सोमवार, 5 अगस्त 2019

मित्रता


✍️मित्रता!
बचपन में गुल्ली डंडे
नदी के तीर या मैदान में
बुढ़ापे की सांझ ढले
लाठी बन साथ खड़े
जिस पर हो भरोसा
मित्रता!
वह खुशनुमा अंदाज है......
दिल का सुकून
सांसों की धड़कन
दोस्ती के लिए
बने संजीवनी
कंधे पर धरा हाथ
मित्रता!
जिंदगी की रूह, हर सांस है..........
उत्सव, हर्ष और विनोद में
विपदा, संकट, द्रोह में
साया बन, साथ रहे
पढ़ ले आंखों की भाषा
दूर होकर भी, बिन कहे
मित्रता!
वह सुखद अहसास है........
सुख दुख के रंग में
भरने जीवन में खुशियां
हार जीत के खेल में
कभी कृष्ण,
कभी सुदामा के वेष में
मित्रता!
बजे नेह (प्रीत) की बांसुरी है......
अंधेरे में सूर्य की उजास
देता कोई अगर आघात
शीतल चांदनी
करे शुष्क हृदय तृप्त
है जज्बातों की बरसात
मित्रता!
उड़ते परिंदों, का खुला आसमान है.......


मां तुम धुरी हो,घर की

✍️ मां, तुम #धुरी हो #घर की!

मुझे आज भी याद है चोट लगने पर मां का हलके से फूंक मारना और कहना, बस अभी ठीक हो जाएगा। सच में वैसा मरहम आज तक नहीं बना।
#वेदों में मां को पूज्य, स्तुति योग्य और आव्हान करने योग्य कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य होता है,सौ आचार्य के बराबर एक पिता और पिता से दस गुना अधिक माता का #महत्व होता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी(मां) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं। इस संसार में 3 उत्तम शिक्षक अर्थात माता, पिता, और गुरु हों, तभी मनुष्य सही अर्थ में मानव बनता है
या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।
मां को कलयुग में अवतार कह सकते हैं। मां कभी मरती नहीं है, उसने तो अपना अस्तित्व (यौवन) संतान के लिए अर्पित कर दिया, संतान के शरीर का निर्माण (सृजन) किया। आज भौतिक चकाचौंध, शिक्षा, कैरियर, नौकरी आदि ने विश्व को सब कुछ दिया बदले में मां को छीन लिया। किसी भी घर में स्त्री पत्नी, नारी, बहू, बेटी, बहन,भाभी, सास, मिल जाएगी, परंतु मां को ढूंढ पाना कठिन हो गया।आज स्वयं स्त्री अपने व्यक्तित्व निर्माण में कहीं खो सी गई है।
#नारी देह का नाम है।
#स्त्री संकल्पशील पत्नी है।
#मां किसी शरीर का नाम नहीं, अपितु
मां- #पोषणकर्ता की अवधारणा है।
#अहसास है जिम्मेदारी का।
मां- आत्मीयता का भावनात्मक भाव है। मां #अभिव्यक्ति है #निश्छल प्रेम, दया, सेवा, ममता की। मां के लिए कोई पराया नहीं। बच्चों की मां, पति बीमार हो तो उसके लिए भी मां, सास ससुर या बुजुर्ग मातापिता की सेवा करते हुए भी एक मां। इस सब क्रियाकलापों में मातृ भाव, और स्त्री स्वभाव की मिठास है। मां शब्द अपने आप में एक अनूठा और भावनात्मक एहसास है। यह एहसास है सृजन का, नवनिर्माण का। स्त्री कितनी भी आधुनिक हो लेकिन मां बनने के गौरव से वह वंचित नहीं होना चाहती।
जब तक स्त्री का शरीर दिखाई देगा, मां दिखाई नहीं देगी। उसके बनाए खाने में प्यार, जीवन के संदेश महसूस नहीं होंगे। महरी या बाहर के खाने में कोई संदेश महसूस नहीं होता। ऐसा खाना आपको #स्पंदित, आनंदित ही नहीं करेगा। क्योंकि उनमें भावनाओं का अभाव होता है। कहते हैं ना जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन। मां के हाथ का खाना भक्तिभाव, निर्मलता देता है। स्वास्थ के लिए हितकर होता है, क्योंकि उसमें होता है मां का प्यार, दुलार, मातृ भाव, आध्यात्मिक मार्ग भी प्रशस्त करता है। भाईबहिनों को एक करने की शक्ति है मातृ प्रेम।
केवल पशुवत जन्म देने भर से कोई मां नहीं हो सकती। ऐसी मां को अपने बच्चे के बारे में न तो कोई जानकारी ही होती है, और न ही वे कोई संस्कार दे पाती हैं। आजकल ममता और कैरियर, अर्थ लोभ के द्वंद्व के बीच फंसी मां की स्थति डांवाडोल होती रहती है। अनावश्यक सामाजिक हस्तक्षेप भी मां की स्थति को और बदतर कर देता है। कई बार लड़की मां का दायित्व, परवरिश अच्छी तरह निभाना चाहती है, लेकिन उसकी सराऊंडिग्स के लोग उसको हीनभाव महसूस करवाए बिना नहीं चूकते कि, क्या घर के काम में लगी हो, ये काम तो कोई भी कर सकता है। ऐसे समय में माताएं अपना #धैर्य बनाएं। बच्चे देश का भविष्य हैं, उनकी जिम्मेदारी माताओं पर ही है।
इंसान वैसे ही होते हैं,जैसा #मांएं उन्हें बनाती हैं। #भरत को #निडर भरत बनाने में शकुन्तला जैसी मां का ही हाथ था,जो शेर के दांत भी गिन लेता था। हमेशा मां के दूध को ही ललकारा गया होगा। परवरिश को लेकर कहा गया होगा, और किसी को नहीं। आप भाग्यशाली हैं जो, प्रभु ने इस महत्वपूर्ण दायित्व के लिए आपको चुना है। मां बनना एक चुनौती से कम नहीं है। एक गरिमा, गौरवपूर्ण शब्द है मां। इस दायित्व का निर्वहन भलीभांति करने से ही देशहित, समाजहित संभव होगा।

