मंगलवार, 19 मार्च 2019

भूल गए हैं


✍️
भूल गए हैं!!
छुट्टी से पहले
स्कूल में होली मनाना,
पैन की स्याही,पानी वाले गुब्बारे
और बड़ी मेहनत से लिखे
उल्टे शब्द वाले आलू से छाप लगाना।

भूल गए हैं!!
ताई, चाची, बहुओं को,
जो सेंकती थी, रात को गुझिया
और हम करते होली की तैयारी,
दोस्तों की टोली और,
हुड़दंगी यारी।

भूल गए हैं!!
शकरपारे के स्वाद,
चखने के बहाने, बनाते बनाते
गरम गरम ही खा जाना,
गुझिया, सेव, पापड़ और
खट्टी कांजी चटकारी।

भूल गए हैं!!
कीचड़ मिट्टी वाली होली,
करना नई भाभी को,
रंगों से सरोबार,
फिर देना फगुआ,
ये रिवाज थे, मनोहारी।

भूल गए हैं!!
शाम को सब के यहां बारी बारी
मिलने जाना,
पैर छूना, गले मिलना।
सबके यहां
अलग अलग स्वाद
इसी में हफ्तों गुजर जाना।

अब बस याद है!!
जैसे तैसे मिली,
एक दिन की छुट्टी
उसमें भी लगता
जैसे निभा रहे ड्यूटी
बच्चों को पहना बरसाती
पानी से भी है बचाना
होली का टाइम भी है फिक्स
उसके बाद, नहा धो सो जाना।
शाम को, स्वयं को बेहतर
प्रस्तुत करने का मौका, या देखना
किस से हैं सम्बन्ध बढ़ाना।
कैटर निर्मित
होली मिलन का खाना
अबकी बार किसको है चुना जाना।
सोसायटी, मुहल्ले के
अध्यक्ष, सचिव पद के लिए
उसकी जुगत भी लगाना।
ना किसी की मान मनुहार
पैसे दिए हैं तो खाना ही है खाना।
पुते चेहरे, खींसे निपोर
बनावटी मुस्कान लिए
फिर मिलते रहने के वादे के साथ
आ जाते हैं फिर अपनी चौखट द्वार।





रविवार, 17 मार्च 2019

ओस की बूंदें और बेटियां


✍️कविता
ओस की बूंदें और बेटियां,
एक तरह से एक जैसी होती हैं।
जरा सी धूप, दुख से ही मुरझा जाती हैं।
लेकिन दे जाती हैं जीवन,
बाग बगीचा हो या रिश्तों की बगिया।
ओस और बेटियां होती हैं,
कुछ ही समय की मेहमान।
धूप के आते ही छुप जाती है ओस,
और,
समय के साथ बेटियां भी बन जाती हैं,
किसी की पत्नी, बहू, भाभी और मां।
जिसमें गुम हो जाती है बेटी की मासूमियत,
फिर भी दे जाती हैं ठंडक,
सीमित समय में भी, ओस की ही तरह।
ओस बरसती है खुली छत, खुले खेत में,
तो बेटियां महकती हैं,
देती हैं दुआएं, वरदान,
घर आंगन में तुलसी की तरह।

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

कब आओगे


✍️
कब आओगे?
हमेशा की तरह
इंतजार करती निगाहें
और मां का यक्ष प्रश्न
कब आ रहे हो ........
मेरा भी हमेशा की तरह
एक ही जवाब,दिलासा
आ रहा हूं जल्दी
जल्दी ही आऊंगा........
पुराने घर का आंगन
आपके हाथ का खाना
आप और पिताजी के साथ
समय बिताऊंगा........
तिथि, दिन, वार, महीने में
और महीने
सालों में तब्दील हो गए ........
घर की दीवारें ही नहीं
बगीचे में रोपे बीज भी
फलदार वृक्ष हो गए...........
एक एक कर बिछुड़ते
दादी बाबा,
घर की शोभा बढ़ाते
सामान हो गए...........
गांव से शहर
फिर दूसरा राज्य
अब सरहदों के पार,दूसरा देश .........
समय ही नहीं
दूरी भी सीमाएं लांघ रही है
कमाने की चाहत है
या है, जरूरतें पूरी करने की
जरूरत ..........
और मैं! जरूरतें,
चाहत, जिम्मेदारियों
के बीच खुद को ही नहीं
खोज पा रहा हूं........

