गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

शराब से सर्वनाश

✍️शराब से सर्वनाश___
#कमाल है! #छात्राएं संकल्प लें, महिलाएं (पत्नियां) आंदोलन चलाएं, शराब बंदी के लिए। पुरुषों को ही क्यों नहीं दंडित किया जाए।खुलेआम इतनी शराब की दुकानें खुल रही हैं, इतने दूध के पार्लर ही खोल दे सरकार। जितना राजस्व प्राप्त नहीं होता होगा, उससे कहीं अधिक #शराब की वजह से होने वाले अपराधों को रोकने पर खर्च करना पड़ता होगा। यह तो सभी जानते हैं शराब सभी अपराधों की जड़ है। क्या और किसी #रिश्ते को कोई परेशानी नहीं होती शराब से। या परिवार, समाज को संभालने सुधारने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं पत्नियों की ही है।
#नशा अपराध,अनैतिकता का सबसे #बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं?? सरकारी तंत्र की ऊर्जा भी बचे, देश का भविष्य भी🤔
कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि #बोतल में #शराब है। किन्तु इस एक #शराब शब्द में बहुत #भयंकर अर्थ छिपा है।जैसे एक छोटे से #बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है,किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार #शराबरुपी #विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है।संस्कृत साहित्य के एक ग्रन्थ में इस रहस्य को एक रोचक कथा द्वारा समझाया गया है____
आज जो शराब बोतलों में रखी जाती है, पहले यह घड़ों में रखी जाती थी। एक गणिका सिर पर घड़ा (सुरा पात्र) रखे जा रही थी। मार्ग में खड़े जाँचकर्त्ता #राजपुरुष (सिपाही) ने गणिका से पूछा-इस घड़े में क्या लिये जा रही हो?
#गणिका ने उत्तर दिया- हमारा #पेय पदार्थ है।
#राजपुरुष ने कहा- सही-सही बताओ कि इसमें क्या है?
#गणिका ने कहा-सही-सही पूछना चाहते हो तो सुनो-
#मदः प्रमादः कलहश्च निद्रा, बुद्धिक्षयो धर्मविपर्ययश्च।
#सुखस्य कन्था दुःखस्य पन्थाः, अष्टावनर्थाः सन्तीह कर्के।।
अर्थात् इस #सुरापात्र में मैं आठ #अनर्थ एक साथ लिये जा रही हूँ, वे हैं-१.मद (नशा), २. प्रमादः (आलस्य),३. कलहः (लड़ाई-झगड़ा),४. निद्रा (नींद),५. बुद्धिक्षयः (बुद्धि का नाश),६. धर्मविपर्यय (अधर्म और अनर्थ का मूल),७. सुखस्य कन्था (सुख का विनाश) और ८. दुःखस्य पन्था (दुःखदायक मार्ग) ।

अर्थात् इन सबकी #प्रतीक पेयवस्तु है इसमें और उसका नाम है-'#मदिरा' अर्थात् 'शराब' ।यह मदिरा इतने सारे #दुःखों-#अनर्थों को #उत्पन्न करती है।

बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

मौन की शक्ति

#मौन' की शक्ति ---------
शरीर को स्वस्थ रखने के अनेक प्रयास।
मन को स्वस्थ रखने के लिए क्या??