रविवार, 28 जुलाई 2019

ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम


✍️ ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम
#खुशी प्रकृति में चारों ओर बिखरी पड़ी है, बस! समेटना आपको आना चाहिए। प्रातः काल बाग बगीचों की ताजा हवा से हमें दूसरी चीज जो मिलती है वह है ऑक्सीजन या प्राण वायु ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है। यह हमारी सुंदरता के लिए भी अहम स्थान रखती है, प्राकृतिक साधनों में सुबह की ताजी हवा अपने आप में विशेष स्थान रखती है सुबह की ताजी हवा हमारी त्वचा के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। श्वास क्रिया भी अपने आप में एक कला है, इस कला का भी हमें ढंग से ज्ञान नहीं होता। इसलिए सुबह उठकर प्रकृति के साथ हमें गहरी सांस लेने का अभ्यास करना चाहिए। इस तरह ताजी हवा ऑक्सीजन हमारे फेफड़ों में भरकर हमारे शरीर में खून के दबाव को तेज करती है, और स्वास्थ्य के लिए लाभ पहुंचाती है।
आजकल बच्चे दिन-रात मोबाइल स्क्रीन की पर ही बिजी रहते हैं, माता-पिता भी उनको बाहर खेलने नहीं जाने देते, इसका असर उनके शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
प्रकृति के साथ थोड़ा सा भी संबंध स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है, एक शोध के मुताबिक हरियाली के समीप रहने से लोगों में नकारात्मक भावनाएं कम उभरती है, और इसलिए  अस्वास्थ्य कर चीजें खाने की इच्छा भी कम होती है। ऐसी जगह पर रहने से जहां से प्रकृति का नजारा दिखता हो, हरियाली के साथ जुड़ने पर, बाग बगीचे में घूमने सैर करने वालों को, (चॉकलेट सिगरेट और अल्कोहल की ललक) कम हो जाती है। शोध के अनुसार जो लोग बगीचे के आसपास रहते थे या जिनके घर से बगीचा दिखता था, उन्हें इन सभी चीजों के सेवन की आवश्यकता कम महसूस होती थी। प्रकृति, स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ी #हीलर है, शायद इसीलिए पहले तपेदिक के इलाज़ के लिए मरीजों को पहाड़ों पर रहने की सलाह दी जाती थी। नैनीताल के पास वह भुवाली सेनेटोरियम इसका एक अच्छा उदाहरण है। पहाड़ों, प्रकृति की शुद्ध वायु  स्वासथ्यवर्ध्दक होने के साथ ही नकारात्मकता को भी दूर कर, जीवन में उल्लास, उमंग भर देती है। और स्वतः ही ध्यान, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय, संतुष्टि जैसी आदतें अपना कर मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है।
प्रकृति के बीच समय बिताने वाले बच्चों का स्कूल में प्रदर्शन अच्छा होता है, बच्चे ज्यादा कल्पनाशील होते हैं। खेलकूद में भी बेहतरीन, टीम भावना, मिलकर काम करने की प्रवृत्ति, सामाजिकता, सहयोग और अपनत्व की भावना बढ़ती है। बौद्धिक कौशल का विकास होता है, ऐसे बच्चे मानसिक परेशानियों से उबरने में सक्षम होते हैं। स्व अनुशासन से प्रेरित ऐसे  बच्चों में ध्यान लगाने और प्राकृतिक चीजों के बारे में, सामान्य समझ, ज्ञान में भी वृद्धि होती है।
हमारे बच्चों का जितना समय सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बीत रहा है उतनी ही ज्यादा आशंका उनके अवसाद में जाने की बढ़ती जा रही है, हाल के एक शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है। नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पेड़ पौधों के बीच बनी सड़क पर टहलने या किसी प्राकृतिक जगह पर सप्ताह में दो से चार घंटे  बिताने वाला व्यक्ति भी ज्यादा स्वस्थ और खुश महसूस करता है। जो लोग रोजाना दो से तीन घंटे हरियाली और पेड़ों के बीच चहल कदमी करते हैं, वे उन लोगों की तुलना में बीस फ़ीसदी ज्यादा खुश और सेहतमंद थे, जो ऐसा नहीं करते थे। ऐसे लोग दूसरों की तुलना में कई गुना अधिक स्वस्थ और आशावादी थे। शोधकर्ताओं ने बताया कि पार्क, बाग बगीचे और हरियाली वाले क्षेत्र में प्रतिदिन दो घंटे से ज्यादा समय बिताने वालों में हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, अस्थमा, मानसिक समस्याएं और मृत्यु के जोखिम कम थे। जबकि ऐसे बच्चों में जो प्रकृति के साथ जुड़े हुए थे, उनकी सेहत, खुशी, और इम्यूनिटी रेट भी बेहतर थी। केवल प्राकृतिक वातावरण में निष्क्रिय बैठे रहने से भी उतना ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है, जितना जिम या घर पर व्यायाम करने से मिलता है। औसतन बच्चे डिजिटल स्क्रीन के सामने दिन में पांच से आठ घंटे तक बिताते हैं। ऐसे बच्चों में प्रकृति का साथ छूटता जा रहा है, पहले जहां बच्चे घरों में खेलते थे, पार्क में खेलते थे, घर के कार्य में सहयोग करने और बाहर खेलने में घंटों बिताते थे, आज इसकी जगह वीडियो गेम टीवी और इंडोर गेम्स ने ले ली है। अतः हमारे बच्चों का ग्रीन टाइम, स्क्रीन टाइम से बदल गया है, और इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आज के समय में, इसके लिए मातापिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। बच्चों के साथ प्रकृति के बीच समय बिताएं, खेलकूद में रुचि बढ़ाएं। अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ना पकड़ाएं। बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव पैदा करें, घर में भी पेड़ पौधों को गमलों में उगाएं, उनसे जुड़ाव महसूस करें और देखभाल भी करें।

