रविवार, 14 अप्रैल 2019

हैलो! Mothers


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हैलो! Mothers ______
आज पैरेन्टिंग में, मैं मां को ज्यादा महत्व दे रही हूं। वैसे तो दायित्व दोनों का ही है, फिर भी मां का मान , महत्व एवं योगदान एक पायदान अधिक है। एक अच्छी #मां सौ #गुरुओं के बराबर होती है।  बच्चे के लिए मां ही प्रथम #स्कूल है। जितने भी महान लोग हुए हैं, उनके व्यक्तित्व निर्माण, भविष्य संवारने एवम् सूरज की तरह चमकने में मां की #परवरिश का बहुत बड़ा योगदान होता है। ऐसी ही मांओं में से एक फरीदुद्दिन गंज शकर (रह.) की मां थीं। उनकी परवरिश से उनके बच्चे ने यश, मान सम्मान की ऊंचाइयों को छुआ। फरीदुद्दीन की मां का ये रोज का नियम था, कि वो रोजाना मुसल्ले (नमाज पढ़ने के लिए बिछाए जाने वाले मैट) के नीचे शक्कर की पुड़िया रख देती और कहती, जो बच्चे नमाज पढ़ते हैं उनको मैट के नीचे से शक्कर की पुड़िया मिलती है। इसका उनके मन पर गहरा असर हुआ, और वे बचपन से ही नियमित, बेनागा नमाज पढ़ने एवं खुदा को स्मरण करने लगे। वे कभी भी नमाज अदा करना नहीं भूलते थे। आगे चलकर इसी वजह से उनको गंज शकर के नाम से ही प्रसिद्धि मिली।
हम जो भी बच्चों को बनाना चाहते हैं, उसका बीजारोपण बचपन में ही हो जाता है। और फिर जैसा बीज है, परवरिश की खेती (देखभाल) है, फसल भी वैसी ही पकेकी। कई बार छोटी छोटी बातें बच्चे के मस्तिष्क में अमित छाप छोड़ देती हैं, ये सब बचपन के बीज हैं। जो उम्र के साथ पोषित होते जाते हैं।
अगर आप वास्तव में #देश, समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं, तो बच्चों की परवरिश पर ध्यान दीजिए। स्वच्छ, स्वस्थ शरीर ही #स्वस्थ मानसिकता के साथ उन्नति की ओर #अग्रसर हो सकता है।
#परवरिश में #मां का अहम योगदान है। किसी ने क्या खूब कहा है_ एक #पुरुष की शिक्षा केवल एक व्यक्ति की ही शिक्षा होती है, लेकिन एक #स्त्री की शिक्षा से एक खानदान ही नहीं, पूरा #समाज शिक्षित बनता है। एक मां दस #गुरुओं से भी अच्छी हो सकती है। समाज को खूबसूरत बनाने में मां की #अहम भूमिका होती है। औरत की गोद में ही पुरुष का लालन-पालन, शिक्षित होता है, जो आगे चलकर समाज की, देश की तरक्की के में योगदान करता है। नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था _ तुम मुझे अच्छी #मांएं दो, मैं तुम्हें अच्छा #राष्ट्र दूंगा।
आज के इंटरनेट के युग में माताओं की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, कि वह इसके #दुष्प्रभाव से अपने बच्चों को किस तरह बचाए। उन्हें #मोबाइल की जगह #हेल्थी #लाइफस्टाइल दीजिए। मोबाइल के लिए डांटिये मत, स्वयं इसका प्रयोग कम करने की चेष्टा करें, उनके साथ समय बिताएं, जिम्मेदार तो आप ही हैं। बच्चे #अनुकरण से जितना सीखते हैं, उपदेशों से नहीं। खैर....... मुख्य मुद्दा यह है, कि बच्चों को #स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करें।
मां प्रथम #गुरु है। सही गलत, झूठ सच, सभ्यता या बदतमीजी, ये सारी बातें बच्चा घर से ही सीखता है। इसके लिए बच्चों के लिए ध्यान, प्यार और सख्ती तीनों ही आवश्यक हैं। हो सकता है बच्चा आपसे नाराज भी हो जाए, अपनी इमेज की चिंता छोड़िए, क्योंकि जब उसे पता चलेगा आप उसके भले के लिए कर रहे हैं, तो आपके लिए उसके दिल में और भी सम्मान बढ़ जाएगा। गलत बातों पर परदा डालना, पिता से छुप कर पैसे देना या गलत कार्य की डांट से बचा लेना, उस समय अवश्य, आपकी प्यारी, सीधी, निरीह मम्मा की छवि बनती है, लेकिन यह अति मोह, उसके भविष्य की बरबादी की प्रथम #सीढ़ी है। बच्चों के #चरित्र निर्माण में आपकी मुख्य भूमिका है। सजा देना भी जरूरी है, पनिशमेंट पैरेन्टिंग का जरूरी हिस्सा है। इसे आवश्यकता अनुसार अमल में लाएं। बच्चों को #पता होना चाहिए किस गलती पर सजा मिल रही है, अनावश्यक दंड देना या अपनी गुस्सा (फ्रस्ट्रेशन) बच्चों पर निकालना कहां तक उचित है। बच्चों की तुलना करना, या उनमें अपराधबोध देना कि तुम नालायक हो....... ऐसा बच्चा कभी कॉन्फिडेंट नहीं रहेगा और न ही जीवन में सफलता प्राप्त कर पाएगाबच्चों का आत्म विश्वास भी कम ना होने दें किसी भी बच्चे के व्यवहार, परवरिश को देख कर आप उसके घर के संस्कारों का अंदाजा लगा सकते हैं। क्योंकि कई बार यही परवरिश, आपको एक परफेक्ट मां बना सकती है।