#मौन सभी रोगों की औषधि है। मौन बुद्धिमानों के लिए हितकारी है, तो फिर मूर्खों के लिए कितना हितकारी होगा। मैं अपने जीवन में बुद्धिमानों के बीच पला बढ़ा हूँ, और मैं मौन की तुलना में कोई भी बेहतर सेवा नहीं जानता।
                                         प्राचीन यहूदी उक्ति
#मौन विभिन्न तरीकों को प्रयोगों द्वारा अंतःकरण में उतर कर जानने की क्रिया है। मौन में बड़ी शक्ति है।
विचार तभी संभव हो सकता है, जब मन शांत हो, एकाग्र हो। विचारों की भीड़ हो तो किसी भी विषय पर सोच विचार हो ही नहीं सकता।पढ़ने, सोचने, लिखने, कुछ नया ढूंढने एवं आत्मचिंतन के लिए भी तो मौन आवश्यक है। अगर कोई बिना विराम दिए लगातार बोले तो क्या आपको कुछ भी समझ में आएगा?
#मौन एवं चुप्पी साधने या मुंह फुला कर किसी भी बात का जवाब न देना, दोनों में बेहद #फर्क है।दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं। चुप्पी साधने में हमारे अंदर विचारों का कोहराम मचा होता है, हम उस समय कमजोर स्थिति में होते हैं, कोई  सॉल्यूशन नहीं लेकिन मौन में हमें दिशा मिलती है।मौन जहाँ व्यक्तित्व निर्माण में सहायक है, चुप्पी आपके व्यक्तित्व के लिए हानिकारक भी है।चुप्पी मतलब अपने आप से भागना,मौन मतलब #सॉल्यूशन।
आमतौर पर हम अधिक बोलने पर ज्यादा महत्व देते हैं। हर समय बस बोलना बोलना-----
#जब हम मौन हैं तो दूसरे को अच्छी तरह समझ सकते हैं। किसी भी वार्तालाप का एक तिहाई हिस्सा #अनकहा ( non verbal) है। हमारे शरीर में दो कान, एक मुंह इसीलिए है, ताकि जितना सुने उसका आधा ही बोलें। खाना खाते समय मौन रखना अच्छी आदत है।आज भी कई लोग इस का अनुसरण करते हैं। इससे आप अच्छी तरह पूर्ण स्वाद लेकर तथा चबा चबा कर खाते हैं। जिससे ज्यादा भी नहीं खाते तथा पूर्ण सन्तुष्टि एवं शरीर भी स्वस्थ रहता है।
`#आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री #रविशंकर जी बताते हैं कि उन्हें महसूस हुआ कि वे जो कर रहे हैं, पर्याप्त नहीं है।इससे बड़े पैमाने पर बदलाव नहीं आयेगा।एक बेचैनी थी उनके हृदय में,ध्यान और शिक्षण के अलावा भी मनुष्य को कुछ चाहिए जो उसके जीवन में बड़े पैमाने पर परिवर्तन ला सके।तब श्री श्री शिमोगा (बेंगलुरू के पास एक स्थान ) गए, वहां वे दस दिन तक मौन रहे। मौन का मतलब उन्हीं के शब्दों में --
#हर सांस में प्रार्थना #मौन है!
#अनन्त में प्रेम #मौन है!
#शब्दहीन ज्ञान #मौन है!
#लक्ष्यहीन करुणा #मौन है!
#कर्ताहीन करुणा #मौन है !
#सृष्टि के संग मुस्कुराना #मौन है!
#और अंतिम दिन मौन की क्रांति खत्म हुई। जब ध्यान टूटा तो परिणाम सामने था। #सुदर्शन क्रिया यानि सांस लेने की एक विशेष प्रणाली जन्म ले चुकी थी। हम अपनी सभी भावनाओं को शब्दों में कैद नहीं किया जा सकता।इन्हें व्यक्त करने के लिए बहुत सी #मूक मुद्राओं का प्रयोग करते हैं जैसे-आलिंगन, किसी को हृदय के करीब लाने के लिए पुष्प भेंट करना आदि, ताकि भावनायें व्यक्त हो सकें। और ये मौन में भी अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं।
#विपश्यना में तो मौन ही मुख्य है।यह #आत्मशुद्धि की एक वैज्ञानिक कला है।अपने को पहचानना तभी संभव है जब हम अपने भीतर की आवाज भी सुनना सीखें। दूसरे की बात सुनने कला है, लेकिन अपने #अंतःकरण की बात सुनना धर्म है।इस तरह आप स्वयं अपने व्यक्तित्व निर्माण में सहायक हो सकते हैं।अपनी दबी हुई इच्छाओं, कामनाओं को पूर्ण करने का,व्यक्त होने का अवसर देता है।
#मौन से आत्मीयता बढ़ती है। एक प्यारभरी नजर, मीठी मुस्कान, हल्का स्पर्श और मुंह से कोई बोल ना निकालें, तो भी ये खामोशी कितना कुछ कह देती है।इसके बाद अगर आप कुछ बोलेंगे तो उसका प्रभाव अच्छा होगा।
#कैसी भी बहस (विवाद)हो रही हो,चुप रहना लड़ाई का रुख बदल सकता है।【हर समय नहीं,चुप्पी साध लेना,अलग चीज है।कई बार उचित समय पर ना बोलना भी कलह का कारण बन सकता है।तथा आपको कमजोर साबित कर देता है।】आपसे लड़ने वाला व्यक्ति भी परेशान हो जायेगा, प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा।विरोध जरूरी हो तो जताएं, अगर कोई आपसे सहमत नहीं है, तो तेज आवाज में ऊंचा बोलकर आपा खोने से बेहतर है, मौन रखा जाय।
#मौन रख कर देखें।अभ्यास करने से आप भीड़ में भी शांति पाना सीख सकते हैं।#मानसिक तनावरोधक तथा स्वयं को शांत,प्रसन्नचित इंसान बनाने में मदद मिलेगी।तथा जीवन में #मनचाहा लक्ष्य पा सकेंगे।हर स्थिति में ज्यादा सन्तुलित रहेंगे। बुरे वक्त में भी नकारात्मकता हावी नहीं होगी।
My silence means I am on a self healing process and I am trying to forgot everything I ever wanted and felt. My silence means I am just trying to move on gracefully with all my dignity through all this emotional pain.

