले में मां को छीन लिया। किसी भी घर में स्त्री पत्नी, नारी, बहू, बेटी, बहन,भाभी, सास, मिल जाएगी, परंतु मां को ढूंढ पाना कठिन हो गया।आज स्वयं स्त्री अपने व्यक्तित्व निर्माण में कहीं खो सी गई है।
#नारी देह का नाम है।
#स्त्री संकल्पशील पत्नी है।
#मां किसी शरीर का नाम नहीं, अपितु
मां- #पोषणकर्ता की अवधारणा है।
#अहसास है जिम्मेदारी का।
मां- आत्मीयता का भावनात्मक भाव है। मां #अभिव्यक्ति है #निश्छल प्रेम, दया, सेवा, ममता की। मां के लिए कोई पराया नहीं। बच्चों की मां, पति बीमार हो तो उसके लिए भी मां, सास ससुर या बुजुर्ग मातापिता की सेवा करते हुए भी एक मां। इस सब क्रियाकलापों में मातृ भाव, और स्त्री स्वभाव की मिठास है। मां शब्द अपने आप में एक अनूठा और भावनात्मक एहसास है। यह एहसास है सृजन का, नवनिर्माण का। स्त्री कितनी भी आधुनिक हो लेकिन मां बनने के गौरव से वह वंचित नहीं होना चाहती।
जब तक स्त्री का शरीर दिखाई देगा, मां दिखाई नहीं देगी। उसके बनाए खाने में प्यार, जीवन के संदेश महसूस नहीं होंगे। महरी या बाहर के खाने में कोई संदेश महसूस नहीं होता। ऐसा खाना आपको #स्पंदित, आनंदित ही नहीं करेगा। क्योंकि उनमें भावनाओं का अभाव होता है। कहते हैं ना जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। मां के हाथ का खाना भक्तिभाव, निर्मलता देता है। स्वास्थ के लिए हितकर होता है, क्योंकि उसमें होता है मां का प्यार, दुलार, मातृ भाव, आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करता है। भाईबहिनों को एक करने की शक्ति है मातृ प्रेम।
केवल पशुवत जन्म देने भर से कोई मां नहीं हो सकती। ऐसी मां को अपने बच्चे के बारे में न तो कोई जानकारी ही होती है, और न ही वे कोई संस्कार दे पाती हैं। आजकल ममता और कैरियर, अर्थ लोभ के द्वंद्व के बीच फंसी मां की स्थति डांवाडोल होती रहती है। अनावश्यक सामाजिक हस्तक्षेप भी मां की स्थति को और बदतर कर देता है। कई बार लड़की मां का दायित्व, परवरिश अच्छी तरह निभाना चाहती है, लेकिन उसकी सराऊंडिग्स के लोग उसको हीनभाव महसूस करवाए बिना नहीं चूकते कि, क्या घर के काम में लगी हो, ये काम तो कोई भी कर सकता है। ऐसे समय में माताएं अपना #धैर्य बनाएं। बच्चे देश का भविष्य हैं, उनकी जिम्मेदारी माताओं पर ही है।
इंसान वैसे ही होते हैं,जैसा #मांएं उन्हें बनाती हैं। #भरत को #निडर भरत बनाने में शकुन्तला जैसी मां का ही हाथ था,जो शेर के दांत भी गिन लेता था। हमेशा मां के दूध को ही ललकारा गया होगा। परवरिश को लेकर कहा गया होगा, और किसी को नहीं। आप भाग्यशाली हैं जो, प्रभु ने इस महत्वपूर्ण दायित्व के लिए आपको चुना है। मां बनना एक चुनौती से कम नहीं है। एक गरिमा, गौरवपूर्ण शब्द है मां। इस दायित्व का निर्वहन भलीभांति करने से ही देशहित, समाजहित संभव होगा।