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

मन के मंजीरे


प्रौढ़ावस्था_ संघर्ष / सामंजस्य
नई और पुरानी पीढ़ी में वैचारिक मतभेद हमेशा से चला आ रहा है। नई बात नहीं है, लेकिन जितनी दूरियां आज बढ़ गई हैं, उतनी पहले नहीं थीं। लोगों में अधिक से अधिक पाने, सुख भोगने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है,और इसके चलते परिवार संस्कृति, विघटन  की ओर बढ़ रही है। जहां पुरानी पीढ़ी प्रौढ़ावस्था में स्वयं को हर कार्य के लिए सही मानते हुए, नई पीढ़ी को अपने समय की परंपराओं एवं मान्यताओं को ही नहीं, बस केवल और केवल आदेश मानने के लिए विवश करने के साथ ही उचित ठहराने का प्रयास करती है, वहीं स्वतंत्र विचारों वाली नई पीढ़ी भी कई बार अपने को पूर्ण परिपक्व मानते हुए आधुनिक परिवेश में रहना पसंद करती है। संघर्ष का कारण यह नहीं है कि नई पीढ़ी बुरी है, या पुरानी पीढ़ी बुरी है। बुरा है सोचने का, अपेक्षाओं का, नकारात्मकता को पोषित करने का तरीका। वास्तविक समस्या यह है कि दोनों ही पीढ़ियां अपने अहम की संतुष्टि के साथ खुद को ही श्रेष्ठ मानते हुए, अपने लिए एक विशेष स्थान प्राप्त करने की इच्छा रखती हैं। यह अंतर हम मनुष्यों में ही नहीं जानवरों में भी होता है। सबको अपने अधिकार, स्थायित्व की चिंता बनी रहती है। वानरों के किसी भी दल में एक ही नर वानर होता है, और उसी का अधिकार होता है। उसी दल में जब वानरों के बच्चे युवा होते हैं तो दल पर आधिपत्य के लिए युवा वानरों एवं बुजुर्ग नर वानरों के मध्य मरने मारने का द्वंद होता है, कुत्तों, शेरों के अपने इलाके में दूसरे की घुसपैठ पर लड़ाई, हाथियों के झुंड में भी ऐसा विरोध अक्सर देखने को मिलता है। यह सब आधिपत्य की लड़ाई के लिए है। लेकिन हमें (बुजुर्गों को) कुछ सीख #पक्षियों से भी लेने की जरूरत है। जो बच्चों को पालते हैं, पोसते हैं और समय के साथ छोड़ देते हैं अपनी जिंदगी जीने के लिए, उड़ान भरने के लिए। हम पशु तो नहीं हैं, विवेक भी है, फिर अहम, जिद छोड़ क्यों नहीं रहे। हर चीज, पूर्वाग्रहों को, कम्बल की तरह लिपटाए बैठे हैं। समय के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए, जो कल आपका था, आज #हस्तांतरण के लिए तैयार रहिए, विवश होकर नहीं, खुशी खुशी। कभी आप भी युवा थे, उस स्थति को भी याद कर सकते हैं, कितने बदतमीज या हेकड़ थे? याद आया? ऐसा तो हो नहीं सकता कि जिन युवाओं को आज उद्दंड, बदतमीज बताया जा रहा है, वह बुजुर्ग होते ही निरीह और सीधा सरल हो जाएगा, हो सकता है आप भी उनमें से एक हों। इसलिए नई पीढ़ी को कोसना बंद कर, थोड़ा सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करें। नई और पुरानी पीढ़ी में हमेशा विचारों में अंतर रहा है। इसी अंतर से पीढ़ियों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। दरअसल आज की जीवन शैली व परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। वर्तमान में देश जिस बदलाव के दौर से गुजर रहा है, आशंका है कि नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के संबंधों का भविष्य क्या होगा? दिखने लगा है। एक असुरक्षा का भाव बना हुआ है। रिश्तों में मिठास कम हो रही है, असुरक्षा, संदेह घेरे हुए है। भौतिकतावाद भी एक वजह हो सकती है। पिछले चार पांच दशक में विज्ञान के प्रभाव से हमारा रहन-सहन एवं व्यवहार भी अछूता नहीं है। परिवर्तित व्यवस्था से नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी में दूरियां स्पष्ट नजर आने लगी हैं। आधुनिक व्यवस्था एवं मान्यताओं से प्रभावित नई पीढ़ी वर्षों से चली आ रही परंपरा, संस्कारों एवं मान्यताओं वाली पुरानी पीढ़ी में सामंजस्य की कमी निरंतर बढ़ रही है, जैसे-जैसे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है मानसिक रोगों की वृद्धि होती जाती है। जब मानसिक रोगों का निवारण नहीं किया जाए तो कालांतर में, शारीरिक रोग का रूप ले लेता है। इसी कारण प्रौढ़ ही नहीं, युवावस्था में भी अनेक रोगों से ग्रसित हो रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति के विचार भिन्न भिन्न होते हैं, हर कोई हमारी इच्छा के अनुरूप ही कार्य करें यह संभव नहीं है। जिन्हें हमने सर्वस्व लुटा कर लाड़ प्यार के साथ बड़ा किया है, यदि उनकी खुशी के लिए हमारे जीवन में कुछ परिवर्तन कर लिया जाए तो दोनों पीढ़ियों का जीवन आनंदमय में हो सकता है।इसमें नुकसान भी कहां है। यदि पुरानी पीढ़ी तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन के साथ नई पीढ़ी की महत्वाकांक्षा को समझ कर उनके जीवन में सहयोगी बने, तथा नई पीढ़ी भी पुरानी पीढ़ी की भावनाओं को समझते हुए #सामंजस्य स्थापित कर उनका आदर करे, तो दोनों पीढ़ियां एक सुखद भविष्य की ओर अग्रसर होती हैं। बच्चों को अनुभव के साथ अच्छी सुरक्षित परवरिश मिलेगी, तथा बुजुर्गों को मान सम्मान के साथ उचित सेवा व देखभाल, अन्यथा दोनों ही पीढ़ियां सुखी नहीं रह सकती और ना ही तरक्की कर सकती हैं। लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं में भी बदलाव आया है। जीवन में हम #बुजुर्ग अपने अहम् को त्याग कर अपनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर फिर आनंददायक जीवन की शुरुआत करें, एवं अच्छे समाज एवं राष्ट्र का निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। यह जिम्मेदारी हम बुजुर्ग व्यक्तियों की बनती है, जिसमें युवा भी सहयोग करें। लेकिन शुरुआत हम बुजुर्गों को ही करनी चाहिए, बड़प्पन भी इसी में है। कब तक झूठे अहम के साथ जिएंगे। सूखे ठूंठ की तरह अकड़ना क्या उचित है, नहीं तो टूटने के लिए तैयार रहें। थोड़ा धैर्य व व्यवहार में लचीलापन तो होना ही चाहिए।
                       