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

प्रौढ़ावस्था _ संघर्ष/सामंजस्य


प्रौढ़ावस्था_ संघर्ष / सामंजस्य
नई और पुरानी पीढ़ी में वैचारिक मतभेद हमेशा से चला आ रहा है। नई बात नहीं है, लेकिन जितनी दूरियां आज बढ़ गई हैं, उतनी पहले नहीं थीं। लोगों में अधिक से अधिक पाने, सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है,और इसके चलते परिवार संस्कृति, विघटन  की ओर बढ़ रही है। जहां पुरानी पीढ़ी प्रौढ़ावस्था में स्वयं को हर कार्य के लिए सही मानते हुए, नई पीढ़ी को अपने समय की परंपराओं एवं मान्यताओं को ही नहीं, बस केवल और केवल आदेश मानने के लिए विवश करने के साथ ही उचित ठहराने का प्रयास करती है, वहीं स्वतंत्र विचारों वाली नई पीढ़ी भी कई बार अपने को पूर्ण परिपक्व मानते हुए आधुनिक परिवेश में रहना पसंद करती है। संघर्ष का कारण यह नहीं है कि नई पीढ़ी बुरी है, या पुरानी पीढ़ी बुरी है। बुरा है सोचने का, अपेक्षाओं का, नकारात्मकता को पोषित करने का तरीका। वास्तविक समस्या यह है कि दोनों ही पीढ़ियां अपने अहम की संतुष्टि के साथ खुद को ही श्रेष्ठ मानते हुए, अपने लिए एक विशेष स्थान प्राप्त करने की इच्छा रखती हैं। यह अंतर हम मनुष्यों में ही नहीं जानवरों में भी होता है। सबको अपने अधिकार, स्थायित्व की चिंता बनी रहती है। वानरों के किसी भी दल में एक ही नर वानर होता है, और उसी का अधिकार होता है। उसी दल में जब वानरों के बच्चे युवा होते हैं तो दल पर आधिपत्य के लिए युवा वानरों एवं बुजुर्ग नर वानरों के मध्य मरने मारने का द्वंद होता है, कुत्तों, शेरों के अपने इलाके में दूसरे की घुसपैठ पर लड़ाई, हाथियों के झुंड में भी ऐसा विरोध अक्सर देखने को मिलता है। यह सब आधिपत्य की लड़ाई के लिए है। लेकिन हमें (बुजुर्गों को) कुछ सीख #पक्षियों से भी लेने की जरूरत है। जो बच्चों को पालते हैं, पोसते हैं और समय के साथ छोड़ देते हैं अपनी जिंदगी जीने के लिए, उड़ान भरने के लिए। हम पशु तो नहीं हैं, विवेक भी है, फिर अहम, जिद छोड़ क्यों नहीं रहे। हर चीज, पूर्वाग्रहों को, कम्बल की तरह लिपटाए बैठे हैं। समय के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, जो कल आपका था, आज #हस्तांतरण के लिए तैयार रहिए, विवश होकर नहीं, खुशी खुशी। कभी आप भी युवा थे, उस स्थति को भी याद कर सकते हैं, कितने बदतमीज या हेकड़ थे? याद आया? ऐसा तो हो नहीं सकता कि जिन युवाओं को आज उद्दंड, बदतमीज बताया जा रहा है, वह बुजुर्ग होते ही निरीह और सीधा सरल हो जाएगा, हो सकता है आप भी उनमें से एक हों। इसलिए नई पीढ़ी को कोसना बंद कर, थोड़ा सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करें। नई और पुरानी पीढ़ी में हमेशा विचारों में अंतर रहा है। इसी अंतर से पीढ़ियों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। दरअसल आज की जीवन शैली व परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। वर्तमान में देश जिस बदलाव के दौर से गुजर रहा है, आशंका है कि नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के संबंधों का भविष्य क्या होगा? दिखने लगा है। एक असुरक्षा का भाव बना हुआ है। रिश्तों में मिठास कम हो रही है, असुरक्षा, संदेह घेरे हुए है। भौतिकतावाद भी एक वजह हो सकती है। पिछले चार पांच दशक में विज्ञान के प्रभाव से हमारा रहन-सहन एवं व्यवहार भी अछूता नहीं है। परिवर्तित व्यवस्था से नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में दूरियां स्पष्ट नजर आने लगी हैं। आधुनिक व्यवस्था एवं मान्यताओं से प्रभावित नई पीढ़ी वर्षों से चली आ रही परंपरा, संस्कारों एवं मान्यताओं वाली पुरानी पीढ़ी में सामंजस्य की कमी निरंतर बढ़ रही है, जैसे-जैसे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है मानसिक रोगों की वृद्धि होती जाती है। जब मानसिक रोगों का निवारण नहीं किया जाए तो कालांतर में, शारीरिक रोग का रूप ले लेता है। इसी कारण प्रौढ़ ही नहीं, युवावस्था में भी अनेक रोगों से ग्रसित हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति के विचार भिन्न भिन्न होते हैं, हर कोई हमारी इच्छा के अनुरूप ही कार्य करें यह संभव नहीं है। जिन्हें हमने सर्वस्व लुटा कर लाड़ प्यार के साथ बड़ा किया है, यदि उनकी खुशी के लिए हमारे जीवन में कुछ परिवर्तन कर लिया जाए तो दोनों पीढ़ियों का जीवन आनंदमय में हो सकता है।इसमें नुकसान भी कहां है। यदि पुरानी पीढ़ी तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन के साथ नई पीढ़ी की महत्वाकांक्षा को समझ कर उनके जीवन में सहयोगी बने, तथा नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी की भावनाओं को समझते हुए #सामंजस्य स्थापित कर उनका आदर करे, तो दोनों पीढ़ियां एक सुखद भविष्य की ओर अग्रसर होती हैं। बच्चों को अनुभव के साथ अच्छी सुरक्षित परवरिश मिलेगी, तथा बुजुर्गों को मान सम्मान के साथ उचित सेवा व देखभाल, अन्यथा दोनों ही पीढ़ियां सुखी नहीं रह सकती और ना ही तरक्की कर सकती हैं। लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं में भी बदलाव आया है। जीवन में हम #बुजुर्ग अपने अहम् को त्याग कर अपनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर फिर आनंददायक जीवन की शुरुआत करें, एवं अच्छे समाज एवं राष्ट्र का निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। यह जिम्मेदारी हम बुजुर्ग व्यक्तियों की बनती है, जिसमें युवा भी सहयोग करें। लेकिन शुरुआत हम बुजुर्गों को ही करनी चाहिए, बड़प्पन भी इसी में है। कब तक झूठे अहम के साथ जिएंगे। सूखे ठूंठ की तरह अकड़ना क्या उचित है, नहीं तो टूटने के लिए तैयार रहें। थोड़ा धैर्य व व्यवहार में लचीलापन तो होना ही चाहिए।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

