शनिवार, 12 अगस्त 2023

प्रकृति और स्त्रियां

✍️एक अच्छी हीलर,

उपचारक होती हैं स्त्रियां 

प्रकृति को रिफ्लेक्ट करती स्त्रियां

स्त्रियां! 🌹
रोप दी जाती हैं धान सी
उखाड़ दी जाती हैं,
खरपतवार सी
पीपल सी कहीं भी उग आती हैं। स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
जीवन दायी अमृता सी,
महके लंबे समय तक,
रजनीगंधा सी
कभी ना हारें,अपराजिता बन छाई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
रजनीगन्धा, लिली
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है
सप्तपर्णी के फूलों से,  मानो
प्रेम माधुर्य की खुशबू आई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
आंसुओं को पी,
बिखेरती खुशबू पारिजात सी
पुनर्नवा सी, दे नवजीवन
ईश्वर की वरदान बन आई हैं।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
दिल दिमाग की शांति, 
शंखपुष्पी, ब्राह्मी सी
तुलसी सी पावन
आंगन की शोभा बढ़ाती है।स्त्रियां!🌹
स्त्रियां!🌹
सौम्यता मनभावन
चंपा,चमेली,मोगरा,मालती सी
भरदेती सुखसौभाग्य,
अमलतास(स्वर्ण वृक्ष) सी
घर आंगन में मानो,परी सी उतर आई है।स्त्रियां!🌹

__ मनु वाशिष्ठ 

ब्याही जाती हैं लड़कियां

ब्याही जाती हैं लड़कियां __
कहने को तो ब्याही जाती हैं लड़कियां, लेकिन
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, प्रेमी!
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पति! और
कुछ लड़कियों को मिलते हैं, पुरुष!

प्रथम तरह के पति, लाते हैं फूलों के बुके/ तोहफे
दूसरी तरह के पति, लाते हैं जरुरत के सामान
तीसरी तरह के पति,उन्हें कोई सरोकार नहीं  

प्रथम तरह की लड़कियां,सजती हैं गजरे/गहनों में
दूसरी तरह की लड़कियां,गंधाती हैं पसीने मसाले में
तीसरे तरह की लड़कियां,बरती जाती हैं “यूज एंड थ्रो" 

प्रथम तरह की लड़कियां,रहती हैं नाजुक/बिंदास
दूसरी तरह की लड़कियां,निभाती हैं जिम्मेदारियां
तीसरी तरह की लड़कियां,फिट होती हैं सामान की तरह 

प्रथम तरह की लड़कियां,उन्मुक्त मचलती जलप्रपात सी
दूसरी तरह की सुख दुख, खुद में समाहित करती सागर सी
तीसरी विस्मृत/तिरस्कृत मौन की नाव से पार लगाती केवट सी 

प्रथम तरह की लड़कियों के जाने पर,
बिलखते हैं पति! 
द्वितीय तरह की लड़कियों के जाने पर,
उनकी अहमियत समझते हैं पति!
तीसरी तरह की लड़कियों को 
उकसाया जाता है जाने के लिए, 
खत्म किया जाता है मान सम्मान
छीन ली जाती है सोचने समझने की शक्ति
और फिर उनके जाने पर,
“कोई फर्क नहीं" के अहं संग जीते हैं,पुरुष/ पति! 
 __ मनु वाशिष्ठ 

गोरा रंग आज भी सांवले रंग पर भारी

गोरा रंग, आज भी सांवले पर भारी ____
अखबार में किराए के दुकान, शादी ब्याह, व्यापार, रिशेप्सनिष्ट आदि के विज्ञापन वाले कॉलम में निगाह डाली तो एक विज्ञापन में लिखा देखा: गोरी, सुंदर, स्मार्ट लड़की चाहिए। अरे भाई! उनसे ये पूछिए आपको योग्यता नहीं चाहिए क्या, गोरे रंग से ही काम चल जायेगा? सांवले रंग वाली लड़की का जीना कितना मुश्किल होता है, यह किसी सांवली रंगत वाली लड़की से पूछिए। आज भी काली कलूटी, बैंगन लूटी, कल्लो जैसे कई उपनामों से नवाजी जाती हैं। जब तब कई घरवाले भी दुखी होते रहेंगे। कोई दही बेसन, कोई नीबू ग्लेसरीन, कोई कुछ क्रीम व्रीम सी बताते ही रहेंगे, मातापिता से सहानुभूति दिखायेंगे सो अलग। है तो यह गलत बात, पर सच्चाई यही है कि आज भी गोरा रंग सांवले रंग पर भारी है। अंग्रेज तो चले गए, पर गोरे रंग का आकर्षण छोड़ गए। दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर अंग्रेजों ने राज्य किया, शायद उसी का परिणाम है कि गोरा रंग सुंदरता का प्रतीक बन गया। काले रंग को हीन दृष्टि, गुलाम की तरह देखा गया।आज भी गोरे रंग को प्रशंसा की दृष्टि से और सांवले रंग को कमतर आंका जाता है। क्योंकि यह आम धारणा है कि जो सत्तासीन /उच्च पदासीन/ या कुलीन व्यक्ति करते हैं वह श्रेष्ठ है। सत्ता हर चीज का प्रतिमान स्थापित करती है,और आम आदमी में उसको पाने की लालसा बनी रहती है। सत्तासीन लोगों को जो भोजन पसंद होता है, वह स्वाद बन जाता है, जो सत्तासीन पहनावा पसंद करें, वह फैशन का प्रतिमान हो जाता है, यह एक सत्य है। नेहरू जैकेट, अचकन इसका उदाहरण है। समय के साथ बदलते हुए आज मोदी कुर्ते का फैशन है, हालांकि यह आम व्यक्ति पहले भी पहनता था लेकिन उच्च पदासीन लोगों द्वारा किए जाने पर इनको प्रशंसनीय दृष्टि से देखा जाता है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, जंक फूड/ विदेशी संस्कृति से ध्यान हटकर देसी भोजन, मिलेट्स, अपनी संस्कृति की ओर रुझान बढ़ा है।अभिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, संजय दत्त, साधना कट, जया भादुरी स्टाइल और भी कई अन्य इन सबके हेयर स्टाइल युवाओं द्वारा खूब अपनाए गए। ये पसंदगी नई बात नहीं है, कुछ के लिए गोरा रंग सुंदरता का पैमाना माना जाता है, जबकि सुंदरता का गोरे रंग से कोई लेनादेना नहीं है। कई तो गोरेपन के इतने दीवाने होते हैं कि, उन्हें तो दूध भी भूरी भैंस का ही चाहिए। वो यू पी का लोकगीत तो सुना होगा जिसमें नई नवेली पत्नी अपने पति से फरमाइश कर रही है: 
*मैं खाऊंगी कटेमां (थिक जमा हुआ) दही तौ भूरी भैंस कौ जी! 
आज भी कई जगहों पर, गुणों को ताक पर रखकर, रंग को महत्व दिया जाता है। देखने वालों को लड़की गोरी चहिए! बीवी गोरी चहिए! बहू भी गोरी चाहिए! बच्चे भी गोरे चाहिएं! ये कैसा पागलपन है। भले ही बाद में रोना पड़े, लेकिन पहले तो गोरा रंग ही चाहिए। माताएं भी अपनी गोरी बेटियों को देख कर निहाल होती हैं, जैसे इन्होने बड़ी मेहनत का काम किया है। गोरा रंग अतिरिक्त गुण माना जाता है। जब इतनी डिमांड हो तो गोरी लड़कियों के दिमाग भी सातवें आसमान पर होते हैं, उन में भी गुरुर आते देर नहीं लगती, उन्हें लगता है घरेलू काम सांवली लड़कियों के लिए हैं। वैसे सब पर यह बात लागू नहीं होती, फिर भी होती तो है। आज भी गांवों में अपनी गोरी बेटी की शादी में यदि दामाद सांवला मिल गया तो, मांऐं बेटी को विदा करते हुए कैसे रोती हैं: 
*अरे! मेरी मैदा की लोई ए कौव्वा लैकें उड़ गयौ।
उनसे यों पूछा जाय कि वो कौवा ही आपकी बेटी को रखेगा, खिलाएगा पिलाएगा और नखरे भी सहेगा।
वैसे जिस लड़के की पत्नी कहीं गोरी हो तो, उस लड़के की गर्दन में भी मानो कलफ लग जाता है, एक अकड़ सी भरी रहती है, जैसे किला फतह कर लिया हो। वो लड़का बस उसके नखरे ही बर्दाश्त करता रहता है, उस की स्किन को लेकर परेशान रहेगा। जबतब ये गाना गुनगुनाएगा: 
धूप में निकला न करो रुप की रानी, 
गोरा रंग काला न पड़ जाए।
वैसे ये गीत भी सुना होगा,किसी फिल्म वाले ने सही लिखा है: 
*गोरे रंग पै न इतना गुमान कर 
गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा।
एक और गीत की बानगी देखिए :
*गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा।
तौबा खुदा खैर करे, क्या खूब है करिश्मा।।
सांवली है तो क्या उसका आत्म विश्वास तो कम मत करिए, उसे भी चश्मा लगाने का, जीने खुश रहने का हक है, और ये कोई गलत बात नहीं है। इसीलिए हर जगह सांवले रंग वालों को अपने आप को साबित करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। (घर, ऑफिस, नौकरी, समाज कहीं भी देख लीजिए) वैसे सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
एक पुरानौ गीत याद आय गया:
*पानी में जले मेरा गोरा बदन ...
अब ये बताइये गोरे रंग में क्या कुछ रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है? जो काले, सांवले में नहीं होगी।
भला हो अमरोही साहब का, जिन्होंने ये गीत गीत लिखा: 
*कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की बहुत खूबसूरत मगर #सांवली सी।
चलौ, किसी ने तो कद्र जानी सांवले रंग की।विदेशों में महिलाएं धूप में पड़े पड़े, लेट लेट कर काली होने की कोशिश करेंगी, और यहां लगा लगा क्रीम गोरी होने की ... 
वैसे भी किसी साहित्यकार को उठा कर देख लीजिए, सब की नायिका सांवली ही मिलेगी। कालिदास की शकुन्तला सांवली, वाल्मीकि की सीता मईया सांवली, पांडवों की द्रौपदी सांवली, गोरे मजनूं की लैला भी काली थी, प्रेमचन्द और रवीन्द्र नाथ टैगोर की नायिकांएं सांवली थीं। सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है।
इसका मतलब इतिहास में भी सुंदरता का पैमाना गोरा रंग नहीं था। ये तो विज्ञापनों ने अपना सामान बेचने वाली कंपनियों ने हमारा ब्रेनवाश कर दिया है। गोरेपन की क्रीम, जिसे खुद मैंने कई  महिलाओं को पिछले तीस चालीस वर्षों से फेयर एंड लवली क्रीम लगाते देखा है, और आज की तारीख में भी, जबकि वे महिलाएं, दादी नानी बन गई हैं, किसी को कुछ सफलता नहीं मिली। नौकरी हो या ब्याह शादी, पढ़ाई/ योग्यता सब गौण (सेकेंडरी) लगती है, क्या गोरा होना सही में इतनी बड़ी योग्यता है? अब तो पुरुषों के लिए भी गोरेपन की क्रीम ... राधे राधे 
वैसे ब्रज में अपने तो कन्हैया भी परेशान, बारम्बार मां से पूछते हैं, राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला ... क्या बताएं, अपने कन्हैया की इसी सांवली सूरत पर तो सारा ब्रज, गोपियां दीवानी हो गई थीं। दुनिया में दो ही रंग हैं काला और गोरा। चमड़ी का रंग चाहे कैसा भी हो पर मन काला नहीं होना चाहिए। जय बंसी वाले की।। 
__ मनु वाशिष्ठ 