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

कृतज्ञता व्यक्त करना सीखिए

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Be thankfull, smile & say thank u----------
कृपया, प्लीज़, धन्यवाद,सॉरी, माई प्लैजर, मुझे खेद है या खुशी हुई  आदि छोटे छोटे शब्द हमारी बातचीत में गरिमा,शालीनता, आकर्षण व स्थायित्व प्रदान करते हैं। विनम्रता का पुट देते हैं। भाषा आपकी कोई भी हो सकती  है। कहने का अपना कोई अलग अंदाज हो सकता है।
प्रतिदिन कहे जाने वाले ये छोटे से शब्द आप में कृतज्ञता की भावना पैदा करते हैं।जिससे अवसाद भी कम होता है।
इस तरह के लोगों में कठिन परिस्थितियों तथा सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता ज्यादा होती है। उनका सोचने का नजरिया पहले से ज्यादा आशावादी ही जाता है। आशावादी दृष्टिकोण अपनाने से मानसिक तथा शारीरिक रूप से भी व्यक्ति स्वस्थ रहता है। किसी के प्रति आभार जताना आपको हैल्थी लाइफ स्टाइल की ओर प्रेरित करता है।धन्यवाद कहने की आदत आपके लिए एक प्रभावशाली टॉनिक साबित हो सकती है।
धन्यवाद या थैंक्यू कहने में हम् सबसे ज्यादा कंजूसी करते हैं।*हम कहना चाहते हुए भी अभ्यास न होने के कारण इन शब्दों को बोल ही नहीं पाते*। कुछ लोगों का मानना है हमने काम कराया उसका पैसा दिया फिर धन्यवाद या थैंक्यू की क्या आवश्यकता।*लेकिन धन्यवाद बिना पैसे की वह सौगात है जो देने और पाने वाले दोनों को अंदर तक गदगद कर देती है।* इस तरह का व्यवहार आपकी लोकप्रियता को  तो बढ़ाता ही है, आपके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है, सन्तुष्टि का भाव रहेगा।
धन्यवाद कहने से आपके सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती हैै, तथा खुशी का स्तर बढ़ता है।
यह शब्द  उन लोगों के लिए भी लाभदायक साबित हो सकता है *जो अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने में संकोच या कठिनाई महसूस करते हैं।* ऐसा करने से मन मे उत्पन्न  नकारात्मक विचारों से भी छुटकारा मिलने  में कुछ मदद हो सकती है। और कुछ हो न हो मन को सन्तुष्टि का अहसास तो होता ही है।
विनम्रता से अहंकार नहीं होता व्यक्ति झुकना सीखता है। जिससे जीवन मे रंग भरता है, प्रसन्नता महसूस होती है। जिस किसी से भी आप को जो मिला है, उसके प्रति कृतज्ञता का बोध होने पर  आप अपने मन मे उन सब के लिए धन्यवाद, शुक्रगुजार होंगे।
`Mercy is twice blessed' की तरह धन्यवाद भी देने और पाने वाले दोनों को अंदर तक गुदगुदा देता है। हमारे धन्यवाद (शुक्रगुजार होने का तरीका) कह देने मात्र से सामने वाले की थकावट दूर हो जाती है, वह अपने आप को सम्मानित महसूस करता है कि आपने उसको  सम्मान, तवज्जो दी। साथ ही स्वयं आपको भी संतोष मिलेगा, अच्छा लगेगा।
पर अंत में एक विशेष बात *यह सब कुछ #दिल की गहराइयों से होना चाहिए, ऐसा न हो कि बस किसी अपना काम निकलवाया या अपना उल्लू सीधा किया और टिका दिया `थैंक्यू'। इस तरह की हरकतों से इन शब्दों का कोई औचित्य नहीं रह जाता।बस एक *बिज़निस डील*बन कर रह जाते हैं। इन शब्दों के दिल के साथ प्रयोग से आपके व्यक्तित्व में निखार आता है।और #दिखावटी लोगों का व्यक्तित्व  कभी आकर्षक तथा टिकाऊ यानि मन  में छाप छोड़ने वाला तो नहीं हो सकता।
So,Say thanks heartily.

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे बने

✍️बच्चों में पढ़ने की आदत डेवलप करें ____
आज बच्चों में पढ़ने की आदत नगण्य होती जा रही है। बच्चे कोचिंग कर लेंगे, कुछ जानकारी चाहिए तो गूगल पर सर्च कर लेंगे, लेकिन स्वयं पढ़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। यह आज की सबसे बड़ी समस्या होती जा रही है कि बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं, बिगड़ रहे हैं। जबकि सच तो यह है कि बच्चे नहीं, सब ही बिगड़ रहे हैं। इसका मूल कारण, घर का माहौल है, बड़े बुजुर्ग हो या माता-पिता सभी अपने अपने टीवी सीरियल्स, मोबाइल में बिजी हैं, बच्चों पर ध्यान ही कौन दे रहा है। फिर किसको दोष दें। दादी बाबा हों या नानीनाना, कितने बुजुर्ग हैं जो सुबह उठ कोई धार्मिक ग्रंथ या अच्छा साहित्य पढ़ते हैं। सबकी भोग प्रवृति बढ़ती जा रही है, फिर बच्चों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं। इस तरह पूरी पीढ़ी ही बर्बाद की ओर अग्रसर होती दिख रही है।
बच्चे पढ़ने के बजाय मोबाइल आदि पर ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं, यह एक बहुत बड़ी समस्या है। शुरू में छोटे बच्चों को मोबाइल देकर मातापिता खुश होते हैं, और बाद में माता पिता भी उनकी इन आदतों से परेशान हो जाते हैं, कि बच्चे पढ़ते क्यों नहीं है। लेकिन यह सही है अगर माता-पिता किताब, अखबार आदि पढ़ेंगे, तो बच्चे भी पढ़ना सीखेंगे। क्योंकि बच्चे देखकर ही सारी चीजें सीखते हैं। हम वीडियो गेम और टीवी में व्यस्त रहें, और बच्चे पढ़ें यह कैसे संभव है। बच्चों में #रीडिंग #हैबिट्स डेवलप करने के लिए पैरेंट्स उनके साथ कम से कम पंद्रह, बीस मिनट किताबें अवश्य पढ़ें। बच्चों को केवल आदेश देकर पढ़ने बिठा देना समस्या का हल नहीं है। उन्हें सिखाएं, बच्चों को नई बातें सिखाने के लिए रोचक तरीके,

