रविवार, 23 जून 2019

hello parents, बच्चों का व्यक्तित्व विकास


✍️ hello parents__
बच्चों की जिद, गुस्से, की आदतों को कैसे कम करें। यदि समाज का उत्थान करना है तो उपयुक्त समय बचपन ही है क्योंकि यही समय है जब बुद्धि सबसे अधिक परिवर्तनशील होती है। केवल #उपदेश देने से बात नहीं बनेगी। संस्कार, आचरण से सीख कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कब और किस तरह #हस्तांतरित हो जाते हैं, और पता भी नहीं चलता। बच्चों को संस्कार #ईमानदारी, जिम्मेदारी का पाठ भी इसी तरह छोटी उम्र में ही सिखाएं। पांच या छः वर्ष तक के बच्चे अधिकतर गुण, अवगुण सीख चुके होते हैं। इस उम्र में बच्चों का ऑब्जर्वेशन बहुत उच्च होता है। इसलिए उनकी #परवरिश में सहयोगी बनें, रुकावट नहीं।
आजकल मुख्य समस्या वृद्धावस्था में बच्चों के व्यवहार को लेकर देखने में आ रही है, क्योंकि बचपन में परवरिश पर ध्यान दिया नहीं जाता, बच्चे गलत राह पर भटक जाते हैं। और फिर वृद्धावस्था में दुखी होना स्वाभाविक है। इसलिए बच्चों की परवरिश में उपदेशों से नहीं अपने आचरण से सही आदतें डवलप करें। कहते हैं नींव अगर मजबूत होगी तो इमारत (भविष्य) भी अच्छा होगा, अन्यथा बच्चे सफलतम स्तर तक नहीं पहुंच पाएंगे।
अपने बच्चों की #जिद और गुस्से को किस तरह कंट्रोल करें। जब भी बच्चा गुस्सा हो तो वह आप से उम्मीद करता है, कि आप उसकी इस हरकत पर  या तो गुस्सा या मायूस हों, जैसा की अधिकतर सभी पेरेंट्स का रिएक्शन होता है। पर आप ऐसा कुछ नहीं करें। माहौल को बदलने के लिए #इग्नोर करें या कुछ पल शांति से व्यतीत करें। उस गुस्से वाली बात से ध्यान हटाएं। और बच्चे के साथ खेलें, या कुछ हंसी मजाक करें, आप के इस बर्ताव से उसे भी हंसी आएगी। और आगे चलकर वह इस तरह गुस्सा करने से बचेगा। धैर्य रखें, सब्र का फल मीठा होता है। बच्चों को उसकी मनचाहा ना होने पर ही वे जिद करते हैं, ऐसे में उनकी इस आदत को बदलने के लिए थोड़ा धैर्य रखना सिखाएं। घर में कोई मेहमान आता है तो बच्चे को भी जिम्मेदारी सौंपें। घर में अगर बुजुर्ग  दादी बाबा, नाना नानी कोई हैं, तो उनको सहयोग करना सिखाएं, उनको कोई जिम्मेदारी सौंपे, जैसे दवा देना है, कभी हाथ पैर दबाना है, या चलने फिरने जैसे किसी काम में उनकी सहायता करना है। पढ़ाई की दिनचर्या वजह से कई बार बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल्स नहीं सीख पाता और बच्चे कई बार किसी नए व्यक्ति से मिलने में संकोच महसूस करतेे हैं। इससे बचने के लिए बच्चों को किसी ऐसे गेम्सस या याा एक्टिविटी में डालें, जिसमें नए व्यक्तियों से मिलने और नई एक्टिविटी करने का मौका ज्यादा से ज्यादा मिले। छुट्टियों में परिवार के लोगों और रिश्तेदारोंं से मिलवाएं।
बच्चों में धैर्य विकसित करने के लिए आप उनके साथ, उनकी पसंद के खेल खेलें। आप अपने बच्चे के साथ खेल में, जिसमें आप बच्चे बने और वह माता या पिता ऐसा करने से उसे आपका दृष्टिकोण समझ में आने लगेगा। बच्चों से उसकी राय भी पूछी जाए, आप अपने बच्चे से अपनी छोटी मोटी परेशानियों के हल मांगे, उससे अपनी रोजमर्रा की बातों को शेयर करें इससे आपके बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा, और वह आपके सामने खुलकर बातचीत करेगा। हमेशा आदेश देने की बजाय कि उसे क्या करना है, आप उससे पूछना शुरू करें, कि आप कैसे कुछ नया अलग कर सकते हैं। ऐसा करने से उसे अपनी #अहमियत को महसूस करने में मदद मिलेगी। उनकी बातों को भी महत्व दें। इस तरह के कुछ सुझावों से आप अपने बच्चे के स्वभाव, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट की आदतों से छुटकारा पा सकते हैं। बच्चों के सामने आप भी आदर्श स्थापित करें, तभी सार्थक होगा अन्यथा बच्चे बहुत होशियार होते हैं। वो दिखावटी बातें तुरंत समझ जाते हैं, फिर उनसे सच की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं हो सकती।