सोमवार, 11 मार्च 2019

काउंसलिंग रिश्तों की


✍️काउंसलिंग रिश्तों की___
जादूकीझप्पी, जादुई चिकित्सा-------
The most #effective nd #healing power. #स्पर्श, एक सुखद अहसास है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के सफर में  भिन्न #जज्बातों के साथ, कई रोगों की #दवा भी है स्पर्श!!!!
अपने किसी को गले लगाए, कितने दिन हो गए याद करिए। एक पिक्चर में  था `जादू की झप्पी'। शायद ये सही है, जब कोई परेशानी में हो, कुछ कहने के लिए हिम्मत या शब्द न हो,बस एक जादुई स्पर्श, प्यार की झप्पी या hug करना एक ही बात है। सारा कहा अनकहा आंखों के रास्ते बह कर निकल जायेगा । आज शायद इसी की कमी है। इसे स्पर्श चिकित्सा भी कह सकते हैं। हम दूर दूर तक तो टच में हैं, लेकिन जो सामने बैठा है, वह है हमसे कोसों दूर।
#समाज में अभी हाल ही में जो #झकझोर देने वाली  घटनाएं हुई हैं, इंदौर के भय्यू जी महाराज हों, करोड़ों की रेमण्ड के मालिक के बेटे की बेरुखी, अरबपति महिला का अपने करोड़ों के फ्लैट में पूरी तरह कंकाल बन जाना या बक्सर के IAS का तनाव के कारण आत्महत्या करना, या पूरे परिवार का ही सामूहिक आत्महत्या कर लेना, इन सब हालातों के लिए किसी एक को तो जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, लेकिन आगे कहीं किसी के साथ ऐसा न हो ऐसा प्रयास करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
#पूरी सिस्टम प्रणाली में ही कुछ कमी अवश्य रही होगी, फिर भाग्य या होनी को भी कौन टाल सका है।  आजकल बच्चों में भी अक्षर ज्ञान ही कहूंगी, बहुत है। लेकिन व्यवहारिक ज्ञान जो जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है, नहीं है। चाहे वह धैर्य हो, त्याग हो,
व्यवहारिकता या भावनाओं सम्बंधित। आत्महत्या तो कायरता है। जो जिंदगी दूसरों के लिए उदाहरण होती हैं, आकर्षित भी करती हैं, लेकिन ये घटनाएं बताती हैं जीवन में पैसा, पद, प्रतिष्ठा कुछ काम का नहीं अगर आपके जीवन में अपने नहीं हैं, संस्कार नहीं हैं, खुशी और संतुष्टि नहीं है तो।
#पैरेंटिंग भी ऐसी नहीं है,जहां बच्चों को यह सिखाया जाय जीवन के माने क्या हैं। यह तो कायरता है कि कैरियर की जंग में जीतकर भी जीवन की जंग में एक व्यक्ति हार गया। कई बार देखने में आता है, बात कड़वी जरूर है और लोग इसे स्वीकारेंगे भी शायद नही, लेकिन परिवार का एक बच्चा अगर अच्छी पोस्ट पर काबिज हो गया है तो स्वयं #मातापिता भी अपना भविष्य secure  करने में लगे रहते हैं। साथ ही उस बच्चे को इतना अपराध बोध (गिल्ट) महसूस करवाते रहेंगे, कि हमने तेरे ऊपर ही सारा जीवन, जमापूंजी खर्च कर दी। बस केवल उस पर से अपनी capturing नहीं छोड़ना चाहते। उधर शादी के बाद लड़की भी कुछ सपने लेकर आई होती है।जहाँ केवल अधिकारों की मांग तो है लेकिन आपस मे बैठकर बातचीत करने वाला कोई नहीं। सब अपनी दुनिया में मस्त , कितने घर हैं जहाँ #एकसाथ बैठ कर खाना खाते हों या आपस मे #संवाद हो। अगर संवाद होता तो क्या उस बुजुर्ग महिला के कंकाल बनने की नौबत आती। अब इन बुजुर्गों  ( XYZकोई भी हो सकता है ) की  जिंदगी के बारे में अनुमान लगाकर देखा जाय, शायद जब ये युवा रहे होंगे तब क्या इन्होंने किसी घर, मित्र, परिवार, रिश्तेदार को अपने यहाँ घुसने दिया। तब तो केवल पैसा,  शौहरत, ऊंचाईयां और अपनी आजादी। और जब यही सब उनके बच्चे कर रहे हैं तो फील #क्यों हो रहा है।
#सच तो यह है कि पैसे के साथ जवानी में हम किसी को नहीं पूछते तो बुढ़ापे में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं। और बच्चे हमेशा वही सीखते हैं जो देखा होता है। कभी आपने किसी घरवाले,रिश्तेदार आदि को पूछा होता तो शायद इस उम्र में यह अकेलापन नहीं कचोटता।आज भी कई बुजुर्ग जिनके पास पैसा, पावर या शारीरिक फिट हैं उनके एक बार लहजे देखिए। कइयों को कहते सुना है, मेरे पास इतना पैसा है झक मार कर बच्चे सेवा करेंगे या जिसको भी जायदाद दूंगा वो करेगा। पैसों का घमंड न दिखा कर थोड़े #संस्कार दे दिए होते काश--!!!!!!
#जब रिश्तों में भौतिक सुविधाएं हावी होने लगेंगी तो यही हश्र होगा।स्वार्थ को वरीयता देने से रिश्तों की डोर कमजोर हो रही है।सब पकड़ बनाना चाहते हैं, निभाना नहीं। हाल ही में हुई ये घटनाएं समाज को झकझोर देने वाली हैं। बुजुर्ग मातापिता की कानून की धमकी व ऐंठ भी कम नहीं है पैसों को लेकर।पहले #सत्ता का #हस्तांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बड़े अराम से हो जाया करता था वो बुजुर्ग भी इस #सत्ता के लोभ को छोड़ नहीं पाते। फिर संस्कार तो बच्चों ने मातापिता से ही सीखे होते हैं।काश आप भी बच्चों के लिए,आदर्श बने होते। इसीलिए वृद्ध मातापिता को बेसहारा छोड़ने के मामले भी बढ़ रहे हैं।
#काउंसिलिंग दोनों की ही जरूरी है #वृद्धों की भी और #बच्चों की भी। रिश्तों के कम होते महत्व के कारणों को तलाश करने की जरूरत है। कहीं न कहीं हमारी #परवरिश पर भी सवाल उठना वाजिब है।हम अपनी #लाइफ की CD को #रिवर्स में चला कर #सच्चाई के साथ देखें। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुध लेहु।