रिश्तों का अतिक्रमण


✍️
#रिश्तों का #अतिक्रमण _____
#कई बार जाने अनजाने में हम अपनी #सीमाओं को पार कर जाते हैं, हालांकि यह हमारा उद्देश्य नहीं होता। मुझे आज भी याद है, मेरी मित्र की नई नई शादी हुई थी,और उसको रसोई में कुछ खास बनाना नहीं आता था। उसकी जिठानी शुरू शुरू में उसकी सहायता कर देती थी। लेकिन धीरे धीरे मेरी मित्र को दरकिनार कर, जिठानी सारी कमान अपने हाथ में संभाल, स्वयं ही मेरी मित्र के पति पर अधिकार जताने लगी, कभी मित्र के पति के पसंद की सब्जी, कभी कोई डिश, यहां तक कि सुबह की चाय, कपड़े वगैरह भी देने लगी। मेरी मित्र सुलझे विचारों की थी, जो उसे समझ गया, और स्थति बिगड़ने से पूर्व ही उसने संभाल ली। इस #वाकये में गलती चाहे किसी की भी नहीं थी, फिर भी #अतिक्रमण हो रहा था। वो जिठानी शुरू में ही मेरी मित्र को समझाती, सिखाती तो शायद अच्छा रहता। बड़े बनना है, तो हमेशा #मर्यादा में रहें।
#पति पत्नी के बीच, एक और सबसे #अजीज अतिक्रमण, मेरी मां______यह एक ऐसा जुमला है, जिस बहस में कोई गुंजाइश नहीं, दोनों के अपने 2 श्रेष्ठता के मानक हैं। या तो जो अच्छा है,उसे स्वीकारें, नहीं तो ऐसी बातों को टच ही ना किया जाए। सच कड़वा तो होता ही है, निगला नहीं जाता। करना, धरना कुछ नहीं, #अहम की कसक.......इगो से बचें।
#आजकल एक और #अतिक्रमण है, #समय का। आपका मन नहीं लग रहा, बस उठाया मोबाइल, घुमाया नंबर, और शुरू। फोन में घुस कर झांकने, पकड़ बनाने की आदत, न ये देखा कि अगले के पास समय है या नहीं, उसके अपने काम होंगे, हो सकता है वो हिचकता हो, #संयम बरतिये।
#एक और किस्सा देखिए, हमारे पड़ोस में एक परिवार में सास, बहू रहती हैं। दूसरे पड़ोस में रहने वाली #सुषमा गाहे बगाहे, सास बहू के घर में आकर कभी सास के लिए चाय बना लाती, कभी पैरों में तेल लगाने बैठ जाती, और गप्पें, शुरू। सुमन के जाने बाद सास अपनी बहू को अक्सर ताने देती। अरे देखो! सुमन को, मेरे पैर दबाती है, तेल लगाती है, इतनी अच्छी है, उतनी अच्छी है, आदि...... आदि। कुछ दिन तो बहू ने सुना, बाद में उसने जवाब दे दिया, मांजी, अगर आप इजाजत दें, तो मैं भी ऐसी ही अच्छी बन सकती हूं, दूसरों के घर जाकर #कुछ समय के लिए #बड़प्पन लेना बहुत आसान है, रोज वालों को साथ लेकर निभाना मुश्किल है।
#मित्रता में भी #हक जताने के साथ, अपनी सीमाओं का #उल्लंघन ना होने पाए, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। अन्यथा दूरी बनते देर नहीं लगती। आजकल हम खुलापन (ब्रॉड माइंडेड) दिखाने के वहम में #अनाधिकृत चेष्टा करने लगे हैं। जो उचित नहीं है। मर्यादित, संयमित व्यवहार सदैव आकर्षित करता है।
#कई बार आप ने आंटियों को भी दूसरे बच्चों को बहला फुसला कर काम करवाते देखा होगा। उधर अपने बच्चों को ताना मारेंगी, देखो इस बच्चे को!!! मुझे मां की तरह मानता है, एक तुम हो। अब इन मांओं को कौन समझाए, कि बाहरी बेटों को केवल बातें बनानी हैं,और आपके बेटे को  #जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से निभाना है। इसलिए अपनी सीमाओं को पहचाने,रिश्तों में अनावश्यक #अतिक्रमण से बचें। आपके द्वारा किए गए अनावश्यक #अतिक्रमण से दूसरे के घर की #शांति भंग हो सकती है। #रिश्तों की डोर बेहद #नाजुक, नरम, होती हैं। उन्हें उलझने, टूटने से बचाईए। #किसी भी प्रकार का #अतिक्रमण हानिकारक है, रिश्तों का हो,या जगह का। दरकेगा (टूटेगा) ही!!!

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

मां!

✍️
#There is not enough words to describe just how much #important she is. She gave #life, #nurtured, #taught, #dressed, #shouted, #kissed but most #important she loves #unconditionally.
कुछ ऐसे लोग होते हैं, #गले लगते ही सुकून मिलता है।                #माँ, ऐसी ही #शख्सियत है।
#माँ, एक शब्द नहीं, #ब्रह्मांड समाया है इसमें--------
जीवन के #कटुसत्य से रूबरू कराती----------
#दिल को #छू लेने वाली एक कविता----------                                   

पहले कितनी सुंदर थी,वो गुड़िया सी लगती थी माँ।                              घूमती फिरती फिरकी थी, अब बुढ़िया सी लगती माँ।                   

हँसती थी तो फूल थे झरते, मोती सी चमकती माँ।                           हँसना छोड़ा कब का,अब तो खुल के रोती भी नहीं माँ।                       

जीवन के चलचित्र की जैसी मुख्य नायिका सी थी माँ।                                                              सरक गई कोने में, अब एक्स्ट्रा सी हो गई माँ।                                   

जब जरूरत थी हम सबको, हम सबकी दुलारी थी माँ।                                                                जब सब बड़े हो गए, बोझिल गठरी बन गई माँ।
                                                 (अज्ञात)