सोमवार, 15 जुलाई 2019

हैलो पैरेंट्स, आपके झगड़ों में पिसते बच्चे


✍️ हैलो पैरेंट्स!
#आपके झगड़़ों में पिसते बच्चे, जिम्मेदार कौन?
उम्मीदों के पंछी के पर निकलेंगे
मेरे बच्चे मुझ से बेहतर निकलेंगे।
लेकिन ये सब होगा कैसे, अगर आप मातापिता आपस में लड़ते रहेंगे। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 35% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं, जिसमें अनपढ़, गरीब या गंवार ही नहीं, अपितु अच्छी पढ़ी लिखी उच्च पदों पर आसीन #महिलाएं भी शामिल हैं। लेकिन आज की यह बात उस हिंसा के बारे में नहीं है, हम उस #अदृश्य हिंसा के बारे में बात कर रहे हैं, जो हर उस बच्चे के साथ हो रही है जिसके माता-पिता लड़ रहे हैं, प्रतिदिन मातापिता के गुस्से को झेल रहे हैं, या तलाक लेकर अलग हो रहे हैं। अपनी भारतीय मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि बच्चे की परवरिश के लिए शुरू के पांच सात वर्ष बहुत अहम होते हैं, उस समय की छाप (अच्छी या बुरी) #ताउम्र उसका पीछा करती है। या कहें, बच्चे मानस पटल पर अंकित हो जाती है, जो उसके व्यवहार में झलकती है। बच्चे असुरक्षा की भावना एवं कुंठित मानसिकता का शिकार हो जाते हैं। एक रूसी मनोवैज्ञानिक ने अपनी किताब `बाल हृदय की गहराइयां ' नामक किताब में लिखा है, बचपन एक ऐसा भूत है जो ताउम्र इंसान का पीछा करता है। हम वही बनते हैं, जैसा बचपन में हमने पाया होता है।


#लड़ते हुए मां-बाप उस बच्चे के अपराधी हैं, जिस ने कोई गलती करी ही नहीं। जब मैं छोटी थी #शायद सन उन्नीस सौ पिचहत्तर, छिहत्तर की बात होगी, बचपन में ही मैं ने मन्नू भंडारी द्वारा रचित #आपका #बंटी उपन्यास धारावाहिक धर्मयुग या हिंदुस्तान में किश्तों में पढ़ा था। उन दिनों यह धर्मयुग, हिंदुस्तान नामक दो साप्ताहिक पत्रिकाएं हमारे यहां नियमित आती थीं। इस उपन्यास का मेरे मन पर गहरा असर हुआ ही, लेकिन एक बात और समझ में आई, कि अच्छा साहित्य आपको सही राह भी दिखाता है। मैंने उसी समय सोच लिया था, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। हालांकि इन सब चीजों को समझने के लिए मेरी उम्र बहुत कम थी, शायद तेरह चौदह वर्ष। घर में पढ़ने का माहौल था, फिर ये शौक विरासत में मिला, जो अभी भी जारी है। स्वाध्याय से आपको कभी अकेलापन, बोरियत नहीं होती। किताबें आपकी अच्छी दोस्त हैं।
लेकिन अभी बात #बच्चे को लेकर हो रही है। बंटी एक बच्चे की कहानी, जिसके मां बाप लड़ रहे थे, और उस लड़ाई के बीच अकेला एक तीन चार साल का मासूम पिस रहा था। आपने बहुत सी डरावनी या करुणा भरी फिल्में देखी होंगी, दिल को दहला देने वाली किस्से, कहानियां पढ़ी होंगी, लेकिन इसे पढ़ते हुए आप हर क्षण यही सोचते रहेंगे, कि कहानी में कुछ ऐसा ट्विस्ट आ जाए, ताकि उस बच्चे को उस मुसीबत से बाहर निकाल सकें, मातापिता से अलग ना होना पड़े। बड़ों की तकलीफ से इतना दुख नहीं देती, जितना ऐसे अकेले हुए बच्चों के आंसुओं से, दिल तार तार घायल हो जाता है।

एक ऐसा बच्चा जिसके लिए आप दोनों (मातापिता) ने ना जाने कितने सपने बुने होंगे, ईश्वर से मन्नतों के धागे भी बांधे होंगे। फिर ऐसा क्या हो जाता है, कि अपने इतने #प्रिय आत्मीय के भविष्य को ही दरकिनार कर दिया जाता है। और छोड़ देते हैं, समाज में ठोकरें खाने के लिए। बच्चे ने तो आपके पास कोई प्रार्थना पात्र नहीं भेजा था, कि मुझे इस दुनिया में लेकर आओ, फिर जिम्मेदारी उठाते वक्त क्यों पीछे हटना। बच्चे को #मातापिता दोनों ही चाहिए होते हैं, पिता के कंधे पर चढ़कर दुनिया देखना चाहता है, तो मां की गोद में मीठी लोरियां सुन मीठे सपनों की दुनिया की सैर करना चाहता है। तुम बड़ों के इगो, टकराव, क्लेश, हिंसा मारपीट में बेचारे बच्चे का क्या कसूर। काश कोई ऐसी अदालत होती, जहां बच्चा भी अपनी एप्लीकेशन लगा सकता, कह पाता, मेरे बड़े होने तक आपको साथ ही रहना होगा, और वो भी बिना शराब, हिंसा, मारपीट या झगड़े के।

कभी सोचा है, आप लड़ते हुए, हिंसा करते हुए, शराब में डूबे, अपने बच्चों को कैसा बचपन दे रहे हैं? कभी सोचा है, गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में, जिसके साथ आप एक नए इंसान को बड़ा कर रहे हैं। वह इंसान जिसे दुनिया में लाने के लिए सिर्फ और सिर्फ आप (माता-पिता) जिम्मेदार है, यह आपकी इच्छा थी, आपकी मर्जी, आपकी खुशी और आपकी ही गलतियों की सजा #बच्चा भुगत रहा है।

लड़ते हुए मां बाप कोरी कल्पना नहीं, हिंदुस्तान के अनेक घरों की सच्चाई है, और इसको सही भी माना जा रहा है। खासतौर पर पति के घरवालों को, इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता। उन्हें यह सब सामान्य लगता है। लड़का (जो पिता बन चुका है) कोई चीख रहा है, कोई गालियां दे रहा है, हिंसा हो रही है, मां अकेले में रो रही है, और इस पूरी लड़ाई के बीच एक खिलखिलाता हुआ मासूम बच्चा, जिसकी मुस्कुराहट से रोशन था घर, मुंह से चहचहाट निकलती थी, जो पूरे हफ्ते अपने मन का ना होने पर जिद भी करता था, रोता भी था, वह अचानक चुप हो जाता है। किसी से बात नहीं करता, आपको लगता है बच्चा शांत है। लेकिन उसके अंदर की चिंगारी कब भयंकर आग बन जाए, कहना मुश्किल है। आत्मबल के अभाव में अपराध की राह भी इनको आसान लगने लगती है।