रंग, आवाज और आकार का उपयोग करें। बच्चों के साथ रोजाना साथ बैठकर कम से कम आधा घंटा कुछ न कुछ किताब अवश्य पढ़ें, तब ही बच्चों में पढ़ने की आदत डेवलप होगी। क्योंकि बच्चे आपका आदेश कभी नहीं मानेंगे, डर से भी नहीं। लेकिन वो आपकी नकल अवश्य करेंगे, इसलिए बच्चे को जिस सांचे में ढालना चाहते हैं, वैसा ही आचरण कीजिए।



शनिवार, 30 मार्च 2019

विज्ञापनों की भ्रामक दुनिया

✍️विज्ञापनों की भ्रामक दुनिया___
जो  wrong Ko right Bana de वो है विज्ञापन की दुनिया, बस एक यही बात सही लगती है विज्ञापन में।
आजकल की प्रवृत्ति है भोगो, और खूब भोगो...भले ही बर्बाद जो जाओ,उस पर तुर्रा ये कि जिंदगी भी तो एक बार ही मिली है, क्यों ना भोगें। विज्ञापन की सफलता इसी में है कि जो उसे देखे उसका #मुरीद (ग्राहक) बन जाए। #विज्ञापन आम आदमी के मन, मस्तिष्क, दिल दिमाग पर प्रहार करती हैं, साथ ही नहीं खरीदने पर अपने स्वयं को अपराध बोध से ग्रसित करती है। हाय! क्या मैं अपने बच्चों, परिवार के लिए इत्तू सा भी नहीं कर सकता। और यहीं से शुरू होगी विज्ञापन की #सफलता। इसीलिए ज्यादातर विज्ञापन बच्चों को ही टारगेट किए जाते हैं। विज्ञापन आपकी कमजोर #नब्ज को पहचानता है। आज मीडिया के विज्ञापनों की दुनिया ने भयानक भ्रामक माहौल पैदा कर दिया है। जोकि मनुष्य को कुछ नहीं, सिर्फ खोखला करता जा रहा है। इसका दुरुपयोग तो बहुत हो ही रहा है। दो मिनट वाले विज्ञापन में मम्मियों को देख कर तो बेचारी कई मम्मियों को तो #अपराध बोध होता है, हम ऐसी हंसमुख क्यों नहीं, या हर समय #पौष्टिकता के पीछे क्यों पड़ी हैं। नहाने के साबुन में तो इन्हें ग्लैमर चाहिए ही लेकिन कार, कुकर और ना जाने क्या क्या, इनकी डिजाइन में औरत का विज्ञापन समझ से परे है। गोरेपन की क्रीम, जिसे स्वयं मैंने कईयों को पिछले तीस चालीस वर्षों से लगाते देखा है,और आज की तारीख में जबकि दादी, नानी बन चुकी हैं और उन्हें कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई है। नौकरी हो या शादी, पढ़ाई, योग्यता सब सेकेंडरी लगता है, क्या गोरा होना वाकई बहुत बड़ी  योग्यता है? अब तो मर्दों के लिए भी गोरेपन की क्रीम.... आजकल तेल, साबुन, गंजी, क्रीम, जूस, साबुन, कपड़े, खाना, पीना, रहना, ट्रैवल, ठहरना, कोचिंग, स्कूल, शादी ब्याह, पेंट, गाड़ी, बंगले और ना जाने क्या क्या???? कुछ भी खाओ, पचाओ सब तुरंत, हर चीज चुटकियों में, यहां तक कि, दर्द नाशक दवाओं (जिनको की बिना चिकित्सीय सलाह के नहीं लेना चाहिए), कैंसर के लिए जिम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से शराब सोडा, सिगरेट, पान मसाले के विज्ञापन आदि के विज्ञापनों में भी ऐसी जादुई कथाएं होती हैं, उनको देखकर लगता है, इन सब