रविवार, 13 जनवरी 2019

मकर संक्रान्ति

✍️ मकर संक्रान्ति____
पिता का पुत्र के यहां आगमन पर स्वागत, यानी #सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करने पर इस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।💐
हिन्दू संस्कृति में त्यौहारों का विशेष महत्व है और ये पूर्णतया #वैज्ञानिक आधार पर भी सही ही होते हैं। हिन्दू #जीवनशैली में संचय की अपेक्षा #दान को विशेष महत्व दिया गया है।इस प्रवृत्ति से उदारता एवं सद्भाव बढ़ता है। वंचित व गरीब साधनहीन वर्ग को सहारा मिलता है। इसलिए इस पर्व पर दान, स्नान का काफी महत्व है। इस दिन खिचड़ी, तिल के व्यंजन, लड्डू, गजक, रेवड़ी, मूंगफली, मक्के के फूले ,पूरी, पकवान आदि बनाए, खाए व दान किये जाते हैं। इस परंपरा को महाभारत के एक दृष्टांत से जोड़ा जाता है। पांडव जब वनवास में थे, तो उन्हें मकरसंक्रांति के दिन भिक्षा में तिल, दाल, चावल आदि मिले थे। ये सब चीजें आपस में मिल गई थीं, उन्होंने उन चीजों को उसी रूप में पकाकर खाया। तब से ही खिचड़ी बनने की शुरुआत हुई, इस दिन खिचड़ी का दान भी किया जाता है। उत्तरप्रदेश में तो इसे खिचड़ी का त्यौहार ही कहते हैं।
उत्तरभारत में मकरसंक्रांति, दक्षिण में पोंगल, ( सूर्य, इंद्रदेव, नई फसल ,पशुओं व बेटियों को समर्पित त्यौहार है )पंजाब व जम्मू कश्मीर में लोहड़ी,सिंधी समाज में लाल लोही (मकरसंक्रांति से एक दिन पहले) बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात तथा असम में बीहू के रूप में, यह त्यौहार पूरे भारतवर्ष में किसी किसी तरह मनाया जाता है। 14 जनवरी को गंगासागर में मेले का आयोजन होता है, व इसमें स्नान का बहुत महत्व है। गुजरात, व महाराष्ट्र में अनेक खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
भारत में सभी पर्वों को हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मकरसंक्रांति का अपना विशेष महत्व है। यह सूर्य आराधना का पर्व है। सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का उत्सव है।सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो यह पर्व मनाया जाता है। मकरसंक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होकर दिन, तिल तिल कर बड़े होना शुरू हो जाते हैं। हिन्दू ग्रन्थों में इस दिन का विशेष महत्व है। भीष्म ने इसी दिन को अपने प्राण त्यागने हेतु चुना था। #उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात #सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इस समय देवयोग शुरू होता है। और खिचड़ी देवताओं को पसंद है, सूर्य का उत्तरायण होना  उत्साह और #ऊर्जा के संचारित होने का समय है, जिसकी शुरुआत खिचड़ी से होती है।उत्तरप्रदेश में  गंगा स्नान, कंबल, घी, खिचड़ी, तिल की बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है।ऐसा माना जाता है, इस दिन प्रयाग (संगम) में देवीदेवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं। महाराष्ट्र में पहली संक्रांति पर तेल, कपास, नमक, सौभाग्य सूचक सामग्री सौभाग्यवती स्त्रियों को प्रदान करती हैं। बंगाल में भी तिल दान का महत्व है।
राजस्थान व गुजरात, सौराष्ट्र खासतौर पर जयपुर, अहमदाबाद में मकरसंक्रांति पर्व पर पतंगो का खूब उत्साह, जुनून व शोर रहता है। कई जगह इसकी प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती हैं। बच्चे अल सुबह ही नहाधोकर छतों पर चढ़ जाते हैं, वहीं पर गाना बजाना, खाना पीना व पतंगों का दौर शुरू होता है, जो सूरज ढलने पर ही समाप्त होता है। बच्चों की मस्ती देखते ही बनती है।
सिंधी व पंजाब में लोहड़ी पर होली की तरह लकड़ियां एकत्रित कर जलाई जाती हैं। फिर उसकी परिक्रमा कर उसमें रेवड़ी, तिल, मक्का के फूले अग्नि में समर्पित किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है जो व्यक्ति आग के बीच से धानी या मूंगफली उठाता है उसकी मुराद पूरी होती है। लोहड़ी नवविवाहित या बच्चे के जन्म पर विशेष धूमधाम से मनाई जाती है। पहले छोटे छोटे बच्चों की टोलियां द्वारा घरों से लोहड़ी पर गीत गाकर पैसे, तिल का सामान, लकड़ियां आदि मांगी जाती थीं, जो अब संकोचवश समाप्त होती जा रही है। इसका एक प्रसिद्ध गीत-----
सुंदर मुंदरिये,-------हो
तेरा कौन बेचारा,--------हो
दुल्ला भट्टी वाला,---------हो
दुल्ले दी ब्याही,----------हो
सेर शक्कर आई,-----------हो
कुड़ी दे बोझे पाई,----------हो
कुड़ी दा लाल पटारा,--------हो
एक कथा किवंदती के अनुसार, एक ब्राह्मण कन्या को दुल्ला भट्टी ने जो कि एक मुसलमान था, गुंडों के चंगुल से छुड़ाया, फिर एक सेर शक्कर देकर उसका विवाह ब्राह्मण लड़के से कर दिया। उसी की याद में  आज भी यह गीत गाया जाता है। इस दिन मक्की की रोटी व सरसों के साग भी बनाया जाता है। महिलाएं हंसते गाते लोहड़ी मनाती एवं दुआ करती हैं।
दक्षिण भारत में पोंगल चार दिन तक चलने वाला कृषि, पशुधन की समृद्धि का त्यौहार है। पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी पूजा, तीसरे दिन, पशुधन तथा अंत में बहुत ही स्वच्छता से खीर बना कर भोग लगाया जाता है एवं बेटियों दामादों को आमंत्रित कर स्वागत किया जाता है।
भगवान श्री राम ने भी पतंग उड़ाई थी, राम चरित मानस के बालकांड में इसका उल्लेख मिलता है। भगवान श्री राम जब पतंग उड़ा रहे थे तो वह इतनी ऊंची पहुंच गई कि इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी ने उसको पकड़ लिया। इसके आगे की कथा भी है।
राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्र लोक में पहुंची जाई।।
ये वे प्रसंग हैं जिनसे पतंग की प्राचीनता का पता  चलता है।।

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