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

संस्मरण, ब्रज रज की महिमा रमण रेती __

संस्मरण, ब्रज क्षेत्र की महिमा #रमण रेती __ 
यूं तो सभी मानते हैं, मथुरा तीन लोक से न्यारी है। हो भी क्यों नहीं अपने आराध्य श्री कृष्ण का बचपन यहीं बीता है। ब्रज के तो लता पता, वन उपवन, कुंज निकुंज, नदी घाट, कण कण में प्रभु का आभास होता है। ब्रज भूमि का कण कण श्री कृष्ण में समाया है, या कहें कृष्ण कण कण में समाए हैं। ब्रज भूमि श्री कृष्ण की लीलाओं, कथाओं और उनके चरणों से पावन, शुद्ध एवं श्रद्धेय है। यहां हर जगह आपको चमत्कार ही चमत्कार मिलेंगे। ऐसा ही एक क्षेत्र है रमण रेती! रमण का शाब्दिक अर्थ है लोटपोट होना, तथा रेती का मतलब है रेत/ रज/मिट्टी/बजरी/माटी आदि। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण बाल्यावस्था में अपने सखा ग्वाल बालों के साथ यहां पर खेला करते थे, और रेत में लोटपोट होते थे, इसीलिए इस का नाम रमण रेती पड़ा साथ ही इस मिट्टी को लेकर गजब की मान्यताएं भी हैं। रमण रेती के बारे में जानकार आपको भी वहां पहुंचने की उत्सुकता रहेगी। 
मथुरा से पूर्व में गोकुल लगभग (10 किमी.) तथा महावन (19 किमी.) के लगभग बीच में यमुना नदी के किनारे स्थित रमण रेती एक अत्यंत रमणीक स्थल है। यहां रमण बिहारी जी का मंदिर है। भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में यहां अपने बाल गोपालों, सखाओं संग खूब लीलाएं की हैं एवं यहां की रज में लोटपोट हुए हैं। ब्रजभूमि के गोकुल में रमण रेती मंदिर में कुछ वर्षों ( मेरी याद में चालीस पैंतालीस वर्ष) १९७८में आई बाढ़ से पूर्व तक, चारों ओर रेत ही रेत थी। जहां हाथ से ही जरा सा रेती कुरेदने पर जमुना जल निकल आता था, चारों ओर पीपल और कदंब के वृक्ष थे, लेकिन अब सब बदल गया है, यहां संतों की कुटियां बन गई हैं आश्रम बन गए हैं, जिनसे कुछ सुविधा भी है लेकिन प्राचीन सौंदर्य नष्ट हो रहा है। खेलकूद, खानेपीने की दुकानें, मनोरंजक बाजार से तीर्थ स्थल भी पर्यटन स्थल बनते जा रहे हैं। यह धार्मिक आस्था पर आघात करने जैसा है।
यहां की पवित्र ब्रजरज बीते युग की कहानियों की साक्षी है। जब भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और उनके सखा बाल गोपालों के साथ दिव्य लीलाओं (रमण) में शामिल होने के लिए आते थे। यह वह स्थान भी है, जिसे श्री कृष्ण ने वृंदावन की यात्रा पर निकलने से पहले राधा से मिलने के लिए चुना था।
रमण रेती के निकट एक प्रसिद्ध कार्ष्णि आश्रम है, जिसमें प्राचीन रमण बिहारी जी मंदिर है। कहते हैं 18वीं शताब्दी के सिद्ध संत आत्मानंद गिरि को समर्पित इस मंदिर में, भगवान कृष्ण की मूर्ति ठीक उसी रूप में स्थित है, जैसा कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके कठोर तपस्या के आशीर्वाद स्वरुप प्रकट हुई थी। प्राचीन मंदिर के जर्जर होने के कारण, रमण बिहारी जी को नए मंदिर में विराजमान किया गया है। मंदिर में राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। यह स्थान सुंदर मंदिर, संतों महात्माओं और तीर्थ यात्रियों के लिए श्रद्धा भावभक्ति से पूर्ण क्षेत्र है।यहां जो भक्त दर्शन करने के लिए आता है वह रेत में लेटे बिना नहीं जाता। बताया जाता है कि जो भी सच्चे मन से कुछ मांगता है उसकी हर इच्छा, दर्शन करने से यहां पूरी होती है।
कहते हैं कि द्वापर युग में बाल गोपाल के समय, आज के रमण बिहारी मंदिर के स्थान पर जंगल था और इस जगह पर भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेला करते थे। एक दिन जब बाल गोपाल खेल रहे थे तब गोपियों ने उनकी गेंद चुरा ली, तब भगवान ने रेत को ही गेंद बना बना लिया और उससे खेलने लगे। इसलिए इस मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है। आज भी बच्चे बड़े रेत से गेंद बना कर एक दूसरे को मारते हैं, इस रेत से न केवल बीमारियां दूर होती है बल्कि आपको एक अलग तरह की मानसिक शांति भी मिलती है। 
आईए जानते हैं यहां की रेती  (रज) के बारे में कुछ खास बातें __ 
जैसा कि यहां के पुजारी जी ने बताया कि रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है, एवं रमणरेती की रेती से बीमारियां सभी दुख व कष्ट दूर होते हैं। भक्तजन यहां पर रेत में लेटते हैं ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें, क्योंकि बालकृष्ण यहां पर खेले थे। जिसकी वजह से यह जगह बहुत पवित्र है। 
मथुरा गोकुल के रमण रेती मंदिर में हर तरफ रेत ही रेत है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है बिना रेत में लेटे नहीं जाता। 
रमण रेती आने वाले भक्त यहां की रेती/रज का तिलक लगाते हैं, जिससे उन्हें श्री कृष्ण के चरणों को माथे पर लगाने का परम आनंद बोध होता है। 
मंदिर की रेत /रज में लोग नंगे पैर चलते हैं, रेत में कोई कंकर नहीं होते हैं, और नंगे पैर चलने में बहुत अच्छा लगता है।
यहां कई तरह की मान्यताएं हैं, इस रेत से बीमारियां दूर हो जाती हैं। भक्त मानते हैं कि यहां की रेत को घुटने व जोड़ों पर रखने से दर्द समाप्त हो जाता है। इसलिए वे बहुत देर तक यहां बैठे रहते हैं।
लोग यहां आकर लोटते हैं, ताकि इस पवित्र मिट्टी से वह भी पवित्र हो सकें। मान्यता है कि बाल श्री कृष्ण यहां खेले हैं, इसलिए यह पवित्र है।
रेत की गेंद बनाकर एक दूसरे पर मारने से पुण्य मिलता है, सारे दुख दूर होते हैं। 
बहुत से लोग इस रेत से घर भी बनाते हैं, मान्यता है कि ऐसा करने से उनके अपने घर का सपना (मनोकामना) पूरा हो जाता है। 
मंदिर के रेत में लोग नंगे पैर चलते हैं, कोई भी जूता चप्पल पहनकर नहीं जा सकता।
रमणरेती की रेत को बहुत पूजनीय माना जाता है, कई लोग इसको अपने घर भी ले जाते हैं।
फाल्गुन मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। रमण रेती के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि होली का त्यौहार पारंपरिक रंगों के बजाय रेत से खेला जाता है।
रमण रेती रेतीला स्थान है, जो एक विशाल परिसर में फैला हुआ है। यहां कार्ष्णि आश्रम के सामने एक हिरण अभयारण्य भी है, जिसमें लगभग ३००/४०० हिरण हैं, जिनमें कुछ काले हिरण, खरगोश, शुतुरमुर्ग भी हैं।  
यहां पर संत आत्मानंद गिरि आए थे, माना जाता है कि उनको भगवान श्री कृष्ण ने साक्षात दर्शन दिए थे इसीलिए भी यह स्थल काफी सिद्ध माना जाता है। साथ ही संत रसखान ने भी यहां तपस्या की, रमण रेती कवि रसखान की तपस्थली रही है, यहां उनकी समाधि स्थल भी है। 
_ मनु वाशिष्ठ 