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

पैरेंट्स,बच्चों को मोबाइल का झुनझुना देना बंद कीजिए

✍️पेरेंट्स,
बच्चों के हाथ में मोबाइल का झुनझुना देना बंद करिए __
डिजिटल लत का चस्का__संचार क्रांति ने हमारी दुनिया बदल कर रख दी है। मोबाइल जीवन की जरूरत बन चुका है। जहां एक और यह आवश्यक है वहीं इसके अत्यधिक प्रयोग से नुकसान, परेशानियां भी पैदा हो रही हैं। बच्चे का प्रथम #स्कूल घर ही है, वे माता-पिता का ही सबसे ज्यादा अनुसरण करते हैं। अतः माता-पिता भी इनका सीमित प्रयोग कर बच्चों के साथ समय व्यतीत करें। घूमने जाएं, घर के कार्यों में सहायता लें, शारीरिक खेल या दोस्तों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह हम छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर बच्चों को इसका आदी होने से बचा सकते हैं।
एक शोध के मुताबिक, स्मार्टफोन दुखी एवं परेशान रहने वालों की पूरी पीढ़ी तैयार कर रहा है। जो बच्चे स्क्रीन, मोबाइल गेम, कंप्यूटर स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं, वह ज्यादा दुखी परेशान रहते हैं। बच्चे यदि व्यायाम करने एवं दोस्तों से प्रत्यक्ष बातचीत में ज्यादा समय देंगे, तो वे ज्यादा खुश रहेंगे। मीडिया पर ज्यादा समय देने से अवसाद, नाखुशी बढ़ती है। शोध के मुताबिक लंबे समय तक लगातार मोबाइल प्रयोग करने से रेडिएशन से शरीर का पानी सूखने लगता है। लंबे समय तक मोबाइल प्रयोग करने से गर्म हो जाता है, यह भी सेहत के लिए अहितकर है। इसके बेतहाशा उपयोग से विद्युत चुंबकीय क्षेत्र फ्री रेडिकल्स की संख्या में इजाफा कर देता है, जिससे बायोलोजिकल सिस्टम के बिगड़ने की संभावना रहती है। मोबाइल फोन से आंखों, सुनने की क्षमता, पाचन संस्थान एवं पॉश्चर पर भी इसका बुरा प्रभाव दिख रहा है। बेहतर होगा स्मार्टफोन स्क्रीन पर कम समय बिताएं।
भटकाव बढ़ाता मोबाइल, आपका दोस्त कम दुश्मन ज्यादा है। कई बार इसके अत्यधिक प्रयोग की वजह से घरों में कलह होती देखी गई है। हम एक दूसरे पर कम ध्यान दे रहे हैं।पूरी दुनिया की खबर रखने की कोशिश में अपनों के प्रति लापरवाह हो रहे हैं।
आजकल अक्सर देखने में आता है, नये बने माता पिता अपने छोटे छोटे बच्चों को बहलाने, खाना खिलाने, सुलाने या रोते हुए को चुप कराने के लिए भी मोबाइल पकड़ा, यू ट्यूब दिखा कर खुश होते हैं। शुरू में आपने बच्चे को पकड़ाया, परिचित करवाया, बाद में,ये ही लाड़ मुसीबत बन, परेशान करेगा। वो बच्चा अपनी आदत एकदम कैसे छोड़ देगा। कई बार माता-पिता को पता ही नहीं होता, कि बच्चे सोशल मीडिया पर क्या कर रहे हैं? देर रात तक ऑनलाइन रहते हैं, बच्चे ज्यादा स्मार्ट होते हैं, वे मैसेज आदि डिलीट कर, अपने आप को भोला, मासूम, पाक साफ दिखाते हैं, और माता-पिता उन पर तुरंत यकीन कर लेते हैं। मेरी अपनी सोच है, जब तक बच्चे समझदार ना हो जाएं,उन्हें कमरे में अकेले नहीं सोने देना चाहिए। वो रात में क्या कर रहा है, आपको पता ही नहीं होता, देर रात ऑनलाइन रहता है। ये जो आजकल विदेशी संस्कृति हावी हो रही है, बच्चे अलग सुलाने की। पहले के समय में बच्चे सब एक साथ, या दादी, नानी के साथ सोते थे। इस तरह कुछ भी गलत करने की संभावना कम ही होती थी। आजकल बच्चे रात में क्या कर रहे हैं, पैरेंट्स को ही पता नहीं होता।
इंटरनेट के मायाजाल से अपने बच्चों को निकालिए। लती (एडिक्ट) तो आप भी कम नहीं। बच्चों को आपका बहुमूल्य समय चाहिए, और वो आप देने की बजाय, मोबाइल देकर पीछा छुड़ाते हैं। बच्चे भी पढ़ाई से लेकर मनोरंजन तक सभी कुछ इसी पर करना चाहते हैं। छोटी उम्र में इन डिवाइस के इस्तेमाल से बच्चों में मतिभ्रम की स्थिति बन जाती है, क्या करूं, क्या ना करूं।
एक शोध में पाया गया कि जो बच्चे,किशोर, युवा मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, उन बच्चों की स्मरण शक्ति, एकाग्रता अत्यधिक कमजोर हो जाती है। साथ ही चिड़चिड़े तथा आक्रामक स्वभाव के हो जाते हैं। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन युवाओं के सिर को 25% 10 से 15 साल के बच्चों के सिर को 50% तथा 10 वर्ष से छोटे बच्चों के सिर को 75% तक प्रभावित करता है। ब्रेन कैंसर का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। युवाओं में स्पर्म में 30% कमी आ सकती है, नई कोशिकाएं बननी बंद हो सकती है। अल्जाइमर, अनिद्रा, सिरदर्द, leukemia जैसी बीमारियों के होने की संभावना रहती है।
बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह ना मोड़ें। अपनी इस जिम्मेदारी को समझें, बच्चों को पूरा समय दें, अन्यथा #दुष्परिणाम का सामना आपको भी करना होगा। छोटी उम्र में मोबाइल देने से इंटरनेट के माया जाल में फंसकर गलत दिशा में जाने की संभावना रहती है। अगर पढ़ाई के लिए जरूरी लगे तो भी अकेले में कमरे में मोबाइल पर काम ना करने दें, कंप्यूटर पर करें, जिससे उन पर नजर रखी जा सके। बच्चों को हमेशा लिखकर बोलकर पढ़ने के लिए प्रेरित करें। इस तरह उसे याद भी अच्छा होगा, एकाग्रता बढ़ेगी। कभी भी मोबाइल या कंप्यूटर पर लिखने को ना कहें, और इसे आप चेक भी करते रहें। अगर ऐसा नहीं किया तो, इसके अत्यधिक उपयोग या कहें दुरुपयोग, लत के भयंकर परिणाम देर-सवेर बच्चे और उनके अभिभावकों को भुगतने के लिए तैयार होना पड़ेगा।
अभी भी देरी नहीं हुई है जब जागो तब सवेरा, यही वक्त है बच्चों को संभालने का। आज के बच्चे उस दुनिया में जी रहे हैं, जहां आप नहीं है, और बच्चे आप को कैसे? दूर रखा जाए जानते हैं। इसलिए बच्चों के साथ समय बिताएं। अगर आप बच्चों पर ध्यान देते हैं, मोबाइल इंटरनेट से दूरी व प्रकृति हरियाली के साथ रहना, परिवार के साथ घूमना, घर के सदस्यों को कम चिड़चिड़ा बनाने में सहायक है। इस तरह बच्चा, मानसिक संतुलन को मजबूत बनाए रखने में, स्वनियंत्रण व दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार करता है। अगर आप परिवार के साथ समय बिताते हैं, तो आप व बच्चे शांत रहते हैं। इस तरह हम छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर बच्चों को इसका आदी होने से बचा सकते हैं। यह आपका ही नहीं, देश के स्वर्णिम भविष्य का सवाल है।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