ऐसे में बच्चा जो बिल्कुल चुप हो जाता है, आत्मकेंद्रित, किसी से बात नहीं कर पाता, या झगड़ालू, हिंसात्मक जो आगे चलकर भविष्य में अपने दोस्तों, #जीवनसाथी पर भी यही व्यवहार दोहराता है। और इसी वजह से उसके कोई दोस्त नहीं बन पाते, वह किसी के साथ खेलता नहीं, पढ़ाई में पिछड़ जाता है। जिस उम्र में जीवन खुशी और बेफिक्री का दूसरा नाम होता है, उसके नाजुक कंधों पर जीवन की उदासी बेताल बन कर बैठ जाती है। ऐसे बच्चे, माता पिता के झगड़ों की वजह से दुबके होते हैं घर के किसी कोने में, आजकल मोबाइल में, या ऐसी परिस्थितियों में भाग जाते हैं, भटक जाते हैं, पलायन कर जाते हैं। कई बार उनकेेे व्यवहार में बदलाव देखा जा सकता है। उन्हें दूसरों को  कष्ट देकर भी कई बार सुख का अनुुभव होता है, तो कई बार स्वयं कोो पीड़ा पहुंचा कर भी आत्मसुख का अनुभव करते हैं।

एक डरावना सच है, जब बड़े बुजुर्ग सम्मान, देखभाल का रोना रो रहे हैं, तो पहले अपनी परवरिश को भी टटोलिए। वो बच्चे #क्यों देखेंगे, समझेंगे आपकी मजबूरियां?? आप तो दुनियाभर के कानून, लोकलिहाज जानते हैं। आपने उन बच्चों की मजबूरियां समझी थीं कभी, जब वह अपने मन के जज्बात आपसे शेयर करना चाहता था। वह तो कानून नाम की चिड़िया को जानता, समझता ही नहीं था, किससे गुहार लगाता कि मत करिए लड़ाई, झगड़ा, शराब पीकर घर में कोहराम मचाना।
यह माहौल एक मासूम बच्चे को कब अपराधी बना दे, पता भी नहीं चलता। यह व्यवहार, यादें जिंदगी में कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेंगी। और इसके अपराधी हैं, वयस्क माता-पिता, पढ़े-लिखे सो कॉल्ड समझदार लोग। ऐसे मातापिता भी सजा के पात्र हैं। मेरा मकसद केवल पैरेंट्स को अपनी गलतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास था। बस! हो सके तो, अपने बच्चे की परवरिश पर ध्यान दीजिए।

रविवार, 7 जुलाई 2019

पहली बारिश की दस्तक


✍️
धरती की  सूखी चादर पर
बारिश की पहली दस्तक
चमके बिजली,
घनघोर घटा,
बरसे झमाझम,
मौसम की परत खुलने लगी है।।
चले पुरवाई,
काली घटा छाई,
खोल दो सारे खिड़की दरवाजे
मिट्टी की सौंधी खुशबू आने लगी है।।
मोर पपीहा,चकवी चातक,
खुशी मनाए,
प्यासा मन,कृषक हरषाए, 
कबसे कर रहे इंतजार
लगता है, आस पूरी होने लगी है।।
होकर पानी से,
तर बतर, लताऐं,
मिलने को आतुर, करने आलिंगन
पेड़ों की डाली भी झुकने लगी है।।
भरे ताल तलैया,
थे प्यासे अब तक,
छलकाए मन,
कागज की नाव,वो छपाके
बचपन की यादें उमड़ने लगी हैं।।
गीली हरी घास पर,
लाल सुर्ख मखमली,
सावन की डोकरी,
रात वो सावन की मीठी मल्हार
कोयल की कूक कुहुकने लगी है।।
प्यासी प्रेयसी,
तृप्त प्रियतम संग,
सावन बरसे,
भीगा आंचल,भीगा तनमन,
सपने में भी संवरने लगी है।।
संग सहेलियों,
मां बाबा से,
गली,मोहल्ला,
अपनी धरती और धरा से
मिलने की चाहत बढ़ने लगी है।।
                           