के बिना जीना भी कोई जीना है। चरित्र जैसी कोई चीज नहीं होती, नैतिकता को धता बता जेब में हर समय अपने साथ रखने की हिदायत देते विज्ञापन, युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं...... कोचिंग, पढ़ाई, किताबें, कॉलेज आदि भी इसकी चपेट में हैं, जिसका विज्ञापन अपीलिंग, उसका नाम। इस #फायदावाद की मानसिकता से कोई भी अछूता नहीं है। फिल्म और क्रिकेट की दुनिया की सेलिब्रिटीज खुद जिन चीजों का कभी इस्तेमाल नहीं करते, पैसा कमाने के लिए विज्ञापनों में उनके गुणगान करते देखे जा सकते हैं। #आमलोग बच्चों की तरह ऐसी कथाएं सच मान लेते हैं। किस तरह एक क्रिकेट खिलाड़ी और फिल्म अभिनेत्री शादी की अपनी प्रेम कथा में बताते हैं, कि लाखों की जड़ी शादी की पोशाक पहने बिना जीवन में सदा साथ रहने और दूसरे का केयर करने का संकल्प नहीं लिया जा सकता। जावेद अख्तर घुटनों के दर्द का इलाज बताते घूमते हैं, जो वस्तुतः कभी ठीक नहीं हो पाया। जूही चावला ऐसे तेल का विज्ञापन कर बाल उगाने का दावा करती हैं, जिसको शायद ही कभी प्रयोग किया हो, भले ही उनके पति गंजे हैं। first cry के विज्ञापन में, उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर अग्रसर, अभिताभ बच्चन भी पीछे नहीं हैं। जोकि हर तीसरे विज्ञापन में दिख जाते हैं। कभी राख, नमक वाला मंजन कह कर, आउट कर दिया जाता था, तो उसी राख, नमक वाली खूबियों के साथ वही उत्पाद आज अच्छा हो जाता है। कभी धांस वाला तेल अच्छा, तो कभी डबल फिल्टर तेल, और ना जाने क्या क्या? ये भरमाते विज्ञापन आपकी बुद्धि को तो बिल्कुल कुंठित ही कर देते हैं।...... विज्ञापन करते बच्चों के मातापिता की ख्वाहिशें भी चरम पर होती हैं, बच्चों से मॉडलिंग या विज्ञापन में काम करवाने की। बच्चों को घरेलू काम करवाते या स्वाभिमान की जिंदगी जीने के लिए कार्य करते समय जिसे #अत्याचार माना जाता है। तो ये क्या किसी अत्याचार से कम है, मासूमियत छीनकर कुछ पैसों के लिए काम करवाना, क्या #बालमजदूरी नहीं कहलाएगा।
बुद्धिजीवी, कलाकारों और लेखकों से बाजार भी संधि करने में लगा हुआ है, ताकि उनका भी सहयोग मिलता रहे। आजकल की विज्ञापन कथाओं में दिवास्वप्न भरे हैं। इन विज्ञापनों की दुनिया पंचतंत्र, जातक और हितोपदेश कथाओं की तरह लोग लोगों को #सावधान तो नहीं करती, बल्कि उनके मन में #अज्ञानता का निर्माण करती है। आज इसीलिए सभी तुलना करने में ज्यादा घिरे हुए हैं। इसलिए इस भ्रामक माहौल से ग्रसित होने से बचिए, थोड़ा अपना दिमाग भी प्रयोग करें, ये कब के लिए रख छोड़ा है। विज्ञापन आपकी कमजोर नब्ज को पकड़े, उससे पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल कर, इन मकड़जाल से खुद को बचाइए और बच्चों को भी समझाइए।