सोमवार, 17 जून 2019

पत्र का पत्रनामा

✍️ पत्र का पत्रनामा___
यत्र कुशलम् तत्रास्तु, से शुरू
थोड़े लिखे को बहुत समझना से खत्म
जिनको पढ़, पाठक उन्हीं भावनाओं में बह जाए,
कुछ प्रेषित पत्र सिलेबस का हिस्सा हो गए,
कुछ #अप्रेषित पत्र बेस्टसेलर किताब बन गए।
पत्र__
जिसमें समाए थे, मन के उदगार
समुद्र सी गहराई, भावनाएं हजार
किसी का रोजगार
अम्मा का इंतजार 
प्रिय के प्रेम का इजहार 
या दूर परदेस से आए
प्रियतम की विरह वेदना,
और जल्दी आने के समाचार
पत्र
जिसमें लिखी दास्तां
और अफसाने हजार
बहन भाई का प्यार
जिससे जुड़े हैं भावों के तार
डाकिए की घंटी सुन,
भरी गर्म दोपहर में
निकल आते थे बाहर
पूछते थे, चिट्ठी आई है?
नहीं होने पर हो जाते उदास
पत्र
प्रियजन के संदेश
बुजुर्गों की आस, विश्वास
पत्र की विशेष बनावट देख
या फिर छिड़के हुए इत्र की महक
ओट में खड़ी बाला की चूड़ियों की खनक
समझ जाते थे, घर के बड़े, बुजुर्ग,
तसल्ली होने पर,
नाम लेकर बुलाते काका, चाचा
और थमा देते,
पत्र
घूंघट की ओट लिए बहू को
जो खोई है, निज खयालों में
पति गए हैं करन व्यापार
इंतजार कर रही बेटी को
जिसके पति हैं तैनात सीमा पर
अगर हाथ लग गया
पत्र
छोटी बहन या देवर के
फिर तो फरमाइश पूरी
करने पर ही पाती मिल पाती है,
मां भी छेड़ने से
कहां बाज आती है।
वो दिन पूरा खुशी में ही बीतता
पत्र
एक बार पढ़, फिर #बारबार पढ़
मन उन्हीं भावनाओं में बह जाता
कैसे भेजें संदेश
दूर गया पति,अब पिता बनने वाला
परेशान ना हो, इसलिए
छोटे मोटे दुखों का नहीं दिया हवाला
पत्र
होली, दिवाली, राखी की
बख्शीश खत्म हुई,
और अब पत्र लिखना हुआ इतिहास
और थम गए हों जैसे,
चाय के साथ
डाक बाबू के अपनेपन का अहसास।
पत्र का ये सिलसिला, कबूतर से शुरू हुआ, पत्रवाहक, टेलीग्राम, फोन, मोबाइल से होता हुआ बतख (ट्विटर) तक पहुंच गया।
पोस्टकार्ड, खुली किताब हुआ करता था, फिर अंतर्देशीय पत्र, थोड़ी प्राइवेसी लिए,या थोड़ी ज्यादा प्राइवेसी के साथ एनवलप, क्योंकि कई बार कुछ #शैतान खोपड़ी, अंतर्देशीय पत्र को भी बिना खोले पढ़ने का हुनर जानते थे, इसलिए #लिफाफा, जिसमें आप कुछ रख भी सकते थे। टेलीग्राम का नाम सुनते ही सब घबरा जाते थे। क्योंकि यह किसी आपात घोषणा जैसा ही होता था, जन्म, मरण, सेना या नौकरी का बुलावा। लेकिन जो बात उन पत्रों में थी, वो आज के मैसेज में कहां? आज भी जब घर जाती हूं, तो घर के कोने में तार को मोड़ कर बनाए #पत्रहैंगर को नहीं भूल पाती। उसमें कई तो पचास, साठ साल पुरानी चिट्ठियां भी हैं। जिन्हें पढ़ने का आनंद कुछ और है। कई बार तो #सबूत की तरह भी पेश किए जाते थे। आज तो इधर खबर, उधर #डिलीट।