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

ब्रज में नाश्ता

ब्रज का नाश्ता __
कोई मुझसे पूछे ब्रज क्षेत्र का मुख्य नाश्ता क्या है? तो मुझे तो ब्रज क्षेत्र में मुख्य नाश्ता जलेबी, कचौरी/बेड़ई ही लगता है। यहां ब्रज क्षेत्र में, आपकी डाइनिंग टेबल पर प्लेट में सजी गोरी अंग्रेज बाला सी इठलाती ब्रेड मक्खन को कोई तवज्जो नहीं देता। इसकी पूछ होती होगी मेट्रो सिटीज में ब्रज वासियों की बला से, यहां तो राज श्री राधे रानी का, और नाश्ते में स्वाद जलेबी, कचौरी/ बेड़ई का। यमुना जी में स्नान कर लौटते हुए कई भक्त, जलेबी बेड़ई को उदरस्थ किए बिना आगे नहीं बढ़ सकते। हलवाई भी भोर से ही काम पर लग जाते हैं। आप कितनी भी जल्दी में हों, बस, ट्रेन पकड़नी हो, कोर्ट कचहरी में तारीख हो, लेकिन किसी दुकान की लोहे की कढ़ाही से आती हुई, गरम मसालेदार आलू, खट्टी मीठी कद्दू की सब्जी और बेड़ई की महक आपके दिमाग को चेतना शून्य और पैरों में मानो बेड़ी डाल देते हैं। आप सब कुछ भूल दुकान की ओर बिन डोर खिंचे चले जाते हैं। गरम तेल में घूमर नृत्य करती एक एक बेड़ई, “छन छनन छन" की आवाज के साथ झूमती हुई जब आपकी आंखों के सामने से गुजरती हैं, फिर एक साथ ग्रुप बना एक लय में सिंकती हैं, तो आप उसके सुनहरे तांबई रंग को देख जड़वत् खड़े रह जाते हैं। 
ना कोई मोल ना भाव बस! इंतजार में कि कब कृपा प्राप्त होगी। ऐसी लगन तो मंदिर में भी नहीं लगी और ऐसे में दुकानदार का कारिंदा आप पर जैसे मेहरबान हो कर सब्जी, बेड़ई का दौना आप के हाथ में थमा देता है, इतनी मारामारी के बीच कचौड़ी/बेड़ई का दौना मिलना, अहोभाग्य! फिर आती है बारी जलेबी की, तब तक बेसुध व्यक्ति अपने होश में आ चुका होता है। तब वह जिम्मेदार व्यक्ति की तरह घर के लिए भी पैक करवाने का आदेश जारी कर, स्वयं दौने की सफाई में जुटा रहता है।
किसी जलेबी कचौरी की मशहूर दुकान पर गौर कीजिए, हाई बी पी वाला उतावला व्यक्ति भी यहां धैर्य धारण किए तपस्वी जान पड़ता है। यहां जाति, धर्म, अमीर, गरीब, क्षेत्र से ऊपर उठकर सब बड़े प्रेम से भाईचारे के साथ अपनी अपनी बारी का इंतजार करते हैं। लेकिन लखनवी अंदाज “पहले आप, पहले आप" वाली विचारधारा यहां लागू नहीं होती, क्योंकि इतनी देर में तो बेड़ई की परात खाली हो जाती है। राधे राधे! फिर मिलेंगे ब्रज क्षेत्र के किसी और विषय को लेकर।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान 

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

चुनावी वादे

✍️ चुनावी वादे और फिल्मी गाने __ 
वादा किया जो निभाना पड़ेगा
जब भी पुकारें तुमको आना पड़ेगा ...
__ देखो वादा तो हमने पूरा निभाया है, राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ, धारा 370 हटाई और भी कई कार्य हैं, वगैरह वगैरह ... आएंगे आएंगे जरूर आएंगे, दुबारा आएंगे तब के लिए भी तो छोड़िए कुछ काम __ #भा ज पा 

वादा करले साजना, 
तेरे बिन (कुर्सी के) मैं ना रहूं
मेरे बिना तू ना रहे हो के जुदा।
__ मुख्यमंत्री पद का कुर्सी प्रेम, #कांग्रेस राजस्थान

कितना प्यारा वादा है 
इन #मतवाली आंखों का 
इस मस्ती में सूझे ना 
क्या कर डालूं हाय मोहे #संभाल
ओ साथिया ओ बेलिया...
__ पंजाब की जीत पर खुशी में #झूमते हुए, एक दिल की पुकार __ भगवंत #मान  

भूल गया सब कुछ  
याद नहीं अब कुछ
बात है ये मामूली ... आई लव यू 
__ मैं कुछ नहीं भूला ये सब मिले हुए हैं, कोई घोटाले नहीं किए हमने। मामूली सी बात का बतंगड़ बना देते हैं। जरा सी मालिश करवा ली, फ्रूट सलाद खा लिए, कौन सी आफत आ गई हमारी कामयाबी से जलते हैं, लेकिन जनता हमसे बहुत प्यार करती है __ #आप प्रमुख 

कसमें वादे प्यार वफा सब
वादे हैं वादों का क्या ... 
कोई किसी का नहीं है सब
नाते हैं नातों का क्या... 
__ नहीं, हम ने ऐसा कब कहा। हमारे लिए #नेताजी ही सब कुछ हैं, हम रिश्ते नातों का बहुत आदर करते हैं, सब वैसे ही हमें बदनाम कर रहे हैं __ #सपा प्रमुख

वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ ...
जहां तुम हो, वहां मैं भी हूं ... 
मेरे लिए लेके आई हो ये सौगात 
जहां तुम हो वहां मैं भी हूं ... 
__ भाजपा को शिकस्त देने के लिए, सभी #विपक्षी दलों का #गठबंधन 

ओ मेरी जनता! 
खफा न होना, देर से आई दूर से आई
मजबूरी थी फिर भी मैं ने
वादा तो निभाया, वादा तो निभाया... 
__ गुजरात में देरी से सक्रिय हुई #कांग्रेस 

वादे पे तेरे मारा गया, बंदा मैं सीधा सादा
वादा तेरा वादा, हो वादा तेरा वादा
__ हर बार वादों के लॉलीपॉप से बेवकूफ बनता है, फिर भी चुनता है __ आम #जनता (वोटर) 
__ मनु वाशिष्ठ 


कह मुकरी ( मुकरिया)

✍️ (कह मुकरी) मुकरिया_ एक विधा काव्य की, जिसमें कारण कुछ बताए जाते हैं, और बात कुछ और होती है। हास परिहास, दुख वेदना, सभी भावों को स्पष्ट करने में सक्षम, यह काव्य की पुरानी मगर बेहद ही खूबसूरत सरल विधा है। यह दो सखियों के परस्पर वार्तालाप पर आधारित है। इस में एक सखी अपने पति/ साजन/ प्रेमी के बारे में मन की कोई बात कहती हैं, परंतु जब दूसरी सखी उससे यह पूछती है, कि क्या वह अपने प्रेमी साजन के बारे में बात कर रही है तो वह संकोचवश अपनी ही कही हुई बात से मुकर जाती है, और उसे मना करते हुए किसी दूसरे परिदृश्य/घटना/कल्पना के बारे में कहना बता देती है। उसी विधा में सखियां ही नहीं, मित्रों के बीच संवाद का एक #प्रयोगात्मक प्रयास __
1 ___
ओहो!ये भी ना,उसकी आवारा सी हरकत
चूमना 
माथे, गालों को और बेखौफ! गले से लिपटना 
कौन है सखी? वो सजन प्रियतम!या कोई लंपट 
नहीं सखि!वो तो है,उड़ती बालों की उलझी #लट!✓
2 ___
नींद से बोझल आँखें,और बंद होती पलकों के बीच 
कर देती है बेचैन, वो तेरे जरा सी आने की उम्मीद 
क्या वो है प्रेमी! साजन .. या महबूब मुरीद ?
नहीं री सखी! वो तो है #दोपहर की नींद ✓
3 ___
प्रातः उठने और जगने के बीच अलसाई सी 
कुछ तो बात है,ना मिले तो बड़ा तड़पाती 
होठों से लगाते ही,नींद की खुमारी भाग जाती 
मित्र! कौन है वो प्रिया? हसरतों वाली
नहीं मित्र! वो तो है चाय!..#आसाम वाली✓
4 ___
रोज सवेरे छत पे दिखती,वो भी मेरा इंतजार है करती
इधर फुदकती उधर फुदकती,कंधे पर है सर वो धरती
कौन है वो महबूबा, या है आसमान की परी?
नहीं मित्र! वो तो है मासूम सी गिलहरी!✓
5 ___
मैं रोकर गुजारा नहीं करता
वो हंस के जीने नहीं देती 
ना रात को चैन, ना दिन को आराम
कौन है वो? पाषाण हृदय महबूबा...!
नहीं मित्र! 
वो तो है, #जिंदगी! एक अजूबा!✓
____ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान 