बुधवार, 27 मार्च 2019

बहुत खास हो तुम!


✍️बहुत खास हो तुम!

हां! बहुत खास हो तुम,
दिल के बहुत पास हो तुम!

सूरज की पहली किरण,
भोर की नई उजास हो तुम!

नैराश्य भरी जिंदगी में,
जीवन की नई आस हो तुम!

मेरे प्यार, इश्क, मोहब्बत,
जीवन का आभास हो तुम!

ढूंढ़ती हैं निगाहें हर वक्त,
यहीं कहीं आस पास हो तुम!

दीदार हो जाए, बस एक झलक,
जीवन का नूर,आधार हो तुम!

हवाओं में घुली बहारें, महक,
प्राणों में बसी सांस हो तुम!

गर रूह का घर है ये जमीं,
तो मेरे लिए आसमां हो तुम!

मंदिर,देवालय सब जग ढूंढ़ा,
भोर सवेरे की अरदास हो तुम!

प्रभु का दिया आशीर्वाद हो तुम,
हां बेहद, बेहद खास हो तुम!

प्रभु! दे चुका है मन, सब कुछ,
हर बार यह बताना जरूरी तो नहीं!!

मंगलवार, 19 मार्च 2019

भूल गए हैं


✍️
भूल गए हैं!!
छुट्टी से पहले
स्कूल में होली मनाना,
पैन की स्याही,पानी वाले गुब्बारे
और बड़ी मेहनत से लिखे
उल्टे शब्द वाले आलू से छाप लगाना।

भूल गए हैं!!
ताई, चाची, बहुओं को,
जो सेंकती थी, रात को गुझिया
और हम करते होली की तैयारी,
दोस्तों की टोली और,
हुड़दंगी यारी।

भूल गए हैं!!
शकरपारे के स्वाद,
चखने के बहाने, बनाते बनाते
गरम गरम ही खा जाना,
गुझिया, सेव, पापड़ और
खट्टी कांजी चटकारी।

भूल गए हैं!!
कीचड़ मिट्टी वाली होली,
करना नई भाभी को,
रंगों से सरोबार,
फिर देना फगुआ,
ये रिवाज थे, मनोहारी।

भूल गए हैं!!
शाम को सब के यहां बारी बारी
मिलने जाना,
पैर छूना, गले मिलना।
सबके यहां
अलग अलग स्वाद
इसी में हफ्तों गुजर जाना।