शुक्रवार, 14 जून 2019

प्रेम, प्रभु का दिया अनमोल उपहार


✍️प्यार, इश्क, मोहब्बत!
प्रभु का दिया एक अनमोल उपहार___
तेरे पास बैठना भी इबादत
तुझे दूर से देखना भी इबादत.........
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत............
छाप, तिलक सब छीनी,
तो से नैना मिलाईके.........
क्या है ये सब? प्यार , इश्क, मोहब्बत या इनसे हटकर बहुत ऊपर। ये सूफियाना अंदाज है, प्रभु से लगन लगने की। अमीर खुसरो की ब्रजभाषा की एक कविता है, जिसमें दिखाया तो लड़की के लिए है लेकिन वास्तविक रूप में प्रभु कृष्ण के लिए है। जिसमें ईश्वर को पति, प्रेमी रूप व स्वयं (आत्मा) को स्त्री रूप में प्रेम को दर्शाया गया है।
हे री, मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दरद ना जाने कोय..............
जहर का प्याला राणाजी भेज्या,
पीवत मीरा हांसी............
भिलनी के बेर, सुदामा के तंदुल
रुचिरुचि भोग लगाए..............
क्या ये सब प्यार, इश्क, मोहब्बत की विभिन्न अवस्थाएं हैं, जिसमें प्रेम रूपी रोग का कोई इलाज नहीं है। प्यार विश्वास को जन्म देता है, तभी तो मीरा को अपने प्रभु पर पूरा भरोसा था। प्रेम, मनुष्य जीवन का आनंद ही नहीं, नैतिक गुण है। ये प्यार ही है, जिसमें भीलनी अपनी सुधबुध खो कर, सारे भेद मिटाकर, अपने प्रभु राम को जूठे बेर खिला रही है। जिसमें प्रभु राम जूठे बेर खा रहे हैं। और सुदामा के बाल सखा श्री कृष्ण, तंदुल खाते हुए भाव विभोर  होकर आंसुओं से सुदामा के पैर पखार रहे हैं। शायद यही प्यार की #इंतहा, अंतिम परिणीती है।
तू तू ना रहे,मैं मैं ना रहूं,
एक दूजे में खो जाएं............
प्यार में स्वयं को भुलाकर, बस हर वक़्त दूसरे का ही ध्यान रहेये प्यार ही है, जो विश्वास को जन्म देता है। प्यार, इश्क, मोहब्बत एक ही भाव के अनेक नाम, रूप के साथ ही इसके आगे भी बहुत कुछ विस्तृत, अकथनीय, अवर्णनीय भाव, जज्बात, कोई दुराव छुपाव नहीं, #निर्मल अहसास है। प्यार में बंधन नहीं, स्वतंत्रता और विश्वास है। प्यार भावनाओं का निचोड़ , समुद्र की गहराई है। प्यार किसी शर्त या कसम का मोहताज नहीं। सही मायनों में प्यार का मतलब अधिकार, लेना नहीं देना होता है।
#प्रेम आसान नहीं है, जो निराशाओं से घिरा होने के बावजूद उम्मीद की एक किरण जगाए बैठा रहता है। #इश्क भी अजीब चीज है, कभी आदमी को कितना #बहादुर बना देती है, कि उसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार। तभी तो किसी ने सही कहा है, इश्क एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। प्रेम कभी इतना #डरपोक, बुजदिल बना दे, कि उसके बिछुड़ने की सोच मात्र से ही डर लगने लगता है। कभी इतना #दुख देता है, कि आदमी मौत की तमन्ना करने लगता है, और कभी इतनी #खुशियां देता है, कि एक जिंदगी कम लगने लगती है। इश्क ना तो सिखाया जाता है, और ना ही बताया जाता है। ये आंखों का नहीं, दिल का एक #पवित्र, #रूहानी अहसास है। प्यार वह जुड़ाव है, अगर प्रभु से किया जाए तो, इश्क, #ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भी बन सकता है, बशर्ते इसमें कोई संदेह, दुराव, छलावा ना हो। प्रेम में #मैं भाव के लिए कोई स्थान नहीं है। प्रेम दो दिलों का को खूबसूरत अहसास है, जो मैं और तुम के बीच की दूरी को मिटा देता है। मैं (अहम) भाव को मिटाकर ही इसकी अनुभूति होती है। एक ताजगी का अहसास, खूबसूरत सी आस, श्रृद्धा और विश्वास है प्रेम। प्रेम ईश्वर का दिया अनमोल तोहफा है।
प्यार दुनिया के हर रिश्ते में विद्यमान है। भगवान - भक्त, गुरु - शिष्य, मातापिता - संतान, बहन - भाई, पति - पत्नि, मित्रों आदि के प्यार, इश्क, मोहब्ब्त को भला कौन वर्णन कर पाया है। प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिस पर फल, फूल नहीं लगते। प्यार बिना, जीवन सूखी नदी की तरह है। प्यार एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता।प्यार जीवन जीने का हौसला देती है।
प्रेम गली अति सांकरी, जामें दो न समाहिं।
जब #मैं था तब हरि नहीं,अब #हरि है मैं नाहीं।।