सोमवार, 14 नवंबर 2022

काशी यात्रा, भोले बाबा की नगरी एक संस्मरण

✍️काशी यात्रा, एक संस्मरण___
आप, आकाश की गहराई नाप सकते हैं, क्षितिज की दूरी नाप सकते हैं लेकिन बनारस के बारे जान पाना बहुत मुश्किल। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक, अविनाशी शंकर की मोक्ष दायिनी नगरी, जिसे स्वयं शिव जी ने ही बनाया हो, भला आम मनुष्य की क्या बिसात उसके लिए कहां संभव है, यह सब जान पाना। काशी को अगर जानना हो तो भरपूर समय, किसी भीड़ के साथ नहीं, अकेले या मात्र एक दो जन, जो आपकी ही वैचारिक स्तर से जुड़ा हुआ हो, और एक ऑटो या रिक्शे की सवारी, बस! कार वार के झंझट में नहीं पड़िएगा (नहीं तो दिनभर बस कार के ए सी की हवा ही खाते रहिएगा)। उम्र के इस पड़ाव पर पतिपत्नी से बेहतर, कोई मित्र सहायक केयर टेकर नहीं हो सकता, यानि एक और एक ग्यारह। जैसा कि मैंने पढ़ा था यहां (काशी) के लोग मां, बहन की गालियों के बिना बात ही नहीं करते, लेकिन मुझे ऐसा नहीं दिखा। यहां सड़कों पर चलते हुए किसी को भी गाली गलौज करते नहीं देखा, बाद में समझ आया यह सब बनारसी पान का कमाल है, जिसे ये मुंह में दबाए रहते हैं। अब गाली देने या गुस्सा करने के लिए पान की पीक, कितनी बार थूकेंगे यदि थूक दिया तो सारा स्वाद ही जाता रहेगा, और इतनी देर में जिस पर गुस्सा आया था, वो नौ दो ग्यारह हो चुका होगा, इससे बेहतर है गुस्सा ही थूक दिया जाय 😃... क्या क्या लिखूं, समझ से परे है फिर भी कोशिश तो की ही जा सकती है।
अभी कुछ समय, लगभग दो तीन वर्ष पहले ही बनारस जाना हुआ, वहां किसी को जानती नहीं थी, तो पता कर वहां मेरे गुरु भाई विनय जी से मिलना हुआ। उन्होंने जिस अपनेपन के भाव से हमें काशी (बनारस) का भ्रमण कराया, कई रोचक तथ्यों के बारे बताया, उससे लगा ही नहीं कि हम पहली बार काशी आए हैं, या पहली बार ही विनय जी से मिल रहे हैं। विनय जी से हमारा प्रोग्राम एक दिन पहले ही तय हो चुका था। मन में जो संकोच था वह सब समाप्त हो चुका था। सारनाथ जाते हुए, रास्ते में वरुणा नदी को पार करते समय विनय जी ने बताया, बनारस (काशी, वाराणसी, कहते हैं कि वरुणा नदी जो कि यहां बहती है और असी घाट, शायद इनको मिलाकर ही अपभ्रंश होकर वाराणसी नाम पड़ा हो ), एक और रोचक जानकारी विनय जी ने सारनाथ जाते हुए शेयर की। सारनाथ स्तूप, बोध वृक्ष आदि देखने के बाद, सारंग नाथ मंदिर दर्शन किए। कहते हैं कि, गणेश जी गुस्सा होकर अपने मामा *सारंग* के यहां चले गए थे, फिर शिवजी (नाथों के नाथ) उनको लिवाने यहां आए, तो यह सारंगनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आगे चलकर सारनाथ हो गया। एक और बात यूपी में साले को (सारा,सारे) कहते हैं, शायद इसी का अपभ्रंश सारनाथ हुआ होगा। मजेदार!
पहले दिन बाबा भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन बड़े ही आरामदायक स्थिति में किए, प्रशासन भी बेहद चाक चौबंद, कहीं कोई परेशानी नहीं, उसी दिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का रात्रि पूजा का आयोजन था, सरपट गाड़ियों का काफिला। दूसरे दिन जब हम सारनाथ के लिए निकले तो वहां भी यूपी की राज्यपाल के सम्मान में, *रेड कार्पेट* बिछा हुआ था। हम भी खुश क्या पता हमारे लिए ही रेड कार्पेट बिछा हो हा हा हा...... कहते हैं, भोले की नगरी कभी सोती नहीं है, पूरी रात रौनक बनी रहती है। इस सब में विनय जी का आतिथ्य हमें बेहद अच्छा लग रहा था, जो अपनी आध्यात्मिक चर्चा के साथ बनारस की गलियों, तहजीब, संस्कृति से भी रूबरू करवा रहे थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बारे में तो सब जानते हैं, वहां भी जाना हुआ।
विनय जी ने ही हमें यहां पर स्थित #विश्वप्रसिद्ध भारत की 168 वर्ष पुरानी *एकमात्र *संस्कृत विश्वविद्यालय, जिसके जीर्णोद्धार का कार्य गुरुजी की कृपा से, एक और गुरुभाई संपन्न करवा रहे हैं, के बारे में बहुत विस्तृत, रोचक तथ्यों के साथ मथुरा निवासी दीपक शर्मा ने बताया। इसके जीर्णोद्धार का कार्य, जो कि अभी तक संभव नहीं हो पा रहा था, बड़ी ही रोचक लंबी कहानी है।
कहते हैं, इस 168 साल पुरानी सम्पूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी का कीलन कर दिया गया था, और इसका जीर्णोद्धार संभव ही नहीं हो पा रहा था। रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गया यह भवन, कई जगह से छत ढह गई थी, लगता था भूतों का बसेरा हो, कक्षाओं का संचालन भी बंद था। जो कोई भी इस कार्य को पूरा करने के उद्देश्य से अपने हाथ में लेता, कुछ न कुछ रुकावट आ ही जाती, और हार कर कार्य बीच ही में छोड़ भाग खड़ा होता। इस तरह दशकों से उपेक्षा की शिकार इस यूनिवर्सिटी के जीर्णद्धार  का कार्य, लगभग तीन वर्ष पूर्व, *गुरु जी के शिष्य द्वारा शुरू हुआ। बीच बीच में परेशानियां आती रहीं, लेकिन वे गुरुजी का स्मरण कर कार्य करते रहे। इस कार्य में प्रगति हो रही है। मरम्मत कार्य के दौरान, एक बार एक जगह पर सैकड़ों की तादाद में चमगादड़ों ने डेरा डाला हुआ था, जोकि कार्य में रुकावट कर रही थी। हार कर गुरूभाई ने गुरुजी को स्मरण कर उन चमगादड़ों से स्थान खाली करने को कहा, और आप सबके लिए यह यकीन करना मुश्किल होगा कि सारी चमगादड़ एक साथ लाइन बना निकल गई। यह अविश्वसनीय दृश्य देखने लायक था, उसके बाद उन्होंने वहां पर गुरु जी का चित्र भी स्थापित कर दिया है। ऐसे ही और भी कई अनुभव, विनय जी ने सुनाए।
प्रोजेक्ट इंचार्ज प्रदीप भारद्वाज (अगर नाम में कहीं कोई गलती हुई हो तो क्षमा चाहूंगी,) का कहना है कि जीर्णोद्धार लगभग 3 साल पहले शुरू हुआ, संरक्षण का कार्य संभल संभल कर करना पड़ता है, जैसे-जैसे काम बढ़ता है नई समस्या आ जाती है, लेकिन गुरुकृपा से कार्य निर्बाध गति से चल रहा है। अभी कुछ समय पहले ही यहां आयोजित प्रोग्राम में यूपी की राज्यपाल आमंत्रित थीं। इसकी प्राचीनता बनाए रखने के लिए भवन निर्माण की सदियों पुरानी तकनीक का ही इस्तेमाल हुआ है। भवन मुख्यतः पत्थरों से बना है जिस पर विशेष तरीके से प्लास्टर किया गया था, कई जगह से उखड़ गया था दीवारें भी जीर्ण शीर्ण हो गई थी। जीर्णोद्धार में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि उसकी प्राचीन स्वरूप में कोई छेड़छाड़ ना हो। पनिंग के कार्य के लिए, विशेष प्रकार की मिट्टी को हजारों सेंटीग्रेड पर पकाकर फिर पहले जैसी कलाकृतियां बनाई गईं, इसके अलावा भी कई कार्य किए हैं, जिससे गिरने के कगार पर पहुंच चुके मुख्य भवन की आयु बढ़ गई है मुख्य भवन की कलाकृतियों को देख एहसास होता है, कि इसके निर्माण में कई संस्कृतियों की छाप रही होगी। मुख्य द्वार पर प्रवेश करते दोनों तरफ चीनी ड्रैगन स्वागत करते प्रतीत होते हैं, तो कई स्थानों पर सर्प, मछलियों के चित्र उकेरे गए हैं। बिल्डिंग पर बाहर चारों ओर हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ फारसी में लिखे नीति वाक्य दिखाई देते हैं। कई ऐसे प्रतीक हैं, जिसका अर्थ बताने वाला भी यहां कोई नहीं है। प्रकाश एवं वायु की