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

गुस्से का सार्थक प्रयोग


✍️ गुस्से का सार्थक प्रयोग कीजिए____
#गुस्सा एक #एनर्जी है,बस उसे सकारात्मक तरीके से प्रजेंट करना शुरू कर दीजिए। छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना छोड़िए, बड़ी बातों के लिए गुस्सा रखिए। किसी सिस्टम को बदलने के लिए, सार्थक कार्य के लिए, #सकारात्मक गुस्सा आगे बढ़ने के लिए बहुत आवश्यक है। ऐसा गुस्सा जिसमें #समृद्धि और सफलता का सृजन होता है, उसकी जगह हम छोटे-छोटे गुस्से में अपना समय जाया करते हैं। कभी परिवार में छोटी छोटी बातों पर  गुस्सा, दादाजी अखबार नहीं पढ़ पाए इसलिए गुस्सा, मनपसंद खाना नहीं बनने पर गुस्सा, घूमने नहीं जा पाए तो गुस्सा, बच्चों के रिजल्ट पर गुस्सा, कभी किसी सब्जी वाले, ठेले वाले या सामान खरीदते समय ज्यादा पैसे लेने पर गुस्सा, जाम में फंसे होने पर गुस्सा, पार्किंग की जगह नहीं मिली तो गुस्सा, कभी किसी संस्था में लड़ाई तो गुस्सा, कभी पड़ोसियों से अपार्टमेंट में रहने वालों से, छोटे छोटे मसलों पर वाद विवाद, यहां तक कि घरवालों या पति पत्नि की आपसी सही बात पर भी गुस्सा, उफ्फ!!। इन सभी चिल्लर गुस्से को नजरअंदाज करना सीखिए, अगर कुछ अच्छा व बड़ा करना चाहते हैं। हर समय मुंह फुलाए, भृकुटि ताने घूमने में कहां की समझदारी है। (मुंह फुलाने का गुण, भारतीय समाज में बच्चे से लेकर वृद्धावस्था तक, महिला, पुरुष सभी में समान रूप से विद्यमान है) इससे आप अपनी इमेज के साथ #स्वास्थ्य ही खराब करते हैं, और हासिल कुछ नहीं होता। कई लोग तो इसे #शान भी समझते हैं, कि मेरा गुस्सा बहुत तेज है। अरे भाई! इस गुस्से का क्या फायदा, क्या कुछ हासिल कर लिया आपने। कमजोर पर तो सभी गुस्सा करते हैं। वैसे भी सबसे #आसान काम है, कुछ काम मत करो बस #मुंह फुला कर गुस्सा कर लो। अगर कुछ हासिल करना ही है तो इस गुस्से की #एनर्जी को सही काम में उपयोग कीजिए। किसी को पीट देना, कमियां निकालना, गाली गलौज कर देना, कहां की समझदारी है? यह गुस्सा नहीं सच में तो आपकी नाकामी या आपकी कमजोरी है। अगर वास्तव में कुछ करना ही चाहते हैं तो गुस्से की #एनर्जी को किसी सार्थक काम में लगाइए, बड़ा गुस्सा पालिए, गुस्सा बुरा नहीं है, छोटी चीजों और मुद्दों पर गुस्सा बुरा है। गुस्सा एक #शक्ति है, जिसके सही इस्तेमाल से अथाह समृद्धि और सफलता पाई जा सकती है। एक बड़ा लक्ष्य चुनिए, और गुस्से की उस ताकत को झौंक दीजिए उद्देश्य प्राप्ति के लिए, और गुस्से के दम पर उस लक्ष्य को हासिल कीजिए। गुस्से की ताकत को भी पहचानिए, आपने कभी नोटिस किया है कि प्यार में हम एक हलकी चपत देते हैं, लेकिन जब गुस्से में होते हैं तो कितना बुरी तरह से पीट देते हैं। गुस्से की ताकत को #नियंत्रित कर किसी उद्देश्य पूर्ण कार्य में लगा दीजिए। सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होगी।
आपके अपार्टमेंट में चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है, आप हर समय गुस्सा होते रहते हैं कोई समाधान नहीं निकलता और इस स्थिति को देखकर नाक भौं सिकोड़ते रहते हैं। कभी चौकीदार पर गुस्सा, तो कभी अपार्टमेंट में रहने वाले साथियों पर, कभी तकदीर को कोसना, मैं कहां फंस गया। गुस्सा होना किसी समस्या का हल नहीं है। एक वाकया बताती हूं, आए दिन गंदगी से परेशान, कचरे की समस्या को लेकर, हमने सभी पड़ोसी साथियों से मिलकर इस समस्या को साझा किया, एक सिस्टम तैयार किया, कि सभी को मिलकर कचरा यहां (एक निश्चित जगह) पर डालना है, और धीरे धीरे व्यवस्था बैठने लगी, सब उस पर अमल करने लगे। हालांकि सब कुछ तुरंत नहीं होता, हथेली पर सरसों नहीं उगाई जाती, इसलिए थोड़ा धीरज भी रखना होगा। साथ वालों को भी पता होना चाहिए कि आपका गुस्सा जायज है। अब किसीको भी गुस्सा नहीं आता, यह है गुस्से की एनर्जी को किसी सार्थक सोच में बदलने का परिणाम। आप अपनी एनर्जी को गुस्से में गंवाने की जगह, सबकी बेहतरी के लिए किसी सार्थक कार्य में लगा दें।