शुक्रवार, 7 जून 2019

अमानवीयता की जड़ें, खोजनी होंगी


✍️अमानवीयता की जड़े खोजनी होंगी____
समाज में व्याप्त अपराधों, बढ़ते दुष्कर्मों के लिए हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना होगा, कुरेदना होगा उन तथ्यों को, कि आखिर मनुष्य इतना #पाशविक क्यों हो रहा है। छोटी छोटी बातों पर धैर्य खोना, हत्या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के बाद भी उनके चेहरे पर #शिकन तक नहीं होना, गंभीर चिंता का विषय है। मेरा मानना है कि इन सब की जड़ में है #शराब और #बेटों की सभी गलतियों को #जायज़ ठहराने का प्रयास। उन पर कोई रोकटोक नहीं। शायद ही कोई माता पिता अपने बेटे की गलती मानने को तैयार होंगे। इसके विपरीत, बड़ी आसानी से लड़की के ऊपर ही लांछन लगा देते हैं। लेकिन अभी हाल ही की घटना तो झकझोर देने वाली है। पिछले कुछ समय से इस तरह की घटनाओं के ग्राफ में बढ़त हो रही है।
बेटियों पर तो सबने बहुत ज्ञान दिया है, कुछ ज्ञान बेटों को भी दिया जाए। बेटा पढ़ाओ, साथ ही उन्हें #संस्कार भी सिखाओ! प्राथमिक शिक्षा के साथ बच्चे को निश्चित ही एक #जिम्मेदार नागरिक बनाने की शिक्षा जारी रहनी चाहिए।
मनुष्य के अंदर बढ़ती #पाशविकता को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही नहीं हो सकती, हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना ही होगा। दरअसल इस समस्या की शुरुआत #घर से ही होती है, जिसमें हमेशा ही बेटों की सभी गलतियों, कुचेष्टाओं, बेवकूफियों पर पर्दा डाला जाता है, या उनकी गलती मानी ही नहीं जाती। और यही लड़के आगे चलकर बेखौफ #अपराधी बन जाते हैं, जिन्हें किसी से डर नहीं लगता। ना परिवार से, ना ही समाज या कानून से। इसमें प्रशासन, सुरक्षा व्यवस्था व न्याय व्यवस्था भी जटिलता से परिपूर्ण है।
#नशा अपराध,अनैतिकता का सबसे #बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं लगती?? आजकल जितनी दुकानें दवाइयों, सब्जियों, की नहीं है, उससे कहीं ज्यादा शराब की दुकानें खुल रही हैं। हर चौथी दुकान शराब की मिल जाएगी। क्या शराब इतनी आवश्यक है। आम गरीब आदमी सारी चीजें सरकार से मुफ्त पानी की चाहत रखता है, लेकिन शराब के लिए पैसे का जुगाड कर ही लेता है, उधर सरकार की मंशा भी क्या है, क्या यही कि आम आदमी सोचने की स्थिति में ही ना रहे, जिससे कुछ लोगों की जेबें भी भरती रहें, और उनकी ही हुकूमत बनी रहे।
शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने से, सरकारी तंत्र की #ऊर्जा भी बचे, देश का #भविष्य भी!!
समस्या के हल के लिए, कानून, सुरक्षा व्यवस्था को तो सजग चुस्त दुरुस्त होना ही है, साथ ही समाज में पनप रही शराब संस्कृति पर भी रोक जरूरी है। आजकल शायद ही कोई टीवी सीरियल होगा, जो बिना शराब सेवन के पूरा होता हो, क्या युवा, क्या बूढ़े, दादियां, लड़कियां आखिर हम कौन सी संस्कृति परोस रहे हैं।
कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि #बोतल में #शराब है। किन्तु इस एक #शराब शब्द में बहुत #भयंकर अर्थ छिपा है।जैसे एक छोटे से बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है, किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार #शराबरुपी #विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है। समाज में व्याप्त अपराधों की जड़ है शराब।
आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जातिवाद, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए। नशे की आदत, दीमक की तरह मनुष्य के शरीर को खा जाता है। नशा वह जहर है, जिसे लोग बड़े स्वाद और शान के साथ गटकते हैं, इस तरह बच्चों की गलतियों के लिए जिम्मेदार और इसका दोषी कौन है????? शायद पैरेंट्स!! नशा अपराध की जड़ है। बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश देना तो #पैरेंट्स की जिम्मेदारी है। इसके विपरीत, पैरेंट्स! खुद सब चलता है, कह कर #सपोर्ट करते हैं, तो क्या किया जाए?? या बेटों के लिए सब #जायज है, चाहे वो कुछ भी करे। सीखता तो बच्चा घर से ही है। लेकिन कुछ #स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचें, कि ये बच्चे! परिवार हित, देश, समाज के लिए यह भी आपके द्वारा एक योगदान ही है।
अच्छी परवरिश माता पिता की सबसे बड़ी चिंता है उनका बच्चा पढ़ाई, लिखाई ,खेलकूद, हर क्षेत्र में अग्रणी रहे यह उनकी चिंता है। बच्चों को उनकी गलती के अनुसार कभी-कभी दंड देना भी आवश्यक है, उनकी गलती के अनुसार अगर ज्यादा सजा दी जाए तो भी सही नहीं है। बस बच्चे पर उसका असर सही हो, यह आवश्यक है।