अद्भुत व्यवस्था है, कई स्थानों से खुला हुआ है वहां से रोशनी अंदर आती है इस तकनीक को *स्काईलाइट* कहते हैं। दिन में लाइट जलाने की जरूरत ही नहीं होती है। मलेशिया की लकड़ी का ट्रीटमेंट किया गया, ताकि दीमक, सीलन, धूप, पानी का असर ना हो। मरम्मत में कहीं भी सीमेंट और बालू का प्रयोग नहीं किया जा रहा है सुर्खी और चूने से जोड़ने का कार्य हो रहा है, विशेष कर के लखौरिया ईंटें बनवाई गई हैं चूना, सुर्खी, गुड़, उड़द दाल और बताशे के पानी के मिश्रण से यह प्लास्टर तैयार किया गया है, यह काफी चिकना होता है, जैसा कि हमें भी छूने पर प्रतीत हुआ। यह प्लास्टर काफी मजबूत होता है, तथा तापमान को भी नियंत्रित करता है। मलेशिया की लकड़ी से बनाई गई छत सेंट्रल हॉल की छत को क्षतिग्रस्त होने के कारण विशेष किस्म की लकड़ी मंगाई गई, इसकी आयु लगभग 300 साल मानी जाती है। बेल्जियम के शीशे केरल, चेन्नई के कारीगरों ने फिट किए, भवन के चारों और रंगीन शीशे लगाए गए थे, कहते हैं शीशे राशि के रंग के अनुसार हैं, उस से छनकर सूर्य की रोशनी जमीन पर श्री यंत्र जैसी आकृति बनाती थी। टेराकोटा की कलाकृतियां क्षतिग्रस्त हो गई थी, इन को नया रूप देने के लिए, कोलकाता से विशेष प्रकार की मिट्टी (टेराकोटा) मंगाई गई।
अब आप इस यूनिवर्सिटी के बारे में और भी जानिए। गोथिक शैली में निर्मित मुख्य भवन का शिलान्यास 2 नवंबर 1847 को #महाराजा बनारस व अंग्रेज वास्तुविद ब्रिटिश सेना के मेजर मारखम किट्टो ने किया था किट्टो की देखरेख में यह भवन अट्ठारह सौ बावन को बनकर तैयार हुआ। वास्तुकार, इंजीनियर मेजर किट्टो ने इसे बनवाया, वो इसकी उत्कृष्टता को लेकर बहुत उत्साहित और कॉन्फिडेंट थे। उन्होंने विश्व के कई देशों के विद्वानों, वास्तुविदों को बुलाया और कहा कि मैंने इसे पूर्ण मनोयोग से बनाया है, अगर कोई इसमें कुछ भी कमी निकाल देगा तो मैं आत्मदाह कर लूंगा, स्वयं को नष्ट कर दूंगा। सब जन बारी बारी से उसको देखते रहे और उसमें कुछ भी कमी ना निकाल सके लेकिन जाते-जाते एक व्यक्ति ने कुछ ऐसा कह दिया कि इसका फर्श थोड़ा नीचा है, अगर कभी बाढ़ आती है तो यह डूब में हो जाएगा, इसमें पानी भर जाएगा, इतना सुनते ही वहीं पास में एक लोहे की सलाख, जो आग में गर्म हो रही थी उसको अपनी छाती पर दे मारा, और इस तरह स्वयं आत्मदाह कर लिया। मरने से पूर्व उन्होंने यह भी कहा, कि मेरी समाधि को इस यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार के सामने ही बनवाएं जहां से मैं, अपनी बनाई कलापूर्ण उत्कृष्टता का दर्शन करता रहूं। (जनश्रुति के अनुसार)
यही वह संस्कृत यूनिवर्सिटी है, जहां उस समय रानी महारानियां पढ़ती थीं। आज भी *पञ्चांग* यहीं की वेधशाला के अनुसार तैयार किया जाता है। स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना, कलाकारी के बेजोड़ नमूने, इस भवन को विरासत सूची में डालने की तैयारी चल रही है।
आगे चलकर गुरु हनुमान मंदिर के दर्शन किए, इसकी भी हमारे गुरुजी से संबन्धित एक रोचक कहानी है, मान्यता है ये गुरू स्वरूप ही हैं। इसके बाद हम चल दिए एक और अनदेखी जगह (लाहिड़ी महाशय का पवित्र निवास स्थान) की तलाश में।
एक और सुखद अहसास हुआ, श्री *श्यामा चरण लाहिड़ी* महाशय के पवित्र स्थान को देख कर। क्योंकि मैं उनके (बाबाजी महाराज, श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय, पुत्र व शिष्य श्री तीन कौड़ी लाहिड़ी महाशय, उनके पुत्र व शिष्य श्री सत्यचरण लाहिड़ी महाशय, व मेरे गुरु जी श्री *शैलेन्द्र शर्मा*) आध्यात्मिक परम्परा (क्रियायोग) से जुड़ी हुई हूं। एक योगी की आत्मकथा के रचियता श्री योगानंद जी, और भी कई महान हस्तियों का विशेषकर योगियों का ही, ज्ञान पिपासु, आम लोगों से तो उनका भी मिलना ना के बराबर ही होता था। क्योंकि ऐसे उच्च कोटि के महापुरुष केवल अपने अधूरे संकल्प, किसी विशेष कार्य पूरा करने के लिए ही जन्म लेते हैं) का यहां आना हुआ करता था। (काशी के जिस घर में लाहिड़ी महाशय जी साधना करके स्वयं भगवान में परिणत हुए थे, जिस घर की माटी एवं एक एक ईंट पर्यन्त पवित्र हो चुकी हैं, जिस घर का आकाश पर्यन्त ब्रह्म में परिणत हो गया है, जहां बैठकर श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय जी सनातन धर्म की सारभूत एवं आध्योपंत बहुत सारी बातें बता गए हैं, जिस घर में प्रवेश करने से पहले ही मस्तक अपने आप ही नत हो उठता है, शरीर में सिहरन होने लगती है, वह घर लोगों के लिए कितना पवित्र है... किंतु दुख का विषय है कि देशवासियों का इस घर के प्रति वैसा कोई लगाव ही नहीं है ) यहीं यह छोटी सी जगह है, परन्तु गुरु पूर्णिमा पर लंबी कतार देखी जा सकती है, पैर रखने को भी जगह नहीं होती है। सामने ही एक बहुत छोटी सी दुकान पर बैठे एक व्यक्ति हमसे कुछ देर बातें करते रहे, और मैं उनके पुरखों के भाग्य को सराहती रही, उन्हें कभी बचपन, अज्ञानता में ही सही उनके दर्शन, सांनिध्य प्राप्त हुआ होगा। कुछ तो पुण्य कर्म होते हैं, जो जाने अनजाने, फल स्वरूप प्राप्त होते हैं। काशी तो है ही शिव भक्तों और शिव के चमत्कारों से भरपूर। काशी का वर्णन करने में भला कौन समर्थ है, मुझमें कहां इतनी बुद्धि सामर्थ्य जो भोले बाबा की महिमा का बखान कर सकूं। इतना कुछ है लिखने को शब्द कम पड़ जाएंगे। काशीनाथ बाबा के दर्शन, वहां की गलियां, सब अपनी अपनी खोज में निकले जिज्ञासु, कल कल बहती गंगा मैया, घाटों पर पुण्य की प्राप्ति की आकांक्षा लिए, डुबकी लगाते, हर हर महादेव, हर हर शंभो! का जयघोष, शाम को आरती, यहां की संस्कृति, चाट, मिठाईयां, सिल्क और मिल्क (मलाईयौ, एक बहुत अच्छा पेय) ना जाने क्या क्या जिसे लिखने में मेरी बुद्धि कौशल समर्थ नहीं हो रहा है। चलते चलते एक और यादगार अनुभव, सिल्क की साड़ियां खरीदते वक्त कुछ पैसे कम पड़ गए, दुकानदार महोदय ने (आर एस एस की खासियत है सहयोगी प्रवृति) ना केवल हम पर विश्वास किया कहा, आप आराम से अपनी यात्रा पूरी कीजिए, गंतव्य तक पहुंच कर खाते में पैसे डलवा दीजिएगा, बल्कि जलपान भी कराया। कचौरी एवं बनारस का प्रसिद्ध पेय *मलाईयो* केसर के दूध को रात ओस में रख कर केवल झाग जैसा सा (ऊपर फेन जैसा) कुछ, कुल्हड़ में पिलाया। कहते हैं बनारस का खाना यहां मरने से पहले ही मोक्ष दिला देता है, बहुत कुछ है यहां के खाने में, पर मुख्यतः शाकाहारी ही हैं। यहां गंगा स्नान के बाद में क्या मजदूर, रिक्शा वाला और क्या सेठ साहूकार सब ही जलेबी, कचौरियां, लस्सी का नाश्ता डटकर, छककर ही घर आते हैं, ताकि घर पहुंच कर खाना खाने की चिंता ही नहीं रहे। हालांकि जंक फूड ने यहां भी घुसपैठ कर ली है, पर इतनी नहीं। बनारस की बात होने पर अधूरी रहेगी यदि घाट की चिताओं की, मोक्ष की, गंगा की, घाट पर आरती की, यहां के संगीत की, घरानों की बात ना की जाए। साधु-संतों के अनुसार काशी के राजा हैं शिव और काशी की जनता है शिव के गण। कुछ भी हो, यह मेरी यादगार यात्रा रही। शेष फिर आगे कभी......
हाइकु___
मोक्ष दायिनी
काटे यम की फासी
शिव की काशी