एक पत्र, बड़े बच्चों के लिए

✍️एक #पत्र
#प्यारे #बच्चों _______
#आज बस यूं ही तुमसे #बात करने का #मन कर आया, फोन पर तो हमेशा ही होती हैं, लेकिन कई बार कुछ लिखने का भी मन होता है,जो चिरस्थाई हमेशा आपके पास #यादों में बना रहे। तुम दोनों तो जन्म से साथ हो, लेकिन हमारे जीवन में दो और #बच्चे ही नहीं, परिवार जुड़ कर हमारे घर का #अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।जीवन निरंतर निर्बाध गति से आगे बढ़ रहा है। मेरेे पास कुछ यादें, खट्टी मीठी, और अनुभवों की किताब भी हैं, शायद कुछ मार्गदर्शन हो सके, तुम्हारे जीवन में काम आ सके।मैंने कई बार डांटा ही नहीं ,पिटाई भी लगाई थी। मैं अच्छा पिता बन पाया या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन आप जब नए-नए पिता बनते हैं तो कुछ #कमियां..... तो रह ही जाती हैं। आज मैं उन सबके लिए तुम बच्चों से #सॉरी..... भी बोलना चाहूंगा। क्योंकि इन चीजों को आप एक #उम्र के साथ ही #समझ पाते हैं। इसके लिए मैं तुम्हारी मां का शुक्रगुजार रहूंगा, उसने मुझे #हेकड़ पिता की जगह एक #दोस्त पिता के रूप में पेश करने की कोशिश की। मुझे याद है एक बार मैंने मात्र पचास पैसे के #गुब्बारे के लिए डांट लगाई थी, जबकि मैं #लियो का खिलौना दिलाने तैयार था, यह एक #नौसिखिए पिता का ही व्यवहार था, जो बच्चे की खुशी नहीं समझ पाया।आज मैं उम्र के उस दौर में हूं, जब कहते हैं कि बुजुर्ग, फिर से बच्चा बन जाते हैं, (या अड़ियल, खड़ूस जो हमेशा खुद को ही सही मानने हैं)। दिल तो बच्चा है जी....... अब तुम मुझे बच्चा ही समझना। और तुम #बच्चे!!!!!! मेरे माता पिता की भूमिका में, #इसी तरह व्यवहार करना। हो सकता है कि मैं छोटे बच्चे की तरह खाना खाते, या कपड़े पहनते समय कुछ गिरा दूं, या सब्र ना कर पाऊं, कहीं जाते वक्त उतावला हो जाऊं तो मेरे साथ धैर्य से पेश आना। यह एक #गुजारिश भी समझ सकते हो, अगर कभी मैं अपने आप को नई #चीजों के साथ सामंजस्य ना बिठा पाऊं तो मुझ पर खीझना भी नहीं। हो सकता है, आज की भागदौड़ को देखते हुए तुम बहुत #बिजी रहोगे, लेकिन फिर भी अगर मैं बढ़ती उम्र के साथ याददाश्त भूलने लगूं या अच्छी तरह से उठ बैठ नहीं पाऊं तो तुम झुंझलाना बिल्कुल भी नहीं। और तुम मेरे साथ #बैठ कर दो मिनट बात करोगे तो यही मेरी सबसे बड़ी #खुशी भी होगी। हो सकता है मैं तुम्हें शायद #समय नहीं दे पाया होऊं....., या कभी तुम्हारे मन का कुछ ना कर सका तो इसके लिए तुम मुझे #दोषी समझते होंगे, लेकिन समय के साथ अब उम्र की इस #परिपक्व अवस्था में समझ सकते हो, हमने सदा तुम्हें the best देने की कोशिश की थी। मैं हमेशा अपने सही या बहुत अच्छा होने, का दावा भी नहीं कर रहा। हो सकता है मैं और तुम्हारी मां समय के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाएं, कभी शरीर से भी लाचार हो जाएं, और एक दिन ऐसा आए कि चलने से मजबूर लगे, तो तुम चार कदम मेरे साथ जरूर चलना यही मेरी सबसे बड़ी #पूंजी, लाठी, सहारा होगा। तुम बच्चे मेरी #भविष्यनिधि हो। एक उम्र के बाद समय व्यतीत करना वाकई बहुत #मुश्किल होता है, और उस समय ज्यादातर वृद्धजन मरने की बातें करने लगते हैं।इन सब बातों से तुम #परेशान बिल्कुल नहीं होना, एक तरह से यह भी जिंदगी का हिस्सा है, उसी की तैयारी, जिसके लिए तुम #तैयार रहो। अन्यथा अचानक कुछ #घटित होने पर बच्चे स्वयं को तैयार ही नहीं कर पाते। Be brave.... दूसरे उम्र का यह पड़ाव, वास्तव में, जिंदगी जीते नहीं, उस समय यूं लगता है जिंदगी काट ही तो रहे हैं। हमारी उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर, तुम #धैर्य रखना। हमारी गलतियों....... के बाद भी तुम्हारी मुस्कुराहट ही हमारा सहारा होगा। अब तुम भी अपने अपने बच्चों के माता व पिता बन चुके हो, तुम्हें भी शायद महसूस हुआ होगा, कि कभी बच्चों से ज्यादा प्रिय कुछ भी नहीं होता। ये वास्तविकता है, कई बार मैंने ये अपने चारों ओर घटित होता देखा है, बच्चे नहीं #उम्रदराज लोग भी अपने वृद्धजन से किस तरह का व्यवहार करते हैं,यह शायद सबसे #त्रासद स्थति रहती होगी। लेकिन हमें परवरिश पर नहीं, तुम बच्चों पर #फख्र, नाज है। शायद कुछ ज्यादा हो रहा है, फूल कर कुप्पा (खुश) होने की जरूरत नहीं है। हम आ रहे हैं,अगले महीने। प्यारे बच्चों, ये समय ही हमारी अमूल्य निधि है, इसे सहेजे रखना।
                                   तुम्हारे माता,पिता।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