शराब,ऐसा शौक जिसे लत बनते देर नहीं

✍️
#शराब, एसा शौक, जिसे #लत बनते देर नहीं लगती_____
🍷यदि मैं एक दिन के लिए तानाशाह बन जाऊँ,तो शराब पर #प्रतिबंध मेरा पहला कदम होगा।
                                                       #बापू
🍷Drug addiction is a family disease, one person may use but the whole family #suffers.
🍷यह एक #धीमाजहर है, जिससे व्यक्ति स्वयं ही प्रभावित नहीं होता वरन् उसका कैरियर, परिवार, बच्चे सभी प्रभावित होते हैं। नशे में व्यक्ति ऐसे #जघन्यअपराध तक कर बैठता है, होश में  रहते  शायद जिनके  बारे में वह  सोच भी नहीं सकता। कब एक छोटा पैग----शौक, मस्ती, या so called high society culture दिखाने के चक्कर में ये नशा आपको अपना #गुलाम बना चुका होता है। इसके दुष्परिणामों के बारे में जानने तक बहुत देर हो जाती है। आधुनिक दिखने की होड़ में अच्छे शिक्षित वर्ग भी इसकी चपेट में ज्यादा हैं। उन्हें यह लगता है, कहीं पिछड़े ना कहलायें। ऐसे में जिम्मेदारी #परिवार की भी है। युवा होते बच्चों पर हम अपने विचार थोपें नहीं, वरन् घर का वातावरण इतना सौहार्द रखें, बच्चों से शेयर करें कि बच्चे सारी बातें आपको बता सकें।
🍷अल्कोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है। व्यसन की एक विशेषता है, इसके नुकसानों को जानते हुए भी व्यक्ति अपनी *लत का गुलाम* हो जाता है। इसे जीर्ण #मानसिकरोग भी कह सकते हैं।
🍷शराब,गुटखा,सिगरेट,तम्बाकू द्वारा *निकोटीन फेफड़ों* में पहुंच कर *ऑक्सीजन की कमी से कई बीमारियों का* कारण बनती है।
अल्कोहल का मुख्य असर *लीवर, किडनी* पर पड़ता है। अल्सर की सम्भावना भी बनती है। लीवर में शराब से हानि कारक तत्व बनते हैं, जो लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं।
🍷अल्कोहल का सबसे *ज्यादा दुष्प्रभाव मस्तिष्क पर* पड़ता है। आसपास के माहौल को भांपने में, शरीर तथा दिमागी संतुलन नहीं बना पाता, फैसला करने में, एकाग्रता में कमी आने लगती है।#स्वच्छंद महसूस कर व्यक्ति स्वयं सभी मुश्किलों से आजाद महसूस करने लगता है।
🍷ज्यादा शराब के सेवन से व्यक्ति बेसुध हो जाता है, अवसाद में भी चला जाता है, क्रोध बढ़ जाता है तथा कभी कभी अनहोनी भी कर बैठता है।(किसी भी प्रकार की)।
🍷शराब #मात्र *5-7 मिनट के अंदर दिमाग पर असर* डाल देती है। शराब की वजह से *न्यूरोट्रांसमीटर्स #अजीबसंदेश* भेजने लगते हैं, तथा *तंत्रिका तंत्र #भ्रमित* होने लगता है। शराब का ज्यादा सेवन घातक होता है। कई बार विटामिन्स और आवश्यक तत्व नहीं मिल पाते। दिमाग में अल्कोहल के असर से *डिमेंशिया की बीमारी* होने का खतरा बढ़ जाता है।
🍷शराब प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। और इसके चलते कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।शराब के सेवन से सेक्स सम्बंधी (#यौनव्यवहार) में लिप्त होने या जोखिम लेने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह विवेक तो पहले ही खो चुका होता है। इस प्रकार यौन संक्रमित बीमारियों के होने का भी खतरा बढ़ जाता है।
🍷ज्यादा शराब व सिगरेट पीने से शरीर में #टॉक्सिन्स की मात्रा बढ़ जाती है। यह लिवर में पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
🍷कभी शौक में,कभी खुशी में, कभी गम में ,तो कभी यारी दोस्ती के जश्न मनाने में *कब व्यक्ति एक पैग से शुरू होकर शराब की लत के #दुष्चक्र में*फंस जाता है। उसे पता भी नहीं चलता। और फिर शुरू होता है *बर्बादी का अंतहीन सिलसिला*।होश आने पर उसे महसूस भी होता है। फिर अपनी गलतियों को छुपाने या परिस्थितियों का सामना न कर पाने से दुबारा ------फिर एक बार और------फिर एक बार और-----
🍷ऐसे लोगों में *#आत्मविश्वास की बेहद कमी* होती है। दिल के *बुरे ना होते हुए भी सही कार्य के निर्णय नहीं ले पाते।* और पारिवारिक कलह के लिए जिम्मेदार होते हैं।
🍷इसलिए ✓[एक पैग की भी शुरुआत ही क्यों]✓ करें। परिवार में बच्चों के सामने #स्वस्थमाहौल बनाएं, जिससे युवा होते बच्चे आपसे सारी बातें शेयर कर सकें। बाहर की हर मुसीबत का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकें।
🍷WHOकी पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार शराब के सेवन से अवसाद, आत्महत्या, बेचैनी, लीवर सिरोयसिस, हिंसा, दुर्घटना तथा आपराधिक मामलों में प्रवृत होने के मामले ज्यादा बढ़ जाते हैं। इसलिए एक कदम भी इस ओर न बढ़ाएं, और अगर बढ़ भी गए हैं तो शपथ लें। हमेशा अपने मातापिता या पत्नी, बच्चों, परिवार को ध्यान में रखते हुए सोचें। छोड़ने के लिए सब तरह की कोशिश करें। ध्यान, व्यायाम अवश्य करें। फिजिकल फिट रहें। अच्छी संगत में रहें।और जो भी उपाय सम्भव हो, अवश्य करें। और स्वयं को ✓[मानसिक,शारीरिक यहाँ तक कि आर्थिक भी दिवालिया]✓ होने से बचाएं। ध्यान, मेडिटेशन, योग करें। निष्क्रिय ना रहें। ऐसे लोगों की संगति से बचें, जो आपको नशे के लिए आमन्त्रित करते हों। इस लत को छोड़ने में मुख्य भूमिका तो आपकी ही होगी, हर समय दूसरे को दोष देना ( व्यक्ति, या परिस्थिति) भी उचित नहीं है।
🍷नशे में डूबा व्यक्ति डर व चिंता के प्रति लापरवाह  हो जाता है। जो कि किसी भी चुनौती का सामना करने से #डरते हैं। गलत काम करते हुए सही #लक्ष्यप्राप्ति की उम्मीद कैसे की जा सकती है। परिवारों के #विघटन में नशा भी मुख्य #जिम्मेदार कारण है।