महाश्मशान
ख्यात मणिकर्णिका
घाट काशी का

विश्वनाथ हैं
मुख्य ज्योतिर्लिंग
बाबा की काशी

शिव ने स्वयं
किया निर्माण काशी
त्रिशूल टिका





कला और आध्यात्म, महाकाल की नगरी उज्जैन

कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम/ महाकाल लोक कॉरिडोर/धार्मिक नगरी उज्जैन यात्रा संस्मरण __
प्रथम दिन भाग __ १
शिव, सनातन धर्म, संस्कृति के बारे में जितना समझने की कोशिश करेंगे, उतना ही जिज्ञासा, लगाव बढ़ता जायेगा। अभी कुछ दिनों पहले ही मोदी जी ने ज्योतिष, खगोल शास्त्र ज्ञान की केंद्र, प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य, महाकाल की नगरी #उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर का उदघाटन किया है। मन में दर्शन की अभिलाषा और शिवलोक कॉरिडोर का चुम्बकत्व अपनी ओर खींच रहा था। कार्तिक मास और दर्शन का संयोग भी बन गया, नेकी और पूछ पूछ। उज्जैन के लिए तीनों मार्गों रेल, सड़क, वायु मार्ग द्वारा पहुंचने की सुविधा है, हम कोटा से ट्रेन द्वारा सायं सात बजे तक उज्जैन पहुंच गए। निवास के लिए कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि #श्रीमहाकालेश्वर भक्त निवास में बुकिंग थी, वहीं प्रांगण में #भारतमाता मंदिर है, जहां प्रतिदिन शाम ८ बजे #वंदेमातरम् गायन के साथ आरती होती है, जिसे देख देश से जुड़ाव का अहसास होता है, बच्चों को ऐसी जगह से अवश्य रूबरू करवाना चाहिए, जिस #संस्कृति संक्रमण के दौर से आज की पीढ़ी गुजर रही है, उसके लिए अति आवश्यक, जानकारी के लिए बहुत अच्छा है। महाकाल लोक कॉरिडोर कला और आध्यात्म का अद्भुत संगम है। हम सायं आठ बजे तक फ्रैश हो चुके थे, भक्त निवास और कॉरिडोर की दीवार एक ही थी हमारे कमरे की खिड़की से ही कॉरिडोर का नजारा लाईटिंग, भीड़भाड़ दिख रहा था। जल्द ही हम भी कॉरिडोर के लिए निकल पड़े। #अशक्तजनों के लिए बैटरी चालित कार की सुविधा उपलब्ध थी। लगभग २०० मूर्तियां दीवार पर उकेरी और  स्थापित की गई हैं, जिनमें #प्रसंग सहित सभी घटनाओं का #जीवंत वर्णन किया गया है। महाकाल कॉरिडोर में भगवान शिव, सती, शक्ति के धार्मिक #प्रसंगों से जुड़ी मूर्तियां और दीवारों पर उकेरी गई प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, १०८ स्तंभों में कई प्रसंग यथा भगवान शिव, सती, गणेश, सूर्य, दुर्गा, सप्तऋषि, कार्तिकेय आदि देवी देवताओं से संबंध अनेक लीलाओं का वर्णन मूर्ति रूप में उकेरा गया है। कुछ प्रतिमाओं से तो नजर ही नहीं हटती। लगभग ९००मीटर लंबा महाकाल पथ बना हुआ है। तीन ओर से प्रवेश द्वार तथा द्वार पर चार विशाल नंदी प्रतिमाएं हैं। कमल कुंड, फव्वारे, रंग बिरंगी रोशनी वातावरण को और आकर्षक बना रहे हैं। हालांकि एक आलेख में सारा #विवरण समेट पाना मुश्किल है, फिर भी प्रयास रहेगा। आगे बढ़ते हुए, तीर्थ यात्रा संस्मरण की श्रृंखला में एक और मोती पिरो दिया है। जानते हैं उस मोती के बारे में __
शमशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठं तु वनमेव च,
पंचैकत्र न लभ्यते महाकाल पुरदृते। यह (अवंतिका क्षेत्र माहात्म्य ) में वर्णित है। अर्थात् यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ, एवं वन ये सभी पांच विशेष संयोग एक ही स्थान, सप्तपुरियों में से एक उज्जैन (अवन्तिका) नगरी में स्थित हैं, इस दृष्टि से भी इसका महत्व बढ़ जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में, उज्जैन में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग #स्वयंभू शिवलिंग प्रमुख हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे बसे अवन्तिका को पृथ्वी का मध्य माना जाता है। दर्शन यात्रा के प्रथम दिन शुरुआत महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शनों से ही किया। आइए मेरी इस यात्रा में शामिल होइए। जीव मात्र को मुक्ति प्रदान करने के लिए धार्मिक नगरी उज्जैन/ अवन्तिका में अवतरित, अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाले, स्वयंभू शिवलिंग देवाधिदेव भगवान महाकाल की हम आराधना करते हैं। एक #संयोग लगता है, मेरे साथ भी जुड़ गया है, ( #राज्यपाल और #रेडकार्पेट ) उस दिन पांच नवंबर २०२२ को भी बिहार के राज्यपाल दर्शनों के लिए पहुंच रहे थे, हमारे सामने ही तुरत फुरत में पुलिस, मंदिर, प्रशासन तैयारी में जुटे हुए थे। जैसा कि हमें पता था, वहां मोबाइल वगैरह सभी बाहरी चीजें सुरक्षा की वजह से अनुमति नहीं थी, फिर भी सभी मोबाइल से फोटो क्लिक कर रहे थे तथा लाइव भी दिखा रहे थे। तब लगा हम भी मोबाइल साथ ले आते तो अच्छा होता, लेकिन श्रीमन (पतिदेव)) पूरे उसूलों के पक्के, उन्होंने कहा व्यवस्था में सहयोग करना चाहिए, दर्शन के लिए आए हैं तो दर्शन लाभ लीजिए। बात भी सही थी, लेकिन शाम को दोबारा जाकर, परिसर में कुछ फोटो अवश्य लिए। उस दिन फिल्म मेकर मधुर भंडारकर ने भी दर्शन किए, जैसा कि पता चला। मंदिर के ऊपर वाली मंजिल व गर्भगृह के सामने दर्शन कर बहुत अच्छा लगा, दोनों जगहों पर बहुत बड़ा बैठने के लिए स्थान बना हुआ है जहां रुक कर थोड़ी देर कोई विश्राम, ध्यान, पूजा अर्चना करना चाहे तो कर सकते हैं हमने भी किया। एक बात विशेष, विक्रमादित्य के शासन के बाद कोई भी राजा, देश प्रदेश का / प्रमुख / मुखिया यहां रात में नहीं रुक सकता, उनकी व्यवस्था शहर से बाहर की जाती है। जिसने भी यह दुस्साहस किया, वह संकटों से घिर गया, मारा गया या कुछ अनर्थ हो जाता है, क्योंकि यहां के राजा तो केवल महाकाल शिव हैं और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य जैसा कोई हुआ नहीं।
महाकाल मंदिर के सबसे ऊपरी तल पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, इनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि, इनके दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही, नागपंचमी पर होते हैं। महाकाल मंदिर के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर स्थित है। जिसमें पूरा शिव परिवार प्रतिमाएं हैं। मंदिर परिसर में ही बीचों बीच प्राचीन श्री #साक्षीगोपाल मंदिर है, मान्यता है कि महाकाल शिव अपने भक्तों के साथ व्यस्त रहते हैं, तो साक्षी गोपाल आपकी सभी जानकारी/गवाही, भगवान शिव को देते हैं कि आपने प्रार्थना और दर्शन किए हैं इसलिए यहां दर्शन करना जरूरी है। #साक्षीगोपाल जी के दर्शन अवश्य करने चाहिए। पंढरपुर भगवान के दर्शन बहुत ही मनमोहक हैं। यहीं पास ही दुस्वप्नों से निवारण के लिए #स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर है, जिनके दर्शन से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है। #मनकामेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन प्रार्थना कर, मन में जो भी कामना होती है वह पूरी होती है। मंदिर परिसर में ही बृहस्पतेश्वर, प्राचीन लक्ष्मी नरसिंह मंदिर, गणेश मंदिर, हनुमान जी, नवग्रह मंदिर आदि सभी मंदिरों के दर्शन कर महाकाल मंदिर से बाहर आए। इस सब में लगभग ढ़ाई तीन किमी. चलना हो गया था।
पूरे भारतवर्ष में महाकाल एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां पर ताजा चिता भस्म से, प्रातः 4:00 बजे भस्म आरती होती है (अब चिता भस्म से नहीं) इसमें पुरुषों द्वारा शरीर पर केवल एक धोती पहनी जाती है, पहले स्त्रियों को इस आरती में शामिल होना मना था अब मालूम नहीं है। हर सुबह भस्म आरती से श्रृंगार कर महाकाल को जगाया जाता है। इसकी भी एक कहानी है। एक बार शव नहीं मिलने पर पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि देकर उसकी चिता की राख से भस्म आरती की, उसी समय भगवान ने दर्शन दे पुत्र को जीवित किया एवं कपिला गाय के कंडे आदि अन्य सामग्री से भस्म आरती के लिए कहा।  इस तरह अब यह प्रथा बंद हो गई है, पिछले कुछ समय से कपिला गाय के कंडे, पीपल, पलाश, बड़, बेर, अमलतास और शमी की लकड़ियों से बनी भस्म को कपड़े में छानकर प्रयोग किया जाता है। कहते भी तो हैं अंग भभूत रमाए। हालांकि हम लोग भस्म आरती के दुर्लभ दर्शन लाभ से वंचित रह गए, क्योंकि अब इसकी ऑन लाइन बुकिंग शुरू हो गई है। और इसकी वेटिंग लगभग एक महीने की रहती है। प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व के #मानक समय का निर्धारण यहीं से होता था, इसलिए कालों के काल महाकाल कहा जाता है। उज्जैन का ज्योतिष, खगोल, तंत्र शास्त्र की दृष्टि से विशेष महत्व था। उज्जैन के आकाश से ही काल्पनिक #कर्करेखा गुजरती है।
दूसरे दिन भाग__२                                 
शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर _ उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं, प्रथम #हरसिद्धि माता और दूसरा #गढ़कालिका माता शक्तिपीठ। कहते हैं कि  उज्जैन में क्षिप्रा नदी के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।  और जहां मां सती की कोहनी गिरी थी वहां हरसिद्धि मंदिर है। हरसिद्धि मंदिर, सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य कुल देवी मानी जाती हैं। हरसिद्धि शक्ति पीठ को इक्यावन शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में इक्यावन फीट ऊंचे दो दीप स्तंभ हैं, जिन पर चढ़कर ११०० दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। इन दोनों मंदिरों को ही शक्तिपीठ माना जाता है। पुराणों में भी इन मंदिरों का उल्लेख मिलता है।
शक्तिपीठ गढ़कालिका देवी __ गढ़कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी माना जाता है, उनकी कृपा से ही उनको विद्वता प्राप्त हुई थी। तांत्रिक अनुष्ठान, साधना, धार्मिक क्रिया कलापों के दृष्टिकोण से यह एक सिद्धपीठ है। तथा शक्तिपीठों में इसका छठा स्थान है।
भैरव मंदिर __ भैरव बाबा यहां साक्षात विराजते हैं। कहते हैं यहां भैरव बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है। यह कब रिवाज बन गया, और चढ़ाई गई मदिरा जाती कहां है कोई नहीं जानता। इस तरह का मंदिर विश्व में यह अकेला ही है। काल भैरव का मंदिर लगभग छः हजार साल पुराना है। यहां पर दीप स्तंभ है। यह स्थान तांत्रिक साधना हेतु सिद्ध माना जाता है।
श्री मंगलनाथ मंदिर __ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मंगल ग्रह की जन्म भूमि यहीं है। यहां पर शिवलिंग रुप में ही मंगल भगवान और मां भूमि की पूजा होती है। मंगल ग्रह को भूमि पुत्र कहा जाता है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, वाहन, भूमि, धन लाभ, ऋणमुक्ति आदि सुख की प्राप्ति के लिए श्री मंगलनाथ जी की पूजा उपासना की जाती है। देश विदेश से लोग मंगल दोष निवारण के लिए यहां पर पूजा अर्चना के लिए आते हैं। ज्योतिष एवं खगोल विज्ञान की दृष्टि से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, माना जाता है कि यह स्थान पृथ्वी का नाभि केन्द्र (मध्य) है।
राजा भर्तृहरि की गुफाएं __
संपूर्ण उज्जैन नगरी कई सिद्ध संतों, भगवानों की तपोभूमि रही है। गढ़कालिका क्षेत्र में गुरू गोरखनाथ जी के गुरू मत्स्येंद्रनाथ का सिद्ध समाधि स्थल है, यह #नाथ संप्रदाय से संबंधित है। किवंदती के अनुसार इस गुफा से चारों धाम की ओर जाने के रास्ते थे, जो आजकल बंद है। भर्तृहरि गुफा की व्यवस्था नाथ संप्रदाय के साधुगण देखते हैं। यहां दो गुफाएं हैं, जिनके अंदर जा कर देख सकते हैं। लेकिन घुटन (suffocation) बहुत है, थोड़ा रिस्की है। भीड़ अगर अधिक हो, और अंदर कुछ हादसा हो जाए तो इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। गुफा में विक्रमादित्य के भाई भृतहरि ने तपस्या की थी। एक श्रुति कथा के अनुसार #अत्रि मुनि ने भी उज्जैन में तीन हजार साल तक तप किया था। भगवान #महावीर स्वामी ने भी यहां विहार किया था।
नगरकोट की रानी _ उज्जैन नगरी के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित पुरातन काल से दक्षिण पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी हैं। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्थान से संबंधित हैं। यह नाथ संप्रदाय से जुड़ा स्थान है। मंदिर के सामने एक कुंड है।
मोक्षदायिनी क्षिप्रा __ इसे मालवा क्षेत्र की गंगा कहा जाता है, क्षिप्रा नदी के किनारे बहुत सारे मंदिर और सुंदर घाट बने हुए हैं, लेकिन यहां पर रामघाट मुख्य है, माना जाता है कि भगवान राम ने भी यहां अपने पिता का श्राद्ध कर्म किया था। रोज शाम को तट पर आरती होती है।  कुंभ के चार स्थानों में से एक क्षिप्रा नदी है, जहां अमृत कलश से अमृत की बूंदें छलक कर गिरी थी। इसीलिए हर बारह वर्ष बाद क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित उज्जैन नगरी में कुंभ मेले का आयोजन होता है, जिसे सिंहस्थ कहते हैं। महाकाल से संबंधित एक भजन __
बाबा भोलेनाथ है हमारा, तुम्हारा।
महाकाल की इस नगरी में हो उद्धार हमारा  बाबा भोलेनाथ है हमारा, तुम्हारा ...
महाकाल की इस नगरी में पाऊं जन्म दोबारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा...
इस नगरी के कंकर पत्थर हम बन जाएं
भक्त हमारे ऊपर, चढ़कर मंदिर जाएं
संतजनों के पैर पड़ें तो हो उद्धार हमारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा ...
जब भी तन मैं त्यागूं, त्यागूं क्षिप्रा तट पर
इतना करना स्वामी, और मरूं मरघट पर
मेरे तन की भस्म चढ़े, हो श्रृंगार तुम्हारा
बाबा भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा ...
सिद्धवट _ सिद्धवट को चार प्राचीन और प्रमुख पवित्र वटों में से एक माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में अक्षयवट प्रयागराज में, वंशीवट मथुरा वृंदावन में, गया में बौद्धवट या गयावट और उज्जैन में सिद्धवट का वर्णन है। इतना कुछ है महाकाल की नगरी, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य की धार्मिक नगरी उज्जैन में कि समय की हमेशा कमी खलती है।
चिंतामण गणेश, चिंता हरण गणेश, रुद्र सागर, नवग्रह शनि मंदिर, संदीपनी आश्रम जहां भगवान कृष्ण, बलराम, सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी, रामघाट और भी कई विशेष दर्शनीय स्थल हैं। जो कि भगवान राम और कृष्ण बलराम से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। समयाभाव के कारण सभी स्थल पर जाना मुमकिन नहीं था लेकिन लोकल गाइड (ऑटो रिक्शा चालक) ने हमें बहुत कुछ जानकारियां दीं। एक सरकारी दुकान (एम पी क्राफ्ट कॉटेज इंडस्ट्री) जहां #कैदियों द्वारा बनाई गई सामग्री उचित मूल्य पर उपलब्ध थी। धातु निर्मित मूर्तियां, शो पीस, चालीस ग्राम वजन की साड़ी, नारियल रेशे की साड़ी, धतूरे की साड़ी,  और न जाने क्या क्या, कितना सही है कहना मुश्किल फिर भी हमने भी साड़ी, दुपट्टे, टी शर्ट वगैरह खरीदे। समय और शरीर दोनों ही ज्यादा घूमने की इजाजत नहीं दे रहे थे। इस तरह डेढ़ दिन की अल्प अवधि में एक एक पल का भरपूर आनंद उठाया, और वापिसी के लिए चल दिए।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान 