गुरुवार, 7 मार्च 2019

नारी

✍️
प्रकृति के हर रूप में नारी ही तो है। नारी में नव सृजन, अंकुरण की, धारण करने की अद्भुत क्षमता है। महिला दिवस पर शुभकामनाएं।
प्रकृति के हर रूप में,
जादू है,अनमोल तोहफा है नारी।
हर घर का आंगन है,
आंगन में उगी तुलसी है नारी।
बिन स्त्री घर नहीं, मकान है,
घर को घर बनाए रखती है नारी।
लक्ष्य के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति,
असुरों के लिए दुर्गा है नारी।
हिन्दू की गीता,मुस्लिम की कुरान,
सब ग्रंथो का सार है नारी।
सब खेतों में सोना बरसाए,
सब को धारण करे धरा है नारी।
प्रेम और सेवा की मूरत,
दुख में दिलासा,दर्द में मरहम है नारी।
सबकी मन की बात जान ले,
घर की चिकित्सक भी है नारी।
साहस और सामर्थ्य में,
कभी ना हारे,हौसलों की उड़ान है नारी।
अंधकार में चिराग है,
निराशा में उम्मीद की किरण है नारी।
जीवन के हर रिश्ते की आधार,
प्रभु का दिया उपहार है नारी।
दुनिया की आधी हिस्सेदारी,
सबके लिए वरदान है नारी।
प्रकृति की प्रतिकृति है,
इसीलिए तो नारी सब पर भारी।