रविवार, 23 जून 2019

hello parents, बच्चों का व्यक्तित्व विकास


✍️ hello parents__
बच्चों की जिद, गुस्से, की आदतों को कैसे कम करें। यदि समाज का उत्थान करना है तो उपयुक्त समय बचपन ही है क्योंकि यही समय है जब बुद्धि सबसे अधिक परिवर्तनशील होती है। केवल #उपदेश देने से बात नहीं बनेगी। संस्कार, आचरण से सीख कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कब और किस तरह #हस्तांतरित हो जाते हैं, और पता भी नहीं चलता। बच्चों को संस्कार #ईमानदारी, जिम्मेदारी का पाठ भी इसी तरह छोटी उम्र में ही सिखाएं। पांच या छः वर्ष तक के बच्चे अधिकतर गुण, अवगुण सीख चुके होते हैं। इस उम्र में बच्चों का ऑब्जर्वेशन बहुत उच्च होता है। इसलिए उनकी #परवरिश में सहयोगी बनें, रुकावट नहीं।
आजकल मुख्य समस्या वृद्धावस्था में बच्चों के व्यवहार को लेकर देखने में आ रही है, क्योंकि बचपन में परवरिश पर ध्यान दिया नहीं जाता, बच्चे गलत राह पर भटक जाते हैं। और फिर वृद्धावस्था में दुखी होना स्वाभाविक है। इसलिए बच्चों की परवरिश में उपदेशों से नहीं अपने आचरण से सही आदतें डवलप करें। कहते हैं नींव अगर मजबूत होगी तो इमारत (भविष्य) भी अच्छा होगा, अन्यथा बच्चे सफलतम स्तर तक नहीं पहुंच पाएंगे।
अपने बच्चों की #जिद और गुस्से को किस तरह कंट्रोल करें। जब भी बच्चा गुस्सा हो तो वह आप से उम्मीद करता है, कि आप उसकी इस हरकत पर  या तो गुस्सा या मायूस हों, जैसा की अधिकतर सभी पेरेंट्स का रिएक्शन होता है। पर आप ऐसा कुछ नहीं करें। माहौल को बदलने के लिए #इग्नोर करें या कुछ पल शांति से व्यतीत करें। उस गुस्से वाली बात से ध्यान हटाएं। और बच्चे के साथ खेलें, या कुछ हंसी मजाक करें, आप के इस बर्ताव से उसे भी हंसी आएगी। और आगे चलकर वह इस तरह गुस्सा करने से बचेगा। धैर्य रखें, सब्र का फल मीठा होता है। बच्चों को उसकी मनचाहा ना होने पर ही वे जिद करते हैं, ऐसे में उनकी इस आदत को बदलने के लिए थोड़ा धैर्य रखना सिखाएं। घर में कोई मेहमान आता है तो बच्चे को भी जिम्मेदारी सौंपें। घर में अगर बुजुर्ग  दादी बाबा, नाना नानी कोई हैं, तो उनको सहयोग करना सिखाएं, उनको कोई जिम्मेदारी सौंपे, जैसे दवा देना है, कभी हाथ पैर दबाना है, या चलने फिरने जैसे किसी काम में उनकी सहायता करना है। पढ़ाई की दिनचर्या वजह से कई बार बच्चों में कम्यूनिकेशन स्किल्स नहीं सीख पाता और बच्चे कई बार किसी नए व्यक्ति से मिलने में संकोच महसूस करतेे हैं। इससे बचने के लिए बच्चों को किसी ऐसे गेम्सस या याा एक्टिविटी में डालें, जिसमें नए व्यक्तियों से मिलने और नई एक्टिविटी करने का मौका ज्यादा से ज्यादा मिले। छुट्टियों में परिवार के लोगों और रिश्तेदारोंं से मिलवाएं।
बच्चों में धैर्य विकसित करने के लिए आप उनके साथ, उनकी पसंद के खेल खेलें। आप अपने बच्चे के साथ खेल में, जिसमें आप बच्चे बने और वह माता या पिता ऐसा करने से उसे आपका दृष्टिकोण समझ में आने लगेगा। बच्चों से उसकी राय भी पूछी जाए, आप अपने बच्चे से अपनी छोटी मोटी परेशानियों के हल मांगे, उससे अपनी रोजमर्रा की बातों को शेयर करें इससे आपके बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा, और वह आपके सामने खुलकर बातचीत करेगा। हमेशा आदेश देने की बजाय कि उसे क्या करना है, आप उससे पूछना शुरू करें, कि आप कैसे कुछ नया अलग कर सकते हैं। ऐसा करने से उसे अपनी #अहमियत को महसूस करने में मदद मिलेगी। उनकी बातों को भी महत्व दें। इस तरह के कुछ सुझावों से आप अपने बच्चे के स्वभाव, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट की आदतों से छुटकारा पा सकते हैं। बच्चों के सामने आप भी आदर्श स्थापित करें, तभी सार्थक होगा अन्यथा बच्चे बहुत होशियार होते हैं। वो दिखावटी बातें तुरंत समझ जाते हैं, फिर उनसे सच की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं हो सकती।

सोमवार, 17 जून 2019

पत्र का पत्रनामा

✍️ पत्र का पत्रनामा___
यत्र कुशलम् तत्रास्तु, से शुरू
थोड़े लिखे को बहुत समझना से खत्म
जिनको पढ़, पाठक उन्हीं भावनाओं में बह जाए,
कुछ प्रेषित पत्र सिलेबस का हिस्सा हो गए,
कुछ #अप्रेषित पत्र बेस्टसेलर किताब बन गए।
पत्र__
जिसमें समाए थे, मन के उदगार
समुद्र सी गहराई, भावनाएं हजार
किसी का रोजगार
अम्मा का इंतजार 
प्रिय के प्रेम का इजहार 
या दूर परदेस से आए
प्रियतम की विरह वेदना,
और जल्दी आने के समाचार
पत्र
जिसमें लिखी दास्तां
और अफसाने हजार
बहन भाई का प्यार
जिससे जुड़े हैं भावों के तार
डाकिए की घंटी सुन,
भरी गर्म दोपहर में
निकल आते थे बाहर
पूछते थे, चिट्ठी आई है?
नहीं होने पर हो जाते उदास
पत्र
प्रियजन के संदेश
बुजुर्गों की आस, विश्वास
पत्र की विशेष बनावट देख
या फिर छिड़के हुए इत्र की महक
ओट में खड़ी बाला की चूड़ियों की खनक
समझ जाते थे, घर के बड़े, बुजुर्ग,
तसल्ली होने पर,
नाम लेकर बुलाते काका, चाचा
और थमा देते,
पत्र
घूंघट की ओट लिए बहू को
जो खोई है, निज खयालों में
पति गए हैं करन व्यापार
इंतजार कर रही बेटी को
जिसके पति हैं तैनात सीमा पर
अगर हाथ लग गया
पत्र
छोटी बहन या देवर के
फिर तो फरमाइश पूरी
करने पर ही पाती मिल पाती है,
मां भी छेड़ने से
कहां बाज आती है।
वो दिन पूरा खुशी में ही बीतता
पत्र
एक बार पढ़, फिर #बारबार पढ़
मन उन्हीं भावनाओं में बह जाता
कैसे भेजें संदेश
दूर गया पति,अब पिता बनने वाला
परेशान ना हो, इसलिए
छोटे मोटे दुखों का नहीं दिया हवाला
पत्र
होली, दिवाली, राखी की
बख्शीश खत्म हुई,
और अब पत्र लिखना हुआ इतिहास
और थम गए हों जैसे,
चाय के साथ
डाक बाबू के अपनेपन का अहसास।
पत्र का ये सिलसिला, कबूतर से शुरू हुआ, पत्रवाहक, टेलीग्राम, फोन, मोबाइल से होता हुआ बतख (ट्विटर) तक पहुंच गया।
पोस्टकार्ड, खुली किताब हुआ करता था, फिर अंतर्देशीय पत्र, थोड़ी प्राइवेसी लिए,या थोड़ी ज्यादा प्राइवेसी के साथ एनवलप, क्योंकि कई बार कुछ #शैतान खोपड़ी, अंतर्देशीय पत्र को भी बिना खोले पढ़ने का हुनर जानते थे, इसलिए #लिफाफा, जिसमें आप कुछ रख भी सकते थे। टेलीग्राम का नाम सुनते ही सब घबरा जाते थे। क्योंकि यह किसी आपात घोषणा जैसा ही होता था, जन्म, मरण, सेना या नौकरी का बुलावा। लेकिन जो बात उन पत्रों में थी, वो आज के मैसेज में कहां? आज भी जब घर जाती हूं, तो घर के कोने में तार को मोड़ कर बनाए #पत्रहैंगर को नहीं भूल पाती। उसमें कई तो पचास, साठ साल पुरानी चिट्ठियां भी हैं। जिन्हें पढ़ने का आनंद कुछ और है। कई बार तो #सबूत की तरह भी पेश किए जाते थे। आज तो इधर खबर, उधर #डिलीट।