गुरुवार, 30 मई 2019

हैलो पेरेंट्स, गलतियों पर पर्दा न डालें


✍️हैलो पैरेंट्स!
गलतियों पर पर्दा न डालें__
बेटियों पर तो सबने बहुत ज्ञान दिया है, अब कुछ ज्ञान बेटों पर भी दिया जाए। बेटा पढ़ाओ, साथ ही उन्हें #संस्कार भी सिखाओ! प्राथमिक शिक्षा के साथ बच्चे को निश्चित ही एक #जिम्मेदार नागरिक बनाने की शिक्षा जारी रहनी चाहिए।  वर्तमान युग में बेहद आवश्यक तथा देश की तरक्की में भी सहयोगी है।
भारत देश में लड़कों के लिए, इसकी शादी कर दो सुधर जाएगा। लड़कियां शादी के बाद मायके से वास्ता नहीं रखें, अन्यथा बिगड़ जाएंगी। दूसरी ओर, केवल बेटियां ही बुजुर्गों का ध्यान रखती हैं, बहुएं नहीं। ये किस मानसिकता में जी रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब आप (पैरेंट्स) की परवरिश पर निर्भर करता है। इसलिए पेरेंट्स! अपनी गलतियों, आचरण पर भी ध्यान देने की जरूरत है। अपने व्यवहार को चेक करें, बच्चे सबसे ज्यादा अपने मातापिता से ही सीखते हैं, उपदेशों से नहीं।
आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है। ऐसा ही कृत्य अगर महिलाएं करें तो, कैसा लगेगा। क्या घर संभालने की जिम्मेदारी केवल महिला की है। वैसे आजकल महिलाएं भी इस दिशा (नशे) में निरंतर बढ़ रही हैं, वो भी पीछे नहीं हैं। अब तो अक्सर लड़कियां, आंटिया भी खुलेआम पब, पार्टियों में नशे में लड़खड़ाती देखी जा सकती हैं।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जातिवाद, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए।
क्या आपने वह कहानी सुनी है जिसमें एक बच्चा शुरू में चोरी करता है तो माता उसको कभी नहीं टोकती, और एक दिन वह बड़ा चोर बन जाता है। पकड़े जाने, सजा मिलने पर वह अपने मां से मिलने की इजाजत मांगता है। उसके हाथ बंधे होते हैं, और वह अपने मां से कान में कुछ कहना चाहता है। पास जाने पर वह मां का कान काट खा जाता है, सब आश्चर्यचकित होते हैं। तब वह कहता है कि जब मैंने पहली बार चोरी की थी, तब ही शायद मेरी मां ने डांट दिया होता, तो मैं आज इतना बड़ा चोर नहीं होता। इसलिए पेरेंट्स यह आपकी जिम्मेदारी है, कि आपका बच्चा पहली बार कोई गलती करे तो उस पर ध्यान दें, उसको छुपाए नहीं। उसको समझाएं प्यार से, डांट से, हर तरह से। नशे की आदत, दीमक की तरह मनुष्य के शरीर को खा जाता है। नशा वह जहर है, जिसे लोग बड़े स्वाद और शान के साथ गटकते हैं, इस तरह बच्चों की गलतियों के लिए जिम्मेदार और इसका दोषी कौन है????? शायद पैरेंट्स!! अगर पहली बार नशा करने पर मांतापिता ने गाल पर दो चांटे जड़े होते, बजाय गलती छुपाने के, पूछा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। नशा अपराध की जड़ है। बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश देना तो #पैरेंट्स का फर्ज है। पत्नी से पति को सुधारने की अपेक्षा कितनी सही है?? इसके विपरीत, पैरेंट्स! खुद सब चलता है, कह कर #सपोर्ट करते हैं, तो क्या किया जाए?? या बेटों के लिए सब #जायज है, चाहे वो कुछ भी करे। सीखता तो बच्चा घर से ही है। अक्सर बेटियों को शादी के बाद मायके से बातें करने या संपर्क में रहने से रोका जाता है, कि माएं बेटियों का घर बर्बाद कर देती हैं। लेकिन ये बात अभी तक समझ से परे है, उन बेटों का घर भी तो माएं ही बर्बाद करती हैं, जो बेटों को अपनी बहू के साथ स्वीकार ही नहीं कर पातीं, उल्टा उन्हें केवल एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझती। शराब पीने पर अगर बहू लड़े, तो पिता माता उन बेटों को अपने पास बिठा कर सपोर्ट करते हैं कि ये सब चलता है, या तुम्हारी वजह से पी रहा है। ऐसे में लड़कों को मां बहुत प्यारी लगती है। लेकिन कुछ #स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचें, कि ये बच्चे! देश या परिवार का तो छोड़िए, समय आने पर जरूरत पड़ने पर आपके पास आने लायक भी बचेंगे?? हो सकता है, ये बच्चे आपके सामने ही पूरा जीवन भी ढंग से ना जी पाएं। इसलिए समय रहते संभल जाइए, झूठे अहम, दिखावटी प्यार को छोड़ बच्चों को सुधारने की कुछ तो कोशिश कीजिए। परिवार हित, देश, समाज के लिए यह भी आपके द्वारा एक योगदान ही है। 
अच्छी परवरिश माता पिता की सबसे बड़ी चिंता है उनका बच्चा पढ़ाई, लिखाई ,खेलकूद, हर क्षेत्र में अग्रणी रहे यह उनकी चिंता है। बच्चों को उनकी गलती के अनुसार कभी-कभी दंड देना भी आवश्यक है, उनकी गलती के अनुसार अगर ज्यादा सजा दी जाए तो भी सही नहीं है। बस बच्चे पर उसका असर सही हो, यह आवश्यक है।

मंगलवार, 28 मई 2019

सच पर तरस!