पेरेंटिंग, जिद्दी बच्चों की


✍️ 
#पैरेंटिंग, कैसे हो #जिद्दी बच्चों की
परवरिश और खानपान____
#जिद्दी एवं #गुस्सैल बच्चों को संभालना बेहद मुश्किल है। ऐसे बच्चों पर थोड़ा अधिक ध्यान देने की जरूरत है।ये बच्चे आपका थोड़ा अधिक अटेंशन चाहते हैं। इन बच्चों को व्यवहार के साथ खानपान पर भी ध्यान रखें। जिद कम करने के लिए किशमिश, अंगूर, मुनक्का रसीले फल खिलाना उपयोगी है। #गैस, #पित्त बढ़ाने वाले भोजन जिद्दी बच्चों को नहीं दें। मसालेदार #जंक फूड, तले हुए भोजन से दूरी बनाकर रखें। विटामिन #सी वाला भोजन, #रसीलेफल बच्चों को अवश्य खिलाएं। #पानी का इनटेक बढ़ाएं। संभव हो तो चांदी के बर्तन में पानी पिएं।चांदी शीतलता प्रधान धातु है। बच्चों की जिद्द धीरे धीरे कम होगी। #नमक और #चीनी का सेवन भी कम करें, यह भी जिद्दी स्वभाव को कम करता है। शारीरिक रुप से कमजोर बच्चे अक्सर जिद्दी हो जाते हैं। कई बार मनचाही सफलता न मिलने पर भी जिद्दी स्वभाव हो जाता है। क्रोध के कारणों को जानना आवश्यक है। बच्चों को #प्यार से सही और गलत  समझाएं। #नाजायज बातों को नहीं मानें। अनुचित बातों पर #ना कहना भी आवश्यक है।यदि बच्चा क्रोध करें तो आप स्वयं क्रोध ना करें, संयम का परिचय दें, उन परिस्थितियों से बच्चे का ध्यान हटाएं। घर के बड़े अपने साथ बच्चों को बिठाकर #मेडिटेशन (ध्यान), प्राणायाम आदि सिखाएं। सुबह सुबह बच्चों को #घास पर टहलाएं। ऐसे बच्चे #शारीरिक #श्रम वाले खेल अवश्य खेलें। क्लासिकल संगीत सुनना भी अच्छा है,तेज शोर वाले रॉक म्यूजिक नहीं। यह सही है कि इस तरह बच्चे में एकदम बदलाव नहीं आएगा, लेकिन थोड़ा #धैर्य तो आप भी रखिए। उनको #जिद्दी बनाने में कई बार #मातापिता की #परवरिश का भी हाथ होता है। यह #वास्तव में तो #मातापिता के #हठ (जिद) की #प्रतिक्रिया ही है। शुरू शुरू में तो बच्चा डरकर मान जाता है, लेकिन बाद में धीरे-धीरे जिद करना प्रारंभ कर देता है। जब बच्चा जिद करे तो उसकी उपेक्षा नहीं करें, हालांकि उस समय उसको डांटना या समझाना दोनों ही फिजूल है। उसे कभी भी दूसरों के सामने नीचा ना दिखाएं। ध्यान रहे बच्चों की बुरी आदतें प्यार और सावधानी से ही दूर की जा सकती हैं। जल्दबाजी और दबाव द्वारा बच्चे सुधरते नहीं, इसके विपरीत और बिगड़ते ही हैं। इसी प्रकार मारना-पीटना किसी समस्या का समाधान नहीं है। माता पिता अपने बच्चों से बातें करें, हर चीज स्कूल, दोस्तों की उनसे शेयर करें। जो पेरेंट्स बच्चों के क्लोज रहते हैं, उनके अपने बच्चों के साथ संबंध अच्छे रहते हैं और बच्चे उनको अपने दिल की बातें बता सकते हैं, ऐसे संबंध हों तो उन बच्चों के अंदर नशा करने की प्रवृत्ति, बिगड़ने की संभावना, टेंडेंसी बेहद कम पाई जाती है। जो माता पिता अत्यंत सख्त होते हैं, और जो बच्चों का ध्यान नहीं रख पाते, ऐसे बच्चों में नशे आदि की बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है। क्योंकि उन्हें इमोशनल सपोर्ट नहीं मिल पाता। बच्चों को लेकर कभी भी सख्त रुख ना अपनाएं। ऐसे बच्चों में नशे में डूबने की आदत जल्दी ही पड़ जाती है। इसलिए हर चीज बच्चों से साझा करें, बातें करें, और उन्हें धैर्य, प्यार एवं समय के साथ
अच्छे दोस्त भी, बनकर अच्छी परवरिश दें।

मंगलवार, 5 मार्च 2019

यादें!