शुक्रवार, 14 जून 2019

प्रेम, प्रभु का दिया अनमोल उपहार


✍️प्यार, इश्क, मोहब्बत!
प्रभु का दिया एक अनमोल उपहार___
तेरे पास बैठना भी इबादत
तुझे दूर से देखना भी इबादत.........
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत............
छाप, तिलक सब छीनी,
तो से नैना मिलाईके.........
क्या है ये सब? प्यार , इश्क, मोहब्बत या इनसे हटकर बहुत ऊपर। ये सूफियाना अंदाज है, प्रभु से लगन लगने की। अमीर खुसरो की ब्रजभाषा की एक कविता है, जिसमें दिखाया तो लड़की के लिए है लेकिन वास्तविक रूप में प्रभु कृष्ण के लिए है। जिसमें ईश्वर को पति, प्रेमी रूप व स्वयं (आत्मा) को स्त्री रूप में प्रेम को दर्शाया गया है।
हे री, मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दरद ना जाने कोय..............
जहर का प्याला राणाजी भेज्या,
पीवत मीरा हांसी............
भिलनी के बेर, सुदामा के तंदुल
रुचिरुचि भोग लगाए..............
क्या ये सब प्यार, इश्क, मोहब्बत की विभिन्न अवस्थाएं हैं, जिसमें प्रेम रूपी रोग का कोई इलाज नहीं है। प्यार विश्वास को जन्म देता है, तभी तो मीरा को अपने प्रभु पर पूरा भरोसा था। प्रेम, मनुष्य जीवन का आनंद ही नहीं, नैतिक गुण है। ये प्यार ही है, जिसमें भीलनी अपनी सुधबुध खो कर, सारे भेद मिटाकर, अपने प्रभु राम को जूठे बेर खिला रही है। जिसमें प्रभु राम जूठे बेर खा रहे हैं। और सुदामा के बाल सखा श्री कृष्ण, तंदुल खाते हुए भाव विभोर  होकर आंसुओं से सुदामा के पैर पखार रहे हैं। शायद यही प्यार की #इंतहा, अंतिम परिणीती है।
तू तू ना रहे,मैं मैं ना रहूं,
एक दूजे में खो जाएं............
प्यार में स्वयं को भुलाकर, बस हर वक़्त दूसरे का ही ध्यान रहेये प्यार ही है, जो विश्वास को जन्म देता है। प्यार, इश्क, मोहब्बत एक ही भाव के अनेक नाम, रूप के साथ ही इसके आगे भी बहुत कुछ विस्तृत, अकथनीय, अवर्णनीय भाव, जज्बात, कोई दुराव छुपाव नहीं, #निर्मल अहसास है। प्यार में बंधन नहीं, स्वतंत्रता और विश्वास है। प्यार भावनाओं का निचोड़ , समुद्र की गहराई है। प्यार किसी शर्त या कसम का मोहताज नहीं। सही मायनों में प्यार का मतलब अधिकार, लेना नहीं देना होता है।
#प्रेम आसान नहीं है, जो निराशाओं से घिरा होने के बावजूद उम्मीद की एक किरण जगाए बैठा रहता है। #इश्क भी अजीब चीज है, कभी आदमी को कितना #बहादुर बना देती है, कि उसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार। तभी तो किसी ने सही कहा है, इश्क एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। प्रेम कभी इतना #डरपोक, बुजदिल बना दे, कि उसके बिछुड़ने की सोच मात्र से ही डर लगने लगता है। कभी इतना #दुख देता है, कि आदमी मौत की तमन्ना करने लगता है, और कभी इतनी #खुशियां देता है, कि एक जिंदगी कम लगने लगती है। इश्क ना तो सिखाया जाता है, और ना ही बताया जाता है। ये आंखों का नहीं, दिल का एक #पवित्र, #रूहानी अहसास है। प्यार वह जुड़ाव है, अगर प्रभु से किया जाए तो, इश्क, #ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भी बन सकता है, बशर्ते इसमें कोई संदेह, दुराव, छलावा ना हो। प्रेम में #मैं भाव के लिए कोई स्थान नहीं है। प्रेम दो दिलों का को खूबसूरत अहसास है, जो मैं और तुम के बीच की दूरी को मिटा देता है। मैं (अहम) भाव को मिटाकर ही इसकी अनुभूति होती है। एक ताजगी का अहसास, खूबसूरत सी आस, श्रृद्धा और विश्वास है प्रेम। प्रेम ईश्वर का दिया अनमोल तोहफा है।
प्यार दुनिया के हर रिश्ते में विद्यमान है। भगवान - भक्त, गुरु - शिष्य, मातापिता - संतान, बहन - भाई, पति - पत्नि, मित्रों आदि के प्यार, इश्क, मोहब्ब्त को भला कौन वर्णन कर पाया है। प्यार के बिना जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिस पर फल, फूल नहीं लगते। प्यार बिना, जीवन सूखी नदी की तरह है। प्यार एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नहीं देता।प्यार जीवन जीने का हौसला देती है।
प्रेम गली अति सांकरी, जामें दो न समाहिं।
जब #मैं था तब हरि नहीं,अब #हरि है मैं नाहीं।।