✍️ सच पर तरस!
भरे बाज़ार में, सच की दुकानों पर है सन्नाटा,
तिजारत झूठ की चमकी है, मक्कारी की बातें हैं।
                                              - हिना रिज़वी
कथा सुनें सत्यनारायण की,
प्रभु को बहकाने चला है
श्रद्धा रखें झूंठ में और
आरती के थाल सजाने लगा है....
जाने क्यों सच पर,
अब तो तरस आने लगा है
झूठ अपनी चालों पर,
सीना तान बहुत इतराने लगा है....
सुना था,
झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकता
लेकिन अब तो
ताउम्र भी पैर जमाने लगा है....
कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते
लेकिन पहन केलीपर
झूठ के, मैराथन की
दौड़ लगाने लगा है.....
कहते हैं
झूठ कड़वा होता है, इसलिए
कौवे जैसा सच नहीं बोलें
अन्यथा लटके रहोगे चमगादड़ की तरह
उलटे पांव पेड़ पर, ताउम्र...
क्या कभी झूठ दंडित हो पाएगा
कहीं ऐसा ना हो,
लोग सच को ही समझें गाली
और इस तरह केवल झूठ पर ही 
बड़ी निष्ठा के साथ भरोसा किया जाएगा.....
ए दुनिया! मैं (सच) नहीं तेरे लायक,
इसीलिए शायद मुझे (सच)
इस दुनिया से
विदा किया जाएगा....
लेकिन! नहीं मैं (सच) कहीं नहीं जाऊंगा
ना ही हार मानूंगा!
मुझे भेजा ही इसीलिए गया है
मेरा विश्वास बहुत गहरा है
झूठ एकदिन रोएगा, गिड़गिड़ाएगा
अंत समय में मुझसे माफी भी मांगेगा
बस, फर्क इतना है, तब मैं माफी
नहीं दे पाऊंगा,तुम से पहले ही
मैं (सच) चला जाऊंगा
हमेशा के लिए अपराधबोध देकर
तब तुम्हें मेरे होने का महत्व समझ आएगा....

मंगलवार, 14 मई 2019

आपकी सफलता/ निर्णय क्षमता

✍️
आपकी सफलता और निर्णय क्षमता
#एक पत्र, युवा बच्चों के लिए______
जिसने भी ऊंचाइयां छूई हैं, उसमें परिवार का सहयोग, समयानुकुलता,भाग्य तो है ही, लेकिन सबसे #अहम है, आपके द्वारा लिए गए #निर्णय।
जीवन में हमेशा कुछ पान पाने की चाहत में हम भागते ही रहते हैं, उससे आगे... उससे आगे... उससे ज्यादा... और ज्यादा... और अपने जीवन का अधिकांश समय हम इसी थकान में लगा देते हैं। क्या कभी हमने सोचा है आखिर यह भागम-भाग किस लिए यह थकान किस लिए????? ज्यादातर लोग बस जिए जा रहे हैं।

#दुनिया के अधिकतर लोगों को अपनी जरूरतें पता होती हैं, लेकिन फिर भी वह जीना भूलकर, और पाने की चाहत में अपने को उलझाए रहता है, यह भी सही है कि कुछ चीजें जरूरी भी होती हैं, लेकिन फिर भी अंधी दौड़, का क्या फायदा????? और कई बार, जिंदगी की दौड़ कब पूरी होने के करीब होती है, और आपके पास समय नहीं होता। उस समय सिवाय अफसोस के कुछ नहीं!!!यहां तक कि आप अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाए, कुछ बेहतर कर सकते थे, लेकिन नहीं कर सके। पीछे छूटे लोग आपको याद करें ना करें, आप अपने आप में भी तो संतुष्ट नहीं हो पाए। जिम्मेदार कौन है इन सब चीजों का?? अच्छा होगा समय रहते आप समझ जाएं, सांस थम जाने से पहले, कोई काश!!!!!!! कहने का अफसोस ना करें।

अपने ऊपर #डर (लोग क्या कहेंगे) को हावी ना होने दें। आप जितना इससे डरेंगे, लोग आपके ऊपर हावी होना जारी रखेंगे। उनको खेलने के लिए एक कठपुतली जो मिल जाती है। दूसरों की सोच की परवाह,आपको डरपोक, पंगु, मतिहीन कर देती है।आप दूसरों के हाथ का खिलौना बन कर, कितनी ऊंचाइयां हासिल कर सकते हैं, सोचिए!! आंखें बंद कर, मन की आवाज सुनें, उसे प्राथमिकता दें। सफलता मिले न मिले, जीने का जज़्बा, उत्साह बना रहेगा।

जो कार्य आपको पसंद नहीं उसमें अपनी #एनर्जी बर्बाद नहीं करें, उसमें सफलता संशययुक्त है, मिल भी सकती है, नहीं भी। क्योंकि उस कार्य में आप अपना पूरा #जुनून नहीं दे पाएंगे, इसलिए आप सफलता चाहते हैं, तो अपनी #पसंद का खयाल अवश्य रखें, और फिर जुट जाएं, पूर्ण धैर्य, लगन, समर्पण के साथ, सफलता निश्चित है, क्योंकि आप पूरे #जुनून के साथ करेंगे। सफलता नहीं भी मिली, मन #संतुष्ट होगा। आपने अपना बेहतर दिया, सपनों को पूरा करने के लिए, आगे प्रभु इच्छा।

#विवेकानंद हों, योगानंद जी, या अपने प्रधानमंत्री मोदी जी हों, या ऐसे ही और भी बहुत से व्यक्ति। पढ़ने का मतलब पैसा कमाने की मशीन बनना नहीं है। ज्ञानार्जन, स्व की खोज में सहायक है। मुझे अपने परिचितों में, एक ऐसे बच्चे का पता लगा, जो अपने माता का इकलौता पुत्र भी है, जिसने आई आई टी रेंकर होकर,अच्छे जॉब के बावजूद, आध्यात्मिक पथ को चुना। ये उसका चुना हुआ #निर्णय था।
स्वतंत्रता का आनंद किसी पक्षी से पूछिए जो उड़ान भरता है खुले आसमान में। अपनी पसंद का करने में, #स्वतंत्रता और #निरंकुशता के बारीक अंतर को समझें। #स्वविवेक नितांत आवश्यक है। स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर जीवन को सही दिशा दें। सही फैसले लेकर स्वस्थ जीवन जिएं, समय फिसलता जा रहा है। बाद में पछताने से अच्छा होगा, समय रहते जीवन पर नियंत्रण के साथ, उचित फैसले लें। और जो कुछ भी हो, उसकी जिम्मेदारी भी लेना सीखें। जिम्मेदारी की भावना आपको  #सफलता की ओर अग्रसर करती है, वहीं इससे बचना #पलायन सिखाती है।