✍️
गर्म चाय में उठती भाप,
गुड़,अदरक, लौंग की महक,
खयाल मात्र से,
एक नशा सा छा जाता,
तुम्हारे रूई से मुलायम,
सफेद बादल से बाल,
पहाड़ों पर रुकी बारिश,
अलसाया सा सूरज,
कानों को चीरती हुई,
ठंडी तीखी हवा,
छाती में सांसों को,
जमा देने वाली ठंड,
खुश्की से फटे सुर्ख गाल,
पैरों में रेंगती चींटियां,
और सूजी हुई अंगुलियां,
सुबह दूध के लिए,
गाय का रंभाना, और
बरतनों की खटर पटर,
घर्र घर्र चक्की की आवाज,
कुछ खो आया था मैं!
गांव की वो सर्द सुबह,
गुनगुनाती भजन,
और घंटी की आवाज,
धुंधलाए चश्मे को साफ करतीं,
तेरी यादों का सिलसिला,
हां मां! मेरी प्यारी मां!
तुम हरदम मेरी सांसों में बसी हो।
मेरी सांसे, जो रह गई हैं,
गांव में, और मैं बसा हूं,
यहां इमारतों के बेजान शहर में।

रविवार, 3 मार्च 2019

पेरेंटिंग और चिड़िया

पैरेंटिंग__
एक दिन मैं! अल्लसुबह
घर की बालकनी में
चाय की चुस्कियां ले रही थी।
चिड़ा चिड़िया को
अपने सपनों का तिनका तिनका
घर बनाते देख रही थी।
कुछ दिनों बाद चीं चीं की
आवाजें आने लगीं।
मीठी मधुर ध्वनि से
घर की बगिया महकाने लगीं।
ना कोई अधिकार
ना कहीं कोई जोर था
खुशियों का ही केवल शोर था।
नन्हे पक्षी बड़े हो रहे
अपने पैरों पर खड़े हो रहे
घर छोड़ वो कहीं चले गए।
खुले आसमान में घने बादल बीच
गिरते पड़ते नई चुनौती
उड़ना, खाना सीख रहे हैं।
बूढ़ी चिड़िया को न कोई मलाल था
यह तो जीवन एक सवाल था
जिसको उसने हल किया है।
नया अध्याय शुरू करने
नई दुनिया में प्रवेश लिया है।
फिर ढर्रे पर लौट रही है
तिनका तिनका जोड़ रही है।
जिंदगी की पाठशाला में
मुझको नए सबक सिखा रही है।
कितनी सुंदर जीवन शैली
बिन बोले ही बता रही है।
तुमने अपना फर्ज निभाया
नहीं कोई अधिकार जता रही है।
नहीं रखें कोई अपेक्षा
बस यही था कर्तव्य हमारा
बन कर गुरु बता रही है।
सब ग्रंथो का है ये सार
बिन किताब ही पढ़ा रही है।