शुक्रवार, 7 जून 2019

अमानवीयता की जड़ें, खोजनी होंगी


✍️अमानवीयता की जड़े खोजनी होंगी____
समाज में व्याप्त अपराधों, बढ़ते दुष्कर्मों के लिए हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना होगा, कुरेदना होगा उन तथ्यों को, कि आखिर मनुष्य इतना #पाशविक क्यों हो रहा है। छोटी छोटी बातों पर धैर्य खोना, हत्या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के बाद भी उनके चेहरे पर #शिकन तक नहीं होना, गंभीर चिंता का विषय है। मेरा मानना है कि इन सब की जड़ में है #शराब और #बेटों की सभी गलतियों को #जायज़ ठहराने का प्रयास। उन पर कोई रोकटोक नहीं। शायद ही कोई माता पिता अपने बेटे की गलती मानने को तैयार होंगे। इसके विपरीत, बड़ी आसानी से लड़की के ऊपर ही लांछन लगा देते हैं। लेकिन अभी हाल ही की घटना तो झकझोर देने वाली है। पिछले कुछ समय से इस तरह की घटनाओं के ग्राफ में बढ़त हो रही है।
बेटियों पर तो सबने बहुत ज्ञान दिया है, कुछ ज्ञान बेटों को भी दिया जाए। बेटा पढ़ाओ, साथ ही उन्हें #संस्कार भी सिखाओ! प्राथमिक शिक्षा के साथ बच्चे को निश्चित ही एक #जिम्मेदार नागरिक बनाने की शिक्षा जारी रहनी चाहिए।
मनुष्य के अंदर बढ़ती #पाशविकता को रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही नहीं हो सकती, हमें इसकी जड़ों तक पहुंचना ही होगा। दरअसल इस समस्या की शुरुआत #घर से ही होती है, जिसमें हमेशा ही बेटों की सभी गलतियों, कुचेष्टाओं, बेवकूफियों पर पर्दा डाला जाता है, या उनकी गलती मानी ही नहीं जाती। और यही लड़के आगे चलकर बेखौफ #अपराधी बन जाते हैं, जिन्हें किसी से डर नहीं लगता। ना परिवार से, ना ही समाज या कानून से। इसमें प्रशासन, सुरक्षा व्यवस्था व न्याय व्यवस्था भी जटिलता से परिपूर्ण है।
#नशा अपराध,अनैतिकता का सबसे #बड़ा कारण है, इस पर रोक क्यों नहीं लगती?? आजकल जितनी दुकानें दवाइयों, सब्जियों, की नहीं है, उससे कहीं ज्यादा शराब की दुकानें खुल रही हैं। हर चौथी दुकान शराब की मिल जाएगी। क्या शराब इतनी आवश्यक है। आम गरीब आदमी सारी चीजें सरकार से मुफ्त पानी की चाहत रखता है, लेकिन शराब के लिए पैसे का जुगाड कर ही लेता है, उधर सरकार की मंशा भी क्या है, क्या यही कि आम आदमी सोचने की स्थिति में ही ना रहे, जिससे कुछ लोगों की जेबें भी भरती रहें, और उनकी ही हुकूमत बनी रहे।
शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने से, सरकारी तंत्र की #ऊर्जा भी बचे, देश का #भविष्य भी!!
समस्या के हल के लिए, कानून, सुरक्षा व्यवस्था को तो सजग चुस्त दुरुस्त होना ही है, साथ ही समाज में पनप रही शराब संस्कृति पर भी रोक जरूरी है। आजकल शायद ही कोई टीवी सीरियल होगा, जो बिना शराब सेवन के पूरा होता हो, क्या युवा, क्या बूढ़े, दादियां, लड़कियां आखिर हम कौन सी संस्कृति परोस रहे हैं।
कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि #बोतल में #शराब है। किन्तु इस एक #शराब शब्द में बहुत #भयंकर अर्थ छिपा है।जैसे एक छोटे से बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है, किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार #शराबरुपी #विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है। समाज में व्याप्त अपराधों की जड़ है शराब।
आए दिन पुरुषों को शराब पीने के बाद सड़क पर, नालियों में गिरे देखती हूं तो बहुत दुख होता है।
लोग पीने का बहाना ढूंढ लेते हैं। सुरक्षा तंत्र, प्रहरी, न्याय तंत्र, चिकित्सा जगत, आइटी सेक्टर, पत्रकारिता, जातिवाद, चालक, नौकरी पेशा, व्यवसाई, मार्केटिंग, मॉडलिंग, नेता, अभिनेता, अमीर, गरीब, गुंडे, शरीफ, खुशी, गम, ऊंचे स्तर का दिखावा, प्रेम में छलावा, लाचारी, बेरोजगारी, तनाव, भटकाव, जुआरी, भिखारी, आदिवासी, या भोग विलासी #नाजाने ऐसे कितने #बहाने हैं, जो पीने वाले अक्सर खोजते रहते हैं। बेरोजगारी भी एक बहाना ही है, लेकिन उस बेरोजगारी में भी पीने के लिए, पैसे पता नहीं कहां से पैसे आ जाते हैं। स्वयं को पाक साफ दिखने के लिए इन बहानों (excuses) से बचना छोड़िए। नशे की आदत, दीमक की तरह मनुष्य के शरीर को खा जाता है। नशा वह जहर है, जिसे लोग बड़े स्वाद और शान के साथ गटकते हैं, इस तरह बच्चों की गलतियों के लिए जिम्मेदार और इसका दोषी कौन है????? शायद पैरेंट्स!! नशा अपराध की जड़ है। बच्चों को अच्छे संस्कार, परवरिश देना तो #पैरेंट्स की जिम्मेदारी है। इसके विपरीत, पैरेंट्स! खुद सब चलता है, कह कर #सपोर्ट करते हैं, तो क्या किया जाए?? या बेटों के लिए सब #जायज है, चाहे वो कुछ भी करे। सीखता तो बच्चा घर से ही है। लेकिन कुछ #स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचें, कि ये बच्चे! परिवार हित, देश, समाज के लिए यह भी आपके द्वारा एक योगदान ही है।
अच्छी परवरिश माता पिता की सबसे बड़ी चिंता है उनका बच्चा पढ़ाई, लिखाई ,खेलकूद, हर क्षेत्र में अग्रणी रहे यह उनकी चिंता है। बच्चों को उनकी गलती के अनुसार कभी-कभी दंड देना भी आवश्यक है, उनकी गलती के अनुसार अगर ज्यादा सजा दी जाए तो भी सही नहीं है। बस बच्चे पर उसका असर सही हो, यह आवश्यक है।