#जीवन एक #यात्रा है, और हम सब  सहयात्री। सबसे सहयोग, प्यार, मित्रता बना कर रखें, लेकिन कोई भी किसी के साथ हमेशा के लिए नहीं होता, इसका ध्यान रखें। #अफसोसों के बक्से के बोझ तले घुट कर मरने से अच्छा होगा समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित की जाए। स्वास्थ्य हो या कैरियर, भविष्य को ध्यान रखें। अनिर्णय, या गलत निर्णय के बाद, आप हालात से समझौता करने वाली जिंदगी जीना चाहेंगे ????? शायद नहीं। तो फिर चुनिए भी और सुनिए भी अपने मन की आवाज़। और इसके लिए कभी कोई देरी नहीं हुई है, जब जागो तब सवेरा!!!

#जिंदगी को #अर्थपूर्ण बनाने की कोशिश करें, भरपूर आनंद के साथ जिओ और जीने दो। ताकि जब हम अपनी यात्रा पूरी कर रहे हों तो कोई काश!!! बाकी न  रहे। और लोगों के दिलों में भी एक हस्ताक्षर तो छोड़ ही जाएं। सब सोचने पर मजबूर हो जाएं, बंदे में कुछ तो बात थी। किसी ने क्या खूब लिखा है_________
कर्म करे किस्मत बने, जीवन का ये मर्म।
प्राणी तेरे भाग्य में, तेरा अपना कर्म।।

गुरुवार, 9 मई 2019

मां!

✍️ मां!
मां की कोई उम्र नहीं होती
मां बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!
छोटी उम्र में बच्चों की
देखभाल में खुद को भुला देती है।
और बूढ़ी होने पर भी
बच्चों के लिए दौड़भाग करती है।
अभी तो डांट रही थी
मैं तेरी मां नहीं,तू मेरा कुछ नहीं
भूखा सो जाने पर
चूमती है,पुचकारती है,
खुद से ही बड़बड़ाती,
खुद को ही कोसती है और
अंत में गले लगा, दुनिया भर का लाड़
उंड़ेल देती है मेरे गालों पर
वो बस जानती है दुलार
क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती
मां तो बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!

मां नहीं जानती कोई शौक
उसे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आती
और उन बचे पैसों को
दे देती है मेरी कॉलेज की
पिकनिक के लिए
मैंने कभी भी नहीं खरीदते देखा
उसे सोने की नई बाली या कंगन
क्योंकि वो जोड़ रही है पैसे
मेरी नई बाइक के लिए
मां को कोई शौक, पसंद भी नहीं होते
करती रहती है बस
व्रत अनुष्ठान, पूजा पाठ
हमारी सुख शांति और तरक्की के लिए
और एक दिन बस.....चली जाती है
क्योंकि मां! की कोई उम्र नहीं होती
मां बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!

अपने बच्चों से अथाह प्रेम करती है।
जरा सी हिचकी क्या आई
छोड़ देती है खाने की थाली
पता नहीं क्या खाया होगा
दूर नौकरी पर,
कौन उसकी पसंद जानेगा
छोटी से फोन मिलवाती है
तसल्ली हो जाने पर ही
थाली का खाना गले से
उतार पाती है, साथ में
पिताजी के उलाहने भी पाती है
अब तो उसे, बड़ा बनने दो
मां बस रो देती है
क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती
मां तो बस मां होती है!
चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!।







बुधवार, 8 मई 2019

पुरानी कहावत


✍️पुरानी #कहावतें यूं ही नहीं बनी।
#बाप पर पूत, सईस पर घोड़ा।
ज्यादा नहीं तो, थोड़ा #थोड़ा।।
एक पुरानी कहावत है जैसा बाप वैसा बेटा। यह बात अब #शोध में भी साबित हो चुकी है, वैज्ञानिकों ने माना है, कि जो चीज है #पिता करते हैं अक्सर बड़े होकर वह #पुत्र भी करते हैं। जो आदत पिता में होती है अगर पिता देर से घर आता है तो निश्चित ही बच्चा भी देर से ही घर आएगा, या पिता को अगर #झूठ बोलने की, #नशे की #आदत है, तो बच्चे भी बड़े होकर ऐसा ही करते हैं। यही बात लड़कियों पर भी लागू होती है। इसीलिए शायद घर को #प्रथम स्कूल कहा जाता है, इसलिए सतर्क हो जाइए! आप जैसा बच्चों से उम्मीद करते हैं, पहले स्वयं करके दिखाइए। आगे से बच्चों को कोसना बंद करें एवं अपने गिरेबां में भी झांक कर देखें। काम और रोजाना के जीवन के बीच #संतुलन की प्रक्रिया, #अनुभव बचपन से ही शुरू हो जाते हैं। शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने माना है कि जब हम काम करना शुरू करते हैं तो बचपन के अनुभवों से प्रभावित होते हैं। और उसके अनुसार ही परिवार व काम के बीच समय को विभाजित करते हैं।