बुधवार, 29 जून 2022

सच पर तरस

✍️सच पर तरस!
भरे बाज़ार में, सच की दुकानों पर है सन्नाटा।
तिजारत झूठ की चमकी है,मक्कारी की बातें हैं।
                            _____  हिना रिज़वी
कथा सुनें भागवत की,
प्रभु को बहकाने चला है
श्रद्धा रखें झूंठ, हिंसा में और
आरती के थाल सजाने/
इबादत/ सजदे में सर झुकाने लगा है....

जाने क्यों! सच पर,
अब तो तरस आने लगा है
झूठ अपनी चालों पर,
सीना तान बहुत इतराने लगा है....

झूठ, पहन सच के कपड़े
घूम रहा है जलसों में
सच, तन को ढांपे
कहीं किसी कोने में नंगा खड़ा है....

सुना था,
झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता
लेकिन अब तो
ताउम्र भी पैर जमाने लगा है....

कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते
लेकिन पहन केलीपर
झूठ, मैराथन की
दौड़ लगाने लगा है.....

सच कड़वा होता है,
इसलिए
कौवे जैसा सच नहीं बोलें?
अन्यथा लटके रहोगे चमगादड़ की तरह
उलटे पांव पेड़ पर, ताउम्र...

क्या कभी झूठ दंडित हो पाएगा
कहीं ऐसा ना हो,
लोग सच को ही समझें गाली
और इस तरह केवल झूठ पर ही 
बड़ी निष्ठा के साथ भरोसा किया जाएगा.....

ए दुनिया! मैं (सच) नहीं तेरे लायक,
इसीलिए शायद मुझे (सच)
इस दुनिया से
विदा किया जाएगा....

लेकिन! नहीं मैं (सच) कहीं नहीं जाऊंगा
ना ही हार मानूंगा!
मुझे भेजा ही इसीलिए गया है
मेरा विश्वास बहुत गहरा है
झूठ! एकदिन रोएगा, गिड़गिड़ाएगा
अंत समय में मुझसे माफी भी मांगेगा
बस, फर्क इतना है, तब मैं माफी
नहीं दे पाऊंगा, तुम से पहले ही
मैं (सच) चला जाऊंगा
हमेशा के लिए अपराधबोध देकर
तब तुम्हें मेरे होने का महत्व समझ आएगा....