अब बस याद है!!
जैसे तैसे मिली,
एक दिन की छुट्टी
उसमें भी लगता
जैसे निभा रहे ड्यूटी
बच्चों को पहना बरसाती
पानी से भी है बचाना
होली का टाइम भी है फिक्स
उसके बाद, नहा धो सो जाना।
शाम को, स्वयं को बेहतर
प्रस्तुत करने का मौका, या देखना
किस से हैं सम्बन्ध बढ़ाना।
कैटर निर्मित
होली मिलन का खाना
अबकी बार किसको है चुना जाना।
सोसायटी, मुहल्ले के
अध्यक्ष, सचिव पद के लिए
उसकी जुगत भी लगाना।
ना किसी की मान मनुहार
पैसे दिए हैं तो खाना ही है खाना।
पुते चेहरे, खींसे निपोर
बनावटी मुस्कान लिए
फिर मिलते रहने के वादे के साथ
आ जाते हैं फिर अपनी चौखट द्वार।





रविवार, 17 मार्च 2019

ओस की बूंदें और बेटियां


✍️कविता
ओस की बूंदें और बेटियां,
एक तरह से एक जैसी होती हैं।
जरा सी धूप, दुख से ही मुरझा जाती हैं।
लेकिन दे जाती हैं जीवन,
बाग बगीचा हो या रिश्तों की बगिया।
ओस और बेटियां होती हैं,
कुछ ही समय की मेहमान।
धूप के आते ही छुप जाती है ओस,
और,
समय के साथ बेटियां भी बन जाती हैं,
किसी की पत्नी, बहू, भाभी और मां।
जिसमें गुम हो जाती है बेटी की मासूमियत,
फिर भी दे जाती हैं ठंडक,
सीमित समय में भी, ओस की ही तरह।
ओस बरसती है खुली छत, खुले खेत में,
तो बेटियां महकती हैं,
देती हैं दुआएं, वरदान,
घर आंगन में तुलसी की तरह।

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

कब आओगे


✍️
कब आओगे?
हमेशा की तरह
इंतजार करती निगाहें
और मां का यक्ष प्रश्न
कब आ रहे हो ........
मेरा भी हमेशा की तरह
एक ही जवाब,दिलासा
आ रहा हूं जल्दी
जल्दी ही आऊंगा........
पुराने घर का आंगन
आपके हाथ का खाना
आप और पिताजी के साथ
समय बिताऊंगा........
तिथि, दिन, वार, महीने में
और महीने
सालों में तब्दील हो गए ........
घर की दीवारें ही नहीं
बगीचे में रोपे बीज भी
फलदार वृक्ष हो गए...........
एक एक कर बिछुड़ते
दादी बाबा,
घर की शोभा बढ़ाते
सामान हो गए...........
गांव से शहर
फिर दूसरा राज्य
अब सरहदों के पार,दूसरा देश .........
समय ही नहीं
दूरी भी सीमाएं लांघ रही है
कमाने की चाहत है
या है, जरूरतें पूरी करने की
जरूरत ..........
और मैं! जरूरतें,
चाहत, जिम्मेदारियों
के बीच खुद को ही नहीं
खोज पा रहा हूं........