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

शराब से सर्वनाश

✍️शराब से सर्वनाश___
#कमाल है! #छात्राएं संकल्प लें, महिलाएं (पत्नियां) आंदोलन चलाएं, शराब बंदी के लिए। पुरुषों को ही क्यों नहीं दंडित किया जाए।खुलेआम इतनी शराब की दुकानें खुल रही हैं, इतने दूध के पार्लर ही खोल दे सरकार। जितना राजस्व प्राप्त नहीं होता होगा, उससे कहीं अधिक #शराब की वजह से होने वाले अपराधों को रोकने पर खर्च करना पड़ता होगा। यह तो सभी जानते हैं शराब सभी अपराधों की जड़ है। क्या और किसी #रिश्ते को कोई परेशानी नहीं होती शराब से। या परिवार, समाज को संभालने सुधारने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं पत्नियों की ही है।
#नशा अपराध,अनैतिकता का सबसे #बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं?? सरकारी तंत्र की ऊर्जा भी बचे, देश का भविष्य भी🤔
कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि #बोतल में #शराब है। किन्तु इस एक #शराब शब्द में बहुत #भयंकर अर्थ छिपा है।जैसे एक छोटे से #बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है,किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार #शराबरुपी #विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है।संस्कृत साहित्य के एक ग्रन्थ में इस रहस्य को एक रोचक कथा द्वारा समझाया गया है____
आज जो शराब बोतलों में रखी जाती है, पहले यह घड़ों में रखी जाती थी। एक गणिका सिर पर घड़ा (सुरा पात्र) रखे जा रही थी। मार्ग में खड़े जाँचकर्त्ता #राजपुरुष (सिपाही) ने गणिका से पूछा-इस घड़े में क्या लिये जा रही हो?
#गणिका ने उत्तर दिया- हमारा #पेय पदार्थ है।
#राजपुरुष ने कहा- सही-सही बताओ कि इसमें क्या है?
#गणिका ने कहा-सही-सही पूछना चाहते हो तो सुनो-
#मदः प्रमादः कलहश्च निद्रा, बुद्धिक्षयो धर्मविपर्ययश्च।
#सुखस्य कन्था दुःखस्य पन्थाः, अष्टावनर्थाः सन्तीह कर्के।।
अर्थात् इस #सुरापात्र में मैं आठ #अनर्थ एक साथ लिये जा रही हूँ, वे हैं-१.मद (नशा), २. प्रमादः (आलस्य),३. कलहः (लड़ाई-झगड़ा),४. निद्रा (नींद),५. बुद्धिक्षयः (बुद्धि का नाश),६. धर्मविपर्यय (अधर्म और अनर्थ का मूल),७. सुखस्य कन्था (सुख का विनाश) और ८. दुःखस्य पन्था (दुःखदायक मार्ग) ।

अर्थात् इन सबकी #प्रतीक पेयवस्तु है इसमें और उसका नाम है-'#मदिरा' अर्थात् 'शराब' ।यह मदिरा इतने सारे #दुःखों-#अनर्थों को #उत्पन्न करती है।

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

मौन की शक्ति

#मौन' की शक्ति ---------
शरीर को स्वस्थ रखने के अनेक प्रयास।
मन को स्वस्थ रखने के लिए क्या??