संवाद हीनता/खोलें मन की खिड़कियां

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संवादहीनता/खोलें मन की खिड़कियां_____
संवादहीनता का वायरस,आजकल घर घर में एक #महामारी का रूप ले चुकी है। ईगो से नहीं, संवाद से ही काम बनेंगे, आत्मचिंतन भी एक प्रकार से अपने स्वयं से संवाद ही है। संवाद  हर समस्या का समाधान है। संवादहीनता से पीढ़ियों में टकराहट व दूरियां बढ़ रही हैं। एकल परिवारों में, और वैसे भी कुछ बदलते परिवेश, कमरा संस्कृति (सबकी अपनी प्रायवेसी होती है, कौन क्या कर रहा है, किसी को कुछ पता नहीं,और मतलब भी नहीं) की वजह से हम लोग #एकांतप्रिय होते जा रहे हैं। आपस में संवाद बहुत कम हो गए हैं, कई बार तो रिश्ते खत्म होने के कगार पर पहुंच जाते हैं। जो चीजें केवल बातों से #सुलझाई जा सकती हैं, उनका भी आधार नहीं बच रहा है।बच्चे जीवन से #पलायन की स्थति तक पहुंच जाते हैं,और उस समय ये कहना, हमें तो #पता ही नहीं था। #गंभीर बात है। बच्चे बहक जाते हैं। #संवादहीनता की वजह से कई बार, #समस्या इतनी बड़ी हो जाती है, कि आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। माता पिता का अपने बच्चों से संवाद नहीं है, पतिपत्नि का नहीं है, पड़ोसियों का पड़ोसियों से नहीं है, बहन भाइयों का नहीं है, बस एक मायावी दुनिया में खोए हुए हैं। पूरे जहां (दुनिया) की खबर है, किंतु जहां (जिस जगह) की होनी चाहिए, वहां की नहीं है।
संवाद___
परस्पर आंनद पूर्वक किसी सत्य तक पहुंचने का प्रयास ही संवाद है। वाणी पर नियंत्रण (मधुरता) और मन की शुद्धता का इसमें विशेष महत्व है। एक व्यक्ति बोले और दूसरा सुने तो वाद, दोनों एक दूसरे की बात ना सुने तो विवाद, और दोनों एक दूसरे की बात सुन, समझ कर वार्तालाप करें तो संवाद कहलाता है।संवाद भी कई प्रकार का होता है। वाचिक, सांकेतिक हावभाव द्वारा, तथा अंतर्मन (अंतःप्रज्ञा, दिल की गहराइयों से महसूस करना) की सूझबूझ से मौन संवाद होता है। कई बार #वाचिक संवाद सत्य को स्पष्ट करने में कम और छिपाने में अधिक, यानि झूठ के  प्रयोग की आशंका होती है, #हावभाव भी आवश्यक नहीं सत्य ही हो किंतु, #अंतर्मन की आवाज, संवाद हमेशा सत्य ही होता है। इसे हृदय की, दिल की भाषा भी कह सकते हैं। संवाद के अभाव में एक दूसरे के प्रति संदेह की आशंका रहती है, संदेह से ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है, इसलिए हमेशा परिवार में, अपनों के बीच संवाद बनाए रखना चाहिए। मन की बात को अभिव्यक्त करने के लिए भी संवाद आवश्यक है। संवाद सुख के क्षणों में आनंद बढ़ाता है, और दुख के क्षणों में कष्ट को घटाता है। संवाद बड़े से बड़े भौतिक समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। उचित संवाद संबंधों में प्रगाढ़ता लाने में सहायक है, अनुचित संवाद संबंधों के लिए घातक है, इससे तो मौन ही बेहतर होगा।
#संवाद कई तरह का हो सकता है।आंखों से संवाद, जिसमें आप बिना कुछ बोले, बहुत कुछ बोल देते हैं,समझ जाते हैं। एक मां, एक प्रेयसी की मूक भाषा से कौन परिचित नहीं है। गले लगकर, हाथ पकड़ कर सांत्वना देना भी संवाद ही है। एक है स्पर्श की भाषा, स्पर्श बता देता है आपके मन में क्या चल रहा है। इसलिए इस संवाद हीनता को अपने #घर में #घर मत करने दीजिए, वरना बहुत देर हो जायेगी। व्यक्ति से व्यक्ति का संपर्क, संवाद हर बंद ताले (समस्या) की चाबी बन सकती है।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