सोमवार, 11 मार्च 2019

काउंसलिंग रिश्तों की


✍️काउंसलिंग रिश्तों की___
जादूकीझप्पी, जादुई चिकित्सा-------
The most #effective nd #healing power. #स्पर्श, एक सुखद अहसास है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के सफर में  भिन्न #जज्बातों के साथ, कई रोगों की #दवा भी है स्पर्श!!!!
अपने किसी को गले लगाए, कितने दिन हो गए याद करिए। एक पिक्चर में  था `जादू की झप्पी'। शायद ये सही है, जब कोई परेशानी में हो, कुछ कहने के लिए हिम्मत या शब्द न हो,बस एक जादुई स्पर्श, प्यार की झप्पी या hug करना एक ही बात है। सारा कहा अनकहा आंखों के रास्ते बह कर निकल जायेगा । आज शायद इसी की कमी है। इसे स्पर्श चिकित्सा भी कह सकते हैं। हम दूर दूर तक तो टच में हैं, लेकिन जो सामने बैठा है, वह है हमसे कोसों दूर।
#समाज में अभी हाल ही में जो #झकझोर देने वाली  घटनाएं हुई हैं, इंदौर के भय्यू जी महाराज हों, करोड़ों की रेमण्ड के मालिक के बेटे की बेरुखी, अरबपति महिला का अपने करोड़ों के फ्लैट में पूरी तरह कंकाल बन जाना या बक्सर के IAS का तनाव के कारण आत्महत्या करना, या पूरे परिवार का ही सामूहिक आत्महत्या कर लेना, इन सब हालातों के लिए किसी एक को तो जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, लेकिन आगे कहीं किसी के साथ ऐसा न हो ऐसा प्रयास करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
#पूरी सिस्टम प्रणाली में ही कुछ कमी अवश्य रही होगी, फिर भाग्य या होनी को भी कौन टाल सका है।  आजकल बच्चों में भी अक्षर ज्ञान ही कहूंगी, बहुत है। लेकिन व्यवहारिक ज्ञान जो जीवन के हर मोड़ पर चाहिए होता है, नहीं है। चाहे वह धैर्य हो, त्याग हो,
व्यवहारिकता या भावनाओं सम्बंधित। आत्महत्या तो कायरता है। जो जिंदगी दूसरों के लिए उदाहरण होती हैं, आकर्षित भी करती हैं, लेकिन ये घटनाएं बताती हैं जीवन में पैसा, पद, प्रतिष्ठा कुछ काम का नहीं अगर आपके जीवन में अपने नहीं हैं, संस्कार नहीं हैं, खुशी और संतुष्टि नहीं है तो।
#पैरेंटिंग भी ऐसी नहीं है,जहां बच्चों को यह सिखाया जाय जीवन के माने क्या हैं। यह तो कायरता है कि कैरियर की जंग में जीतकर भी जीवन की जंग में एक व्यक्ति हार गया। कई बार देखने में आता है, बात कड़वी जरूर है और लोग इसे स्वीकारेंगे भी शायद नही, लेकिन परिवार का एक बच्चा अगर अच्छी पोस्ट पर काबिज हो गया है तो स्वयं #मातापिता भी अपना भविष्य secure  करने में लगे रहते हैं। साथ ही उस बच्चे को इतना अपराध बोध (गिल्ट) महसूस करवाते रहेंगे, कि हमने तेरे ऊपर ही सारा जीवन, जमापूंजी खर्च कर दी। बस केवल उस पर से अपनी capturing नहीं छोड़ना चाहते। उधर शादी के बाद लड़की भी कुछ सपने लेकर आई होती है।जहाँ केवल अधिकारों की मांग तो है लेकिन आपस मे बैठकर बातचीत करने वाला कोई नहीं। सब अपनी दुनिया में मस्त , कितने घर हैं जहाँ #एकसाथ बैठ कर खाना खाते हों या आपस मे #संवाद हो। अगर संवाद होता तो क्या उस बुजुर्ग महिला के कंकाल बनने की नौबत आती। अब इन बुजुर्गों  ( XYZकोई भी हो सकता है ) की  जिंदगी के बारे में अनुमान लगाकर देखा जाय, शायद जब ये युवा रहे होंगे तब क्या इन्होंने किसी घर, मित्र, परिवार, रिश्तेदार को अपने यहाँ घुसने दिया। तब तो केवल पैसा,  शौहरत, ऊंचाईयां और अपनी आजादी। और जब यही सब उनके बच्चे कर रहे हैं तो फील #क्यों हो रहा है।
#सच तो यह है कि पैसे के साथ जवानी में हम किसी को नहीं पूछते तो बुढ़ापे में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं। और बच्चे हमेशा वही सीखते हैं जो देखा होता है। कभी आपने किसी घरवाले,रिश्तेदार आदि को पूछा होता तो शायद इस उम्र में यह अकेलापन नहीं कचोटता।आज भी कई बुजुर्ग जिनके पास पैसा, पावर या शारीरिक फिट हैं उनके एक बार लहजे देखिए। कइयों को कहते सुना है, मेरे पास इतना पैसा है झक मार कर बच्चे सेवा करेंगे या जिसको भी जायदाद दूंगा वो करेगा। पैसों का घमंड न दिखा कर थोड़े #संस्कार दे दिए होते काश--!!!!!!
#जब रिश्तों में भौतिक सुविधाएं हावी होने लगेंगी तो यही हश्र होगा।स्वार्थ को वरीयता देने से रिश्तों की डोर कमजोर हो रही है।सब पकड़ बनाना चाहते हैं, निभाना नहीं। हाल ही में हुई ये घटनाएं समाज को झकझोर देने वाली हैं। बुजुर्ग मातापिता की कानून की धमकी व ऐंठ भी कम नहीं है पैसों को लेकर।पहले #सत्ता का #हस्तांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बड़े अराम से हो जाया करता था वो बुजुर्ग भी इस #सत्ता के लोभ को छोड़ नहीं पाते। फिर संस्कार तो बच्चों ने मातापिता से ही सीखे होते हैं।काश आप भी बच्चों के लिए,आदर्श बने होते। इसीलिए वृद्ध मातापिता को बेसहारा छोड़ने के मामले भी बढ़ रहे हैं।
#काउंसिलिंग दोनों की ही जरूरी है #वृद्धों की भी और #बच्चों की भी। रिश्तों के कम होते महत्व के कारणों को तलाश करने की जरूरत है। कहीं न कहीं हमारी #परवरिश पर भी सवाल उठना वाजिब है।हम अपनी #लाइफ की CD को #रिवर्स में चला कर #सच्चाई के साथ देखें। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुध लेहु।