#मौन सभी रोगों की औषधि है। मौन बुद्धिमानों के लिए हितकारी है, तो फिर मूर्खों के लिए कितना हितकारी होगा। मैं अपने जीवन में बुद्धिमानों के बीच पला बढ़ा हूँ, और मैं मौन की तुलना में कोई भी बेहतर सेवा नहीं जानता।
                                         प्राचीन यहूदी उक्ति
#मौन विभिन्न तरीकों को प्रयोगों द्वारा अंतःकरण में उतर कर जानने की क्रिया है। मौन में बड़ी शक्ति है।
विचार तभी संभव हो सकता है, जब मन शांत हो, एकाग्र हो। विचारों की भीड़ हो तो किसी भी विषय पर सोच विचार हो ही नहीं सकता।पढ़ने, सोचने, लिखने, कुछ नया ढूंढने एवं आत्मचिंतन के लिए भी तो मौन आवश्यक है। अगर कोई बिना विराम दिए लगातार बोले तो क्या आपको कुछ भी समझ में आएगा?
#मौन एवं चुप्पी साधने या मुंह फुला कर किसी भी बात का जवाब न देना, दोनों में बेहद #फर्क है।दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं। चुप्पी साधने में हमारे अंदर विचारों का कोहराम मचा होता है, हम उस समय कमजोर स्थिति में होते हैं, कोई  सॉल्यूशन नहीं लेकिन मौन में हमें दिशा मिलती है।मौन जहाँ व्यक्तित्व निर्माण में सहायक है, चुप्पी आपके व्यक्तित्व के लिए हानिकारक भी है।चुप्पी मतलब अपने आप से भागना,मौन मतलब #सॉल्यूशन।
आमतौर पर हम अधिक बोलने पर ज्यादा महत्व देते हैं। हर समय बस बोलना बोलना-----
#जब हम मौन हैं तो दूसरे को अच्छी तरह समझ सकते हैं। किसी भी वार्तालाप का एक तिहाई हिस्सा #अनकहा ( non verbal) है। हमारे शरीर में दो कान, एक मुंह इसीलिए है, ताकि जितना सुने उसका आधा ही बोलें। खाना खाते समय मौन रखना अच्छी आदत है।आज भी कई लोग इस का अनुसरण करते हैं। इससे आप अच्छी तरह पूर्ण स्वाद लेकर तथा चबा चबा कर खाते हैं। जिससे ज्यादा भी नहीं खाते तथा पूर्ण सन्तुष्टि एवं शरीर भी स्वस्थ रहता है।
`#आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री #रविशंकर जी बताते हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि वे जो कर रहे हैं, पर्याप्त नहीं है।इससे बड़े पैमाने पर बदलाव नहीं आयेगा।एक बेचैनी थी उनके हृदय में,ध्यान और शिक्षण के अलावा भी मनुष्य को कुछ चाहिए जो उसके जीवन में बड़े पैमाने पर परिवर्तन ला सके।तब श्री श्री शिमोगा (बेंगलुरू के पास एक स्थान ) गए, वहां वे दस दिन तक मौन रहे। मौन का मतलब उन्हीं के शब्दों में --
#हर सांस में प्रार्थना #मौन है!
#अनन्त में प्रेम #मौन है!
#शब्दहीन ज्ञान #मौन है!
#लक्ष्यहीन करुणा #मौन है!
#कर्ताहीन करुणा #मौन है !
#सृष्टि के संग मुस्कुराना #मौन है!
#और अंतिम दिन मौन की क्रांति खत्म हुई। जब ध्यान टूटा तो परिणाम सामने था। #सुदर्शन क्रिया यानि सांस लेने की एक विशेष प्रणाली जन्म ले चुकी थी। हम अपनी सभी भावनाओं को शब्दों में कैद नहीं किया जा सकता।इन्हें व्यक्त करने के लिए बहुत सी #मूक मुद्राओं का प्रयोग करते हैं जैसे-आलिंगन, किसी को हृदय के करीब लाने के लिए पुष्प भेंट करना आदि, ताकि भावनायें व्यक्त हो सकें। और ये मौन में भी अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं।
#विपश्यना में तो मौन ही मुख्य है।यह #आत्मशुद्धि की एक वैज्ञानिक कला है।अपने को पहचानना तभी संभव है जब हम अपने भीतर की आवाज भी सुनना सीखें। दूसरे की बात सुनने कला है, लेकिन अपने #अंतःकरण की बात सुनना धर्म है।इस तरह आप स्वयं अपने व्यक्तित्व निर्माण में सहायक हो सकते हैं।अपनी दबी हुई इच्छाओं, कामनाओं को पूर्ण करने का,व्यक्त होने का अवसर देता है।
#मौन से आत्मीयता बढ़ती है। एक प्यारभरी नजर, मीठी मुस्कान, हल्का स्पर्श और मुंह से कोई बोल ना निकालें, तो भी ये खामोशी कितना कुछ कह देती है।इसके बाद अगर आप कुछ बोलेंगे तो उसका प्रभाव अच्छा होगा।
#कैसी भी बहस (विवाद)हो रही हो,चुप रहना लड़ाई का रुख बदल सकता है।【हर समय नहीं,चुप्पी साध लेना,अलग चीज है।कई बार उचित समय पर ना बोलना भी कलह का कारण बन सकता है।तथा आपको कमजोर साबित कर देता है।】आपसे लड़ने वाला व्यक्ति भी परेशान हो जायेगा, प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा।विरोध जरूरी हो तो जताएं, अगर कोई आपसे सहमत नहीं है, तो तेज आवाज में ऊंचा बोलकर आपा खोने से बेहतर है, मौन रखा जाय।
#मौन रख कर देखें।अभ्यास करने से आप भीड़ में भी शांति पाना सीख सकते हैं।#मानसिक तनावरोधक तथा स्वयं को शांत,प्रसन्नचित इंसान बनाने में मदद मिलेगी।तथा जीवन में #मनचाहा लक्ष्य पा सकेंगे।हर स्थिति में ज्यादा सन्तुलित रहेंगे। बुरे वक्त में भी नकारात्मकता हावी नहीं होगी।
My silence means I am on a self healing process and I am trying to forgot everything I ever wanted and felt. My silence means I am just trying to move on gracefully with all my dignity through all this emotional pain.