ना घर तेरा, ना ही मेरा

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माटी चुन चुन महल बनाया,
लोग कहे घर मेरा है।।
ना घर तेरा ना घर मेरा,
चिड़िया रैन बसेरा।।
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी,
जोड़ भर लिया थैला।।
कहते कबीर सुनो भाई साधु,
संग चले ना थैला।।
उड़ जाएगा हंस अकेला,
जग दो दिन का मेला।।

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

हैलो, पैरेंट्स! क्या यह प्यार है।


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#हैलो पेरेंट्स .......... 
#बच्चों की #परवरिश को लेकर मुझे #कुछ #कहना है। आपके बच्चों को आप जैसा बनाते हैं, वह कुछ वर्षों की कड़ी मेहनत का #परिणाम है। यह एक तरह की #जीवनबीमा #पॉलिसी है। इसमें आपने जो #निवेश किया है वही आपको #रिटर्न होगा। आपके वृद्धावस्था के लिए भी। लेकिन इसे सच में बीमा पॉलिसी की तरह इस्तेमाल ना करें। अपेक्षाएं, अधिकार ना जताएं। अगर आप अपने बच्चों को, मात्र कुछ सालों की अच्छी #परवरिश देंगे, तो वह आपके लिए तो आजीवन अच्छे रहेंगे ही, समाज में भी आपका नाम #रोशन करेंगे। वृद्धावस्था में भी रोने की स्थति नहीं होगी। जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी। आपके बच्चों से जिनकी शादी होगी, पति या पत्नी उनकी भी आपको दुआएं, सम्मान मिलेगा। अब ये आप की इच्छा है,आप केवल #भोगी बनकर ही जीना चाहते हैं, या समाज को भी एक #सभ्य #व्यक्तित्व देना चाहते हैं।
#आपने एक कहानी तो सुनी ही होगी। एक मां होती है। वह अपने बेटे को बहुत प्यार करती थी। बेटा निकम्मा, चोरी, शराब सब गलत काम करना सीख गया। किन्तु मां ने कभी उसे टोका, समझाया ही नहीं, अपितु मां उसके कार्यों पर पर्दा डालती रही। बेटा खुश था कि, देखो मेरी मां जितना कोई मां अपने बच्चे को प्यार नहीं करती। समय गुजरा, एक दिन चोरी के आरोप में बेटे को पुलिस पकड़ कर ले गई, उसको सजा सुनाई गई। उस बेटे से अपने बचाव के लिए पूछा गया, कुछ कहना चाहते हो तो कहो। बेटे ने उत्तर दिया, मुझे कुछ नहीं कहना बस एक बार मैं अपनी मां से मिलना चाहता हूं। मां मिलने पहुंची, बेटे के हाथ #बंधे हुए थे। बेटे ने कहा, मां इधर आओ, आपसे #कान में कुछ कहना है। जैसे ही मां ने अपना कान, सुनने के लिए उसके मुंह के पास किया, बेटे ने जोर से मां के कान को #काट #खाया। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत छुड़ाया एवं इसका कारण पूछा। बेटे ने जवाब दिया, वो ही मेरा कहने का #मूल #उद्देश्य है। बेटे ने कहा - काश!!! मां ने अगर मुझे #शुरू में ही, जब मैंने पहली बार चोरी या गलत कार्य किया था, उसी वक़्त मुझे डांटा या #समझाया होता तो आज ये नौबत नहीं आती। हमेशा मेरी गलतियों पर पर्दा डालती रही। और मैं भी उसे ही प्यार समझता रहा। आज जिस जगह पर मैं खड़ा हूं, उससे आगे मेरा कोई भविष्य नहीं है। उसी #परवरिश का नतीजा है कि इस समय, जब कि मां को मेरी जरूरत होगी मैं जेल में बंद रहूंगा, तथा समाज में भी अपयश के भागी बनेंगे। अब आप #समझ चुके होंगे, हो सकता है #आज #परवरिश के समय बच्चे आपसे नाराज हो सकते हैं, कोई बात नहीं। आज की परवरिश कड़वी दवा बेशक लगे,लेकिन भविष्य सुखदाई होगा। अन्यथा इस समय का #झूठा #लाड़प्यार बच्चे की जिंदगी #तबाह कर सकता है। और दोष देंगे आने वाली बहू या दामाद को। इसलिए बच्चों के गलत कार्यों पर #ना कहना भी सीखिए।
#जितने भी #महापुरुष हुए हैं, उनकी प्रेरणा स्त्रोत उनके मातापिता ही रहे होंगे, यह एकदम सत्य वचन है,और बच्चों के बिगड़ने में भी घर की ही महती भूमिका है।